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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#22
भाग-21

"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ"गांव के एक किसान बुधिया ने कहा


सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।

"सीतापुर जा तानी हो"

"बहु रानी खाती पालकी ना मिलल हा का?"

"इनके मन रहे पैदल चलेके"

दरअसल पैदल चलने का सुझाव सुगना का ही था वह पालकी में अकेले नहीं जाना चाहती थी। जितना ज्यादा से ज्यादा समय वह अपने बाबुजी के साथ व्यतीत करती उतना ही आनंदित होती जब तक वह गांव के करीब थी.
 तब तक सुगना सरयू सिंह के पीछे पीछे चल रही थी. सरयू सिंह अपने गांव से बाहर आ चुके थे और अभी सुगना का गांव आने में कुछ वक्त था बीच का यह रास्ता लगभग एकांत जैसा था सरयू सिंह ने सुगना से कहा "सुगना बाबू तू आगे-आगे चल...अ"


सुगना मासूम लड़की की तरह सरयू सिंह के आगे आगे चलने लगी। दो खेतों के बीच पतली पगडंडी जिस पर बमुश्किल एक आदमी चल पाता है सुगना और शरीर सिंह आगे का सफर तय करने लगे सुगना अपने मदमस्त यौवन के साथ सरयू सिंह की निगाहों के सामने आगे आगे चलने लगी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की खूबसूरती के दर्शन होने लगे। जैसे-जैसे सुगना के कदम आगे बढ़ते उसकी उभरे हुए नितंब सरयू सिंह का ध्यान खींचते जब कभी वह अपने शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए अपने हाथ उठाती उसकी कोमल बाहें सरयू सिंह को आमंत्रित करती वह सुगना के पीछे पीछे चल रहे थे। और अपनी बहु पदमा के अंग प्रत्यंगो का निरीक्षण कर रहे थे जिन्हें दीपावली के दिन सहलाते और मसलते हुए सुगना को उसके जीवन का पहला संभोग सुख देना था।

सरयू सिंह जी की निगाहों ने अपनी पुत्री समान बहू के वस्त्रों का हरण कर लिया था जैसे-जैसे सरयू सिंह सुगना के नितंबों के बीच अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे उन्हें सुगना के नितंब निर्वस्त्र दिखाई दे रहे थे और उन हिलते हुए मादक नितंबों के बीच सुगना की कोमल गांड की कल्पना कर रहे थे निश्चय ही सुगना अपनी मां पदमा से ज्यादा खूबसूरत थी और हो भी क्यों ना सुगना की कमसिन उमर और गदराई जवानी ऊपर वाले की देन थी।

सुगना को अब तक एहसास हो चुका था कि उसके बाबूजी उसके शरीर को देख कर आनंदित हो रहे हैं । उसने पीछे मुड़कर देखा सरयू सिंह अपनी लंगोट में तन रहे लंड को व्यवस्थित कर रहे थे। सुगना शर्मा गयी।

सुगना और सरयू सिंह बातें करते हुए पदमा के घर पहुंच गए। पदमा का छोटा भाई सोनू कुछ दूर पहले ही गली में खेल रहा था उसने शरीर सिंह और पदमा को आते हुए देख लिया उसकी खुशी की सीमा न रही वह सरयू सिंह और सुगना के पास आने की बजाय भागता हुआ घर गया। शायद उसे अपने घर यह सूचना देना ज्यादा आवश्यक लगा वनस्पत कि वह अपनी बहन सुगना और सरयू सिंह से मिलता।

पदमा खुश हो गई। सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपने गोबर से सने हाथ धोकर सुगना के स्वागत के लिए तैयार हो गयीं। घर पहुंचते ही तीनों बच्चों ने सुगना को घेर लिया गजब का उत्साह था बच्चों में।

सरयू सिंह ने अपना झोला खोला और जो मिठाईयां कजरी और सुगना ने बनाई थी वह बच्चों के सुपुर्द कर दीं। उनके इस कार्य से बच्चों और सरयू सिंह में थोड़ी आत्मीयता बढ़ी।

