14-04-2022, 01:38 PM
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भाग-11
"मैं सुगना"
दिन भर की भागदौड़ से मैं थक गई थी। शहर के उस अनजान होटल के कमरे में लेटते ही मैं सो गई। बाबुजी दूसरे बिस्तर पर सो रहे थे.
रात में एक अनजान शख्स मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ उठा रहा था. पता नहीं क्यों मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने अपने घुटने मोड़ लिए। मेरा पेटीकोट मेरी जांघो को तक आ चुका था। पंखे की हवा मेरे जांघों के अंदरूनी भाग को छू रही थी और मुझे शीतलता का एहसास करा रही थी। उस आदमी ने मेरी पेटीकोट को मेरे नितंबों तक ला दिया था। उसे और ऊपर उठाने के मैने स्वयं अपने नितंबों को ऊपर उठा दिया। उस आदमी के सामने मुझे नंगा होने में पता नहीं क्यों शर्म नही आ रही थी। मैं उत्तेजित हो चली थी।
पेटिकोट और साड़ी इकट्ठा होकर मेरी कमर के नीचे आ गए। घुंघराले बालों के नीचे छुपी मेरी बूर उस आदमी की निगाहों के सामने आ गयी।
उस आदमी का चेहरा मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा था पर उसकी कद काठी बाबूजी के जैसी ही थी। वह आदमी मेरी जाँघों को छू रहा था। उसकी बड़ी बड़ी खुरदुरी हथेलियां मेरे जाँघों को सहलाते हुए मेरी बुर तक पहुंचती पर उसे छू नही रही थीं।
मैं चाहती थी कि वह उन्हें छुए पर ऐसा नहीं हो रहा था। मेरी बुर के होठों पर चिपचिपा प्रेमरस छलक आया था। अंततः उसकी तर्जनी उंगली ने मेरी बुर से रिस रहे लार को छू लिया। उसकी उंगली जब बुर से दूर हो रही थी तो प्रेमरस एक पतले धागे के रूप में उंगली और बूर के बीच आ गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी बुर उस उंगली को अपने पास खींचे रखना चाहती थी।
उंगली के दूर होते ही वह पतली कमजोर लार टूट गयी जिस का आधा भाग वापस मेरी बूर पर आया और आधा उसकी उंगली से सट गया। उस आदमी ने अपनी उंगली को ध्यान से देखा और अपने नाक के करीब लाकर उसकी खुशबू लेने की कोशिश की। और अंततः अपनी जीभ से उसे चाट लिया। मेरी बुर उस जीभ का इंतजार कर रही थी पर उस अभागी का कोई पुछनहार न था। मैं अपनी कमर हिला रही थी मेरी जाघें पूरी तरह फैल चुकी थी ।
अचानक वह व्यक्ति उठकर मेरी चूँचियों के पास आ गया। मेरी ब्लाउज का हुक खुद ब खुद खुलता जा रहा था। तीन चार हुक खुलने के पश्चात चूचियां उछलकर ब्लाउज से बाहर आ गयीं। उस व्यक्ति ने मेरी चूचियों को चूम लिया। एक पल के लिए मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया पर फिर अंधेरा हो गया। वह मेरी चुचियों को चूमे जा रहा था। उसकी हथेलियां भी मेरी चुचियों पर घूम रही थी। आज पहली बार किसी पुरुष का हाथ अपनी चुचियों पर महसूस कर मेरी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई। मेरी बुर फड़फड़ा रही थी। मैंने स्वयं अपनी उंगलियां को अपने बुर के होठों पर ले जाकर सहलाने लगी। मेरी बुर खुश हो रही थी और उसकी खुशी उसके होठों से बह रहे प्रेम रस के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।
