14-04-2022, 01:22 PM
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भाग-4
सुगना के बेटे का नाम सूरज रखा गया. यह नाम कजरी ने ही सुझाया था यह उसका हक भी था आखिर सुगना और सरयू सिंह का मिलन कजरी की बदौलत ही हो पाया था।
सुगना और कजरी बच्चे का ख्याल रखतीं। सरयू सिंह बेहद खुश दिखाई पढ़ते। उनके सारे सपने पूरे हो रहे थे। खासकर जब वह अपनी प्यारी सुगना के चेहरे पर खुशी देखते हैं वह बाग बाग हो जाते।
पर आज सुगना दुखी थी वह और कजरी आपस में बातें कर रही थीं। उनकी चिंता सूरज के दूध न पीने की वजह से थी। कजरी ने कहा
"सुगना, आपन चूची में शहद लगा के पियाव"
"मां, लगवले रहनी पर लेकिन उ चूची पकड़ते नईखे"
"सरयू सिंह आंगनमें आ चुके थे। सुगना ने घुंघट ले लिया पर उसकी चुची अभी भी साफ दिखाई पड़ रही थी। कजरी ने हाथ बढ़ाकर आंचल से सुगना की चूचियां ढक दीं।
कुछ ही देर में सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने सूरज को गाय का दूध पिलाने की बात की पर कजरी ने मना कर दिया।
अगली सुबह सुगना ने अपनी कोठरी का खिड़की खोली सूर्य की किरणें बाहर दालान में पढ़ रही थीं। अचानक उसकी निगाह अपनी गाय पर पड़ी जिसमें अभी दो महीना पहले ही एक बछड़े को जन्म दिया था।
कजरी ने बाल्टी सरयू सिंह ने के हाथ में दी सरयू सिंह गाय का दूध निकालने चल पड़े। उन्होंने अपनी दोनों जांघों के बीच बाल्टी फसाई और गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे। सूर्य की किरणों से उनका बलिष्ठ शरीर चमक रहा था। उनकी मांसल जांघों के बीच बाल्टी फसी हुई थी। उनकी मजबूत हथेलियों के बीच गाय की कोमल चुचियां थी जिसे वह मुठ्ठियाँ भींचकर खींच रहे थे।
सर्र्रर्रर्रर …… सुर्रर्रर…. की आवाज आने लगी. सुगना यह दृश्य देखकर सिहर उठी. वह स्वयं को उस गाय की जगह सोच कर थरथरा उठी. उसकी आंखों में वासना तैरने लगी उसकी चूचियां तन गयीं। उत्तेजना में उसकी खिड़की पर रख दिया गिर पड़ा जिसकी आवाज से सरयू सिंह ने उधर देखा सुगना की निगाह सरयू सिंह से टकरा गई
सुगना शर्म के मारे पानी पानी हो गई सरयू सिंह को सारा माजरा समझते देर न लगी उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया। सुगना बेटी का इस तरह चूँची निचोड़ते हुए देखना सच में उन्हें भी उत्तेजित कर गया था। उन्होंने बाल्टी को हटाया और अपने खड़े हो चुके लंड को ऊपर की तरफ किया और एक बार फिर चुचियों से दूध दुहने लगे।
सुगना से और बर्दाश्त नहीं वह उत्तेजना से कांप रही थी। उसने कोठरी की खिड़की बंद कर दी और चौकी पर बैठकर पास बड़ी कटोरी में अपनी चुचीं से दूध निकालने का प्रयास करने लगी।
उसकी कोमल हथेलियां अपनी ही चूचियों पर जोर लगा कर चार छः चम्मच दूध निकाल पायीं। उसने सूरज को वह दूध पिलाने की कोशिश की सूरज ने गटागट दूध पी लिया।
सुगना की खुशी का ठिकाना न रहा उसने झट से दूसरी चूची निकाली और उसका भी दूध निकालने लगी। तभी सरयू सिंह बाल्टी में दूध लिए कमरे में आ गए। सुगना को इस तरह अपनी ही चूची से दूध निकालते हुए देखकर वह बोले
"सुगना बेटा ल ई गाय के ताजा दूध पिला पिया द"
"बाबूजी इहो ताजा बा उ इहे मन से पियता"
सरयू सिंह मुस्कुराते हुए कमरे से वापस आ गए। उन्होंने मन ही मन सुगना की मदद करने की ठान ली
