14-04-2022, 02:00 PM
(This post was last modified: 14-04-2022, 02:35 PM by Snigdha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
भाग -17
अंततः सरयू सिंह और सुगना के मिलन का दिन निर्धारित हो गया. सुगना के रजस्वला होने के दिनों के को ध्यान में रखते हुए कजरी ने अपने अनुभव से सुगना को गर्भवती करने के लिए चुना था वह संयोग से दिवाली का दिन था।
सरयू सिंह और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए उनके मिलन की सारी बाधाएं दूर हो चुकी थी। कजरी स्वयं उनके मिलन का दिन निर्धारित कर चुकी थी। आज से ठीक 7 दिनों बाद सुगना का स्वप्न पूरा होने वाला था।
सरयू सिंह और सुगना ने बड़ी ही मासूमियत से अपने बीच पनपी कामुकता को कजरी से छुपा लिया था। कजरी ने अपनी बहू सुगना की खुशी के लिए अपने कुंवर जी को सुगना से संभोग करने के लिए तैयार कर लिया था। वह कुंवर जी के प्रति कृतज्ञ थी जिन्होंने अपनी बहू जिसे वह सुगना बेटा बुलाया करते थे के साथ संभोग कर उसे गर्भवती करने के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी।
कजरी को सिर्फ और सिर्फ एक चिंता खाए जा रही थी वह सुगना की कोमलता। सुगना का प्रथम संभोग उस अद्भुत लंड के साथ होना था। वह सुकुमारी सरयू सिंह का वेग कैसे झेल पाएगी यह बात सोच सोच कर कजरी परेशान हो जाती।
पर उसे एक बात की तसल्ली थी की सरयू सिंह किसी भी स्थिति में सुगना को दुख नहीं पहुंचाएंगे। वह उनकी प्यारी बेटी समान बहु थी । वह निश्चय ही उसके प्रथम संभोग पर उसका ख्याल रखेंगे। कजरी ने अपने मन के डर को हटा लिया। वैसे सुगना स्वयम भी इस सम्भोग के लिए तैयार थी।
सुगना और सरयू सिंह अब तक बेहद करीब आ चुके थे। सरयू सिंह ने अबतक सुगना के सारे अंग प्रत्यंग देख लिए थे। सिर्फ सुगना का वह अपवित्र द्वार (गांड)उनकी निगाहों से अछूता था। परन्तु वह वासना का अतिरेक था जिसे सिर्फ सरयू सिंह जानते थे सुगना उससे बिल्कुल अनजान और अनभिज्ञ थी।
आज दोपहर में जब सुगना खाना लेकर आई और पंखा जलते हुए अपने बाबू जी को खाना खिलाने लगी उसने अब अपनी चूचियां पूरी तरह ढक ली थी। अब जब मिलन का दिन निर्धारित हो ही चुका था इन छोटी मोटी उत्तेजनाओं का कोई औचित्य न था। खाना खाते खाते सरयू सिंह ने कहा "अब खुश बाड़ू नु। दिवाली पर तोहार इच्छा पूरा हो जायी"
"एकर मतलब खाली हमारे इच्छा बा"
सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. सुगना उनसे बच्चों की तरह लड़ रही थी। उन्होंने फिर कहा "हम त बूढ़ा गईनी. तू ही नया बाड़ू. तहरे मन ज्यादा होइ"
बात सच थी सुगना कुछ उत्तर न दे पायी। उसने अपने बाबू जी को एक रोटी और दिया और मुस्कुराने हुए बोली
"अच्छा अब खाना खायीं"
सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे उनकी नई प्रेमिका उनके सामने बैठी हुई पंखा झल रही उसकी सेवा का फल उसे दिवाली के दिन मिलना तय हो चुका था। लंगोट के अंदर उनका लंड झांक झांक कर अपनी होने वाली नयी नवेली बुर की मालकिन को देख रहा था।
कजरी हरिया की पत्नी के साथ दीपावली का सामान खरीदने के लिए बाजार चली गई। दीपावली को लेकर वह बेहद उत्साहित थी। जाते-जाते वह सुनना को कमरे में रखी मक्खन की हांडी रसोई घर तक पहुंचाने और उसे गर्म कर घी बनाने की हिदायत दे डाली।
सुगना ने घर के बाकी काम निपटाये और नहा धोकर वहीं लहंगा चुन्नी पहन लिया जिसे पहन कर उसने अपने बाबू जी की मदद से अमरूद तोड़ा था और अपने बाबूजी को पहली बार अपनी बुर की खुशबू सुंघाई थी।
वह अपने कमरे में गई और मक्खन की हांडी उतारने लगी तभी एक चूहा तेजी से भागता हुआ उसके पैरों से टकरा गया सुगना घबरा गई और वह हांडी उसके शरीर पर गिर पड़ी हांडी का मक्खन कुछ उसके शरीर पर और कुछ जमीन पर गिर पड़ा हांडी फूड चुकी थी। सुगना घबरा गई उधर दालान में आराम कर रहे सरयू सिंह इस आवाज को सुनकर सुगना के कमरे में आ गए।
सुगना परेशान थी वह मक्खन से सराबोर थी। वह अपनी चोली उतार रही थी जो उसके शरीर से बाहर आकर उसके हाथों में आ गई थी। सरयू सिंह को अपने करीब देखकर वह सिहर गई उसकी चोली उसका साथ छोड़ चुकी थी और उसकी चूचियां सरयू सिंह के ठीक सामने थीं। गर्दन और कंधों पर गिरा हुआ मक्खन सरकता हुआ उसकी चुचियों पर आ चुका था।
सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने अपने हाथ उस मक्खन को पोछने के लिए बढ़ाएं पर वह उसी मक्खन को सुगना की चूँचियों पर मलने लगे। वह सुगना की मक्खन जैसी मुलायम त्वचा वाली कठोर चुचियों पर मक्खन लगाने लगे।
मक्खन से सराबोर अपनी मजबूत हथेलियों से अपनी बहू सुगना की कोमल चूँचियों को सहलाते हुए सरयू सिंह भाव विभोर हो गए। जिन चूँचियों को देखकर और अपने मन में कल्पना कर सरयू सिंह ने होटल में अपना हस्तमैथुन किया था वह आज उनकी हथेलियों में थीं।
अपनी बहू की चूँचियों का पहला स्पर्श उनके लिए यादगार बन रहा था। सुगना अपने बाबू जी से सटती चली जा रही थी।
वह उनसे नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थी इसलिए उसने अपनी पीठ अपने बाबूजी की तरफ की हुयी थी।
सरयू सिंह की हथेलियों को उसकी चुचियों को और भी अच्छे से पकड़ने का मौका मिल गया। उनके दोनों हाथ अब दोनों चुचियों पर बराबरी से घूमने लगे। सुगना आनंद में डुबने लगी। उसे मक्खन की सुध बुध न रही उसकी कोमल बुर से प्रेम रस बहना शुरू हो गया था। सरयू सिंह ने अपनी एक हथेली को नीचे की तरफ बढ़ाया। मक्खन लगे सरयू सिंह के हाथ सुगना की नाभि तक जा पहुंचे।
वह नाभि के छेद में थोड़ी देर अपनी उंगलियां घुमाते रहे सुगना मन ही मन अपने बाबू जी से कहती रही
"बाबूजी अउरु नीचे"
वह मदहोश हो रही थी। एक बार उसके मन मे आया कि वह उनकी हथेलियों को अपनी बुर तक पहुंचा दे। उसके बाबूजी इस कला के माहिर खिलाड़ी थे और यह भी तय था कि वह उससे बहुत प्यार करते थे उसने अपनी अधीरता को रोक लिया। सुगना अपनी जाँघे सिकोड रही थी। जब सरयू सिंह सुगना की चुचीं को तेजी से दबाते वह आगे की तरफ झुक जाती।
यही वह अवसर होता जब वह अनजाने में ही अपने कोमल नितंब अपने बाबूजी के लंड से सटा देती। उस मजबूत लंड को अपने नितंबों के बीच महसूस कर सुगना की उत्तेजना चरम पर जा पहुंची। वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी उसने अपना लहंगा नीचे सरकते हुए महसूस हुआ।
जब तक वह उसे पकड़ने के लिए अपने हाथ नीचे लाती लहंगा घुटनों को सहलाता हुआ जमीन पर आ गया। सुगना सिर्फ बाबूजी….कह पाई और प्रत्युत्तर में सरयू सिंह ने उसके गाल चुम लिये। सरयू सिंह के हाथ अब नीचे बढ़ रहे थे। सुगना की धड़कने तेज हो रही थी। उसे पता था आगे क्या होने वाला है। आज उसकी कोमल बुर पर किसी मर्द का हाथ लगने वाला था। सरयू सिंह उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंचने ही वाले थे तभी उन्होंने सुगना को अपने शरीर से थोड़ा दूर कर दिया सुगना को यह अप्रत्याशित सा लगा।
सुगना अभी भी अपने बाबूजी की तरफ पीठ करके खड़ी थी। उसने अपनी गर्दन घुमाई और बाबूजी को देखा जो अब अपनी धोती खोल चुके थे और लंगोट से लंड बाहर आ रहा था। लंड लगभग तन चुका था। सुगना सिहर उठी उसने अपनी आंखें बंद कर ली। क्या आज ही उसकी बुर की दीवाली मन जाएगी?
वह सिहर उठी। उसका रोम रोम कांपने लगा। वह एक खरगोश की भांति अपने अंगों को सिकोड़े खड़ी रही। सरयू सिंह ने अपने हाथों में गिरा हुआ ढेर सारा मक्खन ले लिया और वापस सुगना के पास आ गए। उन्होंने मक्खन सुगना की जांघों के जोड़ पर रख दिया और उस मक्खन से सुगना की जांघों को छूने लगे।
इनकी मोटी उंगलियां सुगना की जांघों के अंदरूनी भाग पर घूमने लगी सुगना की बूर से रिस रही लार उस मक्खन से मिल रही थी। सरयू सिंह को उस लार का लिसलिसापन तुरंत ही समझ में आ जाता था। वह जान चुके थे कि सुगना आनंद ले रही है। उनकी उंगलियां सुगना की जांघों के बीच से होते हुए उसके अपवित्र द्वार( गांड) तक पहुंच रही थीं। सुगना के नितंब अभी भी मक्खन की कोमलता से बचे हुए थे.
सरयू सिंह ने सुगना का चेहरा अपनी तरफ कर लिया. वह सुगना के माथे को चूम रहे थे। सुगना उत्तेजना के अधीन थी उसने अपनी गर्दन ऊपर उठाई कुछ ही देर में उसके होंठ उसके बाबूजी के होंठों के करीब आ गए। उन सुंदर गुलाबी होठों को अपने बेहद नजदीक पाकर सरयू सिंह मदहोश हो गए।
सुगना आगे बढ़ी या सरयू सिंह यह कहना मुश्किल था। पर चारों होंठ एक दूसरे में खो गए। एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति एक कमसिन युवती के होंठ चूस रहा था। जब तक सरयू सिंह सुगना के होंठ चूस रहे थे उनकी हथेलियों ने सुगना के नितंबों को मक्खन से सराबोर कर दिया। सुगना को इस बात का एहसास तब हुआ जब उसके बाबूजी की उंगलियों ने सुगना की कोमल गांड को सहला दिया।