अचानक मेरी चूचि का निप्पल उस आदमी के मुह में जाता महसूस हुआ। वह मेरे निप्पलों को चुभला रहा था। मैं कापने लगी। मैने इतनी उत्तेजना आज तक महसूस नहीं की थी।
कुछ देर बाद मैंने उस आदमी को अपनी धोती उतारते देखा। उसका लंड मेरी आंखों के ठीक सामने आ गया यह। लंड तो बाबुजी से ठीक मिलता-जुलता था मैं अपने हाथ बढ़ाकर उसे छूना चाह रही थी। वह मेरे पास था पर मैं उसे पकड़ नहीं पा रही थी। मेरी कोमल हथेलियां ठीक उसके पास तक पहुंचती पर उसे छु पाने में नाकाम हो रही थी।
मैं चाह कर भी उस आदमी को अपने पास नहीं बुला पा रही थी पर उसके लंड को देखकर मेरी बुर चुदवाने के लिए बेचैन हो चली थी। मैं अपनी जांघों को कभी फैलाती और कभी सिकोड़ रही थी।
वह आदमी मेरी उत्तेजना समझ रहा था कुछ ही देर में वह बिस्तर पर आ गया और मेरी जांघों के बीच बैठकर अपनी गर्दन झुका दिया वह अपने होठों से मेरी नाभि को चूम रहा था और हथेलियों से चूचियों को सहला रहा था। मैं स्वयं अपनी हथेलियों से उसके सर को धकेल कर अपनी बुर पर लाना चाहती थी पर जाने यह यह क्यों संभव नहीं हो पा रहा था । मेरी हथेलियां उसके सर तक पहुंचती पर मैं उसे छू नहीं पा रही थी।
अचानक मुझे मेरी जाँघे फैलती हुई महसूस हुयीं। लंड का स्पर्श मेरी बुर पर हो रहा था बुर से निकल रहा चिपचिपा रस रिश्ते हुए मेरी कोमल गांड तक जा पहुंचा था। मैं उत्तेजना से हाफ रही थी तभी लंड मेरी बुर में घुसता हुआ महसूस हुआ।
मैं चीख पड़ी
"बाबूजी……"
मेरी नींद खुल गई पर बाबूजी जाग चुके थे। उन्होंने कहा
"का भईल सुगना बेटी"
भगवान का शुक्र था। लाइट गयी हुयी थी। मेरी दोनों जाँघें पूरी तरह फैली हुई थी और कोमल बुर खुली हवा में सांस ले रही थी। वह पूरी तरह चिपचिपी हो चली थी मेरी उंगलियां उस प्रेम रस से सन चुकी थी। मैंने सपने में अपनी बुर को कुछ ज्यादा ही सहला दिया था। मेरी चूचियां भी ब्लाउज से बाहर थी।
मैंने बाबूजी की आवाज सुनकर तुरंत ही अपनी साड़ी नीचे कर दी।
मुझे चुचियों का ध्यान नहीं आया। बाबूजी की टॉर्च जल चुकी थी उसकी रोशनी सीधा मेरी चुचियों पर ही पड़ी। प्रकाश का अहसास होते ही मैंने अपनी साड़ी का पल्लू खींच लिया पर बाबूजी का कैमरा क्लिक हो चुका था। मेरी चुचियों का नग्न दर्शन उन्होंने अवश्य ही कर लिया था। साड़ी के अंदर चुचियां फूलने पिचकने लगीं।
मेरी सांसे अभी भी तेज थीं। बाबू जी ने टॉर्च बंद कर दी शायद वह अपनी बहू की चूँचियों पर टार्च मारकर शर्मा गए थे। उन्होंने फिर पूछा
" सुगना बेटी कोनो सपना देखलू हा का?" उनकी बात सच थी। मैंने सपना ही देखा था पर उसे बता पाने की मेरी हिम्मत नहीं थी। मैंने कहा
"हां बाबू जी"
"चिंता मत कर….नया जगह पर नींद ठीक से ना आवेला"
" हा, आप सूत रहीं"
मैंने करवट लेकर अपनी चुचियों को बाबूजी से दूर कर लिया और मन ही मन मुस्कुराते हुए सोने लगी। डर वश मेरी बुर पर रिस आया प्रेमरस सूख गया था। मेरा बहुप्रतीक्षित लंड बगल में सो रहा था पर वह मेरी पहुंच से अभी दूर था मुझे इंतजार करना था पर कब तक?