सुगना ने दूसरी चूची से निकाला दूध भी सूरज को पिला दिया और थपकी देकर उसे सुला दिया वह खुशी से चहकती हुई कजरी के पास आयी। सरयू सिंह अपनी बहू का चहकना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे। उनका लंड अभी भी धोती में तना हुआ था उन्होंने उसे सहला कर शांत कर दिया।
सुगना के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। उसने आज सुबह के दृश्य के लिए नियति और अपने बाबू जी के प्रति कृतज्ञता जाहिर की जिन्होंने सुगना को यह अद्भुत उपाय सुझाया था अब सूरज भी खुश था और वह भी।
दोपहर में कजरी हरिया के यहां सुगना के लिए सोंठ के लड्डू बनाने चली गई। सरयू सिंह बाहर दालान में बैठे थे आंगन में आ रही हैंडपंप की आवाज से उन्होंने अंदाजा लगा लिया सुगना नहा रही थी। जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे की तरफ गई सरयू सिंह पीछे पीछे अंदर आ गए। सुगना अपना शरीर पोछ कर अपना पेटीकोट पहन ही रही थी। तभी सरयू सिंह ने पेटीकोट को जांघो तक पहुचने से पहले ही ही पकड़ लिया।
वह अपने हाथ में कटोरी लेकर आए थे सुगना ने पीछे मुड़कर देखा तो सरयू सिंह ने उसे कटोरी पकड़ा दी और कहा
" चला सूरज बाबू के दूध पिया द"
सुगना ने कटोरी लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसका पेटीकोट वापस जमीन पर आ गया। सुगना पूरी तरह नंगी खड़ी थी। तभी छोटा बालक रोने लगा। सुगना ने झुककर बालक की पीठ थपथपाई इस दौरान उसकी गोरी गांड और चूत सरयू सिंह के निगाहों के ठीक सामने आ गयी।
उनसे अब और बर्दाश्त न हुआ जब तक सुगना बच्चे की पीठ थपथपाती तब तक सरयू सिंह वस्त्र विहीन हो चुके थे। बच्चे की आंख लगते ही उन्होंने सुगना को पीछे से पकड़ लिया। सुगना ने मुस्कुराते हुए वह आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया और खड़ी हो गई। उसकी दोनों कोमल चूचियां सरयू सिंह के हाथों में थीं।
वह कुछ देर तो अपनी सुगना बेटी की चूचियाँ सहलाते रहे फिर अपना दबाव बढ़ाते गए। दूध की धार फूट पड़ी।
सुगना ने उसे कटोरी में रोकने की कोशिश की पर खड़े होने की वजह से यह संभव नहीं हो रहा था। दूध नीचे गिर रहा था।
सुगना स्वयं आगे आकर सुबह अपनी गाय की अवस्था(आज की डॉगी स्टाइल) में आ गई। वह खुद आज उत्तेजना का शिकार थी। आज सुबह जो उसने देखा था वह उसके मन मस्तिष्क पर छा गया था। अब सुगना की दोनों चूचियां नीचे लटक रही थीं। सरयू सिंह ने कटोरी नीचे रख दी और सुगना की दोनों चूचियां सहलाने लगे बीच-बीच में वह अपने एक हाथ सुगना के कोमल नितंबों को तथा उसके बीच की दरार को भी सहला देते। अपनी गांड पर सरयू सिंह की उंगलियों का स्पर्श पाकर उनकी प्यारी सुगना चिहुँक उठती।
सुगना का चेहरा वासना से लाल हो रहा था। उन्होंने अपनी हथेलियों का दबाव जैसे ही बढ़ाया दूध की धार कटोरी में गिरने लगी। वह माहिर खिलाड़ी थे पर आज जिसका दूध वह दूर रहे थे वह उनकी जान थी उनकी अपनी बहू सुगना। दूध निकालने के लिए चुची को दबाना जरूरी था पर इतना नहीं जिससे उनकी सुकुमारी को कष्ट हो।
अपने सधे हाथों से उन्होंने सुगना की आंखों में बिना आंसू लाए आधी कटोरी भर दी। उन्होंने सुगना की आंख के आंसू तो रोक लिए पर चूत पर ख़ुशी के आंशु उभार दिए । अचानक उनके हाथों का दबाव बढ़ गया। सुगना कराह उठी