सुगना एक बार फिर थरथरा उठी। उसे वह एहसास अद्भुत लगा था। उसने अपनी कोमल गांड को सिकोड़ लिया और अपने बाबूजी की उंगलियों को अपने कोमल नितंबों के बीच दबा लेने का प्रयास किया। पर मक्खन की फिसलन बेहद ज्यादा थी। सरयू सिंह की उंगलियां फिसल कर उसकी जांघों पर आ गयीं।
सरयू सिंह के लिए तो सुगना के शरीर का हर अंग ही अद्भुत था कितना कसाव था सुगना के शरीर में। उन्होंने मन ही मन सुगना और कजरी के शरीर की तुलना कर डाली एक अध पके केले और पके हुए केले में जो अंतर होता है वही सुगना और कजरी के शरीर में था। सरयू सिंह ने अपने कदम थोड़े पीछे लिए और वह पास पड़ी चौकी पर बैठ गए। सुगना भी उन से सटी हुई पीछे आती गई।
सरयू सिंह ने उसे अपनी बाईं जांघ पर बैठा लिया।
सुगना के नितंब सरयू सिंह की बाई जांघ पर टिक गए उसके कोमल पैर सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच से होते हुए जमीन पर छू रहे थे। मक्खन की फिसलन से बचने के लिए सुगना अपने दाहिने हाथ से बाबूजी की पीठ को पकड़ी हुई थी। सरयू सिंह ने भी अपनी प्यारी बहू को सहारा देने के लिए अपना बाया उसकी पीठ से होते हुए उसके सीने तक ले आए और उसकी दाहिनी चूची को पकड़ लिया।
सुगना का चेहरा उनके चेहरे के ठीक सामने था। वह उसके गालों को चूमने लगे सुगना ने अपना चेहरा अपने बाबू जी की तरफ कर लिया और उनके होठों को चूमने लगी। ससुर बहु का यह प्यार नियत देख रही थी वह मुस्कुरा रही थी।
इधर सुगना अपने बाबूजी के होंठ चूसने में व्यस्त थी उधर सरयू सिंह की उंगलियां उसकी जांघों के बीच घूमने लगीं। वह बीच-बीच में सुगना की पनियायी बुर को छू रहीं थीं।
जब जब उसकी उनकी उंगलियां सुगना की बुर को छूतीं सुगना सिहर उठती। वह अपने बाबूजी के होठों को और तेजी से चूसने लगती। सरयू सिंह अद्भुत आनंद में थे। एक तो उनके हाथ पहले ही मक्खन से सराबोर थे ऊपर से सुगना की कुवारी बुर से बह रहा प्रेम रस उनके हाथों को और भी ज्यादा चिपचिपा बना रहा था। उनकी उंगलियां बेहद आसानी से जांघों के बीच फिसल रही थीं। सुगना भी अपनी जांघों का दबाव अपनी इच्छानुसार घटा और बढ़ा रही थी।
धीरे धीरे सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की बुर् की फांकों के बीच घूमने लगी। सुगना कांप गयी। बुर् के अंदरूनी भाग पर सरयू सिंह की उंगलियां अजीब किस्म की सनसनी पैदा कर रही थीं। सुगना के लिए यह आनंद अनूठा था उसका रोम रोम आनद में था। सरयू सिंह ने थोड़ा झुक कर और मक्खन अपने हाथों में लिया जिस का आधा भाग उन्होंने सुगना के हाथ में दिया और आधा फिर से उसकी जांघों के बीच रख दिया। सुगना ने पूछा
"बाबूजी इकरा के का करीं?"
"जउन अंग तहरा सबसे प्यारा लागे ओकरे पर लगा द"
सुगना अपने बाबूजी का इशारा समझ चुकी थी। उसने वह मक्खन अपने पसंदीदा अंग अपने बाबू जी के तने हुए लंड के सुपारे पर लगा दिया। अपनी बहू की कोमल हथेलियों का स्पर्श पाकर सरयू सिंह का लंड अभिभूत हो गया। उसने उछल कर अपनी नई मलिका का स्वागत किया और सुगना के हाथों में खेलने लगा। सुगना का हाथ ज्यादा मुलायम था या वह मक्खन यह कहना कठिन था। लंड के लिए वह दोनों ही बेहतरीन थे। वह उनके साथ मगन होकर खेलने लगा।
एक बार बाबुजी की उंगलियां उसकी कोमल बुर पर घूमने लगीं। कभी-कभी वह अपनी उंगलियों को सुगना के उस अपवित्र द्वार तक भी ले जाते और उसे गुदगुदा देते। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। वह आंखें बंद किए अपने कभी अपने बाबूजी के होठों को चूसती कभी उन्हें गालों पर चुंबन लेती। ससुर बहु का यह प्यार दर्शनीय था पर उसे देखने वाला कोई नहीं था सिर्फ और सिर्फ नियति थी जिसने उन्हें इतना करीब लाया था।
अब तक शरीर सिंह की उंगलियों ने यह भांप लिया था की सुगना अक्षत यौवना थी। उसकी कौमार्य झिल्ली सुरक्षित थी। उन्हें इस बात का आभास था कि जब सुगना की कौमार्य झिल्ली टूटेगी उसे निश्चय ही दर्द होगा। शायद यह दर्द और भी ज्यादा होगा जब उनका विशाल और मजबूत लंड उस छोटी सी कोमल बुर में प्रवेश करेंगा।
वह दीपावली की रात की कल्पना कर उत्तेजित हो गए पर अपनी बहू सुगना के लिए चिंतित भी। एक पल के लिए उन्हें लगा वह अपनी बहू सुगना की दीपावली खराब कर देंगे। दर्द में कराहती हुई सुनना को वह कैसे चोद पाएंगे?