सुगना तो करवट लेकर सो गई पर उसने अपने बाबू जी की आंखों की निंदिया हर ली. सुगना की चुचियों को साक्षात देखने के बाद उनके दिमाग पर उनके मन में काबू कर लिया. अब उन्हें सुगना उनकी प्यारी बहू बेटी जैसी न लगकर साक्षात पदमा के रूप में दिखाई देने लगी जो सिर्फ और सिर्फ कामवासना का प्रतीक थी। पदमा को सरयू सिंह ने जब जब भी और जिस जिस भी तरह से चोदा था उसने हर चुदाई का अद्भुत आनंद लिया था और हर बार सरयू सिंह के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की थी।
वह सरयू सिंह से चुद कर हर बार उनकी कायल हो जाती। आज सुगना भी उन्हें उसी रूप में दिखाई पड़ रही थी सुगना की चुचियों के बारे में सोचते हुए उनके हाथ लंड पर चले गए। नींद की खुमारी उनकी आंखों में ही नहीं दिमाग पर भी थी।
वह मन ही मन सुगना को नग्न करने लगे जब जब उनका दिमाग सुगना की मासूम चेहरे को उन्हें याद दिलाता वह अपना ध्यान वापस उसकी चुचियों पर ले आते और अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगते। अपने मन में सुगना की चूँचियों से जी भर खेलने के बाद वह उसकी नाभि और कमर को चूमने लगे पर उसके आगे वह उसे नग्न न कर पाए। एक बार फिर उनका दिमाग हावी होने लगा वह उन्हें अपनी बहू सुगना की कोमल बुर की परिकल्पना करने से रोक रहा था। आखिर उन्होंने उसे बेटी कह कर पुकारा था। सरयू सिंह गजब दुविधा में थे।
लंड से वीर्य निकलने को बेताब था। एक बार फिर उन्होंने सुगना की जगह पदमा की बुर को याद किया। लंड ने अपनी पुरानी रजाई को याद किया और वीर्य की धार फूट पड़ी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी पर शायद वह यह अंदाज नहीं लगा पाई थी कि उसके बाबूजी उसकी चुचियों को याद कर अपना हस्तमैथुन कर रहे थे।
सरयू सिंह का उफान थम चुका था। उनकी उत्तेजना शांत हो चुकी थी। पर अब वह आत्मग्लानि से भर चुके थे। उन्होंने अपनी सुगना बहू को मन ही मन नग्न कर हस्तमैथुन किया था जो सर्वथा अनुचित था। पर उन्हें यह नहीं पता था की वह एक निमित्त मात्र थे। नियति सरयू सिंह और सुगना पास लाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी और अपनी योजना अनुसार साजिश भी रच रही थी।
सुगना बिना स्खलित हुए ही सो गई थी।
अगली सुबह खुशनुमा थी। सुगना और सरयू सिंह लगभग एक साथ ही उठे उनकी नजरें मिली और दोनों मुस्कुरा दिए। सुगना ने पूछा
"बाबूजी नींद आयल ह नु हम राती के जगा देनी रहली"
सरयू सिंह ने कहा
"हां तू ठीक बाड़ू नु"
"का सपना देखले रहलु"
सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना अपने सपने की भनक भी उन्हें नहीं लगने देना चाहती थी। तभी सुगना का ध्यान सरयू सिंह की धोती पर गया। सरयू सिंह के वीर्य की कुछ बूंदे उनकी धोती पर भी लग गई थी सफेद चमकदार धोती पर वीर्य का अंश स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।
सुगना ने वह दाग देख लिया और बोली " बाबूजी धोती पर ई का गिरल बा"
सरयू सिंह निरुत्तर थे. अभी कुछ देर पहले उन्होंने सुगना से प्रश्न पूछकर उसे निरुत्तर कर दिया था और अब स्वयं उसी अवस्था में आ गए थे।
कुछ ही देर में ससुर और बहू वापस स्टेशन जाने के लिए तैयार होने लगे। सरयू सिंह की की उंगलियों ने एक बार फिर सुगना को साड़ी पहनाने में मदद की और इसके एवज में उन्हें सुगना की कोमल कमर और पीठ को छूने का अवसर प्राप्त हो गया जिसका आनंद सरयू सिंह ने जी भर कर लिया। अब सुगना उनकी बेटी न रही थी।
साड़ी पहनाते समय सुगना की चूचियां फिर उनकी आंखों के सामने आकर उन्हें ललचा रही थी और उनका लंड एक बार फिर तनाव में आ रहा था। सुगना भी मन ही मन चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी। उसे यह उम्मीद हो चली थी कि कभी न कभी सरयू सिंह उसके और करीब आ जाएंगे।
दोपहर में घर पहुचने पर कजरी उन दोनों का इंतजार कर रहे थी। सरयू सिंह द्वारा लाई गई साड़ी कजरी को बहुत पसंद आयी। सुगना के लिए यह शहर यात्रा यादगार थी ….
