14-04-2022, 02:52 PM
भाग -27
अगले कुछ दिनों में सुगना और सरयू सिंह की बीच अंतरंगता और बढ़ती गई. कजरी ने कुंवर जी और सुगना को खुली छूट दे रखी थी। सरयू सिंह और सुगना अब दिन में भी एकाकार हो जाते। इधर कजरी रसोई में खाना पकाती उधर दोनों प्रेमी युगल अपनी रास लीला रचाते। सुगना के अस्त-व्यस्त कपड़े और बिखरे हुए बाल देख कजरी सारा माजरा समझ जाती और मुस्कुराते हुए सुगना से पूछती
"भीतरी गिरावले हां की फिर चुचिये पर"
सुगना शर्मा जाति परंतु वह इशारों ही इशारों में कजरी को उत्तर दे जाती। एक बार कजरी के प्रश्न पूछने पर सुगना उत्तर न दे पायी उसके मुंह में लड्डू भरा हुआ था उसने अपनी साड़ी घुटनों तक उठा दी जांघों से बहता हुआ वीर्य घुटनों तक आ चुका था।
कजरी सारा माजरा समझ गई और मुस्कुराने लगी और बोली...
"अब लगाता तोहार पेट फूल जायी। अपना मन भर सुख ले ल"
बेचारी कजरी को क्या पता था जब तक सुगना लड्डू खाती रहती उसका गर्भवती होना असंभव था.
सुगना मुस्कुरा रही और सरयू सिंह द्वारा दिया हुआ लड्डू खा रही थी। कजरी ससुर बहू के इस प्रेम से अभिभूत थी परंतु लड्डू का राज उसे भी समझ ना आ रहा था।
इधर जैसे-जैसे सुगना अपनी अदाओं से सरयू सिंह को रिझा रही थी उधर सरयू सिंह भी उत्तेजना को नए मुकाम पर ले जा रहे थे। वह शहर जाकर वह सुगना के लिए तरह-तरह की डिजाइनर पेंटी और ब्रा ले आए साथ ही साथ कुछ मैक्सी भी खरीद लाये।
सुगना उनके ख्वाबों की शहजादी वह उसे परियों की तरह सजाना चाहते थे और जी भरकर उसे चोदना चाहते थे। कभी-कभी वह घंटों सुगना के साथ नग्न होकर कोठरी में बंद रहते और कजरी को मजबूरन आवाज देकर उन दोनों को अलग करना पड़ता.
सुगना मैक्सी में अपनी आकर्षक काया लिए हुए लहराती हुई इधर-उधर घूमती और सरयू सिंह मौका देख कर उसे अपनी गोद में बैठा लेते। जब-जब सुगना का चुदने का मन होता वह अपनी पैंटी न पहनती और अपने बाबू जी की गोद में बैठते ही वह जादुई लंड सुगना की पनियायी बुर में प्रवेश कर जाता। उनकी गोद मे उछल कूद करने के बाद सुगना को लड्डू मिलता और वह अपनी जांघों पर बहता हुआ वीर्य लेकर खुशी खुशी वापस कजरी के पास चली जाती.
नया महीना आ चुका था सुगना का भी और अंग्रेजी कैलेंडर का भी। कैलेंडर के नए पृष्ठ पर समुद्र की खूबसूरत फ़ोटो थी जिसे सुगना मंत्रमुग्ध होकर देखती रह गयी। सुगना के चेहरे पर खुशी आ गई।
वह एकटक उस फ़ोटो को देखे जा रही थी तभी सरयू सिह कोठरी में आ गए। सरयू सिंह ने सुगना को गोद में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोले।
" का देख तारू?"
"कतना सुंदर बा ई जगह हमनी के कभी देखे के ना मिली."