"बाबूजी तनी धीरे से……. दुखाता"
सुगना की कराह मादक थी उनसे और बर्दाश्त ना हुआ। वह उठ कर सुगना के पीछे आ गए। उन्होंने एक हाथ से अपने शरीर का बैलेंस बनाया और दूसरे हाथ से सुगना की दूसरी चूँची दुहने लगे।
उनका लंड सुगना के नितंबों से लगातार छू रहा था। सुगना भी पूरी तरह उत्तेजित थी। कटोरी के दूध से भरते भरते सुगना की चूत से लार टपकने लगी। वह चुत से चाशनी की भांति लटकी हुई थी और चौकी को छूने की कोशिश कर रही थी। सुगना ने वह देख लिया था।उसने अपने एक हाथ से उसे पोंछने की कोशिश की। वह अपने बाबू जी को अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन नही करना चाहती थी।
सरयू सिंह ने उसकी कोमल कलाइयां बीच में ही रोक ली। वह शर्मा कर वापस उसी अवस्था में आ गई। उसने कटोरी का दूध हटाकर दूर रख दिया। सरयू सिंह उसकी चुचियों को अभी भी सहला रहे थे। शायद जितना कष्ट उन्होंने उसे दिया था उसे सहला कर उसकी भरपाई कर रहे थे।
उधर उनका लंड अपनी सुगना बेटी की चूत के मुंह पर अपना दस्तक दे रहा था। वह सिर्फ उसके मुंह से लार लेता और सुगना के भगनासे पर छोड़ देता।
सुगना अपनी कमर पीछे कर उसे अंदर लेने का प्रयास कर रही थी। पर उसके बाबूजी अपनी कमर पीछे कर लेते।
सुगना के कड़े हो चुके निप्पल पर उंगलियां पहुंचते ही एक बार फिर सरयू सिंह ने उसे दबा दिया। सुगना के मुंह से कराह निकल गई ….
"बाबूजी तनी……….. जब तक वाह अपनी बात कह पाती उसके बाबूजी का मूसल उसकी मखमली और लिसलिसी चूत में घुस कर उसकी नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। सुगना आनंद में डूब चुकी थी। सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाला और फिर एक बार जड़ तक अपनी बहू की कोमल चूत में ठास दिया।
सुगना आगे की तरफ गिरने लगी सरयू सिंह ने उसके कोमल कंधे पकड़ लिए और अपने लंड को तेजी से अंदर बाहर करने लगे। जब लंड सुगना की चुत में अंदर जाता वह गप्पप्प की आवाज होती और जब वह बाहर आता फक्क…..की ध्वनि सुनाई पड़ती।
यह मधुर ध्वनि सुगना और सरयू सिंह दोनों सुन रहे थे पर शायद उन्हें नहीं पता था घर में तीसरा प्राणी भी था जो अब अपनी आंखें खोलें टुकुर-टुकुर यह दृश्य देख रहा था। सरयू सिंह की निगाह बालक पर पढ़ते ही वह घबरा गए कहीं ऐसा ना हो कि बालक रोने लगे। उन्होंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और उनकी प्यारी बहु की चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।
वह किसी भी हाल में स्खलित होना चाहते थे। सुगना आंखे बाद किये बेसुध होकर चुदाई का आंनद ले रही थी। सूरज अभी भी टुकुर-टुकुर देख रहा था। वह रो नहीं रहा था इस अद्भुत चुदाई से सुगना थरथर कांपने लगी उससे अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह पलट कर सीधा होना चाह रही थी उसकी कोमल कोहनियां और घुटने उस खुरदुरी चौकी से लाल हो गये थे।
सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उस खुरदरी चौकी पर अपनी कोमल बहू को पीठ के बललिटा दिया। सुगना की मांसल जांघों को पकड़ कर उन्होंने प्यारी सुगना फिर से चोदना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी सरयू सिंह ने जैसी ही उसकी चुचियों को मीसा एक बार फिर दूध की धार उनके चेहरे पर पड़ गई जिसको उन्होंने अपनी जीभ से चाट लिया। उसका स्वाद उन्हें पसंद ना आया पर था तो वह उनकी प्यारी बहु सुगना का। उन्होंने सुगना की एक सूची को जैसे ही मुंह में लिया सुगना की चूत कांपने लगी।
सरयू सिंह ने भी देर नहीं की और अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे कर अपनी प्यारी सुगना को चोदते रहे। थोड़ी ही देर में जितना दूध उन्होंने सुगना की चूची के पिया था उसे सूद समेत उसकी चुत में भर दिया।
सुगना तृप्त हो चुकी थी। उसने अपने बाबूजी को चुम्मा दिया और कुछ देर के लिए शांत हो गई। सूरज की आंखें थक चुकी थी उसने अपना क्रंदन प्रारंभ कर दिया ।
सुगना उठ कर खड़ी हो गई उसकी चूत से बह रहा वीर्य जांघो का सहारा लेकर नीचे गिर रहा था। सरयू सिंह ने पेटीकोट उठाया और उसे पोंछने लगे। उनकी निगाह नितंबों के बीच सुगना की गदरायी गाड़ कर चली गई। वह कुंवारी गांड उन्हें कई दिनों से आकर्षित कर रही थी।
सुगना ने कटोरी भर दूध देखकर अपने प्यारे बाबू जी का शुक्रिया अदा किया और सूरज को दूध पिलाने बैठ गयी। उसने कपड़े पहनने कि जल्दी बाजी न की। सूरज उसकी चुचियों से खेलते हुए चम्मच से दूध पीने लगा।
थोड़ी ही देर में मां बेटा प्रसन्न हो गए। सरयू सिंह बाहर दालान में खाने का इंतजार कर रहे थे। सुगना तैयार होकर अपने बाबूजी के लिए खाना लेकर आ गई। सरयू सिंह अपनी उंगलियों से रोटियां तोड़ने लगे और सुगना उन मजबूत उंगलियों को देख कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपनी कोमल हथेलियों से अपने बाबूजी के लिए पंखा झल रही थी। बहू का यह प्यार सरयू सिंह को अचानक नहीं मिला था उन्होंने सुगना का मन और तन बड़ी मुश्किल से जीता था।
वह अपनी यादों में खोते चले गए…..
शेष अगले भाग में
सुगना के बेटे का नाम सूरज रखा गया. यह नाम कजरी ने ही सुझाया था यह उसका हक भी था आखिर सुगना और सरयू सिंह का मिलन कजरी की बदौलत ही हो पाया था।
सुगना और कजरी बच्चे का ख्याल रखतीं। सरयू सिंह बेहद खुश दिखाई पढ़ते। उनके सारे सपने पूरे हो रहे थे। खासकर जब वह अपनी प्यारी सुगना के चेहरे पर खुशी देखते हैं वह बाग बाग हो जाते।
पर आज सुगना दुखी थी वह और कजरी आपस में बातें कर रही थीं। उनकी चिंता सूरज के दूध न पीने की वजह से थी। कजरी ने कहा
"सुगना, आपन चूची में शहद लगा के पियाव"
"मां, लगवले रहनी पर लेकिन उ चूची पकड़ते नईखे"
"सरयू सिंह आंगनमें आ चुके थे। सुगना ने घुंघट ले लिया पर उसकी चुची अभी भी साफ दिखाई पड़ रही थी। कजरी ने हाथ बढ़ाकर आंचल से सुगना की चूचियां ढक दीं।
कुछ ही देर में सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने सूरज को गाय का दूध पिलाने की बात की पर कजरी ने मना कर दिया।
अगली सुबह सुगना ने अपनी कोठरी का खिड़की खोली सूर्य की किरणें बाहर दालान में पढ़ रही थीं। अचानक उसकी निगाह अपनी गाय पर पड़ी जिसमें अभी दो महीना पहले ही एक बछड़े को जन्म दिया था।