हरिया भागता हुआ सरयू सिंह के दरवाजे पर आया और बोला
" सरयू भैया उ सुधीरवा हॉस्पिटल में भर्ती बा काल शहर में ओकरा के कुछ लोग ढेर मार मरले बा. लाग ता बाची ना….
सरयू सिंह अपनी बहू सुगना के साथ एक सुखद रात बिता कर आए थे और उसी रात उन पर केस करने वाले वकील सुधीर की कुटाई हो गई थी जो अब मरणासन्न स्थिति में पड़ा हुआ था. सरयू सिंह के लिए यह एक नई मुसीबत थी उन्हें अचानक यह डर उत्पन्न हो गया कि कहीं उसकी पिटाई में सरयू सिंह का नाम ना जोड़ दिया जाए वह थोड़ा परेशान हो गए….
कजरी ने उनके आवभगत में कोई कमी नहीं रखी वैसे भी उसे चुदे हुए आज 2 दिन हो चुके थे। सामान्यतः कजरी सरयू सिंह के करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसे सरयू सिंह से चुदने में बेहद आनंद आता था। यह सच भी था सरयू सिंह का हथियार अनोखा था जिन जिन स्त्रियों ने उसे अपनी जांघों के बीच पनाह दी थी वह सभी उनकी मुरीद थीं।
सरयू सिंह स्वयं उत्तेजित थे। शहर के कुछ समय जो उन्होंने सुगना के साथ बिताए थे उसने उनके शरीर मे इतनी उत्तेजना भर दी थी जो सिर्फ और सिर्फ कजरी ही शांत कर सकते थी।
सरयू सिंह और कजरी शाम को छेड़खानी कर रहे थे। वह रात रंगीन करने के मूड में आ चुके थे सुगना ने यह भांप लिया था। कजरी ने शाम को खाना जल्दी बनाया और सुगना अपने बाबू जी को खाना खिलाने दालान में आ गयी। सरयू सिंह खाना खाते रहे और अपने ही हाथों सुगना को भी खाना खिलाते गए। वैसे भी उसके हाथ में प्लास्टर बधा हुआ था। यह कजरी के लिए एक मदद ही थी अन्यथा यही काम कजरी को करना पड़ता।
सुगना बेहद खुश थी। खाना खिलाते हुए वह लापरवाही से अपनी चुचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा रही थी। खाना खाने के पश्चात सुगना ने अपनी दवाइयां खाई और सोने चली गई पर उसकी आंखों में नींद कहां थी।उसने आज उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपनी सास कजरी की चुदाई जरूर देखेगी।
उसने जानबूझकर आज कजरी की कोठरी में लालटेन रख दी थी। जिसे बुझाने के लिए चारपाई से उठकर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। सुगना के कमरे का दिया बंद होते ही कजरी और सरयू सिंह खुस हो गए। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद कजरी अपने कमरे में आ गई ।
सरयू सिंह ने भी अपना लंगोट खोला और कजरी के पीछे पीछे कमरे में आ गए।
कजरी ने कहा
"कुंवर जी लाई रहुआ के तेल लगा दीं दिन भर चल ले बानी थक गइल होखब"
कजरी सचमुच कुंवर जी का ख्याल रखती थी वह उनके पैरों में तेल लगाने लगी।
सुगना बेसब्री से झरोखे से अपनी सास और उनके कुँवर जी कर रास लीला देख रही थी।
कजरी के हाँथ धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे….
