14-04-2022, 01:25 PM
(This post was last modified: 09-08-2022, 12:08 PM by Snigdha. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
भाग-5
सरयू सिंह सुगना की यादों में खोए हुए थे. कैसे सुगना उनकी जान से ज्यादा प्यारी ही गयी थी। जो एक समय पर उनसे बात तक न करती थी आज अपनी चूत चुदवाने के बाद पंखा झलते हुए उन्हें प्यार से खाना खिला रही थी। यह सफर रोमांचक था...
सुगना के गवना का दिन निर्धारित हो गया था। वह कुछ दिनों पहले हुए मुखिया के चुनाव में मतदान कर चुकी थी और शाशकीय तौर पर चुदने के लिए पूरी तरह तैयार थी। सरयू सिंह ने रतन को बुला लिया था। वह मन मसोसकर गांव आ गया पर उसकी सुगना में कोई रुचि नहीं थी। आपसी समझौते के तहत उसे गांव आना था सो आ गया था।
कजरी को अभी भी उम्मीद थी की सुगना की जवानी रतन को सुगना की जाँघों के बीच खींच लाएगी। कजरी सुगना से मिल आई थी। उसमें सुगना की कद काठी पे टंगी उसकी चूचियों और सुडौल कूल्हों के पीछे छुपी कुवांरी चूत को अंदाज लिया था। वह उसकी खूबसूरती से बेहद प्रभावित थी।
सरयू सिंह स्वयं खूबसूरती के जौहरी थे। उन्होंने जिन जिन महिलाओं को हाथ लगाया था वह सब एक से बढ़कर एक थीं। कजरी स्वयं उनमें से एक थी। सरयू सिंह ने अपने अनुभव के आधार पर ही सुगना को रतन के लिए पसंद कर लिया था। उन्हें पता था सुगना की मां पदमा जब इतनी खूबसूरत थी तो उसकी लड़की सुगना निश्चय ही खूबसूरत ही होगी।
सुगना की मां पदमा सरयू सिंह के ननिहाल की लड़की थी। अपनी जवानी में सरयू सिंह ने पदमा की जवानी का रस लूटा था। ज्यादा तो नहीं पर कभी-कभी। उस गाँव मे वही उनका सहारा थी। उस दिन पदमा की आंखों में आंसू देख कर उनका दिल पिघल गया था और उन्होंने एक ही झटके में सुगना को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था।
आखिर वह दिन आ ही गया जब सरयू सिंह की प्यारी बहू उनके घर आ गई। पूरे गांव में भोज हुआ सरयू सिंह मन ही मन डरे हुए थे की रतन और सुगना का मिलन होगा या नहीं। यह प्रश्न उन्हें खाए जा रहा था। वह कजरी की बातों से आश्वस्त थे पर रतन का व्यवहार उन्हें आशंकित किए हुए था। गवना के पूरे कार्यक्रम में वह बिना मन के उपस्थित रहा था।
कजरी ने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर कोठरी में नई चादर बिछाई थी। सुगना अपनी सुहागरात की सेज देखकर मन ही मन शर्मा रही थी।
सरयू सिंह अब तक सुगना का चेहरा नहीं देख पाए थे पर अपनी पारखी निगाहों से यह अवश्य जान चुके थे कि उसे सुहाग की सेज पर देखना किसी मर्द के लिए एक स्वप्न जैसा ही था।
सचमुच् वह अपनी मां से बढ़कर कामुक थी। एक पल के लिए उन्हें लगा की रतन उसके प्रेम पास में निश्चय ही आ जाएगा पर हुआ उसके विपरीत।
रात में सुगना की कोठरी से चीखने की आवाज आने लगी। सरयू सिंह और कजरी उनकी बातें सुनने लगे सुगना ने लगभग चीखते हुए कहा
"जब राउर मन ना रहे तो ब्याह काहे कइनी?"
"जाके चाचा से पूछा"
"हमरा मांग में सिंदूर तू भरले बाड़ा कि तहार चाचा" सुगना की आवाज में तल्खी आ रही थी।
"जब हमारा के आपन बहिन बनावे के रहे त गवना करावे कौना मुंह से आइल रहला हा?"
रतन निरुत्तर था.
