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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#19
Heart 
भाग -18



होली के विशेष अवसर पर स्पेशल अपडेट

सरयू सिंह के दिमाग में सुगना के साथ बिताई गई दिवाली की वह कामुक रात और उसके पहले के कुछ दिन अमिट छाप छोड़ गये थे । उसे याद करते वह अपना घंटों समय काट लेते.सुगना के साथ प्रथम मिलन में उन्होंने समाज की मर्यादाओं के खिलाफ अपनी बहू की खुशी के लिए उसे जी भर कर चोदा था और उसे स्त्री होने का एहसास दिलाया था। इस पवित्र पाप का न तो उन्हें अफसोस था न सुगना को और नहीं सुगना की सास उनकी कजरी भौजी को .

नियति जिसने सुगना और सरयू सिंह को करीब लाया था वह विजय प्राप्त कर चुकी थी. अगले दो-तीन वर्षों में सुगना और सरयू सिंह ने अपने कामुक जीवन को नया आयाम दिया जिस का विस्तृत विवरण उचित समय पर पाठकों को प्रस्तुत किया जाएगा।

फिलहाल आइए कहानी को अब वर्तमान में ले आते है। वैसे भी कल होली है...

सुगना का पुत्र सूरज छः महीने का हो गया था। वह बेहद ही सुंदर था और हो भी क्यों ना? सुगना जैसी अपूर्व सुंदरी और सरयू सिंह जैसे गठीले मर्द की औलाद को तो सुंदर होना ही था। सूरज ने चेहरे पर सुगना की मासूमियत ली हुई थी पर उसकी कद काठी पर सरयू सिंह का असर था। देखने में सूरज सात आठ माह का बच्चा लगता। कजरी हमेशा उसे तेल लगाते समय कहती उसकी नूनी को देखती और बोलती

"देखिह ई हो कुँवर जी जइसन बनी"

सुगना शर्मा जाती और इस बात को अपनी उत्तेजना से जोड़ लेती। क्या सूरज भी रिश्तो की मर्यादाओं को ताक पर रखकर स्त्रियों से संभोग करेगा?

नहीं नहीं वह ऐसा नहीं करेगा। सब की परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती मेरा बालक एक आदर्श पुरुष बनेगा। हालांकि कजरी ने यह बात सूरज की कद काठी को देखकर कहीं पर सुगना ने अपने मन में आए विचारों से उस बात को नई दिशा दे दी थी।

वैसे अपने ससुर से संबंध बनाने के बाद सुगना की निगाहों में संबंधों की अहमियत निश्चय ही कुछ कम हो गई थी स्त्री और पुरुष के बीच बन रहे कामुक संबंध उसे अब स्वभाविक लगते थे।

दो-तीन दिनों बाद होली का त्यौहार आने वाला था।

हरिया की बेटी लाली अपने पति राजेश के साथ गांव आई हुई थी लाली का बेटा राजू अब 4 साल का हो चला था। राजेश ने एक बंगालन से अवैध संबंध बना रखे थे जिसने एक सुंदर पुत्री को जन्म दिया था उसका नाम रीमा रखा गया था। जब रीमा एक वर्ष की हुई तो उस बंगालन की अकारण मृत्यु हो गई। राजेश ने लाली को यह बात समझाई की रीमा अनाथ है। राजेश और लाली ने मिलकर रीमा को अपना लिया और अपने दोनों बच्चों के साथ हंसी-खुशी रहने लगे।

हरिया के घर में हलचल थी। लाली समय के साथ और खूबसूरत हो चली थी। वह अपने दोनों बच्चों को गांव की खेत और गांव की संस्कृति से परिचय करा रही थी।

राजेश एक कामुक व्यक्ति था उसने लाली और उस बंगालन से संबंध बनाकर अपनी काम पिपासा को हर प्रकार से शांत किया था। लाली की तुलना में वह बंगालन ज्यादा कामुक थी। बंगालन के जाने के बाद लाली ही राजेश का एकमात्र सहारा थी।

उधर मुंबई में बबीता की जवानी पर भी ग्रहण लग चुका था। बबीता की वासना बढ़ती जा रही थी उसके अपने होटल के मैनेजर से संबंध बन चुके इधर रतन के साथ संभोग करते समय वह रतन को अपना वीर्य अपने गर्भ में गिराने की इजाजत न देती परंतु उसका बॉस उसकी यह बात मानने को तैयार न था असावधानी वश बबीता गर्भवती हो गई। उसने न चाहते हुए भी दो पुत्रियों को जन्म दिया था जिनका नाम चिंकी और मिंकी था वह क्रमशः 3 वर्ष और 2 माह की थी।

