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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#9
Heart 
भाग-8




सुगना ने जब से सांड को बछिया की तरफ आकर्षित होते हुए देखा था तब से ही वह यह बात सोचती कि क्या संभोग के लिए उम्र का कोई अंतर नहीं है? वह सांड जब गाय और बछिया दोनों को चोदने की सोच सकता है तो क्या बाबूजी के मन में भी ख्याल आता होगा? जितना ही वह सोचती उतना ही उत्तेजित होती। वैसे भी सरयू सिंह सुगना के ससुर नहीं थे । हां एक रिश्ता जरूर बन गया था जो उनके और कजरी के बीच बने नाजायज रिश्ते की वजह से था।

सुगना ने अपने बाबूजी का मन टटोलने का फैसला कर लिया। वह अपनी बछिया की तरह नंगी तो नही घूम सकती थी पर उसने मन ही मन कुछ सोच लिया था।

सरयू सिंह और कजरी सुगना की मनोदशा से अनभिज्ञ थे। वह अभी भी उन्हें मासूम सी दिखाई पड़ती जिसके साथ उन्होंने न चाहते हुए भी अन्याय कर दिया था। अभी भी उन्हें ऊपर वाले पर भरोसा था पर सुगना अब और इंतजार करने की इच्छुक नहीं थी।

सुबह-सुबह आंगन में लगे हैंडपंप पर उकड़ू बैठ कर सुगना बर्तन धो रही थी सरयू सिंह दालान से आंगन में आ गए। सुगना ने अपनी सास कजरी का ब्लाउज पहना हुआ था जो उसकी मझोली चूचियों पर फिट नहीं आ रहा था। ब्लाउज थोड़ा नीचे लटका हुआ था और चुचियों का उभार साफ साफ दिखाई पड़ रहा था। काम करने की वजह से उसने अपने पल्लू पर ध्यान न दिया। वह उसके चेहरे को तो ढक रहा था पर चूचियों का ऊपरी भाग खुली हवा में सांस ले रहा था। ब्लाउज सुगना के निप्पलों का सहारा लेकर लटका हुआ प्रतीत हो रहा था।
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सरयू सिंह सुगना की चुचियों को देख कर अवाक रह गए। वह गोरी गोरी चूचियों के आकर्षण में खोए हुए कुछ देर तक उसी अवस्था में खड़े रहे। एक पल के लिए वह यह भूल गए कि वह अपनी मासूम बहू सुगना की चूँची पर ध्यान गड़ाए हुए हैं। सुगना उनकी कामुक दृष्टि को अपनी चुचियों पर महसूस जरूर कर रही थी। उसे घूंघट का फायदा मिल रहा था वो सरयू सिंह की निगाहों को पढ़ रही थी।

सुगना ने अनजान बनते हुए कहा

" बाबूजी कुछु चाहीं का?"

" ना बेटा एक लोटा पानी दे द दतुअन कर लीं" उन्होंने बेटा कह कर अपनी कामुक निगाहों के पाप को धोने की कोशिश की। पर उनके मन मस्तिष्क पर बहु की चुचीं का रंग चढ़ चुका था। आज उन्होंने जो देखा था उसने उन्हें हिला दिया था वह वापस दालान में आ गए और अपने तनाव में आ रहे लंड को ध्यान भटका कर शांत करने की कोशिश की। यह पाप है….. यह पाप है उन्होंने मन ही अपने दिमाग को समझाया और वापस अपने कार्य में लग गए.

सुगना बर्तन धो कर गिलास में दूध लेकर सरयू सिंह के पास आयी। उसने सरयू सिंह को दोहरा झटका दे दिया। उसका घूंघट उठा हुआ था.
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सुगना का बेहद सुंदर चेहरा, कोमल गुलाबी होंठ और कजरारी आंखें सब कुछ एक साथ …… बेहद खूबसूरत … सरयू सिंह सुगना की खूबसूरती में खो गए। सुगना ने घूंघट जरूर लिया था पर उसने सिर्फ अपने माथे को ढका हुआ था। सरयू सिंह उसे एकटक देखते रह गए। वह अपनी मां पदमा की प्रतिमूर्ति थी। सरयू सिंह एक बार फिर जड़ हो गए।