कुछ ही देर में वाह दरवाजा खोल कर कमरे से बाहर चला गया. सरयू सिंह अपनी चादर के अंदर विदके हुए अपने फैसले पर पछता रहे थे। कामाग्नि में चल रही सुगना का यह व्यवहार सर्वथा उचित था।
कजरी सुगना के कमरे में जाकर उसे समझा रही थी। जब क्रोध की परिणीति अनुकूल परिणाम में तब्दील न हुयी तो सुगना का क्रोध क्रंदन में बदल गया वह रो रही थी । कजरी उसकी पीठ सहलाती रही पर सुगना की सिसकियां कम ना हुई।
दो दिन बाद रतन वापस मुंबई चला गया और सुगना अपनी जवानी लिए हुए बिस्तर पर तड़पती रह गयी। घर में मनहूसियत का माहौल था। सरयू सिंह और कजरी दोनों ही दुखी थे। सुगना सरयू सिंह से कोई बात नहीं करती थी। वह उनकी आहट से तुरंत ही दूर हो जाती। उसकी यह आदत कभी सरयू सिंह को सम्मानजनक लगती कभी नफरत भरी।
जब कभी सुगना घर में अकेले रहती, यदि सरयू सिंह खाना पानी मांगते तो सुगना उन्हें खाना तो दे देती पर एक लफ्ज़ न बोलती। सरयू सिंह बार-बार उसे सुगना बेटा सुगना बेटा कहते पर सुगना ने उनसे कोई बात नहीं की। कजरी सुगना को समझाती पर उसका दिल खट्टा हो चुका था।
सुगना को आए एक महीना बीत चुका था। कजरी की चूत कभी-कभी पनियाती उसका मन भी चुदवाने का करता। सुगना अपनी चूत का भविष्य सोच कर दुखी हो जाती। क्या वह कुवांरी ही रहेगी? सुगना जवान थी उसका हक था कि वह भगवान द्वारा बनाए गए इस अद्भुत सुख को भोगती पर सब बिखर गया था।
सुगना को अपनी सास से भी हमदर्दी थी आखिर उन्होंने भी अपनी जवानी बिना अपने पति के गुजारी थी. सुगना अपनी दुखियारी सास से करीब होती होती गई. उसने अपनी फूटी किस्मत के लिए उन्हें उत्तरदाई नहीं ठहराया पर सरयू सिंह को वह माफ न कर पा रही थी।
सरयू सिंह की उत्तेजना भी धूल चाट गई थी। जब भी वह प्यारी सुगना को देखते वह दुखी हो जाते। उनकी प्यारी बहू मानसिक कष्ट से गुजर रही थी वह उसे खुश करने का जी भर प्रयास करते पर सब व्यर्थ था। सुगना दिन पर दिन उदास रहने लगी। सरयू सिंह इस एक महीने में सुगना का चेहरा तक न देख पाए थे।
इन दिनों सुगना यदि किसी के साथ खुश होती तो वह थी लाली। वह हरिया की बड़ी लड़की जिसका विवाह हो चुका था और कुछ ही दिनों में गवना होने वाला था। लाली दोपहर में सुगना के पास आती और बार-बार सुगना से उसकी सुहागरात का अनुभव पूछती। यह जले पर नमक छिड़कने जैसा था पर सुगना जानती थी की इसमें लाली की कोई गलती नहीं थी।
हर लड़की का यह स्वाभाविक कौतूहल होता है। सुगना उसे उत्तेजक भाषा में समझाने का प्रयास करती पर वह वैसा ही होता जैसे कोई गांव का व्यक्ति स्विट्जरलैंड की खूबसूरती का वर्णन कर रहा हो।
::
आखिरकार होली के दिन घर में खुशियों ने दस्तक दी। कजरी और सरयू सिंह ने हमेशा से होली के त्यौहार को आनंद पूर्वक मनाया था। वैसे भी वह दोनों देवर भौजाई थे।
सुबह सुबह का वक्त था। सुगना अपने कमरे में सो रही थी। कजरी अभी-अभी मुंह हाथ धोकर आंगन में आई थी। सरयू सिंह ने कजरी को देखा और अपने हाथों में रंग लेकर कजरी पर कूद पड़े। हमेशा से पहले रंग लगाने की उन दोनों में होड़ लगी रहती थी। सरयू सिंह अपनी कजरी भाभी की चुचियों को रंग रहे थे। घर के आंगन में कजरी खिलखिला कर हंस रही थी। एक पल के लिए वह भूल गई थी कि सुगना घर में ही है।