मिंकी का जन्म तो अनायास ही हो गया था बबीता उसके लिए बिल्कुल तैयार न थी पर डॉक्टर ने गर्भपात के लिए साफ साफ मना कर दिया था। अनचाहे में पतली दुबली बबीता दो दो बच्चों को जनने के बाद अपनी अद्भुत सुंदरता को बैठी थी। वह धीरे-धीरे रतन और बबीता के रिश्ते में खटास बढ़ती गई। रतन को परिवार का सुख तो मिल रहा था पर पत्नी सुख कभी-कभी ही प्राप्त होता वह भी बिना मन के।

बबीता उसे प्यारी तो थी पर के व्यवहार में परिवर्तन आ चुका था। रतन की कामवासना और अपेक्षाओं पर बबीता खरीदना उतरती उसका मन उसके बॉस के साथ लग चुका था। रतन की कामुक निगाहें सुंदर औरतों को देखते ही उन पर ठहर जातीं। वह मन ही मन उन्हें अपने ख्वाबों में नग्न करता और उनके साथ संभोग की परिकल्पना कर अपने लंड को सह लाते हुए वीर्य स्खलन करता। यह एक आश्चर्य ही था की जिस सुगना को उसने सुहाग की सेज पर अकेला छोड़ दिया था अब वह उसी सुगना की परिकल्पना कर अपना हस्तमैथुन किया करता था।

सुगना उसकी पत्नी थी परंतु अब वह उसकी निगाहों में किसी अनजान व्यक्ति से संभोग के उपरांत मां बन चुकी थी। रतन सुगना के संपर्क में आना तो चाहता था पर किस मुंह से वह उससे बात करेगा? प्रश्न कठिन था. रतन का भविष्य नियति के हाथों में कैद था।

अगले दिन रतन भी गांव पर आ गया। वैसे भी अपने चाचा को दिए गए वचन के अनुसार उसे हर छः माह पर गांव आना ही था।

उधर सुगना की माँ जिसने तीन पुत्रियों और एक पुत्र को जन्म दिया था होली पर अपने मायके जाना चाहती थी। सबसे बड़ी सुगना थी उसके चार पांच वर्षों बाद पदमा का पुत्र सोनू हुआ था। पर फौजी महोदय यहां भी न रुके और जाते जाते पदमा के गर्भ में दो पुत्रियों को छोड़ गए थे जो अब लगभग 14 वर्ष की थीं। पद्मा ने उनका नाम सोनी और मोनी रखा था वह दोनों लगभग एक जैसी ही दिखाई पड़ती यदि उन्हें एक जैसे कपड़े पहना दिए जाएं तो पहचानना मुश्किल हो सकता था।

पद्मा की दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी ने उसके साथ जाने से मना कर दिया। वह दोनों अपनी सुगना दीदी के पास जाना चाहती थी। अंततः सुगना के भाई सोनू जो अब 18 वर्ष का हो चुका था ने अपनी दोनों छोटी बहनों को अपनी बड़ी बहन सुगना के पास छोड़ दिया और अपनी मां को मायके पहुंचा आया। उसका भी मन अपने नाना के यहां ना लगा और वह भी अपनी सुगना दीदी के घर आ गया।

नियति गांव के बाहर नीम के पेड़ पर बैठी सरयू सिंह और हरिया के घर को निहार रही थी जहां उसने पिछली पीढ़ी में सरयू सिंह और कजरी को अपना शिकार बनाया था तथा नई पीढ़ी में सुगना और राजेश को। लाली इससे अछूती थी और सुगना का भाई सोनू भी अब तक नियति के कामुक दंश से बचा हुआ था।

आने वाली पीढ़ी के कई हंसते खेलते बच्चे भी निष्ठुर नियत की निगाहों में थे। बबीता की पुत्री चिंकी मिंकी गांव नहीं आई थी पर नियति ने उन्हें भी अपने दायरे में ले लिया था। नियति आने वाले समय की पटकथा लिख रही थी।
होली का दिन शुरू हो चुका था। सबसे पहले कजरी उठी थी उसके मन में शरारत सूझी और उसने अटारी पर से रखा आलता उतारा और दालान में जाकर सरयू सिंह के गालों और माथे पर रंग लगाने लगी। वह कुंवर जी का ख्याल रखती थी और रखे भी क्यों न वह उसके इकलौते मर्द थे जो पति की भी भूमिका निभाते और दोस्त की भी। और तो और उन्होंने उसकी बहू का भी जीवन सवार दिया था। कजरी उनके प्रति कृतज्ञ थी।