सुगना ने अनजाने में ही बाहर घूमने की इच्छा जाहिर कर दी। कई वर्षों बाद उसके मन में यह इच्छा जागी थी। सरयू सिंह को अपनी प्रेमिका की यह इच्छा हनीमून जैसी प्रतीत हुई। सरयू सिंह ने हिम्मत जुटाई और सुगना को किसी समुद्र तट पर ले जाने की सोचा परंतु यह इतना आसान न था वह किस मुंह से सुगना को हनीमून पर ले जाते।
जहां चाह वहां राह। सरयू सिंह ने अपनी व्यूह रचना की और रात को अपनी बाहों में सुगना को लेकर उसे यह खुशखबरी दी। सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने सरयू सिंह को चूम लिया और एक नई उत्तेजना के साथ उनके ऊपर आ गई सच कहते हैं जब प्रसन्नता मन पर हावी हो तो चुदने चुदाने का आनंद और भी बढ़ जाता है।
सुगना ने इसकी जानकारी कजरी को दी। कजरी भी बेहद प्रसन्न हुई अभी तक सरयू सिंह अपने मन में सिर्फ सुगना का ख्याल लिए हुए हनीमून की तैयारी कर रहे थे उधर कजरी ने भी साथ चलने की इच्छा जाहर की उस बात से उनकी कल्पना में व्यवधान आया और उनके चेहरे पर थोड़ी उदासी आ गई।
नियति मुस्कुरा रही थी। जिस कजरी ने सरयू सिंह को पिछले 10 - 15 सालों से हर सुख दिया था वह उस सुख और उसका साथ भूल कर उसकी बहू सुगना के साथ रंगरलिया मना रहे थे। उन्होंने कजरी को भी साथ ले चलने की स्वीकृति दे दी। खैर कजरी की उपस्थिति से ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था। सुगना और सरयू सिंह का मिलन तब तक निर्बाध रूप से होता रहता जब तक कि सुगना गर्भवती ना हो जाती यह बात कजरी भी जानती थी और चाहती भी।
सरयू सिंह ने अपनी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी जिंदगी के सारे अरमान पूरे करने अपनी भौजी कजरी और बहू सुगना को लेकर उड़ीसा के समुद्रतट पुरी जाने की तैयारी करने लगे।
उन्होंने यह बात अपने दोस्त हरिया से कहां
"ढेर दिन हो गोहिल सोचा तानी कजरी के तीरथ (तीर्थ) करा ले आई फेर बुढ़ापा में जाने कब मौका मिली की ना मिली"
सरयू सिंह ने अपने हनीमून को कजरी के सहारे एक नया मोड़ दे दिया था वह गांव में प्रतिष्ठित तो थे ही और अपनी भौजी को तीर्थ पर ले जाने की बात से गांव में उनका सम्मान और बढ़ गया था।
हरिया भी सरयू सिंह से बेहद प्रभावित हो गया उसने पूछा
"और सुगना बेटी ?."
"अकेले उ कहां रही उ भी संग ही जायी।"
हरिया बात समझ चुका था उसने सरयू सिंह के घर की देखरेख करने का जिम्मा उठा लिया। यह पहला अवसर था जब वह अपनी भौजी को लेकर किसी दूसरे शहर में जा रहे थे और आने वाले कई दिन सिर्फ और सिर्फ पर्यटन और सुगना के साथ हनीमून का आनंद लेना चाहते थे।
कजरी भौजी की खुली सहमति और सुगना की इच्छा दोनों ही सुगना से संभोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करती उन्होंने मन ही मन कई सारी कल्पनाएं की थी जिन्हें वह साकार करना चाहते थे। अपनी सुगना और ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्लीपर क्लास के तीन टिकट कटा लिए और अपनी बहु सुगना और भौजी कजरी को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकलने की तैयारी करने लगे।
सुगना को गर्भधारण से बचाने के लिए अब तक वह जिस लड्डू का प्रयोग करते आ रहे थे उसे आगे प्रयोग करना कठिन होता इस बात का अंदाजा उन्हें था। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोध के अन्य उपायों की जानकारी ली। दूसरा उपाय एक इंजेक्शन था जिससे अनचाहे गर्भ को अगले 2 वर्ष तक रोका जा सकता था सरयू सिंह अपनी वासना के अधीन थे उन्होंने मन ही मन सुगना को वह इंजेक्शन दिलाने की सोची .
परंतु जब जब वह उसके मासूम चेहरे को देखते और उसकी मां बनने की चाह के बारे में सोचते वह अपने फैसले में पाप का अंश महसूस करते। उनकी दुविधा बढ़ रही थी और पुरी जाने के दिन नजदीक आ रहे थे इसी दौरान सुगना के हाँथ में लोहे की एक पुरानी कील चुभ गई। उन दिनों टिटनेस इंजेक्शन का बहुत प्रचलन था।
सरयू सिंह सुगना को लेकर प्राथमिक सामुदायिक केंद्र पहुंच गए। एक पल के लिए सरयू सिंह की वासना फिर हावी हो गई और सुगना को उन्होंने 2 इंजेक्शन लगवा दिए। कम्पाउंडर राजवीर उनका राजदार बन गया उसने सुगना को 2 इंजेक्शन लगाए। पहला टिटनेस का और दूसरा आने वाले 2 वर्ष तक उसकी खुशियों का।
सुगना को एक इंजेक्शन के बारे में तो पता था परंतु दूसरे इंजेक्शन से वह पूरी तरह अनजान थी उसमें अपने बाबू जी पर पूरा विश्वास किया था परंतु सरयू सिंह ने अपनी बहू से छल किया था।
इंजेक्शन सुगना के शरीर में प्रवेश कर चुका था अब उसका कोई काट ना था अगले 2 वर्ष तक सुगना को सिर्फ और सिर्फ चुदना था और प्रकृति द्वारा प्रदत गदराई हुई जवानी का भरपूर आनंद लेना था। सरयू सिंह का वीर्य उसकी बुर के लिए किसी काम का ना रह गया था उससे सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों की मालिश हो सकती थी।
कुछ ही दिनों बाद सरयू सिंह अपनी बहू सुगना और भौजी कजरी को लेकर ट्रेन में सवार हो चुके थे सबके मन में अपने अपने अरमान थे कजरी को इस बात का इल्म न था की सरयू सिंह इस अवसर को हनीमून के रूप में देख रहे हैं परंतु कजरी खुद मन ही मन यह सोच रही थी कि क्या वह तीनों लोग एक ही कमरे में रहेंगे? यदि ऐसा हुआ तो क्या उसके कुंवर जी बिना संभोग किए रह पाएंगे?