कहते हैं उत्तेजना में इंसान बहक जाता है। कई दिनों बाद अपनी चूचियों पर सरयू सिंह के हाथ पाकर उसकी बुर पनिया गई। वह उसकी चुचियों को मीसते रहे
तथा उनके होंठ कजरी के कानों और गालों पर अपने चुंबन बरसाते रहे। सरयू सिंह ने उसका पेटीकोट उठाना शुरू कर दिया। हाथों में लाल रंग लगा हुआ था। कजरी के गोरे शरीर पर सरयू सिंह के पंजों के निशान स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे। सरयू सिंह ने नितंबों को भी नहीं छोड़ा। हथेलियों का पानी सूख चुका था पर उनकी उंगलियों ने कजरी की पनियायी बुर से पानी चुरा लिया। कजरी के गाल शर्म से और चूतड़ रंग से लाल हो गए।
कजरी के खिलखिलाकर हँसने की वजह से सुगना जाग गयी थी। वह शांति पूर्वक दरवाजे की सुराग से आगन का दृश्य देखने लगी। कुदरत ने अनूठा संयोग बना दिया था।
सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी सास कजरी के जांघों पर देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। जितना आश्चर्य आंखों में था उतनी ही उत्तेजना उसके मन में जन्म ले रही थी। सरयू सिंह कजरी की बुर सहला रहे थे।
आंगन में चल रही ठंडी ठंडी बयार ने जब कजरी की पनियायी चूत को छुआ उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। कजरी से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी कोठरी की तरफ जाने लगी। सरयू सिंह चुंबक की तरह उसके पीछे हो लिए। वहअपने लंड को लगातार उसके कूल्हों से सटे हुए थे।
सुगना के पैर कांप रहे थे। आज जो उसने देखा था उसने उसे हिला कर रख दिया था। कजरी और सरयू सिंह के कमरे में जाने के बाद वह चोरी छुपे आंगन में आ गयी।
कमरे के अंदर अंधेरा था पर इतना भी नहीं। सूर्य का प्रकाश स्वतः ही गांव के कमरों में प्रवेश कर जाता है आप चाह कर भी उसे नहीं रोक सकते। जिस तरह सूर्य का प्रकाश अंदर जा रहा था सुगना की निगाहें भी दरवाजे के पतले छेद से अंदर चली गयीं।
सुगना ने आज वह दृश्य देख लिया जिस दृश्य कि कभी वह कल्पना करती थी। कजरी और सरयू सिंह पूरी तरह नंगे हो चुके थे। सरयू सिंह का बलिष्ठ शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। चौड़ी छाती बड़ी बड़ी भुजाएं पतली कमर और मांसल जाँघे सुगना की आंखें बंद हो गयी। वह थरथर कांप रही थी।
सरयू सिंह का मजबूत और काला लंड सुगना की निगाहों के ठीक सामने था पर सुगना अपनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कुछ सांसे और लेकर उसने अपनी आंखें खोल दीं। सरयू सिंह अपने मजबूत और काले लंड को हथेलियों में लेकर सहला रहे थे। सुगना की आंखें अब उस पर अटक गई बाप रे बाप इतना बड़ा उसने आज के पहले पुरुष लिंग सिर्फ मासूम बच्चों का देखा था इतने विशाल लिंग की उसने कल्पना भी नहीं की थी।
होली और वासना में रंगे हुए सरयू सिंह और कजरी एक दूसरे के आलिंगन में लिपटे हुए एक दूसरे के होंठ चूसे जा रहे थे। सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ। उन्होंने कजरी को अपनी गोद में उठा लिया। कजरी उनके आलिंगन में आ गई और अपनी दोनों जांघों को सरयू सिंह की कमर में लपेट लिया। सरयू सिंह की दोनों हथेलियों ने कजरी को नितंबों से पकड़ा हुआ था।
उनका लंड कभी कजरी की गांड पर कभी चूत पर छू रहा था। वह लगातार उसे चुम्मे जा रहे थे। सरयू सिंह ने अपने लंड को जैसे ही कजरी की चिपचिपी चूत पर महसूस किया उन्होंने कजरी के चूतड़ों को दिया हुआ अपनी हथेलियों का सहारा हटा दिया।