यह उन्हें कतई पसंद नहीं आएगा। वह उसका आनंद तो लेगी या नहीं यह बात बाद में ही समझ में आती पर यह तय था कि उस मोटे लंड से उसकी झिल्ली टूटने पर उसे दर्द होता। सरयू सिंह यह भी सोच रहे थे की सुगना का कौमार्य भंगअपने अपवित्र लंड से न करें।
उनके मन में दीपावली की रात को लेकर कई तरह की भावनाएं आ रही थी उन्हें उस दिन सुगना को पहली बार चोदना था पर वह सुगना की रात नहीं खराब करना चाहते थे. उस खुशी के मौके पर अपनी प्यारी बहू को वह दर्द से कराहता नहीं देखना चाहते थे। अंततः उन्होंने मन ही मन फैसला कर लिया। उन्होंने सुगना के होठों को जोर से चुम्मा और अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ा दिया। उनकी मध्यमा उंगली बुर् की कोमल होंठो के बीच से मांसल भाग पर छूने लगीं। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। बुर् के कोमल मुख पर दबाव बढ़ते हैं उसे तेज दर्द की अनुभूति हुई। सुगना ने कहा…
"बाबू जी तनी धीरे से……. दुखाता"
शरीर सिंह को पता था दर्द तो होना है उन्होंने अपनी उंगलियों का दबाव थोड़ा कम किया और एक बार फिर उतना ही दबाव दिया. सुगना फिर चिहुँक उठी।
सरयू सिंह ने सुगना के कान में कहा सुगना "सुगना बाबू अबकी दुखाई त हमार होंठ काट लीह हम रुक जाइब"
सुगना खुश हो गई. कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना के बुर् अंदरूनी भाग को एक बार फिर छेड़ने लगे। जैसे ही वह दबाव ज्यादा बढ़ाते सुगना अपने दांत उनके होठों पर गड़ाकर उन्हें रोक लेती। सरयू सिंह की दूसरी हथेली सुगना की चूँची और निप्पलों को लगातार सहला रही थी।
उनका लंड सुगना के कोमल हाथों में खेलते खेलते अब स्खलन के लिए तैयार था। सुगना स्वयं भी कांप रही थी वह भी झड़ने के लिए पूरी तरह तैयार थी। अपनी बाबूजी की उंगलियों को अपनी पनियायी बुर पर अब ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पा रही थी। शरीर सिंह बुर् के कंपन को अच्छे से पहचानते थे।
जिस समय सुगना की बुर के कंपन चरम पर थे उसी समय उन्होंने अपनी मध्यमा उंगली को उसको बुर में तेजी से उसे अंदर घुसा दिया। सुगना दर्द से तड़प उठी उसने अपनी हथेलियो से सरयू सिंह के लंड को तेजी से दबा दिया। उसके कोमल हाथों में इतनी ताकत जाने कहां से आई। उसी दौरान उन्होंने अपने बाबूजी के होठों को काट लिया। वह अपनी झिल्ली टूटने के दर्द से तड़प उठी थी। इसके बावजूद दर्द और स्खलन की खुशी में खुशी का पलड़ा भारी था।
सरयू सिंह की उंगली उसकी बुर के अंदर तेजी से आगे पीछे हो रही थी। उनका अंगूठा सुगना की भग्नासा को सहलाकर सांत्वना दे रहा था। सुनना उनकी हथेली में अपना प्रेम रस छोड़ रही थी। कुछ देर अपनी उंगली से सुगना के अंदरूनी भागों को सहलाने के पश्चात उन्होंने सुगना के शरीर की हलचल को शांत होते हुए महसूस किया। सुगना तृप्त हो चुकी थी।
उधर सुगना की हथेली के तेज दबाव के कारण सरयू सिंह भी स्खलित हो रहे थे वीर्य की तेज धार सुगना के पेट और चूचियों पर पढ़ रही थी। सुगना को उस उत्तेजना में कुछ भी समझ ना आ रहा था। वह लंड को पकड़े हुए थी। वीर्य वर्षा ससुर और बहू दोनों को बराबरी से भीगो रही थी।
सुगना ने अनजाने में ही अपने ससुर के होंठ काट लिए थे। पर अब वह उसे सहला रही थी।
सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा रखा था। कुछ ही देर में सुगना उनसे अलग हुई। सरयू सिंह अपनी बहू को देख रहे थे जो उनके वीर्य और उस मक्खन से सराबोर थी। उसकी जांघों पर रक्त आया हुआ था।
उधर सर्विसिंग के होठों पर भी रक्त के निशान आ गए थे। सुगना ने सचमुच में जोर से काटा था। सुगना एक बार फिर पास आई और अपने हाथों से अपने बाबूजी के होठों का रक्त पोछने लगी। शरीर सिंह के हाथ भी एक बार फिर उसकी जांघों पर चले गए। सुगना की बुर अब संवेदनशील हो चली थी। वह अपनी कमर पीछे कर रही थी।
शरीर सिंह ने उठ कर उसे अपने सीने से लगा लिया। और उसके माथे को चूमते हुए बोले
"सुनना बाबू जायेदा अब दिवाली अच्छा से मनी" सुगना में उन्हें चुम लिया पर वह शर्म से पानी पानी हो गयी। उसके प्यारे बाबुजी दीपावली के दिन उसकी बुर में दीवाली मनाएंगे यह सोच कर वह मदमस्त जो गयी।
एक बार खुशी में वह उनके चरण छूने के लिए झुकी। उसके कोमल नितंब सरयू सिंह कि निगाहों में आ गए। सुगना सच में बेहद खूबसूरत थी। भगवान ने उसे कामुकता का अद्भुत खजाना दिया था उसका हर अंग सांचे में ढला हुआ था। सरयू सिंह ने अपना सर ऊपर उठाया और नियति को इस अवसर के लिए धन्यवाद प्रेषित किया। उनके आने वाले दिन बेहद उत्तेजक और खुशियों भरे होने वाले थे.
सुगना ने कोठरी में फैले हुए मक्खन को देखकर अपने बाबू जी से कहा
"सासू मां घीव बनावे के केहले रहली अब का होई"
सरयू सिंह सुगना की मासूमियत से द्रवित हो गए. उन्होंने नंगी सुगना को अपने सीने से सटाया और उसके माथे पर चूम लिया और कहां
"जायेदा तू साफ सफाई कर ल हम घीव मंगवा दे तानी"
सुगना मुस्कुरा दी उसने अपनी एडियां उची की और बाबूजी के गालो को चूम लिया।
ससुर और बहू का यह प्रेम निराला था। नियति ने आज सुगना का कौमार्य हर कर उसे अद्भुत संभोग के लिए तैयार कर लिया था। दीपावली शुभ होने वाली थी। सुगना नीचे बैठकर मक्खन उठाने लगी उसकी सुंदर और गोल मटोल चूतड़ देखकर सरयू सिंह ललचा रहे थे वह एकटक उन्हें देखे जा रहे थे। आज उन्हें इतना कुछ एक साथ मिल चुका था पर उनका मन ही नहीं भर रहा था।
तभी सुगना ने पलट कर देखा और बोली "बाबूजी अब जायीं सब राउरे ह"
शरीर सिंह अपनी धोती बांधते हुए कोठरी से बाहर आ गए पर उनका दिल बल्लियों उछल रहा था। उनके खजाने में कोहिनूर हीरा आ चुका था।
सुगना ने मक्खन साफ कर लिया था अचानक उसका ध्यान अपने पेट और चुचियों पर गया जो मक्खन और शरीर सिंह के घी(वीर्य) से सने हुए थे। उसने एक बार अपने हाथों से अपनी चुचियों को सहला लिया अपने बापू जी का वीर्य हाथों में लिए अपनी चुचियों को मसलने के समय व बेहद खुश दिखाई पड़ रही थी उसका स्वप्न पूरा हो रहा था।
दीपवली का इंतजार सुगना को भारी पड़ रहा था….