कजरी ने बाल्टी सरयू सिंह ने के हाथ में दी सरयू सिंह गाय का दूध निकालने चल पड़े। उन्होंने अपनी दोनों जांघों के बीच बाल्टी फसाई और गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे। सूर्य की किरणों से उनका बलिष्ठ शरीर चमक रहा था। उनकी मांसल जांघों के बीच बाल्टी फसी हुई थी। उनकी मजबूत हथेलियों के बीच गाय की कोमल चुचियां थी जिसे वह मुठ्ठियाँ भींचकर खींच रहे थे।
सर्र्रर्रर्रर …… सुर्रर्रर…. की आवाज आने लगी. सुगना यह दृश्य देखकर सिहर उठी. वह स्वयं को उस गाय की जगह सोच कर थरथरा उठी. उसकी आंखों में वासना तैरने लगी उसकी चूचियां तन गयीं। उत्तेजना में उसकी खिड़की पर रख दिया गिर पड़ा जिसकी आवाज से सरयू सिंह ने उधर देखा सुगना की निगाह सरयू सिंह से टकरा गई
सुगना शर्म के मारे पानी पानी हो गई सरयू सिंह को सारा माजरा समझते देर न लगी उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया। सुगना बेटी का इस तरह चूँची निचोड़ते हुए देखना सच में उन्हें भी उत्तेजित कर गया था। उन्होंने बाल्टी को हटाया और अपने खड़े हो चुके लंड को ऊपर की तरफ किया और एक बार फिर चुचियों से दूध दुहने लगे।
सुगना से और बर्दाश्त नहीं वह उत्तेजना से कांप रही थी। उसने कोठरी की खिड़की बंद कर दी और चौकी पर बैठकर पास बड़ी कटोरी में अपनी चुचीं से दूध निकालने का प्रयास करने लगी।
उसकी कोमल हथेलियां अपनी ही चूचियों पर जोर लगा कर चार छः चम्मच दूध निकाल पायीं। उसने सूरज को वह दूध पिलाने की कोशिश की सूरज ने गटागट दूध पी लिया।
सुगना की खुशी का ठिकाना न रहा उसने झट से दूसरी चूची निकाली और उसका भी दूध निकालने लगी। तभी सरयू सिंह बाल्टी में दूध लिए कमरे में आ गए। सुगना को इस तरह अपनी ही चूची से दूध निकालते हुए देखकर वह बोले
"सुगना बेटा ल ई गाय के ताजा दूध पिला पिया द"
"बाबूजी इहो ताजा बा उ इहे मन से पियता"
सरयू सिंह मुस्कुराते हुए कमरे से वापस आ गए। उन्होंने मन ही मन सुगना की मदद करने की ठान ली
सुगना ने दूसरी चूची से निकाला दूध भी सूरज को पिला दिया और थपकी देकर उसे सुला दिया वह खुशी से चहकती हुई कजरी के पास आयी। सरयू सिंह अपनी बहू का चहकना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे। उनका लंड अभी भी धोती में तना हुआ था उन्होंने उसे सहला कर शांत कर दिया।
सुगना के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। उसने आज सुबह के दृश्य के लिए नियति और अपने बाबू जी के प्रति कृतज्ञता जाहिर की जिन्होंने सुगना को यह अद्भुत उपाय सुझाया था अब सूरज भी खुश था और वह भी।
दोपहर में कजरी हरिया के यहां सुगना के लिए सोंठ के लड्डू बनाने चली गई। सरयू सिंह बाहर दालान में बैठे थे आंगन में आ रही हैंडपंप की आवाज से उन्होंने अंदाजा लगा लिया सुगना नहा रही थी। जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे की तरफ गई सरयू सिंह पीछे पीछे अंदर आ गए। सुगना अपना शरीर पोछ कर अपना पेटीकोट पहन ही रही थी। तभी सरयू सिंह ने पेटीकोट को जांघो तक पहुचने से पहले ही ही पकड़ लिया।
वह अपने हाथ में कटोरी लेकर आए थे सुगना ने पीछे मुड़कर देखा तो सरयू सिंह ने उसे कटोरी पकड़ा दी और कहा
" चला सूरज बाबू के दूध पिया द"
सुगना ने कटोरी लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसका पेटीकोट वापस जमीन पर आ गया। सुगना पूरी तरह नंगी खड़ी थी। तभी छोटा बालक रोने लगा। सुगना ने झुककर बालक की पीठ थपथपाई इस दौरान उसकी गोरी गांड और चूत सरयू सिंह के निगाहों के ठीक सामने आ गयी।