कजरी अपने भार को नियंत्रित न कर पायी और नीचे आती गई। सरयू सिंह का मूसल अपनी ओखली में प्रवेश कर गया था। सुगना की सांसे तेज चल रही थी उसे अपनी जांघों के बीच की कुछ अजीब सी हलचल महसूस हो रही थी। चूचियों में मरोड़ हो रही थी।
वाह अपनी साड़ी के ऊपर से ही उसे छूने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह अब उसकी सासू मां को कस कर चोद रहे थे वह उन दोनों की चुदाई और न देख पायी और भागते हुए अपने कमरे में आ गयी।
वह अपनी किस्मत को कोस रही थी जिसने उसकी जवानी बर्बाद कर दी थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह ने कजरी को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी दोनों जाँघे फैलाकर उसे गचागच चोदने लगे। चारपाई के चर चर आवाज सुनाई दे रही थी। पर वह दोनों बेशर्मों की तरह चुदाई में लिप्त थे उस समय उन दोनों को अपनी बहू का ख्याल नहीं आया जिसे वो ब्याह कर तो ले आया था पर उसे उसकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया था।
उधर सुगना का कलेजा मुंह को आ रहा था पर कुवारी चूत बह रही थी। उसने अपना एक पैर चारपाई के नीचे कर लिया और चारपाई के बास को अपनी दोनों जाँघों के बीच ले लिया। बॉस पर रस्सियों की लिपटन ने उसे खुदरा बना दिया था।
सुगना की चूत और उस बॉस के बीच सिर्फ उसका पेटीकोट और साड़ी थी। उसने अपनी चूत को उस बास पर रगड़ना शुरु कर दिया। कुछ ही पलों में उसकी जांघें तनने लगीं। सुगना अपनी ससुराल में आज पहली बार स्खलित हुई थी। वह हाफ रही थी। पर आज पहली बार उसके चेहरे पर सुकून और कुछ खुशी दिखाई दे रही थी। नियति मुस्कुरा रही थी ……
सुगना की होली हैप्पी होली हो चुकी थी।
शेष अगले भाग में
सरयू सिंह सुगना की यादों में खोए हुए थे. कैसे सुगना उनकी जान से ज्यादा प्यारी ही गयी थी। जो एक समय पर उनसे बात तक न करती थी आज अपनी चूत चुदवाने के बाद पंखा झलते हुए उन्हें प्यार से खाना खिला रही थी। यह सफर रोमांचक था...
सुगना के गवना का दिन निर्धारित हो गया था। वह कुछ दिनों पहले हुए मुखिया के चुनाव में मतदान कर चुकी थी और शाशकीय तौर पर चुदने के लिए पूरी तरह तैयार थी। सरयू सिंह ने रतन को बुला लिया था। वह मन मसोसकर गांव आ गया पर उसकी सुगना में कोई रुचि नहीं थी। आपसी समझौते के तहत उसे गांव आना था सो आ गया था।
कजरी को अभी भी उम्मीद थी की सुगना की जवानी रतन को सुगना की जाँघों के बीच खींच लाएगी। कजरी सुगना से मिल आई थी। उसमें सुगना की कद काठी पे टंगी उसकी चूचियों और सुडौल कूल्हों के पीछे छुपी कुवांरी चूत को अंदाज लिया था। वह उसकी खूबसूरती से बेहद प्रभावित थी।
सरयू सिंह स्वयं खूबसूरती के जौहरी थे। उन्होंने जिन जिन महिलाओं को हाथ लगाया था वह सब एक से बढ़कर एक थीं। कजरी स्वयं उनमें से एक थी। सरयू सिंह ने अपने अनुभव के आधार पर ही सुगना को रतन के लिए पसंद कर लिया था। उन्हें पता था सुगना की मां पदमा जब इतनी खूबसूरत थी तो उसकी लड़की सुगना निश्चय ही खूबसूरत ही होगी।
सुगना की मां पदमा सरयू सिंह के ननिहाल की लड़की थी। अपनी जवानी में सरयू सिंह ने पदमा की जवानी का रस लूटा था। ज्यादा तो नहीं पर कभी-कभी। उस गाँव मे वही उनका सहारा थी। उस दिन पदमा की आंखों में आंसू देख कर उनका दिल पिघल गया था और उन्होंने एक ही झटके में सुगना को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था।