शेष अगले भाग में..
"मैं सुगना"
दिन भर की भागदौड़ से मैं थक गई थी। शहर के उस अनजान होटल के कमरे में लेटते ही मैं सो गई। बाबुजी दूसरे बिस्तर पर सो रहे थे.
रात में एक अनजान शख्स मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ उठा रहा था. पता नहीं क्यों मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने अपने घुटने मोड़ लिए। मेरा पेटीकोट मेरी जांघो को तक आ चुका था। पंखे की हवा मेरे जांघों के अंदरूनी भाग को छू रही थी और मुझे शीतलता का एहसास करा रही थी। उस आदमी ने मेरी पेटीकोट को मेरे नितंबों तक ला दिया था। उसे और ऊपर उठाने के मैने स्वयं अपने नितंबों को ऊपर उठा दिया। उस आदमी के सामने मुझे नंगा होने में पता नहीं क्यों शर्म नही आ रही थी। मैं उत्तेजित हो चली थी।
पेटिकोट और साड़ी इकट्ठा होकर मेरी कमर के नीचे आ गए। घुंघराले बालों के नीचे छुपी मेरी बूर उस आदमी की निगाहों के सामने आ गयी।
उस आदमी का चेहरा मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा था पर उसकी कद काठी बाबूजी के जैसी ही थी। वह आदमी मेरी जाँघों को छू रहा था। उसकी बड़ी बड़ी खुरदुरी हथेलियां मेरे जाँघों को सहलाते हुए मेरी बुर तक पहुंचती पर उसे छू नही रही थीं।
मैं चाहती थी कि वह उन्हें छुए पर ऐसा नहीं हो रहा था। मेरी बुर के होठों पर चिपचिपा प्रेमरस छलक आया था। अंततः उसकी तर्जनी उंगली ने मेरी बुर से रिस रहे लार को छू लिया। उसकी उंगली जब बुर से दूर हो रही थी तो प्रेमरस एक पतले धागे के रूप में उंगली और बूर के बीच आ गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी बुर उस उंगली को अपने पास खींचे रखना चाहती थी।
उंगली के दूर होते ही वह पतली कमजोर लार टूट गयी जिस का आधा भाग वापस मेरी बूर पर आया और आधा उसकी उंगली से सट गया। उस आदमी ने अपनी उंगली को ध्यान से देखा और अपने नाक के करीब लाकर उसकी खुशबू लेने की कोशिश की। और अंततः अपनी जीभ से उसे चाट लिया। मेरी बुर उस जीभ का इंतजार कर रही थी पर उस अभागी का कोई पुछनहार न था। मैं अपनी कमर हिला रही थी मेरी जाघें पूरी तरह फैल चुकी थी ।
अचानक वह व्यक्ति उठकर मेरी चूँचियों के पास आ गया। मेरी ब्लाउज का हुक खुद ब खुद खुलता जा रहा था। तीन चार हुक खुलने के पश्चात चूचियां उछलकर ब्लाउज से बाहर आ गयीं। उस व्यक्ति ने मेरी चूचियों को चूम लिया। एक पल के लिए मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया पर फिर अंधेरा हो गया। वह मेरी चुचियों को चूमे जा रहा था। उसकी हथेलियां भी मेरी चुचियों पर घूम रही थी। आज पहली बार किसी पुरुष का हाथ अपनी चुचियों पर महसूस कर मेरी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई। मेरी बुर फड़फड़ा रही थी। मैंने स्वयं अपनी उंगलियां को अपने बुर के होठों पर ले जाकर सहलाने लगी। मेरी बुर खुश हो रही थी और उसकी खुशी उसके होठों से बह रहे प्रेम रस के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।