उनसे अब और बर्दाश्त न हुआ जब तक सुगना बच्चे की पीठ थपथपाती तब तक सरयू सिंह वस्त्र विहीन हो चुके थे। बच्चे की आंख लगते ही उन्होंने सुगना को पीछे से पकड़ लिया। सुगना ने मुस्कुराते हुए वह आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया और खड़ी हो गई। उसकी दोनों कोमल चूचियां सरयू सिंह के हाथों में थीं।
वह कुछ देर तो अपनी सुगना बेटी की चूचियाँ सहलाते रहे फिर अपना दबाव बढ़ाते गए। दूध की धार फूट पड़ी।
सुगना ने उसे कटोरी में रोकने की कोशिश की पर खड़े होने की वजह से यह संभव नहीं हो रहा था। दूध नीचे गिर रहा था।
सुगना स्वयं आगे आकर सुबह अपनी गाय की अवस्था(आज की डॉगी स्टाइल) में आ गई। वह खुद आज उत्तेजना का शिकार थी। आज सुबह जो उसने देखा था वह उसके मन मस्तिष्क पर छा गया था। अब सुगना की दोनों चूचियां नीचे लटक रही थीं। सरयू सिंह ने कटोरी नीचे रख दी और सुगना की दोनों चूचियां सहलाने लगे बीच-बीच में वह अपने एक हाथ सुगना के कोमल नितंबों को तथा उसके बीच की दरार को भी सहला देते। अपनी गांड पर सरयू सिंह की उंगलियों का स्पर्श पाकर उनकी प्यारी सुगना चिहुँक उठती।
सुगना का चेहरा वासना से लाल हो रहा था। उन्होंने अपनी हथेलियों का दबाव जैसे ही बढ़ाया दूध की धार कटोरी में गिरने लगी। वह माहिर खिलाड़ी थे पर आज जिसका दूध वह दूर रहे थे वह उनकी जान थी उनकी अपनी बहू सुगना। दूध निकालने के लिए चुची को दबाना जरूरी था पर इतना नहीं जिससे उनकी सुकुमारी को कष्ट हो।
अपने सधे हाथों से उन्होंने सुगना की आंखों में बिना आंसू लाए आधी कटोरी भर दी। उन्होंने सुगना की आंख के आंसू तो रोक लिए पर चूत पर ख़ुशी के आंशु उभार दिए । अचानक उनके हाथों का दबाव बढ़ गया। सुगना कराह उठी
"बाबूजी तनी धीरे से……. दुखाता"
सुगना की कराह मादक थी उनसे और बर्दाश्त ना हुआ। वह उठ कर सुगना के पीछे आ गए। उन्होंने एक हाथ से अपने शरीर का बैलेंस बनाया और दूसरे हाथ से सुगना की दूसरी चूँची दुहने लगे।
उनका लंड सुगना के नितंबों से लगातार छू रहा था। सुगना भी पूरी तरह उत्तेजित थी। कटोरी के दूध से भरते भरते सुगना की चूत से लार टपकने लगी। वह चुत से चाशनी की भांति लटकी हुई थी और चौकी को छूने की कोशिश कर रही थी। सुगना ने वह देख लिया था।उसने अपने एक हाथ से उसे पोंछने की कोशिश की। वह अपने बाबू जी को अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन नही करना चाहती थी।
सरयू सिंह ने उसकी कोमल कलाइयां बीच में ही रोक ली। वह शर्मा कर वापस उसी अवस्था में आ गई। उसने कटोरी का दूध हटाकर दूर रख दिया। सरयू सिंह उसकी चुचियों को अभी भी सहला रहे थे। शायद जितना कष्ट उन्होंने उसे दिया था उसे सहला कर उसकी भरपाई कर रहे थे।
उधर उनका लंड अपनी सुगना बेटी की चूत के मुंह पर अपना दस्तक दे रहा था। वह सिर्फ उसके मुंह से लार लेता और सुगना के भगनासे पर छोड़ देता।
सुगना अपनी कमर पीछे कर उसे अंदर लेने का प्रयास कर रही थी। पर उसके बाबूजी अपनी कमर पीछे कर लेते।
सुगना के कड़े हो चुके निप्पल पर उंगलियां पहुंचते ही एक बार फिर सरयू सिंह ने उसे दबा दिया। सुगना के मुंह से कराह निकल गई ….