आखिर वह दिन आ ही गया जब सरयू सिंह की प्यारी बहू उनके घर आ गई। पूरे गांव में भोज हुआ सरयू सिंह मन ही मन डरे हुए थे की रतन और सुगना का मिलन होगा या नहीं। यह प्रश्न उन्हें खाए जा रहा था। वह कजरी की बातों से आश्वस्त थे पर रतन का व्यवहार उन्हें आशंकित किए हुए था। गवना के पूरे कार्यक्रम में वह बिना मन के उपस्थित रहा था।
कजरी ने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर कोठरी में नई चादर बिछाई थी। सुगना अपनी सुहागरात की सेज देखकर मन ही मन शर्मा रही थी।
सरयू सिंह अब तक सुगना का चेहरा नहीं देख पाए थे पर अपनी पारखी निगाहों से यह अवश्य जान चुके थे कि उसे सुहाग की सेज पर देखना किसी मर्द के लिए एक स्वप्न जैसा ही था।
सचमुच् वह अपनी मां से बढ़कर कामुक थी। एक पल के लिए उन्हें लगा की रतन उसके प्रेम पास में निश्चय ही आ जाएगा पर हुआ उसके विपरीत।
रात में सुगना की कोठरी से चीखने की आवाज आने लगी। सरयू सिंह और कजरी उनकी बातें सुनने लगे सुगना ने लगभग चीखते हुए कहा
"जब राउर मन ना रहे तो ब्याह काहे कइनी?"
"जाके चाचा से पूछा"
"हमरा मांग में सिंदूर तू भरले बाड़ा कि तहार चाचा" सुगना की आवाज में तल्खी आ रही थी।
"जब हमारा के आपन बहिन बनावे के रहे त गवना करावे कौना मुंह से आइल रहला हा?"
रतन निरुत्तर था.
कुछ ही देर में वाह दरवाजा खोल कर कमरे से बाहर चला गया. सरयू सिंह अपनी चादर के अंदर विदके हुए अपने फैसले पर पछता रहे थे। कामाग्नि में चल रही सुगना का यह व्यवहार सर्वथा उचित था।
कजरी सुगना के कमरे में जाकर उसे समझा रही थी। जब क्रोध की परिणीति अनुकूल परिणाम में तब्दील न हुयी तो सुगना का क्रोध क्रंदन में बदल गया वह रो रही थी । कजरी उसकी पीठ सहलाती रही पर सुगना की सिसकियां कम ना हुई।
दो दिन बाद रतन वापस मुंबई चला गया और सुगना अपनी जवानी लिए हुए बिस्तर पर तड़पती रह गयी। घर में मनहूसियत का माहौल था। सरयू सिंह और कजरी दोनों ही दुखी थे। सुगना सरयू सिंह से कोई बात नहीं करती थी। वह उनकी आहट से तुरंत ही दूर हो जाती। उसकी यह आदत कभी सरयू सिंह को सम्मानजनक लगती कभी नफरत भरी।
जब कभी सुगना घर में अकेले रहती, यदि सरयू सिंह खाना पानी मांगते तो सुगना उन्हें खाना तो दे देती पर एक लफ्ज़ न बोलती। सरयू सिंह बार-बार उसे सुगना बेटा सुगना बेटा कहते पर सुगना ने उनसे कोई बात नहीं की। कजरी सुगना को समझाती पर उसका दिल खट्टा हो चुका था।
सुगना को आए एक महीना बीत चुका था। कजरी की चूत कभी-कभी पनियाती उसका मन भी चुदवाने का करता। सुगना अपनी चूत का भविष्य सोच कर दुखी हो जाती। क्या वह कुवांरी ही रहेगी? सुगना जवान थी उसका हक था कि वह भगवान द्वारा बनाए गए इस अद्भुत सुख को भोगती पर सब बिखर गया था।
सुगना को अपनी सास से भी हमदर्दी थी आखिर उन्होंने भी अपनी जवानी बिना अपने पति के गुजारी थी. सुगना अपनी दुखियारी सास से करीब होती होती गई. उसने अपनी फूटी किस्मत के लिए उन्हें उत्तरदाई नहीं ठहराया पर सरयू सिंह को वह माफ न कर पा रही थी।