"बाउजी दूध ले लीं" सुगना की मधुर आवाज ने उनकी तंद्रा तोड़ी। सरयू सिंह ने कांपते हाथों से दूध ले जिया। आज सरयू सिंह जैसे मजबूत और बलिष्ठ आदमी के हाँथ अपनी सुंदर बहु के हांथों दूध लेने में कांप रहे थे। यह कंपन निश्चय ही उनके मन मे आयी गलत भावना की वजह से था।

सरयू सिंह का अंतर्मन हिला हुआ था। वह खुद को समझा भी नहीं पा रहे थे। वह पद्मा को याद करते हुए दूध पीने लगे।

पदमा सरयू सिंह के जीवन में आई दूसरी महिला थी सरयू सिंह उस समय अपनी जवानी के चरम पर थे 25 - 26 वर्ष की आयु कसरती शरीर चेहरे पर चमक और अपनी कजरी भाभी से मिले नारी शरीर का अनुभव और कामकला के ज्ञान ने उन्हें एक आदर्श पुरुष की श्रेणी में ला दिया था। सफेद धोती कुर्ता और अंग वस्त्र में वह एकदम संभ्रांत पुरुष दिखाई पड़ते। ऊपर से पटवारी का पद वह पूर्णतयः वर योग्य पुरुष थे पर उन्होंने विवाह न किया था। वैसे भी उनकी शारीरिक जरूरतें कजरी से पूरी हो ही जा रही थी।

सरयू सिंह की ननिहाल बेलापुर में उनके मामा की लड़की की शादी थी। सरयू सिंह ने वहां जाने के लिए पूरी तैयारी की और सज धज कर बेलापुर के लिए निकल पड़े।

गांव लगभग 10- 15 किलोमीटर दूर था उन्होंने पैदल ही जाने का फैसला किया उन्हें साइकिल से चलना अच्छा नहीं लगता था. अपने लंबे लंबे कदमों से उन्होंने वह दूरी डेढ़ -दो घंटे में तय कर ली. वह बेलापुर गांव के तालाब के पास आ चुके थे. यह तालाब बेहद मनोरम था यूं कहिए तो वह बेलापुर की शान था. वहां पर दो अलग- अलग घाट थे एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए। सौभाग्य की बात थी बेलापुर जाते समय महिलाओं वाला घाट रास्ते में ही पड़ता था।

सरयू सिंह की नारी शरीर से विशेष आसक्ति थी वह ना चाहते हुए भी एक बार तालाब में नहा रही महिलाओं को नजरें बचाकर देख लेते थे। छोटी बड़ी सब प्रकार की महिलाएं उनके नजरों से एक बार जरूर गुजरतीं। आज भी तालाब के करीब आते ही उनके दिल में हलचल होने लगी।

सुबह 9-10 बजे का वक्त था कई सारी जवान युवतियां और लड़कियां तालाब में नहा रहीं थी। सरयू सिंह ने अपनी निगाहों से तालाब में नहा रही जवानीयों को अपनी निगाहों में कैद करना चाहा। वह चलते-चलते बीच-बीच में एक झलक उन्हें जरूर देख लेते। धीरे धीरे उनके नैनसुख का वक्त खत्म हो रहा था तालाब का दूसरा किनारा करीब आ चुका था तभी कुछ लड़कियों के चिल्लाने की आवाज आई

"बचाव….बचाव…..उ डूब जाइ केहू बचा ले…"

ढेर सारी लड़कियों के चीखने की आवाज आ रही थी। सरयू सिंह के कदम रुक गए उन्होंने पीछे मुड़कर देखा सारी लड़कियां उन्हें ही पुकार रही थीं। वाह भागकर तालाब तक गए। उन्होंने कंधे में टंगा हुआ बैग और लाठी जमीन पर रखी और कुर्ता खोल कर तालाब में कूद पड़े। उन्होंने अपनी धोती नहीं खोली उन्हें उन लड़कियों के सामने इस तरह नंगा होना अच्छा नहीं लगा।