सोनू ने पूछा

" चाचा कब चलल रहला हा"

सोनू द्वारा सरयू सिंह से जोड़ा गया यह रिश्ता अपेक्षाकृत ज्यादा उचित था। इसने सुगना और सरयू सिंह के बीच चल रहे कामुक प्रेम प्रसंग की ग्लानि को थोड़ा कम कर दिया। सरयू सिंह खुश हो गए। उन्होंने सोनू से खेती किसानी की बातें की और कुछ ही देर में बाद घर के आंगन से सफेद साड़ी में लिपटी हुई पदमा आज कई दिनों बाद उनके नजरों के सामने आ गयी।

सरयू सिंह खुद उस समय लगभग 45 -46 वर्ष के युवा थे पदमा की उम्र भी 42 -43 के आसपास रही होगी. इस उमर में भी पदमा के शरीर का कसाव कजरी जैसा ही था. विधवा होने के बावजूद गांव में लगातार श्रम करने की वजह से वाह अपने शरीर की बनावट को कायम रख पाई थी। सरयू सिंह की निगाहें एक सधे हुए दर्जी की भांति उसके शरीर के उभारों और कटावों का नाप लेने लगीं। तभी पद्मा ने उन्हें गुड़ और पानी पकड़ा दिया। जाने अधेड़ महिलाएं इतनी निश्चिंत क्यों होती है। झुकते समय यदि वह सावधानी ना बरतें तो अपनी चूचियां अनायास ही सामने बैठे पुरुष को दिखा देती हैं।

पद्मा ने भी अनजाने में अपनी गदरायी हुई चूँचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा दिए। पर जैसे सांड के मन मे गाय की जगह बछिया छायी हुई थी वैसे ही सरयू सिंह के मन में सुगना छाई हुई थी। सरयू सिंह ने पदमा की गदरायी हुई चुचियों को नजरअंदाज कर दिया।

अभी एक-दो दिन पहले ही सुगना का कसा हुआ बदन उन्होंने अपने हाथों से हुआ था। छूआ ही क्या उसके शरीर के हर अंग को महसूस किया था तथा अपनी उंगलियों से सुगना की कुंवारी बुर को जी भर कर सहलाया तथा उसका कौमार्य हरण किया था।

पदमा पुरानी रसमलाई थी और सुगना ताजी। इस समय सरयू सिंह की कामुकता पर सुगना एकछत्र राज कर रही थी।

सोनू ने कहा

"चाचा तनी धान में पानी डालकर आव तानी तब तक रउआ आराम कर लीं"

सोनी - मोनी भी खेलने भाग गयीं।

अब घर में सिर्फ सुगना और पदमा ही बचे थे। कुछ देर बाद सुगना भी अपनी सहेलियों से मिलने चली गई।

पद्मा सरयू सिंह के लिए खाना बना रही थी वह सरयू सिंह की यादों में खो गयी। और संयोग से उसी दिन को याद करने लगी (जिस दिन को रास्ते मे सरयू सिंह याद कर रहे थे) जब वह दूध पीती हुई सुगना को लेकर अपने मायके गई हुई थी।

सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। तांगे से उतरते हुए उसमें सरयू सिंह को देख लिया था और उसकी आंखों में चमक आ गई थी। ऐसा नहीं था कि सिर्फ पद्मा ही खुश हुयी थी सरयू सिंह भी उतना ही खुश थे।

आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति ललक जाग उठी प्रेम छलक उठा। शाम होते होते पदमा सरयू सिंह से मिलने उनके मामा के घर आ गयी। सरयू सिंह ने सुगना को अपनी गोद में ले लिया और अपने जेब से ₹50 निकालकर पद्मा को दिया और बोला "केतना प्यारी बेटी बिया"