सरयू सिंह की उत्तेजना भी धूल चाट गई थी। जब भी वह प्यारी सुगना को देखते वह दुखी हो जाते। उनकी प्यारी बहू मानसिक कष्ट से गुजर रही थी वह उसे खुश करने का जी भर प्रयास करते पर सब व्यर्थ था। सुगना दिन पर दिन उदास रहने लगी। सरयू सिंह इस एक महीने में सुगना का चेहरा तक न देख पाए थे।
इन दिनों सुगना यदि किसी के साथ खुश होती तो वह थी लाली। वह हरिया की बड़ी लड़की जिसका विवाह हो चुका था और कुछ ही दिनों में गवना होने वाला था। लाली दोपहर में सुगना के पास आती और बार-बार सुगना से उसकी सुहागरात का अनुभव पूछती। यह जले पर नमक छिड़कने जैसा था पर सुगना जानती थी की इसमें लाली की कोई गलती नहीं थी।
हर लड़की का यह स्वाभाविक कौतूहल होता है। सुगना उसे उत्तेजक भाषा में समझाने का प्रयास करती पर वह वैसा ही होता जैसे कोई गांव का व्यक्ति स्विट्जरलैंड की खूबसूरती का वर्णन कर रहा हो।
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आखिरकार होली के दिन घर में खुशियों ने दस्तक दी। कजरी और सरयू सिंह ने हमेशा से होली के त्यौहार को आनंद पूर्वक मनाया था। वैसे भी वह दोनों देवर भौजाई थे।
सुबह सुबह का वक्त था। सुगना अपने कमरे में सो रही थी। कजरी अभी-अभी मुंह हाथ धोकर आंगन में आई थी। सरयू सिंह ने कजरी को देखा और अपने हाथों में रंग लेकर कजरी पर कूद पड़े। हमेशा से पहले रंग लगाने की उन दोनों में होड़ लगी रहती थी। सरयू सिंह अपनी कजरी भाभी की चुचियों को रंग रहे थे। घर के आंगन में कजरी खिलखिला कर हंस रही थी। एक पल के लिए वह भूल गई थी कि सुगना घर में ही है।
कहते हैं उत्तेजना में इंसान बहक जाता है। कई दिनों बाद अपनी चूचियों पर सरयू सिंह के हाथ पाकर उसकी बुर पनिया गई। वह उसकी चुचियों को मीसते रहे
तथा उनके होंठ कजरी के कानों और गालों पर अपने चुंबन बरसाते रहे। सरयू सिंह ने उसका पेटीकोट उठाना शुरू कर दिया। हाथों में लाल रंग लगा हुआ था। कजरी के गोरे शरीर पर सरयू सिंह के पंजों के निशान स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे। सरयू सिंह ने नितंबों को भी नहीं छोड़ा। हथेलियों का पानी सूख चुका था पर उनकी उंगलियों ने कजरी की पनियायी बुर से पानी चुरा लिया। कजरी के गाल शर्म से और चूतड़ रंग से लाल हो गए।
कजरी के खिलखिलाकर हँसने की वजह से सुगना जाग गयी थी। वह शांति पूर्वक दरवाजे की सुराग से आगन का दृश्य देखने लगी। कुदरत ने अनूठा संयोग बना दिया था।
सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी सास कजरी के जांघों पर देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। जितना आश्चर्य आंखों में था उतनी ही उत्तेजना उसके मन में जन्म ले रही थी। सरयू सिंह कजरी की बुर सहला रहे थे।
आंगन में चल रही ठंडी ठंडी बयार ने जब कजरी की पनियायी चूत को छुआ उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। कजरी से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी कोठरी की तरफ जाने लगी। सरयू सिंह चुंबक की तरह उसके पीछे हो लिए। वहअपने लंड को लगातार उसके कूल्हों से सटे हुए थे।
सुगना के पैर कांप रहे थे। आज जो उसने देखा था उसने उसे हिला कर रख दिया था। कजरी और सरयू सिंह के कमरे में जाने के बाद वह चोरी छुपे आंगन में आ गयी।
कमरे के अंदर अंधेरा था पर इतना भी नहीं। सूर्य का प्रकाश स्वतः ही गांव के कमरों में प्रवेश कर जाता है आप चाह कर भी उसे नहीं रोक सकते। जिस तरह सूर्य का प्रकाश अंदर जा रहा था सुगना की निगाहें भी दरवाजे के पतले छेद से अंदर चली गयीं।