सरयू सिंह जब जब अपनी पुरी यात्रा को याद करते थे उनका ल** तनाव में आ जाता था और जब तक कि उसे सुगना कि बुर् का कोमल स्पर्श ना मिलता वह शांत ना होता.
(आइए कहानी को वर्तमान में ले आते हैं)
हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे हुए सरयू सिंह अपनी सुनहरी यादों से वापस आ गए थे उनका लंड सुगना के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर खड़ा हो गया था जिसे वह अपने हाथों से शांत करने का प्रयास कर रहे थे। जितना ही वह उसे शांत करते वह उद्दंड बालक की तरह उतना ही उत्तेजित होता। वह धोती से बाहर आ चुका था कजरी पड़ी बेंच पर सोने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल को देखकर व उनके पास आ गई और बोली
"नींद नईखे आवत का ?"
सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती के अंदर ढका पर उसके आकार को कजरी से न छुपा पाए। कजरी ने उसका तनाव देख लिया और बोला
"अब ई महाराज काहै खड़ा बाड़े? रउआ ई कुल मत सोचल करिन।"
सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा
"आज हमरा दीपावली वाला दिन याद आवत रहल हा।"
कजरी मुस्कुराने लगी उसे भी दीपावली की वह रात कभी न भूलती थी। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने हाथों में ले लिया और बोली
"अब तू शांत हो जा. सुगना के लाइका दे देला अब ओकरा के तंग मत कर"
सरयू सिंह ने कहा " अब सुगना के मन ना करेला का"
कजरी ने कहा
"ना आइसन बात नइखे। लेकिन राउर दाग से चिंतित रहेले। ओकरा लागेला कि जब जब रउआ संगे सुते ले राउर दाग और बढ़ जाला"
सरयू सिंह को भी यह प्रतीत होता था कि नीचे इस दाग में कोई न कोई रहस्य अवश्य है परंतु वह इसका स्पस्ट उत्तर नही जानते थे।
कजरी उनके लंड को हाथों से सहला रही थी। उनकी प्यारी बहू सुगना अपनी सहेली लाली के घर जा चुकी थी। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नर्स कमरे में प्रवेश की। उस नर्स की उम्र सुगना जैसी ही थी और प्रकृति ने उसकी चुचियों, जांघों और नितंबों को भी वैसी ही खूबसूरती प्रदान की थी जैसी उनकी बहू सुगना को। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्हें पता था वह नर्स के साथ कुछ भी कर पाना असंभव था पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह धोती से अपने तने हुए लंड को छुपा रहे थे।
अचानक उन्हें नर्स के हाथ में इंजेक्शन दिखाई पड़ा सरयू सिंह के होश फाख्ता हो गए। सारी उत्तेजना ढीली पड़ती गई। परंतु उनका लंड अभी भी इस अनजानी और खूबसूरत बुर की कल्पना में डूबा हुआ था। वह अपना सर झुकाने को तैयार न था।
नर्स ने कहा
"पीछे पलट जाइए कमर में इंजेक्शन देना है"
सरयू सिंह के करीब खड़ी कजरी ने उनकी धोती सरकाई और नर्स ने अपने कोमल हाथों से उनके नितंबों को थोड़ा रगड़ा और अगले ही पल इंजेक्शन घुसा दिया। सरयू सिंह दर्द से कराह उठे ज्यों ज्यों इंजेक्शन में भरी दवा अंदर जा रही थी एक तेज दर्द की लहर सरयू सिंह को महसूस हो रही थी अब उनका लंड भी अपना गुरुर भूलकर धीरे-धीरे शिथिल हो रहा था।
नर्स के जाने के पश्चात सरयू सिंह इस दर्द से निजात पाने की कोशिश कर रहे थे कजरी उनके नितंबों को से लाई जा रही थी उनका लंड अब उम्मीद खो चुका था और सिकुड़ कर छुप गया था।
कजरी ने उस लंड को वापस छूने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने रोक लिया और बोला
"जायेद अब रहे द"
सरयू सिंह की उत्तेजना शांत हो चुकी थी और वह सोने का प्रयास करने लगे।