अंततः सरयू सिंह और सुगना के मिलन का दिन निर्धारित हो गया. सुगना के रजस्वला होने के दिनों के को ध्यान में रखते हुए कजरी ने अपने अनुभव से सुगना को गर्भवती करने के लिए चुना था वह संयोग से दिवाली का दिन था।
सरयू सिंह और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए उनके मिलन की सारी बाधाएं दूर हो चुकी थी। कजरी स्वयं उनके मिलन का दिन निर्धारित कर चुकी थी। आज से ठीक 7 दिनों बाद सुगना का स्वप्न पूरा होने वाला था।
सरयू सिंह और सुगना ने बड़ी ही मासूमियत से अपने बीच पनपी कामुकता को कजरी से छुपा लिया था। कजरी ने अपनी बहू सुगना की खुशी के लिए अपने कुंवर जी को सुगना से संभोग करने के लिए तैयार कर लिया था। वह कुंवर जी के प्रति कृतज्ञ थी जिन्होंने अपनी बहू जिसे वह सुगना बेटा बुलाया करते थे के साथ संभोग कर उसे गर्भवती करने के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी।
कजरी को सिर्फ और सिर्फ एक चिंता खाए जा रही थी वह सुगना की कोमलता। सुगना का प्रथम संभोग उस अद्भुत लंड के साथ होना था। वह सुकुमारी सरयू सिंह का वेग कैसे झेल पाएगी यह बात सोच सोच कर कजरी परेशान हो जाती।
पर उसे एक बात की तसल्ली थी की सरयू सिंह किसी भी स्थिति में सुगना को दुख नहीं पहुंचाएंगे। वह उनकी प्यारी बेटी समान बहु थी । वह निश्चय ही उसके प्रथम संभोग पर उसका ख्याल रखेंगे। कजरी ने अपने मन के डर को हटा लिया। वैसे सुगना स्वयम भी इस सम्भोग के लिए तैयार थी।
सुगना और सरयू सिंह अब तक बेहद करीब आ चुके थे। सरयू सिंह ने अबतक सुगना के सारे अंग प्रत्यंग देख लिए थे। सिर्फ सुगना का वह अपवित्र द्वार (गांड)उनकी निगाहों से अछूता था। परन्तु वह वासना का अतिरेक था जिसे सिर्फ सरयू सिंह जानते थे सुगना उससे बिल्कुल अनजान और अनभिज्ञ थी।
आज दोपहर में जब सुगना खाना लेकर आई और पंखा जलते हुए अपने बाबू जी को खाना खिलाने लगी उसने अब अपनी चूचियां पूरी तरह ढक ली थी। अब जब मिलन का दिन निर्धारित हो ही चुका था इन छोटी मोटी उत्तेजनाओं का कोई औचित्य न था। खाना खाते खाते सरयू सिंह ने कहा "अब खुश बाड़ू नु। दिवाली पर तोहार इच्छा पूरा हो जायी"
"एकर मतलब खाली हमारे इच्छा बा"
सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. सुगना उनसे बच्चों की तरह लड़ रही थी। उन्होंने फिर कहा "हम त बूढ़ा गईनी. तू ही नया बाड़ू. तहरे मन ज्यादा होइ"
बात सच थी सुगना कुछ उत्तर न दे पायी। उसने अपने बाबू जी को एक रोटी और दिया और मुस्कुराने हुए बोली
"अच्छा अब खाना खायीं"
सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे उनकी नई प्रेमिका उनके सामने बैठी हुई पंखा झल रही उसकी सेवा का फल उसे दिवाली के दिन मिलना तय हो चुका था। लंगोट के अंदर उनका लंड झांक झांक कर अपनी होने वाली नयी नवेली बुर की मालकिन को देख रहा था।
कजरी हरिया की पत्नी के साथ दीपावली का सामान खरीदने के लिए बाजार चली गई। दीपावली को लेकर वह बेहद उत्साहित थी। जाते-जाते वह सुनना को कमरे में रखी मक्खन की हांडी रसोई घर तक पहुंचाने और उसे गर्म कर घी बनाने की हिदायत दे डाली।
सुगना ने घर के बाकी काम निपटाये और नहा धोकर वहीं लहंगा चुन्नी पहन लिया जिसे पहन कर उसने अपने बाबू जी की मदद से अमरूद तोड़ा था और अपने बाबूजी को पहली बार अपनी बुर की खुशबू सुंघाई थी।
वह अपने कमरे में गई और मक्खन की हांडी उतारने लगी तभी एक चूहा तेजी से भागता हुआ उसके पैरों से टकरा गया सुगना घबरा गई और वह हांडी उसके शरीर पर गिर पड़ी हांडी का मक्खन कुछ उसके शरीर पर और कुछ जमीन पर गिर पड़ा हांडी फूड चुकी थी। सुगना घबरा गई उधर दालान में आराम कर रहे सरयू सिंह इस आवाज को सुनकर सुगना के कमरे में आ गए।
सुगना परेशान थी वह मक्खन से सराबोर थी। वह अपनी चोली उतार रही थी जो उसके शरीर से बाहर आकर उसके हाथों में आ गई थी। सरयू सिंह को अपने करीब देखकर वह सिहर गई उसकी चोली उसका साथ छोड़ चुकी थी और उसकी चूचियां सरयू सिंह के ठीक सामने थीं। गर्दन और कंधों पर गिरा हुआ मक्खन सरकता हुआ उसकी चुचियों पर आ चुका था।
सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने अपने हाथ उस मक्खन को पोछने के लिए बढ़ाएं पर वह उसी मक्खन को सुगना की चूँचियों पर मलने लगे। वह सुगना की मक्खन जैसी मुलायम त्वचा वाली कठोर चुचियों पर मक्खन लगाने लगे।