सुगना भी उनके साथ खेलने लगी वह उनकी गोद में रच बस गई. वह कभी उनकी मूछें छूती कभी बाल पकड़ती पदमा सुगना को बार-बार रोकती पर सुगना उसे अपना हक मान रही थी।

(निष्ठुर नियति को यह पवित्र प्यार रास न आया था और उसने अगले कुछ सालों में उसने यह परिस्थितियां पैदा कर दी कि अपनी गोद में खिलाई हुई सुगना को सरयू सिंह दीपावली के दिन चोदने जा रहे थे)

कुछ देर खेलने के बाद सुगना पदमा की गोद में चली गई।

उस समय गांव में रामलीला हो रही थी। सारे बुजुर्ग और धर्म कर्म में लिप्त लोग वह रामलीला देखने अवश्य जाया करते थे। पदमा के मां और पिताजी भी वह रामलीला नियमित रूप से देखते थे।

सुगना आज रो रही थी इसलिए पदमा रामलीला देखने न गई उसकी मां ने कहा "बेटा जब सुगना सुत जाई तब आ जाइह" पदमा के घर से उनके माता-पिता को निकलते देख कर सरयू सिंह की आंखें चमकने लगी. उनकी प्रेयसी घर में अकेली थी उसकी रखवाली के लिए सिर्फ और सिर्फ एक छोटी बच्ची थी जो स्वयं उसका ही दूध पी रही थी.

रामलीला का प्रसंग प्रारंभ होते ही लाउड स्पीकर की आवाज गांव में गूंजने लगी सरयू सिंह के कदम पदमा के घर की तरफ बढ़ चले।

कमरे में दिए की रोशनी चल रही थी। पद्मा अपनी चारपाई पर लेटी हुई थी उसकी चारपाई अपेक्षाकृत बड़ी थी जिस पर दो व्यक्ति आसानी से सो सकते थे। पदमा को सरयू सिंह के कदमों की आहट लग चुकी थी। उसने सरयू सिंह से कहा

"अंगनवा के द्वार में किल्ली लगा दी"

( आगन का दरवाजा बंद करके लॉक कर दीजिए )

सरयू सिंह उल्टे कदमों से एक बार फिर आंगन में गए और अपनी प्रेयसी पदमा के कथन का पालन किया। जैसे ही दरवाजा बंद हुआ उनके दिमाग ने उनकी हथेलियों को निर्देश पारित कर दिया शरीर सिंह की धोती खुल चुकी थी। कुछ ही देर में धोती और लंगोट दोनों पदमा के कमरे में दिखाई पड़ रहे थे पर उनका तनाव में आता हुआ लिंग अभी कुर्ते के पीछे छुपा हुआ था। सरयू सिंह की हथेलियां पदमा की पीठ पर घूमने लगी पद्मा ने खिलखिलाते हुए कहा "तनी धीरज धरी सुगना के सूत जाए दी"

पर सरयू सिंह अधीर हो चले थे। दीए की रोशनी में पदमा की बेदाग पीठ चमक रही थी। रीड की हड्डी का भाग दबा हुआ था साड़ी सरक पर नितंबों तक आ चुकी थी। सरयू सिंह के हाथ पदमा की पीठ पर रेंगते हुए उसकी चूचियो तक पहुंच गए।

पद्मा बाई करवट लेटी हुई थी और आगे की तरफ झुक कर अपनी दाहिनी चूची सुगना को पिला रही थी जिससे वह लगभग पेट के बल लेटी हुई प्रतीत हो रही थी। उसकी बाईं चूची पर सुगना का ही अधिकार था। वह अपने छोटे छोटे हाथों से उससे खेल रही थी। सरयू सिंह के हाथ जैसे ही दाहिनी चूची पर गए सुगना ने चूँची छोड़ दी और रोने लगी। पदमा फिर हंसने लगी और बोली "सरयू भैया चूँचियां छोड़ दी ओकरा के पी लेवे दीं रउआ नीचे चल जायीं"