उधर हरिया सुगना और सूरज को लेकर लाली के घर आ गया। लाली सुगना को देखकर खुश हो गई उसने अपने पिता और सहेली का खूब स्वागत किया सरयू सिंह की स्थिति जानकर वह थोड़ा दुखी हुई पर उसे इस बात का संतोष था कि अब वह पूरी तरह होश में थे।
राजेश के घर में दो कमरे थे दोनों ही कमरे पर्याप्त बड़े थे वैसे भी रेलवे के घरों में जगह की कमी नहीं होती है राजेश और लाली ने दो चौकियों को जोड़कर एक बड़ा सा बिस्तर बना लिया था जिस पर राजेश और लाली तथा उनके दोनों बच्चे राजू और रीना सोया करते थे।
यह बिस्तर राजू और रीना की बाल सुलभ क्रीडा ओं का मैदान भी था और बच्चों के सो जाने के पश्चात वह काम क्रीड़ा के लिए भी प्रयोग में आता था।
दूसरे कमरे में उन्होंने बैठका बना रखा था जिसमें एक पतली चौकी पड़ी हुई थी जो किसी आगंतुक के सोने के काम आती घर में एक रसोई और एक गुसलखाना भी था।
लाली और सुगना रसोई खाना बना रहे थे और हरिया अपने नाती और नातिन के साथ खेल रहा था। सुगना का पुत्र सूरज एक किनारे आराम से सो रहा था। राजू और रीमा कभी उसकी पीठ पर चढ़ते कभी उसके मूंछ के बाल खींचते हरिया उनकी बाल सुलभ लीलाओं से प्रसन्न होकर ऊपर वाले को धन्यवाद दे रहा था जिसने उसकी लाली को ऐसे सुंदर और प्यारी औलाद दे दी थी। वह राजेश का भी शुक्रगुजार था जिसने लाली को हर सुख दिया था।
राजेश को आज घर नहीं आना था वह आज ही ट्रेन लेकर लखनऊ गया हुआ था। हरिया रात में खाना खाने के पश्चात बैठका में लगे हुए चौकी पर सो गया सुगना और लाली दोनों अंदर के कमरे में आ गई बच्चों को सुलाने के बाद बिस्तर पर लेटे लेटे वह दोनों बातें करने लगी।
सुगना उठकर बाथरूम की तरफ गई तभी लाली को राजेश की बातें याद आने लगी आज राजेश के ख्वाबों की मलिका उसके घर में थी घर में ही क्या उसके अपने बिस्तर पर थी काश राजेश यहां होता और अपनी सुगना को अपने बिस्तर पर देखकर उसकी कल्पनाएं आसमान छूने लगती। सुगना स्वयं लाली के बिस्तर पर आकर उत्तेजित महसूस कर रहे थे उसे पता था इस बिस्तर पर उसकी सहेली लाली जाने कितनी बार चुदी होगी।
सुगना के आने के बाद लाली ने कहा
"तोर जीजा जी आज घर में रहिते तो खुश हो जइते"
" ई काहें"
"उनके से पूछ लीह"
"खिसिया मत" ( नाराज मत हो)
लाली खुश थी उसने सुगना को राजेश की कल्पनाओं के बारे में खुलकर बता दिया जितना वह राजेश की कामुक कल्पनाओं के बारे में सुगना को बताती सुगना के कान और चौड़े हो जाते तथा बुर सावधान हो जाती.
सुगना और लाली दोनों अच्छी सहेलियां थी लाली के मुंह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सुगना की बुर पनिया चुकी थी लाली भी उत्तेजित थी। दोनों सहेलियां अपने अपने मन में कई तरह के ख्याल लेकर सो गयीं।
अगली सुबह हरिया और सुगना वापस हॉस्पिटल चले गए। लाली और सुगना ने मिलकर कजरी और सरयू सिंह के लिए खाना बना लिया था। हॉस्पिटल पहुंचने पर सुगना को देख सरयू सिंह प्रसन्न हो गए एक ही रात में सुगना से हुई दूरी ने उन्हें कर भावुक कर दिया था वह सुगना के लिए दिन पर दिन अधीर होते जा रहे थे।
दोपहर में राजेश लखनऊ से वापस आ गया लाली ने उसे सरयू सिंह और सुगना के आने की सूचना दी राजेश एक तरफ तो सरयू सिंह के लिए थोड़ा सा दुखी हुआ पर सुगना के आगमन के बारे में सुनकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके इतने करीब है इस एहसास ने उसके दिल और दिमाग को अंदर तक गुदगुदा दिया वह लाली को दिखाकर बिस्तर के उस भाग को चूमने लगा जहां सुगना सोई हुई थी लाली हंस रही थी।
उसने कहा..