मक्खन से सराबोर अपनी मजबूत हथेलियों से अपनी बहू सुगना की कोमल चूँचियों को सहलाते हुए सरयू सिंह भाव विभोर हो गए। जिन चूँचियों को देखकर और अपने मन में कल्पना कर सरयू सिंह ने होटल में अपना हस्तमैथुन किया था वह आज उनकी हथेलियों में थीं।
अपनी बहू की चूँचियों का पहला स्पर्श उनके लिए यादगार बन रहा था। सुगना अपने बाबू जी से सटती चली जा रही थी।
वह उनसे नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थी इसलिए उसने अपनी पीठ अपने बाबूजी की तरफ की हुयी थी।
सरयू सिंह की हथेलियों को उसकी चुचियों को और भी अच्छे से पकड़ने का मौका मिल गया। उनके दोनों हाथ अब दोनों चुचियों पर बराबरी से घूमने लगे। सुगना आनंद में डुबने लगी। उसे मक्खन की सुध बुध न रही उसकी कोमल बुर से प्रेम रस बहना शुरू हो गया था। सरयू सिंह ने अपनी एक हथेली को नीचे की तरफ बढ़ाया। मक्खन लगे सरयू सिंह के हाथ सुगना की नाभि तक जा पहुंचे।
वह नाभि के छेद में थोड़ी देर अपनी उंगलियां घुमाते रहे सुगना मन ही मन अपने बाबू जी से कहती रही
"बाबूजी अउरु नीचे"
वह मदहोश हो रही थी। एक बार उसके मन मे आया कि वह उनकी हथेलियों को अपनी बुर तक पहुंचा दे। उसके बाबूजी इस कला के माहिर खिलाड़ी थे और यह भी तय था कि वह उससे बहुत प्यार करते थे उसने अपनी अधीरता को रोक लिया। सुगना अपनी जाँघे सिकोड रही थी। जब सरयू सिंह सुगना की चुचीं को तेजी से दबाते वह आगे की तरफ झुक जाती।
यही वह अवसर होता जब वह अनजाने में ही अपने कोमल नितंब अपने बाबूजी के लंड से सटा देती। उस मजबूत लंड को अपने नितंबों के बीच महसूस कर सुगना की उत्तेजना चरम पर जा पहुंची। वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी उसने अपना लहंगा नीचे सरकते हुए महसूस हुआ।
जब तक वह उसे पकड़ने के लिए अपने हाथ नीचे लाती लहंगा घुटनों को सहलाता हुआ जमीन पर आ गया। सुगना सिर्फ बाबूजी….कह पाई और प्रत्युत्तर में सरयू सिंह ने उसके गाल चुम लिये। सरयू सिंह के हाथ अब नीचे बढ़ रहे थे। सुगना की धड़कने तेज हो रही थी। उसे पता था आगे क्या होने वाला है। आज उसकी कोमल बुर पर किसी मर्द का हाथ लगने वाला था। सरयू सिंह उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंचने ही वाले थे तभी उन्होंने सुगना को अपने शरीर से थोड़ा दूर कर दिया सुगना को यह अप्रत्याशित सा लगा।
सुगना अभी भी अपने बाबूजी की तरफ पीठ करके खड़ी थी। उसने अपनी गर्दन घुमाई और बाबूजी को देखा जो अब अपनी धोती खोल चुके थे और लंगोट से लंड बाहर आ रहा था। लंड लगभग तन चुका था। सुगना सिहर उठी उसने अपनी आंखें बंद कर ली। क्या आज ही उसकी बुर की दीवाली मन जाएगी?
वह सिहर उठी। उसका रोम रोम कांपने लगा। वह एक खरगोश की भांति अपने अंगों को सिकोड़े खड़ी रही। सरयू सिंह ने अपने हाथों में गिरा हुआ ढेर सारा मक्खन ले लिया और वापस सुगना के पास आ गए। उन्होंने मक्खन सुगना की जांघों के जोड़ पर रख दिया और उस मक्खन से सुगना की जांघों को छूने लगे।
इनकी मोटी उंगलियां सुगना की जांघों के अंदरूनी भाग पर घूमने लगी सुगना की बूर से रिस रही लार उस मक्खन से मिल रही थी। सरयू सिंह को उस लार का लिसलिसापन तुरंत ही समझ में आ जाता था। वह जान चुके थे कि सुगना आनंद ले रही है। उनकी उंगलियां सुगना की जांघों के बीच से होते हुए उसके अपवित्र द्वार( गांड) तक पहुंच रही थीं। सुगना के नितंब अभी भी मक्खन की कोमलता से बचे हुए थे.
सरयू सिंह ने सुगना का चेहरा अपनी तरफ कर लिया. वह सुगना के माथे को चूम रहे थे। सुगना उत्तेजना के अधीन थी उसने अपनी गर्दन ऊपर उठाई कुछ ही देर में उसके होंठ उसके बाबूजी के होंठों के करीब आ गए। उन सुंदर गुलाबी होठों को अपने बेहद नजदीक पाकर सरयू सिंह मदहोश हो गए।
सुगना आगे बढ़ी या सरयू सिंह यह कहना मुश्किल था। पर चारों होंठ एक दूसरे में खो गए। एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति एक कमसिन युवती के होंठ चूस रहा था। जब तक सरयू सिंह सुगना के होंठ चूस रहे थे उनकी हथेलियों ने सुगना के नितंबों को मक्खन से सराबोर कर दिया। सुगना को इस बात का एहसास तब हुआ जब उसके बाबूजी की उंगलियों ने सुगना की कोमल गांड को सहला दिया।