सरयू सिंह को तो जैसे जन्नत मिल गई वह तो पदमा का चुचियों का रस लेने गए थे उन्हें पदमा के गोल नितंबों को छूने का विधिवत आमंत्रण मिल चुका था। उनकी हथेलियां चूँची को छोड़कर वापस पीठ पर आ गयीं और धीरे-धीरे पदमा के कोमल और गोल नितंबों की तरफ बढ़ने लगीं।

नितंबों की दरार आते आते सरयू सिंह की उंगलियां पेटीकोट का नाड़ा खोज रही थी पर वह दिखाई न पढ़ रहा था। कुछ ही देर में उनके हाथ में पदमा के नितंब आ गए वह पेटीकोट न पाकर थोड़ा आश्चर्यचकित थे पर जैसे ही उनके हाथ आगे बढ़े साड़ी की गांठ खुल गयी और एक पल के लिए उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे साड़ी द्वारा लगाया जा रहा प्रतिरोध पूरी तरह खत्म हो गया। साड़ी एक पतली चादर की भांति हटती गई पदमा के गोर और मादक नितंब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। उन्होंने अपनी दोनों हथेलियों से उसे सहलाना शुरु कर दिया।

कभी वह उन्हें फैलाते कभी आपस में सटा देते। उन्हें पदमा की गोरी और ग़दरायी गांड उन्हें दिखाई देने लगी। अद्भुत थी पदमा। सरयू सिंह की उंगलियां और आगे बढ़ती गई। और वह उनकी पसंदीदा जगह पर पहुंच गई। पदमा की बूर पनिया चुकी थी। उनकी उंगलियों में लिसलिसा मदन रस लग गया। सरयू सिंह प्रसन्न हो गए पदमा पहले से ही उत्तेजित थी। उनके लंड का पदमा की बुर मिलन शीघ्र होने वाला था। उन्होंने एक ही झटके में अपना कुर्ता उतार दिया और पदमा के बगल में आकर लेट गये। सुगना अभी भी चूँची पी रही थी।

सरयू सिंह के प्यासे लंड ने अपना रास्ता खोज लिया। पदमा ने भी अपने दोनों पैर अपने पेट की तरफ लाकर अपनी बुर को सरयू सिंह के लंड के सामने ला दिया।

पद्मा के सरयू भैया का मूसल उसकी ओखली में प्रवेश कर गया। गजब चिपचिपी थी पदमा की बुर। सुगना के जन्म के बाद भी उसका कसाव कायम था। सरयू सिंह अपनी कमर हिलाने लगे। वह चारपाई पालना बन गई छोटी बच्ची सुगना पालना झूलते झूलते पदमा का दूध पी रही थी और पदमा की बुर सरयू सिंह के अंडकोष में दही के उत्पादन को बढ़ावा दे रही थी। कुछ ही देर में सुगना नींद में चली गई थी।

अब पदमा निश्चिंत थी वह चारपाई से उठ खड़ी हुई सरयू सिंह का लंड पूरी तरह खड़ा था और उछल रहा था पदमा की बुर से रिस रहा चिपचिपा मदन रस उस पर एक आवरण की तरह लिपटा हुआ था। पदमा जैसे ही चारपाई से उतर कर खड़ी हुई उसकी साड़ी जमीन पर आ गयी।

दीए की रोशनी में अपनी नंगी और गदरायी पद्मा को देखकर सरयू सिंह मदहोश हो गए। जांघों के बीच बीच फूली हुयी बुर चमक रही थी कुछ ही देर की चुदाई में उसका मुंह खुल गया था। बुर की फांके अलग-अलग थीं जिन पर प्रेम रस सना हुआ था। होठों के बीच से बुर का गुलाबी मुख दिखाई पड़ रहा था। पदमा ने अपने कदम उनकी तरफ बढ़ाएं पर सरयू सिंह ने रोक दिया।