वह तालाब के अंदर तैरते हुए उस जगह तक पहुंच गए जहां एक लड़की पानी में अपनी जान बचाने के लिए हाथ पैर मार रही थी।
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वह कभी वह पानी के भीतर चली जाती, कभी उसका सर बाहर दिखाई पड़ता। सरयु सिंह उसके करीब पहुंच गए वह पदमा थी उन्होंने उसे अपनी मजबूत भुजाओं से पकड़ लिया। पद्मा अमरबेल की तरह उनसे लिपट गई। पर यह क्या पदमा ऊपर से पूरी तरह नग्न थी। उसकी चूचियां सरयू सिंह के कंधे पर थी सरयू सिंह ने अपने दाहिने हाथ से पदमा के नितंबों को सहारा दिया और बाये हाथ से पानी को हटाते हुए किनारे की तरफ आ गए।

उनके बलिष्ठ शरीर पर पदमा जैसी सुंदर और गोरी युवती का अर्धनग्न शरीर बेहद आकर्षक लग रहा था। यदि वहां पर कैमरा होता तो निश्चय ही किसी हिंदी फिल्म का सीन बन सकता था।

किनारे पर खड़ी सारी लड़कियां बेहद खुश थी सिर्फ एक लड़की डरी हुई खड़ी थी वह पदमा की सहेली थी।

दरअसल पदमा और उस लड़की ने तालाब के अंदर ही एक दूसरे से छेड़खानी शुरू कर दी थी उन्होंने अपने ब्लाउज उतार कर एक दूसरे की चूचियों का आकार नापना और खेलना शुरू कर दिया था। इसी दौरान पदमा का पैर फिसल गया था और वह गहरे पानी में चली गई थी। सभी लड़कियां उस बेचारी लड़की को कोस रहीं थीं।

सरयू सिंह किनारे पर आ चुके थे
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उन्होंने पदमा को जमीन पर लिटा दिया और वहां से हटकर अपना कुर्ता पहनने लगे। पदमा अभी भी बेसुध थी लड़कियों ने फिर चिल्लाया

"भैया ई सांस नइखे लेत तनि देखीं ना। ए पद्मा उठ …...उठ ना…"

सरयू सिंह एक बार फिर पदमा के पास आ गए वह पीठ के बल लेटी हुई थी एक पल के लिए वो उसकी पतली कमर और चौड़ा सीना तथा उस पर दो मझौली आकार की चुचियां ( जिन पर अब किसी लड़की का झीना लाल दुपट्टा पड़ा हुआ था ) देखकर वह उसकी खूबसूरती में खो गए।

पद्मा का मुख मंडल बेहद खूबसूरत पर शांत पड़ा हुआ था सरयू सिंह नीचे झुके उन्हें आज की आरपीआर तकनीकी आती थी उन्होंने पदमा के पेट को दबाया पानी की एक धार पदमा के मुंह से निकलकर बगलमें गिर पड़ी। यही क्रिया दो-तीन बार कर उन्होंने पदमा के पेट में जमा हो गया पानी बाहर निकाल दिया। पदमा अभी भी होश में नहीं थी उन्होंने अपने दोनों हाथ उसकी चुचियों के ठीक नीचे रखें और उसके सीने को दबाने लगे पदमा के कोमल होठों को खोल कर उन्होंने उसे मुंह से सांस देने की भी कोशिश की।

उनकी यह कोशिश रंग लाई और पदमा ने अपनी आंखें खोल दें उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ तो उसने अपनी दोनों गोरी बाहें अपनी चुचियों पर ले गयी।

सरयू सिंह खुश हो गए उनकी मेहनत रंग लाई थी। सारी लड़कियां खुशी से चहकने लगींऔर सरयू सिंह मुस्कुराते हुए वापस अपनी लाठी के पास आ गए।

वह तालाब से बाहर आ गए लड़कियां उन्हें लगातार देखे जा रही थीं उन्होंने हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया और अपने मामा के घर चल पड़े। उनके दिमाग में पदमा की सुंदर और कमनीय काया घूमने लगी विशेषकर मासूम सा कोमल चेहरा, उसका कटि प्रदेश और मदमस्त चूचियाँ।

सरयू सिंह पदमा को पहले से भी जानते थे। वह उनके मामा के ठीक बगल में अपने मां-बाप के साथ रहती थी। बचपन में भी जब वह मामा के घर आया करते दोपहर में सारे बच्चे एक साथ खेलते जिसमें एक पदमा भी थी। पर आज पदमा पूरी तरह जवान थी उसका विवाह कुछ समय पहले हुई हुआ था और गवना भी हो चुका था। शायद वह भी सरयू सिंह के मामा की लड़की की शादी में ही आई हुई थी। पदमा को यौन संभोग का सुख मिल चुका था।