सुगना एक बार फिर थरथरा उठी। उसे वह एहसास अद्भुत लगा था। उसने अपनी कोमल गांड को सिकोड़ लिया और अपने बाबूजी की उंगलियों को अपने कोमल नितंबों के बीच दबा लेने का प्रयास किया। पर मक्खन की फिसलन बेहद ज्यादा थी। सरयू सिंह की उंगलियां फिसल कर उसकी जांघों पर आ गयीं।
सरयू सिंह के लिए तो सुगना के शरीर का हर अंग ही अद्भुत था कितना कसाव था सुगना के शरीर में। उन्होंने मन ही मन सुगना और कजरी के शरीर की तुलना कर डाली एक अध पके केले और पके हुए केले में जो अंतर होता है वही सुगना और कजरी के शरीर में था। सरयू सिंह ने अपने कदम थोड़े पीछे लिए और वह पास पड़ी चौकी पर बैठ गए। सुगना भी उन से सटी हुई पीछे आती गई।
सरयू सिंह ने उसे अपनी बाईं जांघ पर बैठा लिया।
सुगना के नितंब सरयू सिंह की बाई जांघ पर टिक गए उसके कोमल पैर सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच से होते हुए जमीन पर छू रहे थे। मक्खन की फिसलन से बचने के लिए सुगना अपने दाहिने हाथ से बाबूजी की पीठ को पकड़ी हुई थी। सरयू सिंह ने भी अपनी प्यारी बहू को सहारा देने के लिए अपना बाया उसकी पीठ से होते हुए उसके सीने तक ले आए और उसकी दाहिनी चूची को पकड़ लिया।
सुगना का चेहरा उनके चेहरे के ठीक सामने था। वह उसके गालों को चूमने लगे सुगना ने अपना चेहरा अपने बाबू जी की तरफ कर लिया और उनके होठों को चूमने लगी। ससुर बहु का यह प्यार नियत देख रही थी वह मुस्कुरा रही थी।
इधर सुगना अपने बाबूजी के होंठ चूसने में व्यस्त थी उधर सरयू सिंह की उंगलियां उसकी जांघों के बीच घूमने लगीं। वह बीच-बीच में सुगना की पनियायी बुर को छू रहीं थीं।
जब जब उसकी उनकी उंगलियां सुगना की बुर को छूतीं सुगना सिहर उठती। वह अपने बाबूजी के होठों को और तेजी से चूसने लगती। सरयू सिंह अद्भुत आनंद में थे। एक तो उनके हाथ पहले ही मक्खन से सराबोर थे ऊपर से सुगना की कुवारी बुर से बह रहा प्रेम रस उनके हाथों को और भी ज्यादा चिपचिपा बना रहा था। उनकी उंगलियां बेहद आसानी से जांघों के बीच फिसल रही थीं। सुगना भी अपनी जांघों का दबाव अपनी इच्छानुसार घटा और बढ़ा रही थी।
धीरे धीरे सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की बुर् की फांकों के बीच घूमने लगी। सुगना कांप गयी। बुर् के अंदरूनी भाग पर सरयू सिंह की उंगलियां अजीब किस्म की सनसनी पैदा कर रही थीं। सुगना के लिए यह आनंद अनूठा था उसका रोम रोम आनद में था। सरयू सिंह ने थोड़ा झुक कर और मक्खन अपने हाथों में लिया जिस का आधा भाग उन्होंने सुगना के हाथ में दिया और आधा फिर से उसकी जांघों के बीच रख दिया। सुगना ने पूछा
"बाबूजी इकरा के का करीं?"
"जउन अंग तहरा सबसे प्यारा लागे ओकरे पर लगा द"
सुगना अपने बाबूजी का इशारा समझ चुकी थी। उसने वह मक्खन अपने पसंदीदा अंग अपने बाबू जी के तने हुए लंड के सुपारे पर लगा दिया। अपनी बहू की कोमल हथेलियों का स्पर्श पाकर सरयू सिंह का लंड अभिभूत हो गया। उसने उछल कर अपनी नई मलिका का स्वागत किया और सुगना के हाथों में खेलने लगा। सुगना का हाथ ज्यादा मुलायम था या वह मक्खन यह कहना कठिन था। लंड के लिए वह दोनों ही बेहतरीन थे। वह उनके साथ मगन होकर खेलने लगा।
एक बार बाबुजी की उंगलियां उसकी कोमल बुर पर घूमने लगीं। कभी-कभी वह अपनी उंगलियों को सुगना के उस अपवित्र द्वार तक भी ले जाते और उसे गुदगुदा देते। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। वह आंखें बंद किए अपने कभी अपने बाबूजी के होठों को चूसती कभी उन्हें गालों पर चुंबन लेती। ससुर बहु का यह प्यार दर्शनीय था पर उसे देखने वाला कोई नहीं था सिर्फ और सिर्फ नियति थी जिसने उन्हें इतना करीब लाया था।
अब तक शरीर सिंह की उंगलियों ने यह भांप लिया था की सुगना अक्षत यौवना थी। उसकी कौमार्य झिल्ली सुरक्षित थी। उन्हें इस बात का आभास था कि जब सुगना की कौमार्य झिल्ली टूटेगी उसे निश्चय ही दर्द होगा। शायद यह दर्द और भी ज्यादा होगा जब उनका विशाल और मजबूत लंड उस छोटी सी कोमल बुर में प्रवेश करेंगा।
वह दीपावली की रात की कल्पना कर उत्तेजित हो गए पर अपनी बहू सुगना के लिए चिंतित भी। एक पल के लिए उन्हें लगा वह अपनी बहू सुगना की दीपावली खराब कर देंगे। दर्द में कराहती हुई सुनना को वह कैसे चोद पाएंगे?