चेहरे पर रंग लगाने के बावजूद कजरी का जी ना भरा। उसने अपने हाथों में रंग लपेटा और सरयू सिंह की धोती के अंदर ले जाकर प्यारे लंड को पकड़ लिया। सरयू सिंह का नाग सोया हुआ था पर कजरी के हाथ लगते ही वह जागने लगा। सरयू सिंह की आंख खुल गई। उन्हें कजरी की बदमाशी समझ आ चुकी थी।

कजरी लगभग हर वर्ष उनसे पहले उठती और इसी प्रकार की हरकत कर सबसे पहले उन्हें रंग लगाती। उन्होंने कजरी को अपनी चारपाई पर खींच लिया और उसे अपने आगोश में ले कर सहलाने लगे। दो जिस्म एक दूसरे में समा जाने को बेकरार थे तभी सुगना के पायलों की छम छम आंगन में सुनाई पड़ी। कजरी सचेत हो गई। वैसे भी इस समय घर में कई लोग थे सरयू सिंह और कजरी का मिलन संभव न था।

कजरी अपनी पनियायी बुर लेकर सरयू सिंह से दूर हो गई और आंगन में सुगना के पास आ गई। कजरी के हाथों में रंग देखकर सुगना सारी बात समझ गई। दोनों सास बहू एक दूसरे के गले लग गयी। अब सुगना की चुची अपनी सास कजरी से बड़ी हो चली थी।

कजरी की चूचियां उम्र बढ़ने के साथ सूख रही थी और इधर सुगना की सूचियों में दूध भर रहा था। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी पर हावी हो रही थी। कजरी ने सुगना के कान में कहा

"जा... अपना बाबूजी के गोड लाग ल" इतना कहकर कजरी ने सुगना के नितंबों को दबा दिया। सुगना सरयू सिंह की कोठरी की तरफ आ गयी। उसने अपने बाबू जी के चरण छुए और अपने कामसुख के प्रिय अंग उनके ल** को अपनी हथेलियों में ले लिया। कजरी द्वारा लगाया गया लाल रंग अभी सुखा न था। उसने कजरी के हाथों को रंग दिया। सुगना वह रंग देख कर मुस्कुराने लगी उसे अपनी सास कजरी की हरकत समझ आ चुकी थी।

सरयू सिंह ने अपनी बहू सुगना को निराश ना किया। उन्होंने उन्ही होठों से सुगना को चूम लिया जिनसे कुछ समय पहले ही उन्होंने कजरी को चूमा था। वह दोनों उनकी दो पटरानियां थी। सुगना वर्तमान थी और कजरी धीरे-धीरे पुरानी हो रही थी।

सरयू सिंह के मन में दोनों के प्रति प्यार उतना ही था पर कामुकता पर अब सुगना का कब्जा हो चला रहा था।

वापस आने पर कजरी ने सुगना के हाथों में लगा लाल रंग देख लिया और मुस्कुराने लगी। दोनों एक दूसरे की भाषा समझ चुकी थी। उन्होंने सरयू सिंह के सबसे प्यारे अंग से होली खेल ली थी और सरयू सिंह की पिचकारी में श्वेत रंग भर दिया था।

धीरे धीरे सूरज आसमान में चढ़ने लगा सारे बच्चे और जवान होली खेलने की तैयारी में घर के अहाते में आ गए हरिया का परिवार भी सरयू सिंह के दरवाजे के सामने आ गया सरयू सिंह का अहाता हरिया के अहाते से ठीक सटा हुआ था।

गांव के कुछ लोग भी सरयू सिंह के अहाते में आकर फगुआ गाने लगे। उन्होंने रतन और राजेश को भी बैठा लिया। हरिया भी होली गीत गाने में मगन हो गया घर के सारे वयस्क पुरुष इसका आनंद लेने लगे पर सुगना का भाई सोनू उस बिरादरी से दूर लाली के आगे पीछे घूम रहा था।

सुगना की छोटी बहनें सोनी और मोनी ढोल मृदंग की आवाज से मस्त हो गई थी और गांव के लोगों द्वारा गाया जा रहा फगुआ देख रही थी उन्हें यह दृश्य बिल्कुल नया लग रहा था।

हरिया की पत्नी और कजरी ने छोटे बच्चों को अपने सानिध्य में ले लिया था। लाली सुगना के साथ आंगन में होली खेल रही थी।