सरयू सिंह जब भी अपने मामा के घर आंगन में जाते आसपास की लड़कियां और युवा औरतें उन्हें घेर लेतीं। ऐसा नहीं था कि वह सब की सब उनसे चुदने के लिए आतुर रहती थीं अपितु यह एक सामान्य प्रक्रिया होती। लड़कियां उनसे बातें करतीं। वैसे भी वह गांव के ऐसे व्यक्ति थे जो नौकरी कर रहे थे और प्रतिष्ठित भी थे। इस छोटी सी उम्र में जो उपलब्धियां उन्होंने हासिल की थी वह उन्हें उस उम्र के पुरुषों से अलग खड़ा करती थीं।

शाम को एक बार फिर सरयू सिंह अपने मामा के आंगन में चारपाई पर बैठे हुए थे और महिलाओं से गिरे हुए थे उन लड़कियों में पदमा भी थी।

एक लड़की ने कहा

"ए पदमा देख सरयू भैया आईल बाड़े जो तनि सेवा वेवा कर"

कुछ लड़कियों ने पदमा को ढकेल कर सरयू सिंह के सामने कर दिया। पदमा शर्मा रही थी। उसने एक सुंदर लहंगा और चोली पहना हुआ था। चोली के अंदर उसकी गोल गोल चूचियाँ झांक रही थी पर सरयू सिंह को वह बिना कपड़ों के ही दिखाई पड़ रही थी उनकी आंखों में सुबह की नग्न छवि कैद हो गयी थी।

सरयू सिंह ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर पदमा इतनी गहराई में कैसे चली गई थी पीछे से लड़कियों की खुश फुसाहट सुनाई पड़ी..

"जवानी फुटल बा नु चूँची लड़ावतली हा लोग"

पदमा एक बार फिर लड़कियों के पीछे छुप गयी।

पद्मा ने हिम्मत जुटाकर सरयू सिंह से कहा "चली हमरा घरे, अपना हाथ से हलवा खिलाईब" तभी उसकी सहेली ने कहा

"हां भैया जाइं बहुत बढ़िया हलवा बनावेले तनी हमरो के भेज दिहे"

सरयू सिंह हंसने लगे पर पद्मा ने कहा

"हम जा तानी घरे आइब जरूर"

इतना कहकर पदमा अपने घर की तरफ चली गई। सरयू सिंह कुछ देर तक अपनी मामी से बात करते रहे और फिर वापस घर के बाहर आकर पुरुष समाज में शामिल हो गए पर उनके दिमाग में अब भी पदमा घूम रही थी। कभी वस्त्रों में कभी बिना वस्त्रों के। वह पदमा की चुचियों की तुलना कजरी से तुलना कर रहे थे। निश्चय ही पदमा की चूचियां कजरी से ज्यादा खूबसूरत और तनी हुयीं थी। कजरी की चूचियां तो उन्होंने तब देखी थी जब वह मां बन चुकी थी।

सरयू सिंह के मामा उनका परिचय गांव के और लोगों से करा रहे थे उन्हें सरयू सिंह पर हमेशा से गर्व था।

पदमा शादीशुदा थी और यौन सुख भोग चुकी पर फिर भी आज जब सरयू सिंह उसे बचा रहे थे उसे उनके बलिष्ठ शरीर का अंदाजा हो गया था वह उनके प्रति आसक्त हो रही थी। नई-नई विवाहताओं में सम्भोग को लेकर बड़ी उत्तेजना होती है। मनपसंद पुरुष का संसर्ग पाकर उनकी चूत तुरंत चुदने के लिए आतुर हो जाती है बशर्ते उस पुरुष से उन्हें प्यार हो और चुदने में मानसिक ग्लानि और प्रतिरोध ना हो। पदमा के केस में दोनो ही बातें अनुकूल थीं। अभी कल ही वह अपने पति से शुरू कर आई थी परंतु आज फिर गरमा चुकी थी