"बाबूजी तनी……….. जब तक वाह अपनी बात कह पाती उसके बाबूजी का मूसल उसकी मखमली और लिसलिसी चूत में घुस कर उसकी नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। सुगना आनंद में डूब चुकी थी। सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाला और फिर एक बार जड़ तक अपनी बहू की कोमल चूत में ठास दिया।
सुगना आगे की तरफ गिरने लगी सरयू सिंह ने उसके कोमल कंधे पकड़ लिए और अपने लंड को तेजी से अंदर बाहर करने लगे। जब लंड सुगना की चुत में अंदर जाता वह गप्पप्प की आवाज होती और जब वह बाहर आता फक्क…..की ध्वनि सुनाई पड़ती।
यह मधुर ध्वनि सुगना और सरयू सिंह दोनों सुन रहे थे पर शायद उन्हें नहीं पता था घर में तीसरा प्राणी भी था जो अब अपनी आंखें खोलें टुकुर-टुकुर यह दृश्य देख रहा था। सरयू सिंह की निगाह बालक पर पढ़ते ही वह घबरा गए कहीं ऐसा ना हो कि बालक रोने लगे। उन्होंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और उनकी प्यारी बहु की चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।
वह किसी भी हाल में स्खलित होना चाहते थे। सुगना आंखे बाद किये बेसुध होकर चुदाई का आंनद ले रही थी। सूरज अभी भी टुकुर-टुकुर देख रहा था। वह रो नहीं रहा था इस अद्भुत चुदाई से सुगना थरथर कांपने लगी उससे अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह पलट कर सीधा होना चाह रही थी उसकी कोमल कोहनियां और घुटने उस खुरदुरी चौकी से लाल हो गये थे।
सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उस खुरदरी चौकी पर अपनी कोमल बहू को पीठ के बललिटा दिया। सुगना की मांसल जांघों को पकड़ कर उन्होंने प्यारी सुगना फिर से चोदना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी सरयू सिंह ने जैसी ही उसकी चुचियों को मीसा एक बार फिर दूध की धार उनके चेहरे पर पड़ गई जिसको उन्होंने अपनी जीभ से चाट लिया। उसका स्वाद उन्हें पसंद ना आया पर था तो वह उनकी प्यारी बहु सुगना का। उन्होंने सुगना की एक सूची को जैसे ही मुंह में लिया सुगना की चूत कांपने लगी।
सरयू सिंह ने भी देर नहीं की और अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे कर अपनी प्यारी सुगना को चोदते रहे। थोड़ी ही देर में जितना दूध उन्होंने सुगना की चूची के पिया था उसे सूद समेत उसकी चुत में भर दिया।
सुगना तृप्त हो चुकी थी। उसने अपने बाबूजी को चुम्मा दिया और कुछ देर के लिए शांत हो गई। सूरज की आंखें थक चुकी थी उसने अपना क्रंदन प्रारंभ कर दिया ।
सुगना उठ कर खड़ी हो गई उसकी चूत से बह रहा वीर्य जांघो का सहारा लेकर नीचे गिर रहा था। सरयू सिंह ने पेटीकोट उठाया और उसे पोंछने लगे। उनकी निगाह नितंबों के बीच सुगना की गदरायी गाड़ कर चली गई। वह कुंवारी गांड उन्हें कई दिनों से आकर्षित कर रही थी।
सुगना ने कटोरी भर दूध देखकर अपने प्यारे बाबू जी का शुक्रिया अदा किया और सूरज को दूध पिलाने बैठ गयी। उसने कपड़े पहनने कि जल्दी बाजी न की। सूरज उसकी चुचियों से खेलते हुए चम्मच से दूध पीने लगा।
थोड़ी ही देर में मां बेटा प्रसन्न हो गए। सरयू सिंह बाहर दालान में खाने का इंतजार कर रहे थे। सुगना तैयार होकर अपने बाबूजी के लिए खाना लेकर आ गई। सरयू सिंह अपनी उंगलियों से रोटियां तोड़ने लगे और सुगना उन मजबूत उंगलियों को देख कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपनी कोमल हथेलियों से अपने बाबूजी के लिए पंखा झल रही थी। बहू का यह प्यार सरयू सिंह को अचानक नहीं मिला था उन्होंने सुगना का मन और तन बड़ी मुश्किल से जीता था।
वह अपनी यादों में खोते चले गए…..
शेष अगले भाग में