दोनों सहेलियां एक दूसरे को रंग से सराबोर कर रही थी। शरीर का कोई अंग न छूटने पाए यह बात दोनों के जहन में भरी हुई थी। लाली ने सुगना की बड़ी-बड़ी चुचियों पर रंग लगाते समय उसे दबा दिया।

दूध की धार फूट पड़ी सुगना चिल्लाई

"अरे लाली तनी धीरे से ...दुधवा गिरता" लाली ने कहा

"बुलाई रतन भैया के पिया दीह"

उस बेचारी को क्या पता था कि सुगना की चूचियों में दूध रतन ने नहीं उसके बाबूजी सरयू सिंह ने भरा था।

लाली को फिर शरारत सूझी उसने सुगना से कहा "कह त तोर जीजा जी के बुला दी उहो तोर चुचीं के चक्कर में ढेर रहेले"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई निश्चय ही सुगना की कामुक चूचियों का जिक्र राजेश ने अपनी पत्नी लाली से किया हुआ था।

सोनू दोनो सहेलियों की छेड़खानी देख रहा था। लाली आंगन में सुगना से बच कर भाग रही थी तभी सोनू आंगन में आ गया। लाली सोनू से टकरा गयी। सुगना ने कहा

"सोनू पकड़ लाली के हमरा के बहुत रंग लगावले बिया"

सोनू उम्र में लाली और सुगना से तीन चार बरस छोटा था परंतु कद काठी उसकी मर्दों वाली थी कद 5 फुट 11 इंच भरा पूरा शरीर लाली और सुगना के लिए एक मर्द के जैसा था सोनू। सोनू ने लाली देवी को अपने सीने से सटा लिया। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां उसके सीने से सट गयीं।

सुगना द्वारा लाली की चुचियों पर लगाया गया रंग सोनू के सीने पर लग गया। लाली को यह अवस्था ज्यादा आपत्तिजनक लगी वह उसके सीने से दूर होने का प्रयास करने लगी। जब तक वह अपने प्रयास में सफल होती सुगना हाथों में रंग लिए आ चुकी थी।

वाह लाली की पीठ और कमर पर रंग लगा रही थी। जाने कब सुगना के हाथ लाली के नितंबों तक चले गए बीच-बीच में सोनू के हाथ लाली की पीठ को सहला लेते और सोनू अपनी काम पिपासा को कुछ हद तक शांत कर लेता।

लाली को सोनू के लंड की चुभन पेट पर महसूस होने लगी। सोनू उत्तेजित हो चला था और वह भी क्यों ना लाली जैसी भरी पूरी गदरायी जवानी को उसने अपने आलिंगन में लिया हुआ था।

कुछ देर की की छीना झपटी में लाली ने अपने आपको सोनू के आलिंगन से छुड़ा लिया और घर के पिछवाड़े की तरफ भागी। सोनू भी उसे पकड़ने के लिए भागा। सुगना ने कहा

"सोनू पकड़ ओकरा के आज एकरा के पूरा रंग लगाईब"

सुगना उत्साह में थी. वह और रंग तैयार करने के लिए कोठरी में रंग लेने चली गई। इधर राजेश का मन फाग फगुआ में ना लग रहा था। उसे सुगना के साथ होली खेलने का मन था। रतन ने भी अपना मन बनाया हुआ था पर उस उत्साह से नहीं।

वह सुगना के साथ जी भर कर होली खेलना चाहता था पर वह सुगना से दूर था।

राजेश ने हिम्मत जुटा ली उठ कर सुगना के आंगन में आ गया। जैसे ही सुगना रंग लेकर अपनी कोठरी से बाहर आयी राजेश ने अपनी जेब से ढेर सारा अबीर निकाला और सुगना के शरीर पर दोनों हाथों से उड़ेल दिया। लाल और पीले रंग ने सुगना की आंखों के सामने एक धुंध जैसी तस्वीर बना दी। सुगना के शरीर पर अबीर के छीटें गिर रहे थे।

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सुगना को कुछ दिखाई ना दे रहा था इसी बीच राजेश ने उसे पीछे से आकर आलिंगन में ले लिया। सुगना की गोल-गोल चूचियां राजेश के हाथों में आ गयीं जिसे राजेश ने मसल दिया। सुगना ने कहा

"जीजा जी, तनी धीरे से….दुखाता"

राजेश स्त्रियों की कामुक भाषा को बखूबी समझता था उसने चूचियों पर तो अपना दबाव हटाया पर अपनी कमर का दबाव सुगना के नितंबों पर बढ़ा दिया। राजेश ने थोड़ा झुक कर अपने लंड का तनाव सुगना के नितंबों की दरार पर सटा दिया।