अचानक मेरी चूचि का निप्पल उस आदमी के मुह में जाता महसूस हुआ। वह मेरे निप्पलों को चुभला रहा था। मैं कापने लगी। मैने इतनी उत्तेजना आज तक महसूस नहीं की थी।
कुछ देर बाद मैंने उस आदमी को अपनी धोती उतारते देखा। उसका लंड मेरी आंखों के ठीक सामने आ गया यह। लंड तो बाबुजी से ठीक मिलता-जुलता था मैं अपने हाथ बढ़ाकर उसे छूना चाह रही थी। वह मेरे पास था पर मैं उसे पकड़ नहीं पा रही थी। मेरी कोमल हथेलियां ठीक उसके पास तक पहुंचती पर उसे छु पाने में नाकाम हो रही थी।
मैं चाह कर भी उस आदमी को अपने पास नहीं बुला पा रही थी पर उसके लंड को देखकर मेरी बुर चुदवाने के लिए बेचैन हो चली थी। मैं अपनी जांघों को कभी फैलाती और कभी सिकोड़ रही थी।
वह आदमी मेरी उत्तेजना समझ रहा था कुछ ही देर में वह बिस्तर पर आ गया और मेरी जांघों के बीच बैठकर अपनी गर्दन झुका दिया वह अपने होठों से मेरी नाभि को चूम रहा था और हथेलियों से चूचियों को सहला रहा था। मैं स्वयं अपनी हथेलियों से उसके सर को धकेल कर अपनी बुर पर लाना चाहती थी पर जाने यह यह क्यों संभव नहीं हो पा रहा था । मेरी हथेलियां उसके सर तक पहुंचती पर मैं उसे छू नहीं पा रही थी।
अचानक मुझे मेरी जाँघे फैलती हुई महसूस हुयीं। लंड का स्पर्श मेरी बुर पर हो रहा था बुर से निकल रहा चिपचिपा रस रिश्ते हुए मेरी कोमल गांड तक जा पहुंचा था। मैं उत्तेजना से हाफ रही थी तभी लंड मेरी बुर में घुसता हुआ महसूस हुआ।
मैं चीख पड़ी
"बाबूजी……"
मेरी नींद खुल गई पर बाबूजी जाग चुके थे। उन्होंने कहा
"का भईल सुगना बेटी"
भगवान का शुक्र था। लाइट गयी हुयी थी। मेरी दोनों जाँघें पूरी तरह फैली हुई थी और कोमल बुर खुली हवा में सांस ले रही थी। वह पूरी तरह चिपचिपी हो चली थी मेरी उंगलियां उस प्रेम रस से सन चुकी थी। मैंने सपने में अपनी बुर को कुछ ज्यादा ही सहला दिया था। मेरी चूचियां भी ब्लाउज से बाहर थी।
मैंने बाबूजी की आवाज सुनकर तुरंत ही अपनी साड़ी नीचे कर दी।
मुझे चुचियों का ध्यान नहीं आया। बाबूजी की टॉर्च जल चुकी थी उसकी रोशनी सीधा मेरी चुचियों पर ही पड़ी। प्रकाश का अहसास होते ही मैंने अपनी साड़ी का पल्लू खींच लिया पर बाबूजी का कैमरा क्लिक हो चुका था। मेरी चुचियों का नग्न दर्शन उन्होंने अवश्य ही कर लिया था। साड़ी के अंदर चुचियां फूलने पिचकने लगीं।
मेरी सांसे अभी भी तेज थीं। बाबू जी ने टॉर्च बंद कर दी शायद वह अपनी बहू की चूँचियों पर टार्च मारकर शर्मा गए थे। उन्होंने फिर पूछा
" सुगना बेटी कोनो सपना देखलू हा का?" उनकी बात सच थी। मैंने सपना ही देखा था पर उसे बता पाने की मेरी हिम्मत नहीं थी। मैंने कहा
"हां बाबू जी"
"चिंता मत कर….नया जगह पर नींद ठीक से ना आवेला"
" हा, आप सूत रहीं"
मैंने करवट लेकर अपनी चुचियों को बाबूजी से दूर कर लिया और मन ही मन मुस्कुराते हुए सोने लगी। डर वश मेरी बुर पर रिस आया प्रेमरस सूख गया था। मेरा बहुप्रतीक्षित लंड बगल में सो रहा था पर वह मेरी पहुंच से अभी दूर था मुझे इंतजार करना था पर कब तक?