चली हॉस्पिटल चल के सब केहू से मिली आईल जाओ
राजेश प्रसन्न हो गया और कुछ देर बाद लाली और अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर हॉस्पिटल जाने के लिए रिक्शे में बैठ गया…
शेष अगले भाग में
अगले कुछ दिनों में सुगना और सरयू सिंह की बीच अंतरंगता और बढ़ती गई. कजरी ने कुंवर जी और सुगना को खुली छूट दे रखी थी। सरयू सिंह और सुगना अब दिन में भी एकाकार हो जाते। इधर कजरी रसोई में खाना पकाती उधर दोनों प्रेमी युगल अपनी रास लीला रचाते। सुगना के अस्त-व्यस्त कपड़े और बिखरे हुए बाल देख कजरी सारा माजरा समझ जाती और मुस्कुराते हुए सुगना से पूछती
"भीतरी गिरावले हां की फिर चुचिये पर"
सुगना शर्मा जाति परंतु वह इशारों ही इशारों में कजरी को उत्तर दे जाती। एक बार कजरी के प्रश्न पूछने पर सुगना उत्तर न दे पायी उसके मुंह में लड्डू भरा हुआ था उसने अपनी साड़ी घुटनों तक उठा दी जांघों से बहता हुआ वीर्य घुटनों तक आ चुका था।
कजरी सारा माजरा समझ गई और मुस्कुराने लगी और बोली...
"अब लगाता तोहार पेट फूल जायी। अपना मन भर सुख ले ल"
बेचारी कजरी को क्या पता था जब तक सुगना लड्डू खाती रहती उसका गर्भवती होना असंभव था.
सुगना मुस्कुरा रही और सरयू सिंह द्वारा दिया हुआ लड्डू खा रही थी। कजरी ससुर बहू के इस प्रेम से अभिभूत थी परंतु लड्डू का राज उसे भी समझ ना आ रहा था।
इधर जैसे-जैसे सुगना अपनी अदाओं से सरयू सिंह को रिझा रही थी उधर सरयू सिंह भी उत्तेजना को नए मुकाम पर ले जा रहे थे। वह शहर जाकर वह सुगना के लिए तरह-तरह की डिजाइनर पेंटी और ब्रा ले आए साथ ही साथ कुछ मैक्सी भी खरीद लाये।
सुगना उनके ख्वाबों की शहजादी वह उसे परियों की तरह सजाना चाहते थे और जी भरकर उसे चोदना चाहते थे। कभी-कभी वह घंटों सुगना के साथ नग्न होकर कोठरी में बंद रहते और कजरी को मजबूरन आवाज देकर उन दोनों को अलग करना पड़ता.
सुगना मैक्सी में अपनी आकर्षक काया लिए हुए लहराती हुई इधर-उधर घूमती और सरयू सिंह मौका देख कर उसे अपनी गोद में बैठा लेते। जब-जब सुगना का चुदने का मन होता वह अपनी पैंटी न पहनती और अपने बाबू जी की गोद में बैठते ही वह जादुई लंड सुगना की पनियायी बुर में प्रवेश कर जाता। उनकी गोद मे उछल कूद करने के बाद सुगना को लड्डू मिलता और वह अपनी जांघों पर बहता हुआ वीर्य लेकर खुशी खुशी वापस कजरी के पास चली जाती.
नया महीना आ चुका था सुगना का भी और अंग्रेजी कैलेंडर का भी। कैलेंडर के नए पृष्ठ पर समुद्र की खूबसूरत फ़ोटो थी जिसे सुगना मंत्रमुग्ध होकर देखती रह गयी। सुगना के चेहरे पर खुशी आ गई।
वह एकटक उस फ़ोटो को देखे जा रही थी तभी सरयू सिह कोठरी में आ गए। सरयू सिंह ने सुगना को गोद में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोले।
" का देख तारू?"
"कतना सुंदर बा ई जगह हमनी के कभी देखे के ना मिली."