सुगना सिहर उठी राजेश सुगना को छोड़ने के विचार में बिल्कुल नहीं था। वह अपनी हथेलियों से उसके पेट पर रंग लगाने लगा। इसी बीच रतन भी आगन में आ गया अपनी पत्नी सुगना को राजेश की बाहों में मचलते हुए देखकर रतन ने सूरज के जन्म और सुगना के गर्भवती होने की कहानी सोच ली।

निश्चय ही सुगना का पुत्र सुरज राजेश और सुगना के प्यार की परिणिति था। नियति ने रतन को वही दिखाया जो देखना उसके लिए उचित था। रतन उल्टे पैर वापस आ गया। वह अब फगुआ सुनने की स्थिति में नहीं था। वह चुपचाप अपने इक्का-दुक्का दोस्तों से मिलने चल पड़ा।

उधर लाली जब आगन से पिछवाड़े की तरफ भाग रही थी उसका लहंगा एक कील में फस गया और लहंगे का नाडा टूट गया। लाली ने बड़ी मुश्किल से अपना लहंगा पकड़ा और जब तक वह उसे संभालती तब तक सोनू ने आकर उसे पीछे से पकड़ लिया।

सरयू सिंह के आंगन में सुगना राजेश की बाहों में होली का सुख ले रही थी और घर के पिछवाड़े में लाली सोनू अपनी बाहों में अपनी लाली दीदी को लिए एक नए किस्म का अनुभव कर रहा था। लाली का किसी अन्य मर्द के साथ यह पहला अनुभव था। और तो और वह मर्द भी और कोई नहीं बल्कि सुगना का भाई सोनू था।

सोनू ने एकांत पाकर लाली की चुचियों को अपने दोनों हथेलियों में पकड़ लिया लाली चाह कर भी उसे न रोक पायी। उत्तेजना ने उसके हाथों से ताकत से ताकत छीन ली थी।

उसके दोनों हाथ लहंगे के नाडे को पकड़ ने में व्यस्त थे। धीरे धीरे लाली उत्तेजित हो चली थी सोनू के लंड का स्पर्श उसे अपनी पीठ पर महसूस हो रहा था। सोनू अपने लंड को लाली की पीठ पर धीरे-धीरे रगड़ रहा था। सोनू का चेहरा लाली के कान से सटा हुआ था। सोनू की गर्म सांसे लाली को अभिभूत कर रही थी।

इधर जब तक राजेश सुगना की नंगी चूचियों को छूने का प्रयास करता सोनी और मोनी आगन में आ गयीं। राजेश ने सुनना को छोड़ दिया और सुगना का मीठा एहसास लेकर मन मसोसकर आगन से बाहर आ गया। सोनी ने सुगना से गुझिया मांगा सुनना खुशी-खुशी रसोई से जाकर अपनी बहनों के लिए गुजिया ले आई और वह दोनों गुझिया लेकर फिर एक बार ढोल मृदंग की थाप सुनने बाहर दालान में आ गयीं।उनके लिए वह गीत संगीत ज्यादा प्रिय लग रहा था होली का क्या था वह तो वो बाद में भी खेल सकती थीं।

सुगना को लाली का ध्यान आया वह हाथों में रंग लिए पिछवाड़े की तरफ गई जो दृश्य सुगना ने देखा वह सिहर उठी। सोनू का यह मर्दाना रूप उसने पहली बार देखा था सोनू ने लाली की चुचियों को चोली से लगभग आजाद कर लिया था। लाली की चोली ऊपर उठी हुई थी उसके बड़ी-बड़ी चूचियां लाल रंग से भीगी हुई सोनू की हथेलियों में खेल रही थी। लाली की आंखें बंद थी वह सोनू की हथेलियों का स्पर्श महसूस कर आनंद में डूबी हुई थी। लाली ने एक हाथ से लहंगे का नाडा पकड़ा हुआ था। लाली का दूसरा हाँथ सोनू के पजामे में तने हुए लंड को सहला रहा था। सोनू और लाली को इस अवस्था में देखकर सुगना की बुर रिसने लगी। सुगना तो राजेश का स्पर्श पाकर पहले ही उत्तेजित थी और अब यह कामुक दृश्य देखकर उसकी बुर प्रेम रस छोड़ने लगी।