सुगना तो करवट लेकर सो गई पर उसने अपने बाबू जी की आंखों की निंदिया हर ली. सुगना की चुचियों को साक्षात देखने के बाद उनके दिमाग पर उनके मन में काबू कर लिया. अब उन्हें सुगना उनकी प्यारी बहू बेटी जैसी न लगकर साक्षात पदमा के रूप में दिखाई देने लगी जो सिर्फ और सिर्फ कामवासना का प्रतीक थी। पदमा को सरयू सिंह ने जब जब भी और जिस जिस भी तरह से चोदा था उसने हर चुदाई का अद्भुत आनंद लिया था और हर बार सरयू सिंह के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की थी।
वह सरयू सिंह से चुद कर हर बार उनकी कायल हो जाती। आज सुगना भी उन्हें उसी रूप में दिखाई पड़ रही थी सुगना की चुचियों के बारे में सोचते हुए उनके हाथ लंड पर चले गए। नींद की खुमारी उनकी आंखों में ही नहीं दिमाग पर भी थी।
वह मन ही मन सुगना को नग्न करने लगे जब जब उनका दिमाग सुगना की मासूम चेहरे को उन्हें याद दिलाता वह अपना ध्यान वापस उसकी चुचियों पर ले आते और अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगते। अपने मन में सुगना की चूँचियों से जी भर खेलने के बाद वह उसकी नाभि और कमर को चूमने लगे पर उसके आगे वह उसे नग्न न कर पाए। एक बार फिर उनका दिमाग हावी होने लगा वह उन्हें अपनी बहू सुगना की कोमल बुर की परिकल्पना करने से रोक रहा था। आखिर उन्होंने उसे बेटी कह कर पुकारा था। सरयू सिंह गजब दुविधा में थे।
लंड से वीर्य निकलने को बेताब था। एक बार फिर उन्होंने सुगना की जगह पदमा की बुर को याद किया। लंड ने अपनी पुरानी रजाई को याद किया और वीर्य की धार फूट पड़ी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी पर शायद वह यह अंदाज नहीं लगा पाई थी कि उसके बाबूजी उसकी चुचियों को याद कर अपना हस्तमैथुन कर रहे थे।
सरयू सिंह का उफान थम चुका था। उनकी उत्तेजना शांत हो चुकी थी। पर अब वह आत्मग्लानि से भर चुके थे। उन्होंने अपनी सुगना बहू को मन ही मन नग्न कर हस्तमैथुन किया था जो सर्वथा अनुचित था। पर उन्हें यह नहीं पता था की वह एक निमित्त मात्र थे। नियति सरयू सिंह और सुगना पास लाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी और अपनी योजना अनुसार साजिश भी रच रही थी।
सुगना बिना स्खलित हुए ही सो गई थी।
अगली सुबह खुशनुमा थी। सुगना और सरयू सिंह लगभग एक साथ ही उठे उनकी नजरें मिली और दोनों मुस्कुरा दिए। सुगना ने पूछा
"बाबूजी नींद आयल ह नु हम राती के जगा देनी रहली"
सरयू सिंह ने कहा
"हां तू ठीक बाड़ू नु"
"का सपना देखले रहलु"
सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना अपने सपने की भनक भी उन्हें नहीं लगने देना चाहती थी। तभी सुगना का ध्यान सरयू सिंह की धोती पर गया। सरयू सिंह के वीर्य की कुछ बूंदे उनकी धोती पर भी लग गई थी सफेद चमकदार धोती पर वीर्य का अंश स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।
सुगना ने वह दाग देख लिया और बोली " बाबूजी धोती पर ई का गिरल बा"
सरयू सिंह निरुत्तर थे. अभी कुछ देर पहले उन्होंने सुगना से प्रश्न पूछकर उसे निरुत्तर कर दिया था और अब स्वयं उसी अवस्था में आ गए थे।
कुछ ही देर में ससुर और बहू वापस स्टेशन जाने के लिए तैयार होने लगे। सरयू सिंह की की उंगलियों ने एक बार फिर सुगना को साड़ी पहनाने में मदद की और इसके एवज में उन्हें सुगना की कोमल कमर और पीठ को छूने का अवसर प्राप्त हो गया जिसका आनंद सरयू सिंह ने जी भर कर लिया। अब सुगना उनकी बेटी न रही थी।
साड़ी पहनाते समय सुगना की चूचियां फिर उनकी आंखों के सामने आकर उन्हें ललचा रही थी और उनका लंड एक बार फिर तनाव में आ रहा था। सुगना भी मन ही मन चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी। उसे यह उम्मीद हो चली थी कि कभी न कभी सरयू सिंह उसके और करीब आ जाएंगे।
दोपहर में घर पहुचने पर कजरी उन दोनों का इंतजार कर रहे थी। सरयू सिंह द्वारा लाई गई साड़ी कजरी को बहुत पसंद आयी। सुगना के लिए यह शहर यात्रा यादगार थी ….