सुगना ने अनजाने में ही बाहर घूमने की इच्छा जाहिर कर दी। कई वर्षों बाद उसके मन में यह इच्छा जागी थी। सरयू सिंह को अपनी प्रेमिका की यह इच्छा हनीमून जैसी प्रतीत हुई। सरयू सिंह ने हिम्मत जुटाई और सुगना को किसी समुद्र तट पर ले जाने की सोचा परंतु यह इतना आसान न था वह किस मुंह से सुगना को हनीमून पर ले जाते।
जहां चाह वहां राह। सरयू सिंह ने अपनी व्यूह रचना की और रात को अपनी बाहों में सुगना को लेकर उसे यह खुशखबरी दी। सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने सरयू सिंह को चूम लिया और एक नई उत्तेजना के साथ उनके ऊपर आ गई सच कहते हैं जब प्रसन्नता मन पर हावी हो तो चुदने चुदाने का आनंद और भी बढ़ जाता है।
सुगना ने इसकी जानकारी कजरी को दी। कजरी भी बेहद प्रसन्न हुई अभी तक सरयू सिंह अपने मन में सिर्फ सुगना का ख्याल लिए हुए हनीमून की तैयारी कर रहे थे उधर कजरी ने भी साथ चलने की इच्छा जाहर की उस बात से उनकी कल्पना में व्यवधान आया और उनके चेहरे पर थोड़ी उदासी आ गई।
नियति मुस्कुरा रही थी। जिस कजरी ने सरयू सिंह को पिछले 10 - 15 सालों से हर सुख दिया था वह उस सुख और उसका साथ भूल कर उसकी बहू सुगना के साथ रंगरलिया मना रहे थे। उन्होंने कजरी को भी साथ ले चलने की स्वीकृति दे दी। खैर कजरी की उपस्थिति से ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था। सुगना और सरयू सिंह का मिलन तब तक निर्बाध रूप से होता रहता जब तक कि सुगना गर्भवती ना हो जाती यह बात कजरी भी जानती थी और चाहती भी।
सरयू सिंह ने अपनी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी जिंदगी के सारे अरमान पूरे करने अपनी भौजी कजरी और बहू सुगना को लेकर उड़ीसा के समुद्रतट पुरी जाने की तैयारी करने लगे।
उन्होंने यह बात अपने दोस्त हरिया से कहां
"ढेर दिन हो गोहिल सोचा तानी कजरी के तीरथ (तीर्थ) करा ले आई फेर बुढ़ापा में जाने कब मौका मिली की ना मिली"
सरयू सिंह ने अपने हनीमून को कजरी के सहारे एक नया मोड़ दे दिया था वह गांव में प्रतिष्ठित तो थे ही और अपनी भौजी को तीर्थ पर ले जाने की बात से गांव में उनका सम्मान और बढ़ गया था।
हरिया भी सरयू सिंह से बेहद प्रभावित हो गया उसने पूछा
"और सुगना बेटी ?."
"अकेले उ कहां रही उ भी संग ही जायी।"
हरिया बात समझ चुका था उसने सरयू सिंह के घर की देखरेख करने का जिम्मा उठा लिया। यह पहला अवसर था जब वह अपनी भौजी को लेकर किसी दूसरे शहर में जा रहे थे और आने वाले कई दिन सिर्फ और सिर्फ पर्यटन और सुगना के साथ हनीमून का आनंद लेना चाहते थे।
कजरी भौजी की खुली सहमति और सुगना की इच्छा दोनों ही सुगना से संभोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करती उन्होंने मन ही मन कई सारी कल्पनाएं की थी जिन्हें वह साकार करना चाहते थे। अपनी सुगना और ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्लीपर क्लास के तीन टिकट कटा लिए और अपनी बहु सुगना और भौजी कजरी को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकलने की तैयारी करने लगे।
सुगना को गर्भधारण से बचाने के लिए अब तक वह जिस लड्डू का प्रयोग करते आ रहे थे उसे आगे प्रयोग करना कठिन होता इस बात का अंदाजा उन्हें था। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोध के अन्य उपायों की जानकारी ली। दूसरा उपाय एक इंजेक्शन था जिससे अनचाहे गर्भ को अगले 2 वर्ष तक रोका जा सकता था सरयू सिंह अपनी वासना के अधीन थे उन्होंने मन ही मन सुगना को वह इंजेक्शन दिलाने की सोची .
परंतु जब जब वह उसके मासूम चेहरे को देखते और उसकी मां बनने की चाह के बारे में सोचते वह अपने फैसले में पाप का अंश महसूस करते। उनकी दुविधा बढ़ रही थी और पुरी जाने के दिन नजदीक आ रहे थे इसी दौरान सुगना के हाँथ में लोहे की एक पुरानी कील चुभ गई। उन दिनों टिटनेस इंजेक्शन का बहुत प्रचलन था।
सरयू सिंह सुगना को लेकर प्राथमिक सामुदायिक केंद्र पहुंच गए। एक पल के लिए सरयू सिंह की वासना फिर हावी हो गई और सुगना को उन्होंने 2 इंजेक्शन लगवा दिए। कम्पाउंडर राजवीर उनका राजदार बन गया उसने सुगना को 2 इंजेक्शन लगाए। पहला टिटनेस का और दूसरा आने वाले 2 वर्ष तक उसकी खुशियों का।
सुगना को एक इंजेक्शन के बारे में तो पता था परंतु दूसरे इंजेक्शन से वह पूरी तरह अनजान थी उसमें अपने बाबू जी पर पूरा विश्वास किया था परंतु सरयू सिंह ने अपनी बहू से छल किया था।
इंजेक्शन सुगना के शरीर में प्रवेश कर चुका था अब उसका कोई काट ना था अगले 2 वर्ष तक सुगना को सिर्फ और सिर्फ चुदना था और प्रकृति द्वारा प्रदत गदराई हुई जवानी का भरपूर आनंद लेना था। सरयू सिंह का वीर्य उसकी बुर के लिए किसी काम का ना रह गया था उससे सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों की मालिश हो सकती थी।
कुछ ही दिनों बाद सरयू सिंह अपनी बहू सुगना और भौजी कजरी को लेकर ट्रेन में सवार हो चुके थे सबके मन में अपने अपने अरमान थे कजरी को इस बात का इल्म न था की सरयू सिंह इस अवसर को हनीमून के रूप में देख रहे हैं परंतु कजरी खुद मन ही मन यह सोच रही थी कि क्या वह तीनों लोग एक ही कमरे में रहेंगे? यदि ऐसा हुआ तो क्या उसके कुंवर जी बिना संभोग किए रह पाएंगे?