उसका छोटा भाई पूरी तरह जवान हो चुका था और उसकी सहेली लाली की गदराई जवानी को अपने हाथों से मसल रहा था।
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उसकी सहेली लाली भी आनंद में डूबी हुई सोनू के मर्दाना यौवन का सुख ले रही थी।

सुगना पर निगाह पड़ते ही सोनू ने लाली की चुचियों को चोली के अंदर कर दिया और अपने लंड को पीछे किया। लाली ने सोनू की पकड़ से आजाद होने की कोशिश की पर सोनू ने कहा

"दीदी तब से पकड़ ले बानी तू कहां रह गईलु हा"

सुगना ने करीब आकर लाली को रंग लगाना शुरू कर दिया. लहंगे का नाडा पहले ही टूटा था सुगना के मन में उत्तेजना ने घर बना रखा था ।उसने अपनी हथेलियों में लगाया हुआ रंग अपनी सहेली के दोनों जांघो के बीच लगा दिया। जब सुगना की हथेली लाली की बुर से टकरायी लाली की बुर ने सुगना के हाथों को अपने प्रेम रस से भीगा दिया।

लाली की बुर सोनू के स्पर्श से चिपचिपी हो चली थी उसके होठों पर ढेर सारा मदन रस रिस आया था। सुगना ने लाली की तरफ देखा लाली मुस्कुरा दी। लाली की उत्तेजना को उसकी सहेली सुगना ने बखूबी पढ़ लिया था। सुगना स्वयं एक कामुक युवती थी उसने लाली की बुर से चुराया हुआ प्रेम रस अपने हाथों पर मल लिया। हाथों पर लगा रंग लाली की बुर से निकले हुए प्रेम रस से चमकने लगा।

सुगना ने कहा

"सब केहू के रंग लागल बा तेही बाचल बाड़े"

सुगना ने अपने हाथों में लगा चमकता रंग सोनू के गाल पर लगा दिया। सोनू ने अपनी लाली दीदी के बुर में जो उत्तेजना पैदा की थी उससे रिस आया प्रेम रस अब उसके गालों पर लग चुका था। लाली सुगना की यह हरकत देख चुकी थी वह शरमा गई।

तभी लाली ने कहा

"हमरा के त रंग लगा लेल अपना दिदिया के ना लगाईबा"

सोनू के मन में सुगना के प्रति कामुकता न थी वह उसकी बड़ी बहन थी वह उसकी पूरी इज्जत करता था. उसने अपने हाथ का अबीर अपनी सुगना दीदी के गानों पर लगाया और वहां से हटकर आंगन में आ गया.

सोनू के जाते ही सुगना ने कहा

"ते ओकरा के बिगाड़ देबे"

"जाए दे तनि रस लेली त ओकरो होली ठीक हो जायीं।"

"सोनू अब लइका नइखे ओकर सामान थार जीजाजी से बीसे बा"

वह दोनों हंसने लगी. सुगना भी सिहर उठी राजेश के नाम से उसकी बुर जाने क्यों सचेत हो हो जाती थी।

लाली ने सुगना की चूचियों पर लगा अबीर देख लिया था। उसे पता था यह राजेश ने ही लगाया था। लाली ने सुगना को छेड़ा

" अच्छा हमारा के इंतजार करा कर अपना जीजा जी से चूँची मिसवावतालु हा"

सुगना की चोरी पकड़ी गई थी

"हट पगली"

दोनों सहेलियां अपनी जांघों के बीच एक नई उत्तेजना लिए आंगन में आ रही थीं।

नियति अपनी साजिश बन रही थी। एक तरफ तो उसने रतन को यह एहसास करा दिया था की सूरज का संभावित पिता राजेश ही था। यह गर्भधारण परिस्थितिजन्य संभोग के कारण हो सकता था या सुनियोजित।

रतन के मन में सुगना के प्रति प्यार और बढ़ गया। उसे पता था राजेश शहर में रहता है उसका अपनी ससुराल आना कभी कभी ही होता होगा। सुगना के राजेश से मिलन को रतन ने अपनी स्वीकार्यता दे दी। उसके मन में आए सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे।

उधर लाली और सुगना का भाई सोनू तेजी से करीब आ रहे थे। नियति ने उन्हें मिलाने की ठान ली थी। लाली जिसने आज तक अपने पति के अलावा अन्य पुरुष को अपने करीब न फटकने दिया था वह एक वयस्क किशोर के प्रेम में आसक्त हो रही थी।