हरिया भागता हुआ सरयू सिंह के दरवाजे पर आया और बोला
" सरयू भैया उ सुधीरवा हॉस्पिटल में भर्ती बा काल शहर में ओकरा के कुछ लोग ढेर मार मरले बा. लाग ता बाची ना….
सरयू सिंह अपनी बहू सुगना के साथ एक सुखद रात बिता कर आए थे और उसी रात उन पर केस करने वाले वकील सुधीर की कुटाई हो गई थी जो अब मरणासन्न स्थिति में पड़ा हुआ था. सरयू सिंह के लिए यह एक नई मुसीबत थी उन्हें अचानक यह डर उत्पन्न हो गया कि कहीं उसकी पिटाई में सरयू सिंह का नाम ना जोड़ दिया जाए वह थोड़ा परेशान हो गए….
कजरी ने उनके आवभगत में कोई कमी नहीं रखी वैसे भी उसे चुदे हुए आज 2 दिन हो चुके थे। सामान्यतः कजरी सरयू सिंह के करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसे सरयू सिंह से चुदने में बेहद आनंद आता था। यह सच भी था सरयू सिंह का हथियार अनोखा था जिन जिन स्त्रियों ने उसे अपनी जांघों के बीच पनाह दी थी वह सभी उनकी मुरीद थीं।
सरयू सिंह स्वयं उत्तेजित थे। शहर के कुछ समय जो उन्होंने सुगना के साथ बिताए थे उसने उनके शरीर मे इतनी उत्तेजना भर दी थी जो सिर्फ और सिर्फ कजरी ही शांत कर सकते थी।
सरयू सिंह और कजरी शाम को छेड़खानी कर रहे थे। वह रात रंगीन करने के मूड में आ चुके थे सुगना ने यह भांप लिया था। कजरी ने शाम को खाना जल्दी बनाया और सुगना अपने बाबू जी को खाना खिलाने दालान में आ गयी। सरयू सिंह खाना खाते रहे और अपने ही हाथों सुगना को भी खाना खिलाते गए। वैसे भी उसके हाथ में प्लास्टर बधा हुआ था। यह कजरी के लिए एक मदद ही थी अन्यथा यही काम कजरी को करना पड़ता।
सुगना बेहद खुश थी। खाना खिलाते हुए वह लापरवाही से अपनी चुचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा रही थी। खाना खाने के पश्चात सुगना ने अपनी दवाइयां खाई और सोने चली गई पर उसकी आंखों में नींद कहां थी।उसने आज उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपनी सास कजरी की चुदाई जरूर देखेगी।
उसने जानबूझकर आज कजरी की कोठरी में लालटेन रख दी थी। जिसे बुझाने के लिए चारपाई से उठकर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। सुगना के कमरे का दिया बंद होते ही कजरी और सरयू सिंह खुस हो गए। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद कजरी अपने कमरे में आ गई ।
सरयू सिंह ने भी अपना लंगोट खोला और कजरी के पीछे पीछे कमरे में आ गए।
कजरी ने कहा
"कुंवर जी लाई रहुआ के तेल लगा दीं दिन भर चल ले बानी थक गइल होखब"
कजरी सचमुच कुंवर जी का ख्याल रखती थी वह उनके पैरों में तेल लगाने लगी।
सुगना बेसब्री से झरोखे से अपनी सास और उनके कुँवर जी कर रास लीला देख रही थी।
कजरी के हाँथ धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे….
शेष अगले भाग में..