सुगना ने आज वह दृश्य देख लिया जिस दृश्य कि कभी वह कल्पना करती थी। कजरी और सरयू सिंह पूरी तरह नंगे हो चुके थे। सरयू सिंह का बलिष्ठ शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। चौड़ी छाती बड़ी बड़ी भुजाएं पतली कमर और मांसल जाँघे सुगना की आंखें बंद हो गयी। वह थरथर कांप रही थी।
सरयू सिंह का मजबूत और काला लंड सुगना की निगाहों के ठीक सामने था पर सुगना अपनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कुछ सांसे और लेकर उसने अपनी आंखें खोल दीं। सरयू सिंह अपने मजबूत और काले लंड को हथेलियों में लेकर सहला रहे थे। सुगना की आंखें अब उस पर अटक गई बाप रे बाप इतना बड़ा उसने आज के पहले पुरुष लिंग सिर्फ मासूम बच्चों का देखा था इतने विशाल लिंग की उसने कल्पना भी नहीं की थी।
होली और वासना में रंगे हुए सरयू सिंह और कजरी एक दूसरे के आलिंगन में लिपटे हुए एक दूसरे के होंठ चूसे जा रहे थे। सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ। उन्होंने कजरी को अपनी गोद में उठा लिया। कजरी उनके आलिंगन में आ गई और अपनी दोनों जांघों को सरयू सिंह की कमर में लपेट लिया। सरयू सिंह की दोनों हथेलियों ने कजरी को नितंबों से पकड़ा हुआ था।
उनका लंड कभी कजरी की गांड पर कभी चूत पर छू रहा था। वह लगातार उसे चुम्मे जा रहे थे। सरयू सिंह ने अपने लंड को जैसे ही कजरी की चिपचिपी चूत पर महसूस किया उन्होंने कजरी के चूतड़ों को दिया हुआ अपनी हथेलियों का सहारा हटा दिया।
कजरी अपने भार को नियंत्रित न कर पायी और नीचे आती गई। सरयू सिंह का मूसल अपनी ओखली में प्रवेश कर गया था। सुगना की सांसे तेज चल रही थी उसे अपनी जांघों के बीच की कुछ अजीब सी हलचल महसूस हो रही थी। चूचियों में मरोड़ हो रही थी।
वाह अपनी साड़ी के ऊपर से ही उसे छूने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह अब उसकी सासू मां को कस कर चोद रहे थे वह उन दोनों की चुदाई और न देख पायी और भागते हुए अपने कमरे में आ गयी।
वह अपनी किस्मत को कोस रही थी जिसने उसकी जवानी बर्बाद कर दी थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह ने कजरी को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी दोनों जाँघे फैलाकर उसे गचागच चोदने लगे। चारपाई के चर चर आवाज सुनाई दे रही थी। पर वह दोनों बेशर्मों की तरह चुदाई में लिप्त थे उस समय उन दोनों को अपनी बहू का ख्याल नहीं आया जिसे वो ब्याह कर तो ले आया था पर उसे उसकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया था।
उधर सुगना का कलेजा मुंह को आ रहा था पर कुवारी चूत बह रही थी। उसने अपना एक पैर चारपाई के नीचे कर लिया और चारपाई के बास को अपनी दोनों जाँघों के बीच ले लिया। बॉस पर रस्सियों की लिपटन ने उसे खुदरा बना दिया था।
सुगना की चूत और उस बॉस के बीच सिर्फ उसका पेटीकोट और साड़ी थी। उसने अपनी चूत को उस बास पर रगड़ना शुरु कर दिया। कुछ ही पलों में उसकी जांघें तनने लगीं। सुगना अपनी ससुराल में आज पहली बार स्खलित हुई थी। वह हाफ रही थी। पर आज पहली बार उसके चेहरे पर सुकून और कुछ खुशी दिखाई दे रही थी। नियति मुस्कुरा रही थी ……
सुगना की होली हैप्पी होली हो चुकी थी।
शेष अगले भाग में