" बस 2 मिनट जी भर कर देख लेवे द जाने फेर कब मिलबु"

पदमा शर्मा गई उसने अपनी आंखें बंद कर ली पर अपने सरयू भैया के लिए अपना सारा खजाना खोल दिया सरयू सिंह उस खूबसूरती को देखकर मस्त हो गए।

चारपाई की पाठ पर बैठकर पदमा को अपने पास खींच लिया और पदमा की पीठ को अपने सीने से हटा लिया।पदमा अभी भी खड़ी थी उसकी जांघों के बीच से सरयू सिंह का चिपचिपा लंड निकलकर पदमा को छूने का खुला आमंत्रण दे रहा था।

लंड का सुपाड़ा सच में बहुत आकर्षक लग रहा था दीए की रोशनी में वह चमक रहा था। पद्मा ने अपने हाथ नीचे किए और अपने छोटे कोमल हथेलियों में उस जादुई लट्टू को पकड़ लिया। जैसे ही लंड पर पदमा के हाथ लगे वह उछलकर उसकी बुर की तरफ बढ़ने लगा। वह बार-बार उसे नीचे करती पर सरयू सिंह का लंड मजबूत था वह पदमा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल रहा था। वह बुर में समा जाने को बेताब था।

जिस तरह एक मदमस्त नाग सपेरे की पकड़ में आने के बावजूद अपना तनाव लगातार बनाए रखता है उसी प्रकार सरयू सिंह का लंड पद्मा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल कर बुर में घुस जाने को बेताब था। पदमा हंस रही थी उसने कहा "संरयु भैया ई त पकड़ में आवते नईखे"

सरयू सिंह ने पदमा की चूचियां सहलायीं और उसकी कमर को नीचे की तरफ आने का इशारा किया और कहा

"जायेदा तू आराम से बैठा उ अपन रास्ता खोज ली"

ठीक वैसा ही हुआ पदमा उनकी गोद में बैठ रही थी और लंड अपना रास्ता खोजता हुआ बुर के मुहाने पर पहुंच गया। जैसे-जैसे पदमा अपना वजन छोड़ती गई उसकी पनियाई बुर एक बार फिर से भर गई। पदमा के पैर जमीन के ऊपर आ चुके थे। लंड नाभि को चूम रहा था। पदमा पूरी तरह भरी हुई महसूस हो रही थी। सरयू सिंह ने थोड़ी देर उसकी चूचियां सहलायीं और फिर अपने हाथों और पैरों का उपयोग कर पदमा को अपनी गोद में ऊपर नीचे करने लगे। जैसे जैसे पदमा ऊपर नीचे हो रही थी सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। अद्भुत आनंद में डूबे दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे में खोने लगे। कुछ देर इसी अवस्था में पदमा को चोदने के बाद उन्होंने पदमा की अवस्था बदल अब भी पदमा उनकी गोद में ही थी पर उसका चेहरा सरयू सिंह की तरफ था।

शर्म से लाल पद्मा के चेहरे को देखकर सरयू सिंह उसे चूमने लगे। उसके होठों पर अपनी जीभ फिराते हुए वह आनंद लेने लगे। पद्मा ने भी अपने होंठ खोल कर अपनी जीभ को बाहर निकाल लिया। दोनों छोटी तलवारे एक दूसरे में उलझ पड़ी। कभी पदमा की जीभ सरयू सिंह के मुह में प्रवेश कर जाती कभी सरयू सिंह की जीभ पद्मा में।

ऊपर के इस छोटे प्रेम युद्ध ने सरयू सिंह के लंड की रफ्तार बढ़ा दी उसे जैसे इशारा मिल रहा था। जितना प्यार सरयू सिंह और पदमा के होंठ एक दूसरे से कर रहे थे पदमा की बुर में लंड का आवागमन उतना ही तेज हो रहा था।