यह उन्हें कतई पसंद नहीं आएगा। वह उसका आनंद तो लेगी या नहीं यह बात बाद में ही समझ में आती पर यह तय था कि उस मोटे लंड से उसकी झिल्ली टूटने पर उसे दर्द होता। सरयू सिंह यह भी सोच रहे थे की सुगना का कौमार्य भंगअपने अपवित्र लंड से न करें।
उनके मन में दीपावली की रात को लेकर कई तरह की भावनाएं आ रही थी उन्हें उस दिन सुगना को पहली बार चोदना था पर वह सुगना की रात नहीं खराब करना चाहते थे. उस खुशी के मौके पर अपनी प्यारी बहू को वह दर्द से कराहता नहीं देखना चाहते थे। अंततः उन्होंने मन ही मन फैसला कर लिया। उन्होंने सुगना के होठों को जोर से चुम्मा और अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ा दिया। उनकी मध्यमा उंगली बुर् की कोमल होंठो के बीच से मांसल भाग पर छूने लगीं। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। बुर् के कोमल मुख पर दबाव बढ़ते हैं उसे तेज दर्द की अनुभूति हुई। सुगना ने कहा…
"बाबू जी तनी धीरे से……. दुखाता"
शरीर सिंह को पता था दर्द तो होना है उन्होंने अपनी उंगलियों का दबाव थोड़ा कम किया और एक बार फिर उतना ही दबाव दिया. सुगना फिर चिहुँक उठी।
सरयू सिंह ने सुगना के कान में कहा सुगना "सुगना बाबू अबकी दुखाई त हमार होंठ काट लीह हम रुक जाइब"
सुगना खुश हो गई. कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना के बुर् अंदरूनी भाग को एक बार फिर छेड़ने लगे। जैसे ही वह दबाव ज्यादा बढ़ाते सुगना अपने दांत उनके होठों पर गड़ाकर उन्हें रोक लेती। सरयू सिंह की दूसरी हथेली सुगना की चूँची और निप्पलों को लगातार सहला रही थी।
उनका लंड सुगना के कोमल हाथों में खेलते खेलते अब स्खलन के लिए तैयार था। सुगना स्वयं भी कांप रही थी वह भी झड़ने के लिए पूरी तरह तैयार थी। अपनी बाबूजी की उंगलियों को अपनी पनियायी बुर पर अब ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पा रही थी। शरीर सिंह बुर् के कंपन को अच्छे से पहचानते थे।
जिस समय सुगना की बुर के कंपन चरम पर थे उसी समय उन्होंने अपनी मध्यमा उंगली को उसको बुर में तेजी से उसे अंदर घुसा दिया। सुगना दर्द से तड़प उठी उसने अपनी हथेलियो से सरयू सिंह के लंड को तेजी से दबा दिया। उसके कोमल हाथों में इतनी ताकत जाने कहां से आई। उसी दौरान उन्होंने अपने बाबूजी के होठों को काट लिया। वह अपनी झिल्ली टूटने के दर्द से तड़प उठी थी। इसके बावजूद दर्द और स्खलन की खुशी में खुशी का पलड़ा भारी था।
सरयू सिंह की उंगली उसकी बुर के अंदर तेजी से आगे पीछे हो रही थी। उनका अंगूठा सुगना की भग्नासा को सहलाकर सांत्वना दे रहा था। सुनना उनकी हथेली में अपना प्रेम रस छोड़ रही थी। कुछ देर अपनी उंगली से सुगना के अंदरूनी भागों को सहलाने के पश्चात उन्होंने सुगना के शरीर की हलचल को शांत होते हुए महसूस किया। सुगना तृप्त हो चुकी थी।
उधर सुगना की हथेली के तेज दबाव के कारण सरयू सिंह भी स्खलित हो रहे थे वीर्य की तेज धार सुगना के पेट और चूचियों पर पढ़ रही थी। सुगना को उस उत्तेजना में कुछ भी समझ ना आ रहा था। वह लंड को पकड़े हुए थी। वीर्य वर्षा ससुर और बहू दोनों को बराबरी से भीगो रही थी।
सुगना ने अनजाने में ही अपने ससुर के होंठ काट लिए थे। पर अब वह उसे सहला रही थी।
सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा रखा था। कुछ ही देर में सुगना उनसे अलग हुई। सरयू सिंह अपनी बहू को देख रहे थे जो उनके वीर्य और उस मक्खन से सराबोर थी। उसकी जांघों पर रक्त आया हुआ था।
उधर सर्विसिंग के होठों पर भी रक्त के निशान आ गए थे। सुगना ने सचमुच में जोर से काटा था। सुगना एक बार फिर पास आई और अपने हाथों से अपने बाबूजी के होठों का रक्त पोछने लगी। शरीर सिंह के हाथ भी एक बार फिर उसकी जांघों पर चले गए। सुगना की बुर अब संवेदनशील हो चली थी। वह अपनी कमर पीछे कर रही थी।
शरीर सिंह ने उठ कर उसे अपने सीने से लगा लिया। और उसके माथे को चूमते हुए बोले
"सुनना बाबू जायेदा अब दिवाली अच्छा से मनी" सुगना में उन्हें चुम लिया पर वह शर्म से पानी पानी हो गयी। उसके प्यारे बाबुजी दीपावली के दिन उसकी बुर में दीवाली मनाएंगे यह सोच कर वह मदमस्त जो गयी।
एक बार खुशी में वह उनके चरण छूने के लिए झुकी। उसके कोमल नितंब सरयू सिंह कि निगाहों में आ गए। सुगना सच में बेहद खूबसूरत थी। भगवान ने उसे कामुकता का अद्भुत खजाना दिया था उसका हर अंग सांचे में ढला हुआ था। सरयू सिंह ने अपना सर ऊपर उठाया और नियति को इस अवसर के लिए धन्यवाद प्रेषित किया। उनके आने वाले दिन बेहद उत्तेजक और खुशियों भरे होने वाले थे.
सुगना ने कोठरी में फैले हुए मक्खन को देखकर अपने बाबू जी से कहा
"सासू मां घीव बनावे के केहले रहली अब का होई"
सरयू सिंह सुगना की मासूमियत से द्रवित हो गए. उन्होंने नंगी सुगना को अपने सीने से सटाया और उसके माथे पर चूम लिया और कहां
"जायेदा तू साफ सफाई कर ल हम घीव मंगवा दे तानी"
सुगना मुस्कुरा दी उसने अपनी एडियां उची की और बाबूजी के गालो को चूम लिया।
ससुर और बहू का यह प्रेम निराला था। नियति ने आज सुगना का कौमार्य हर कर उसे अद्भुत संभोग के लिए तैयार कर लिया था। दीपावली शुभ होने वाली थी। सुगना नीचे बैठकर मक्खन उठाने लगी उसकी सुंदर और गोल मटोल चूतड़ देखकर सरयू सिंह ललचा रहे थे वह एकटक उन्हें देखे जा रहे थे। आज उन्हें इतना कुछ एक साथ मिल चुका था पर उनका मन ही नहीं भर रहा था।
तभी सुगना ने पलट कर देखा और बोली "बाबूजी अब जायीं सब राउरे ह"
शरीर सिंह अपनी धोती बांधते हुए कोठरी से बाहर आ गए पर उनका दिल बल्लियों उछल रहा था। उनके खजाने में कोहिनूर हीरा आ चुका था।
सुगना ने मक्खन साफ कर लिया था अचानक उसका ध्यान अपने पेट और चुचियों पर गया जो मक्खन और शरीर सिंह के घी(वीर्य) से सने हुए थे। उसने एक बार अपने हाथों से अपनी चुचियों को सहला लिया अपने बापू जी का वीर्य हाथों में लिए अपनी चुचियों को मसलने के समय व बेहद खुश दिखाई पड़ रही थी उसका स्वप्न पूरा हो रहा था।
दीपवली का इंतजार सुगना को भारी पड़ रहा था….