सरयू सिंह जब जब अपनी पुरी यात्रा को याद करते थे उनका ल** तनाव में आ जाता था और जब तक कि उसे सुगना कि बुर् का कोमल स्पर्श ना मिलता वह शांत ना होता.
(आइए कहानी को वर्तमान में ले आते हैं)
हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे हुए सरयू सिंह अपनी सुनहरी यादों से वापस आ गए थे उनका लंड सुगना के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर खड़ा हो गया था जिसे वह अपने हाथों से शांत करने का प्रयास कर रहे थे। जितना ही वह उसे शांत करते वह उद्दंड बालक की तरह उतना ही उत्तेजित होता। वह धोती से बाहर आ चुका था कजरी पड़ी बेंच पर सोने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल को देखकर व उनके पास आ गई और बोली
"नींद नईखे आवत का ?"
सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती के अंदर ढका पर उसके आकार को कजरी से न छुपा पाए। कजरी ने उसका तनाव देख लिया और बोला
"अब ई महाराज काहै खड़ा बाड़े? रउआ ई कुल मत सोचल करिन।"
सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा
"आज हमरा दीपावली वाला दिन याद आवत रहल हा।"
कजरी मुस्कुराने लगी उसे भी दीपावली की वह रात कभी न भूलती थी। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने हाथों में ले लिया और बोली
"अब तू शांत हो जा. सुगना के लाइका दे देला अब ओकरा के तंग मत कर"
सरयू सिंह ने कहा " अब सुगना के मन ना करेला का"
कजरी ने कहा
"ना आइसन बात नइखे। लेकिन राउर दाग से चिंतित रहेले। ओकरा लागेला कि जब जब रउआ संगे सुते ले राउर दाग और बढ़ जाला"
सरयू सिंह को भी यह प्रतीत होता था कि नीचे इस दाग में कोई न कोई रहस्य अवश्य है परंतु वह इसका स्पस्ट उत्तर नही जानते थे।
कजरी उनके लंड को हाथों से सहला रही थी। उनकी प्यारी बहू सुगना अपनी सहेली लाली के घर जा चुकी थी। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नर्स कमरे में प्रवेश की। उस नर्स की उम्र सुगना जैसी ही थी और प्रकृति ने उसकी चुचियों, जांघों और नितंबों को भी वैसी ही खूबसूरती प्रदान की थी जैसी उनकी बहू सुगना को। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्हें पता था वह नर्स के साथ कुछ भी कर पाना असंभव था पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह धोती से अपने तने हुए लंड को छुपा रहे थे।
अचानक उन्हें नर्स के हाथ में इंजेक्शन दिखाई पड़ा सरयू सिंह के होश फाख्ता हो गए। सारी उत्तेजना ढीली पड़ती गई। परंतु उनका लंड अभी भी इस अनजानी और खूबसूरत बुर की कल्पना में डूबा हुआ था। वह अपना सर झुकाने को तैयार न था।
नर्स ने कहा
"पीछे पलट जाइए कमर में इंजेक्शन देना है"
सरयू सिंह के करीब खड़ी कजरी ने उनकी धोती सरकाई और नर्स ने अपने कोमल हाथों से उनके नितंबों को थोड़ा रगड़ा और अगले ही पल इंजेक्शन घुसा दिया। सरयू सिंह दर्द से कराह उठे ज्यों ज्यों इंजेक्शन में भरी दवा अंदर जा रही थी एक तेज दर्द की लहर सरयू सिंह को महसूस हो रही थी अब उनका लंड भी अपना गुरुर भूलकर धीरे-धीरे शिथिल हो रहा था।
नर्स के जाने के पश्चात सरयू सिंह इस दर्द से निजात पाने की कोशिश कर रहे थे कजरी उनके नितंबों को से लाई जा रही थी उनका लंड अब उम्मीद खो चुका था और सिकुड़ कर छुप गया था।
कजरी ने उस लंड को वापस छूने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने रोक लिया और बोला
"जायेद अब रहे द"
सरयू सिंह की उत्तेजना शांत हो चुकी थी और वह सोने का प्रयास करने लगे।
उधर हरिया सुगना और सूरज को लेकर लाली के घर आ गया। लाली सुगना को देखकर खुश हो गई उसने अपने पिता और सहेली का खूब स्वागत किया सरयू सिंह की स्थिति जानकर वह थोड़ा दुखी हुई पर उसे इस बात का संतोष था कि अब वह पूरी तरह होश में थे।