पदमा की दूध से भरी फूली हुई चूचियां सरयू सिंह के सीने से सटकर सपाट हो रहीं थी उसके निप्पल ओं से दूध रिस रहा था जो शरीर से के पेट से होता हुआ उनके लंड तक पहुंच रहा था।

एक बार फिर तूफान रफ्तार पकड़ रहा था पदमा की जाँघे तनने लगी। सरयू सिंह उसके होठों को चूमे जा रहे थे। उनकी हथेलियां पदमा के दोनों नितंबों को सहलाए जा रहीं थीं और दोनों ही हाथों की मध्यमा उंगली पदमा की गांड को छूने में होड़ लगा रही थीं। जब जब पदमा की गांड पर सरयू सिंह की उंगलियां घूमती पद्मा सिहर उठती पर उसकी उत्तेजना में चार चांद लग जाते। पद्मा से अब और बर्दाश्त न हुआ वह स्खलित होने लगी। वह उनसे अमरबेल की भांति लिपट चुकी थी। वह अपनी चूँचियां उनके सीने से रगड़ रही थी। कुछ ही देर में पद्मा स्खलित होकर शांत हो गई पर सरयू सिंह का लंड इतनी जल्दी पानी छोड़ने के मूड में नहीं था।

पदमा कोमलंगी थी उसे इस अद्भुत लंड का साथ पाकर झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगता था वह उनके प्यार से अभिभूत हो जाती थी। पदमा शांत हो चुकी थी और अपनी तेज चल रही सांसो को सामान्य करने की कोशिश कर रही थी। उससे अपनी कमर और नहीं हिलाई जा रही थी। सरयू सिंह उसे चूमे जा रहे थे और उसके स्खलन को आनंददायक बना रहे थे।

पदमा अगले कदम के बारे में सोच रही थी उसकी कोमल बुर इस अद्भुत चुदाई के बाद संवेदनशील हो चुकी थी वह सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर प्रवेश देने में अक्षम थी ठीक उसी प्रकार जिस तरह बारात में जी भर कर मिठाई खाकर पानी पी लेने के पश्चात दोबारा मिठाई खाने की हिम्मत नहीं होती वही हाल पद्मा की बुर का हो चुका था वह अपनी जी भर कर चुदाई करा चुकी थी और अब कुछ देर शांत रहना चाहती थी। सरयू सिंह अपना लंड लिए पदमा के अगले कदम का इंतजार कर रहे थे।

तभी सुगना रोने लगी पद्मा ने लोटे से पानी निकाला अपनी चूचियां पर पानी का छींटा मारा सरयू भैया के कुर्ते से उसे पोछा और सुगना को दूध पिलाने लगी।

सरयू सिंह पदमा के चूतड़ों पर अपना लंड रगड़ रहे थे उन्हें पता था अभी बुर के अंदर लंड प्रवेश करा पाना उचित नहीं था पर वह अपनी उत्तेजना कायम रखते हुए पदमा के गोल नितंबों से खेलने लगे। अचानक ही पदमा डॉगी स्टाइल में आ गई। सुगना पदमा के पेट के ठीक नीचे थी और अपना सिर ऊपर कर उनकी चूचियां पी रही थी सरयू सिंह को यह समझ नहीं आया।

पदमा को इस मादक अवस्था में देखकर उन्होंने तुरंत ही अपना लंड उसकी बुर में ठाँस दिया पदमा आगे की तरफ झुक गई सुगना के मुंह में फंसी उसकी चूची छूट गई सुगना फिर रोने लगी सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया।

इस अवस्था में वह अपनी प्यारी पदमा को चोदने को लालायित थे पर सुगना उनका खेल बिगाड़ रही थी वह छोटी सी बच्ची अनजाने में ही सरयू सिंह को सता रही थी।

(नियति का खेल निराला था जो सुगना अनजाने में सरयू सिंह को सता रही थी वही 2 दिनों बाद उसी निराले लंड से स्वयं चुदने जा रही थी)