वह सरयू सिंह से बचपन से ही प्रभावित थी पर आज तो उसके मन में सरयू सिंह के प्रति प्रेम आदर और समर्पण तीनों ही भाव चरम पर थे उसकी स्वयं की उत्तेजना भी जागृत थी। सात दिनों तक मायके में अकेले रहने के बाद उसकी नई नई चुदी हुई बुर अपना साथी खोज रही थी। पद्मा ने सरयू सिंह से चुदने का मन बना लिया वह हलवा बनाते हुए अपने सरयू भैया का इंतजार करने लगी।

सरयू सिंह के मन में भी पदमा के प्रति कामुकता जाग चुकी थी। आग और फूस दोनों तैयार खड़े थे। बस उन्हें करीब लाने की देर थी।


इधर सरयू सिंह के गिलास का दूध खत्म हो गया था। आखरी घूंट में जब उन्होंने हवा निगली तो वह अपनी सोच से बाहर आ गए और मन ही मन मुस्कुराने लगे।

पदमा और पदमा की पुत्री सुगना, उन दोनों ने उनकी यादों और वर्तमान पर कब्जा जमा लिया था। वह आंखें खोल कर सुगना को ढूंढने लगे। उन्होंने सुगना का नाम एक दो बार पुकारा उत्तर ना आने पर वह आंगन में चले गए। उन्होंने एक बार फिर कोमल स्वर में सुगना का नाम पुकारा तभी कोठरी के अंदर से सुगना की मधुर आवाज आई

" बाबूजी आवतानी तनिक कपड़ा बदल लीं"

एक पल के लिए सरयू सिंह ने अपने विचारों में सुगना को कपड़े बदलते हुए सोच लिया। एक अजीब सी सनसनी उनके लंड तक पहुँच गयी। अभी उनके दिमाग में पद्मा छायी हुयी थी। एक पल के लिए उन्हें लगा कि वह कोठरी की खिड़की से सुगना को देख लें पर अभी उनका जमीर इतना भी नहीं गिरा था। वह उनकी प्यारी बहू थी और अभी भी बेटी स्वरूप थी।

तभी दरवाजे पर आवाज आई

"सरयू भैया, सरयू भैया' सुधीरवा साला केस कईले बा।

"रुक आवतानी ओकर बेटी चोदो इतना हिम्मत भईल बा"

सरयू सिंह की मर्दाना आवाज गरज उठी जिसे अंदर कपड़े बदल रही सुगना ने सुन लिया। उसने सिर्फ अपने काम की बात ही सुना "बेटी चोद"। वह भी तो किसी की बेटी थी क्या सरयू सिंह उसे चोदने के बारे में सोच सकते हैं पेटीकोट का नाड़ा बांधते सुगना के हाथ कांप रहे थे उसकी कोमल बुर सुगना की मनोदशा पढ़ रही थी।

सुधीर पास के गांव का ही एक 30 32 वर्षीय लड़का था जिसने हाल ही में वकालत की पढ़ाई एन केन प्रकारेण पूरी की थी। सरयू सिंह से उसका विवाद जमीन को लेकर था। सरयू सिंह स्वयं पटवारी थे और वह वकील दोनों एक दूसरे को हमेशा कमजोर ही आंकते थे। कद काठी में सुधीर सरयू सिंह से निश्चय ही कमजोर था पर वकालत पड़े होने की वजह से वह कागजी कार्यवाही में उनसे आगे था।

खेत विवाद का उचित समाधान न मिलने की वजह से उसने शहर में केस कर दिया था। सरयू सिंह उसकी इस हरकत से आगबबूला थे और घर के बाहर आकर अपने साथी के साथ मिलकर आगे की रणनीति बनाने लगे।

सारा दिन उस केस की बारीकियां समझने में भी बीत गया। सूरज ढल रहा था। जब वह घर पहुंचे वो पूरी तरह थके हुए थे। कजरी ने थाली में पानी लेकर उनके पैर धोए। तब तक सुगना हलवा बनाकर ले आयी। यह हलवा खाते उन्हें पद्मा का वह आमंत्रण याद आ गया जब पद्मा ने उन्हें अपने घर हलुआ खाने के लिए बुलाया था…


वह पद्मा के साथ बितायी उस कामुक शाम की यादों में खो गए…
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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 01:31 PM



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