राजेश के घर में दो कमरे थे दोनों ही कमरे पर्याप्त बड़े थे वैसे भी रेलवे के घरों में जगह की कमी नहीं होती है राजेश और लाली ने दो चौकियों को जोड़कर एक बड़ा सा बिस्तर बना लिया था जिस पर राजेश और लाली तथा उनके दोनों बच्चे राजू और रीना सोया करते थे।
यह बिस्तर राजू और रीना की बाल सुलभ क्रीडा ओं का मैदान भी था और बच्चों के सो जाने के पश्चात वह काम क्रीड़ा के लिए भी प्रयोग में आता था।
दूसरे कमरे में उन्होंने बैठका बना रखा था जिसमें एक पतली चौकी पड़ी हुई थी जो किसी आगंतुक के सोने के काम आती घर में एक रसोई और एक गुसलखाना भी था।
लाली और सुगना रसोई खाना बना रहे थे और हरिया अपने नाती और नातिन के साथ खेल रहा था। सुगना का पुत्र सूरज एक किनारे आराम से सो रहा था। राजू और रीमा कभी उसकी पीठ पर चढ़ते कभी उसके मूंछ के बाल खींचते हरिया उनकी बाल सुलभ लीलाओं से प्रसन्न होकर ऊपर वाले को धन्यवाद दे रहा था जिसने उसकी लाली को ऐसे सुंदर और प्यारी औलाद दे दी थी। वह राजेश का भी शुक्रगुजार था जिसने लाली को हर सुख दिया था।
राजेश को आज घर नहीं आना था वह आज ही ट्रेन लेकर लखनऊ गया हुआ था। हरिया रात में खाना खाने के पश्चात बैठका में लगे हुए चौकी पर सो गया सुगना और लाली दोनों अंदर के कमरे में आ गई बच्चों को सुलाने के बाद बिस्तर पर लेटे लेटे वह दोनों बातें करने लगी।
सुगना उठकर बाथरूम की तरफ गई तभी लाली को राजेश की बातें याद आने लगी आज राजेश के ख्वाबों की मलिका उसके घर में थी घर में ही क्या उसके अपने बिस्तर पर थी काश राजेश यहां होता और अपनी सुगना को अपने बिस्तर पर देखकर उसकी कल्पनाएं आसमान छूने लगती। सुगना स्वयं लाली के बिस्तर पर आकर उत्तेजित महसूस कर रहे थे उसे पता था इस बिस्तर पर उसकी सहेली लाली जाने कितनी बार चुदी होगी।
सुगना के आने के बाद लाली ने कहा
"तोर जीजा जी आज घर में रहिते तो खुश हो जइते"
" ई काहें"
"उनके से पूछ लीह"
"खिसिया मत" ( नाराज मत हो)
लाली खुश थी उसने सुगना को राजेश की कल्पनाओं के बारे में खुलकर बता दिया जितना वह राजेश की कामुक कल्पनाओं के बारे में सुगना को बताती सुगना के कान और चौड़े हो जाते तथा बुर सावधान हो जाती.
सुगना और लाली दोनों अच्छी सहेलियां थी लाली के मुंह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सुगना की बुर पनिया चुकी थी लाली भी उत्तेजित थी। दोनों सहेलियां अपने अपने मन में कई तरह के ख्याल लेकर सो गयीं।
अगली सुबह हरिया और सुगना वापस हॉस्पिटल चले गए। लाली और सुगना ने मिलकर कजरी और सरयू सिंह के लिए खाना बना लिया था। हॉस्पिटल पहुंचने पर सुगना को देख सरयू सिंह प्रसन्न हो गए एक ही रात में सुगना से हुई दूरी ने उन्हें कर भावुक कर दिया था वह सुगना के लिए दिन पर दिन अधीर होते जा रहे थे।
दोपहर में राजेश लखनऊ से वापस आ गया लाली ने उसे सरयू सिंह और सुगना के आने की सूचना दी राजेश एक तरफ तो सरयू सिंह के लिए थोड़ा सा दुखी हुआ पर सुगना के आगमन के बारे में सुनकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके इतने करीब है इस एहसास ने उसके दिल और दिमाग को अंदर तक गुदगुदा दिया वह लाली को दिखाकर बिस्तर के उस भाग को चूमने लगा जहां सुगना सोई हुई थी लाली हंस रही थी।
उसने कहा..
चली हॉस्पिटल चल के सब केहू से मिली आईल जाओ
राजेश प्रसन्न हो गया और कुछ देर बाद लाली और अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर हॉस्पिटल जाने के लिए रिक्शे में बैठ गया…
शेष अगले भाग में