जैसे ही उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला तभी पद्मा ने कहा "सरयू भैया आगे आ जाई" सरयू सिंह पदमा के चेहरे की तरफ चले गए। पदमा सुगना को दूध पिलाती रही और एक हाथ से उनका लंड सहलाने लगी। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्होंने अपना लंड पदमा के होठों से छुवाने की कोशिश की। पदमा शहर जाने के बाद पुरुषों का यह आदत बखूबी जानती थी। उसका फौजी पति भी इस सुख का कायल था। पदमा में अपने प्रेमी सरयू भैया को वह सुख देने की सोची और अपने होठों से उनके लंड का सुपाड़ा छूने लगी।

सरयू सिंह की उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई यह पहला अवसर था जब किसी स्त्री ने उनके लंड को अपने होठों से छुआ था। सरयू सिंह के हाथ पदमा के सिर के ऊपर आ गए वह उसके कोमल बालों से खेलने लगे। पदमा ने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर ले लिया।

उधर सुगना पदमा की चूचियां चूस रही थी इधर सुगना की मां पदमा सरयू सिंह का लंड। सरयू सिंह पदमा के प्रति कृतज्ञ हो रहे थे। आज वो जीवन का एक नया सुख पाकर खुश थे। वीर्य धार फूट पड़ी वह पद्मा के होठों को सीचने लगे पदमा को पता था कि यदि उसने अपना मुंह अभी खोला तो वीर्य की धार न सिर्फ पदमा को भीगोएगी अपितु छोटी बच्ची सुगना पर भी पड़ सकती थी जो पदमा को कतई पसंद न था।

पदमा के मुंह में वीर्य का दबाव बढ़ रहा था। पदमा अपने होठों को उनके लंड पर जकड़ी रही। उसका पूरा मुंह भर चुका था। सरयू सिंह की उत्तेजना भी शांत हो चुकी थी। लंड का उछलना खत्म हो चुका था। अब लंड को बाहर आने का समय हो चुका था। उन्होंने अपना ल** धीरे-धीरे पीछे करना शुरू किया और पदमा ने अपने होंठों को सिकोड़ना शुरू किया। जैसे-जैसे पदमा के हॉट सिकुड़ रहे थे उसके मुंह में भरे हुए वीर्य के लिए जगह कम पड़ रही थी।

अंततः जब लंड बाहर आया सुगना के मुंह से वीर्य की धार बह निकली।। पद्मा ने अपना चेहरा नीचे कर दिया और वह वीर तकिए पर गिरने लगा। पदमा के मुंह पर वीर्य की एक परत चढ़ चुकी थी।

अब तक सुगना सो चुकी थी। पदमा एक बार फिर बिस्तर से उतरकर सरयू सिंह के करीब आ गयी उसने सरयू सिंह के पास आकर कहा

" भैया हम का करीं हमार ई ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) हमेशा हार जाले"

सरयू सिंह ने उसे अपने सीने से सता लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोले

"लेकिन अब तहरा भीरी इहो बा. अब ना हरबू"

पद्मा उनका इशारा समझ चुकी थी। वो मुस्कुराने लगी।

सरयू सिंह अपनी प्रेमिका के होठों से अपने ही बीर्य को चुराकर उन्होंने उसका स्वाद लिया और भाव विभोर होकर बोले

"पदमा आज तू जीत गईलू हम तोहार दिहल ई सुख कभी ना भूलब तू हमारा से कुछो माग ल"

"ठीक बा माग लेब"

पदमा अपनी तारीफ सुनकर उनसे सटती चली गई। सरयू सिंह अभी भी पदमा के नितंबों को सहलाए जा रहे थे। उनका जी पदमा से कभी नहीं भरता था।

पद्मा रोटी बनाते हुए सोचने लगी कि क्या वह आज सरयू सिंह से अपनी सुगना को गर्भवती करने का वचन मांग ले? क्या यह उचित होगा?


शेष अगले भाग में
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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 02:39 PM



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