दालान में लगा फगुआ का रास रंग खत्म हो रहा था। कुछ ही देर में हरिया का परिवार और सरयू सिंह का परिवार जी भर कर होली खेलने लगा। सभी होली का आनंद उठा रहे थे। सरयू सिंह अपनी सुगना को प्यार से देख रहे थे।

वह सुबह से ही अपनी पिचकारी में रंग भर सुगना के साथ एकांत के पल खोज रहे थे। पर इस उत्सव के माहौल में यह कैसे संभव होगा यह तो नियति को ही निर्धारित करना था। एक बार फिर कजरी नियति की अग्रदूत बनी।

उसने सभी से कहा

"चला सब केहु ट्यूबवेल पर वह जा के नहा लोग ओहिजा पानी ढेर बा। उसने सुगना से कहा सुगना बेटी तू जा घर ही नहा ल और खाना के तैयारी कर"

सोनी और मोनी बेहद प्रसन्न हो गयीं। सोनू और रतन भी अपने अपने कपड़े लेकर ट्यूबवेल की तरफ निकल पड़े। निकलते समय कजरी सरयुसिंह के करीब आयी और बोली जाइं अपना सुगना बाबू संग होली खेल लीं।

सरयू सिंह उसे सबके सामने चुम तो नहीं सकते थे पर वह बेहद प्रसन्न हो गए कजरी सच में उनके लिए एक वरदान थी जो उनकी खुशियों को हमेशा कायम रखती थी।

घर का आंगन खाली हो चुका था। प्रेम का अखाड़ा तैयार था। जैसे ही कजरी और बाकी लोग घर से कुछ दूर हुए सरयू सिंह आंगन में आ गए। सुगना अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी वह अपने बाबू जी के साथ होली नहीं खेल पाई थी। वह घर में हुई भीड़ भाड़ की वजह से चिंतित थी कि वह अपने बाबूजी के साथ कैसे होली खेल पाएगी। उसे नहीं पता था उसकी प्यारी सहेली और सास ने इसकी व्यवस्था पहले ही कर दी है।

सुगना अपनी चुचियों पर लगा अबीर झाड़ रही थी तभी सरयू सिंह ने उसे आकर पीछे से पकड़ लिया और उसे चूमने लगे।

सुगना खुश हो गई। जिस तरह से छोटा बच्चा गोद में आने के बाद खुश हो जाता है सुगना भी अपने बाबुजी की गोद में आकर मस्त हो गयी।

सरयुसिंह ने धीरे-धीरे सुनना को नग्न कर दिया पर सुगना की कुंदन काया पर कई जगह पर रंगों के निशान थे।
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सरयू सिंह भी अबीर से भीगे हुए थे उन्होंने भी अपना धोती और कुर्ता हटा दिया। घर के आंगन में ससुर और बहू पूरी तरह नग्न थे। आंगन का दरवाजा सरयू सिंह ने बंद कर दिया था। ब धूप की चमकती रोशनी में अपने बापू जी के लंड को देखकर सुगना सिहर उठी। तीन चार सालों तक लगातार चुदने के बावजूद सुगना की बुर अपने बाबुजी के लंड के लिए हमेशा छोटी पड़ती थी।

सुगना ने लंड पर कजरी द्वारा लगाया गया लाल रंग देख लिया था जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। सुगना अपने बाबूजी के करीब आई और उस जादुई लंड को अपने हाथों में ले लिया। सरयू सिंह सुगना के होठों को चूमने लगे। कुछ ही देर में उन्होंने सुगना को अपनी गोद में उठा लिया हैंड पंप के पास ले आए।

सरयू सिंह जब तक हैंडपंप से पानी निकालते रहें। सुगना उनके लंड से खेलती रही। ऐसा लग रहा था जैसे वह भी अपने छोटे हैण्डपम्प से पानी निकालने का प्रयास कर रही हो।
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सुगना के साथ इस तरह नग्न रहने का यह अनुभव बिल्कुल नया था। पानी भर जाने के पश्चात सरयू सिंह पालथी मारकर बैठ कर गए और अपनी प्यारी बहू सुगना को अपनी गोद में बिठा लिया। सुनना की चुचियां सरयू सिंह के सीने से सट गयीं और जैसे-जैसे सुगना अपनी कमर नीचे करती गई सरयू सिंह का मोटा लंड अपनी बहू की बुर में गुम होता गया।

सुगना का शरीर भरता चला गया। सुगना ने अब अपना पूरा वजन उनकी जांघों पर दे दिया था और उनके लंड को पूरी तरह अपने अंदर ले लिया था।

सुगना ने हाथ में साबुन लिया और अपने बाबूजी की पीठ पर लगाने लगी। सरयू सिंह भी सुगना की पीठ से रंग छुड़ाने लगे और जांघों के बीच अपनी पिचकारी को आगे पीछे करने लगे। सुगना दोहरे सुख में डूब रही थी। जांघों के बीच उसे होली का अद्भुत सुख मिल रहा था और उसके बाबूजी के हाथ उसके बदन से पराए मर्द द्वारा लगाया रंग छुड़ा रहे थे।

सुगना सरयुसिंह की ही थी यह दुर्भाग्य था की उम्र के इस विशाल अंतर की वजह से उसके जीवन मे दूसरे मर्द का आना निश्चित था। सरयू सिंह यह बात जानते थे कि वह सुगना का साथ ज्यादा दिन न दे पाएंगे। वैसे भी उनके माथे का दाग जो सुगना की बुर देखते समय कीड़े के काटने से मिला था बढ़ता जा रहा था।

साबुन की फिसलन उत्तेजना को बढ़ा रही थी। जैसे जैसे शरीर से रंग छूटता गया सरयुसिंह की पिचकारी तैयार होती गई। सुनना स्वयं बेसुध हो रही थी। वह आने बाबुजी को लगातार चूमे जा रही थी तथा उनकी पीठ पर उंगलियां और नाखून को गड़ाए हुए थी। इस अद्भुत चुदाई के समय कभी-कभी वह राजेश को भी याद कर रही थी जिसने अब से कुछ देर पहले उसकी खुशियों को जी भर कर मसला था।

सुगना अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे करने लगी। स्खलन का समय आ रहा था। सरयू सिंह ने सुनना की कमर को पकड़ कर तेजी से नीचे खींच लिया और अपने ल** को उसकी नाभि तक ठाँस दिया। सुगना कराह उठी

" बाबू जी तनी धीरे से….. दुखाता"

सुगना कि इस उदगार ने उसे स्वयं ही झड़ने पर मजबूर कर दिया। वह स्खलित हो रही थी और अपने बाबूजी को लगातार चुमें जा रही थी। सरयू सिंह भी अपनी प्यारी बहू को एक छोटे बच्चे की भांति सहलाए जा रहे थे। उन्हें सखलित होती हुई सुनना को प्यार करना बेहद अच्छा लगता था।

सुगना का उत्साह ठंडा पढ़ते ही सरयू सिंह ने उसे अपनी गोद से उतार दिया और स्वयं उठकर खड़े हो गए। उनका लंड अभी भी उछल रहा था। सुगना ने देर न कि उसने अपनी हथेलियां उस लंड पर लगा दी अपनी मुठ्ठीयों में भरकर लंड के सुपारी को सहलाने लगी।

सरयू सिंह ने बीर्य की धार छोड़ दी।
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आज सरयू सिंह ने अपनी पिचकारी अपने हाथों में ले ली और अपनी बहू सुगना को अपने श्वेत रंग से भिगोने लगे। सुगना अपने दोनों आंखों में अपनी खुशियों को पकड़े अपने बाबूजी के लंड से गिरते हुए प्रेम रंग को अपने शरीर पर आत्मसात कर रही थी।

सरयू सिंह के वीर्य ने सुगना के अंग प्रत्यंग को प्रेम रस से भिगो दिया यह रंग होली के सब रंगों पर भारी था। सुगना खुश हो गयी थी। वीर्य की अंतिम बूंद सुगना ने सर्विसिंग के लंड से स्वयं अपने होठों में ले ली।

ससुर और बहू दोनों तृप्त हो चले थे। होली का त्यौहार दोनों के लिए हमेशा की तरह पावन हो गया था।

सरयू सिंह के माथे का दाग बढ़ता ही जा रहा था। क्या यह किसी अनिष्ट का सूचक कजरी और सुगना उस दाग को लेकर अब चिंतित हो चली सरयू सिंह ने भी कई डॉक्टरों से उस दाग को दिखाया पर वह किसी की समझ में ना आ रहा था। जब जब वह सुगना के साथ कामुक होते दाग और बढ जाता…. नियति खेल खेल रही थी उसने रतन की दुविधा तो मिटा दीजिए पर दाद का रहस्य कायम रखा था..

सभी सदस्य ट्यूबबेल से नहा धोकर घर वापस आ चुके थे घर में खुशियां ही खुशियां थीं


सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
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Namaskar I JUST COPY & PEST THE STORY... WITOUT ANY EDITION OR DELETION ... SO DONT ASK ANY QUESTION
nospam
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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 02:06 PM



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