14-04-2022, 01:20 PM
(This post was last modified: 18-04-2022, 06:25 PM by Snigdha. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
भाग-3
सरयू सिंह ने दूध का आखरी घूंट एक झटके में पी लिया। नीचे उनका लंड पूरी तरह तन चुका था। दूध का गिलास नीचे रखकर वह उठ खड़े हुए। अचानक उठने से लंड कजरी के मुंह से निकल कर बाहर आ गया और ऊपर नीचे हिलने लगा कजरी इसके लिए तैयार नहीं थी उसका मुंह खुला रह गया मुंह से ढेर सारी लार टपक रही थी जिसमें सरयू सिंह के लंड से रिसा हुआ वीर्य भी शामिल था।
सरयू सिंह ने अपना कुर्ता उतार दिया लंगोट की डोरी खोलते ही वह पूरी तरह नंगे हो गए
समाज में वह जितने सम्मानित थे इस कमरे में उतने ही नंगे दिखाई पड़ रहे थे सुगना और कजरी दोनों सरयू सिंह की नस नस पहचानते थे। उन्होंने कजरी को ऊपर उठा लिया और उसके गालों को चुमते हुए बोले "अब खुश बाड़ू नु दादी बन गईलू"
कजरी ने लंड को अपनी मुट्ठी में दबाया और बोली "ई जादुई मुसल जउन न कराए कम बा"
अपनी तारीफ सुनकर लंड फड़क उठा कजरी उसे अपने हाथों में रख पाने में नाकाम हो रही थी। वह ऊपर नीचे हिल रहा था। उधर कजरी लंड को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही थी इधर सरयू सिंह के हाथ कजरी का वस्त्र हरण कर रहे थे। कजरी भी हिलडुल कर उन्हें हटाने में मदद कर रही थी।
कजरी की चुचियां सुगना की दो गुनी थी। दशहरी और लंगड़ा आम का अंतर सरयू सिंह को पता था। उन्होंने गप्प से बड़ा सा मुंह खोला और कजरी की एक चूची को अपने मुंह में भर लिया। निप्पल जाकर उनके गले से टकराया वह गूँ गूँ करके अपना मुंह थोड़ा पीछे ले आए।
कजरी हंसने लगी और बोली
"कुंवर जी ई सुगना बेटी के चूची ना ह"
सरयू सिंह के हाथ कजरी के पेटीकोट के नाड़े से उलझ गए। चुची मुंह में फंसी होने के कारण वह गांठ को देख नहीं पा रहे थे।
जैसे ही उन्होंने चूची छोड़कर पेटीकोट की गांठ देखने की कोशिश की कजरी ने अपनी छाती घुमाई और दूसरी चूची मुंह में पकड़ा दी।
उनके लंड का तनाव ढीला पड़ रहा था। वह अपने हाथ से उसे सहलाने लगे। दोनों चूचियों को चूसने के बाद। वह नीचे आए तब तक कजरी खुद ही पेटिकोट की गांठ को खोलने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह को देरी बर्दाश्त नहीं थी। उन्होंने पेटीकोट उठाया और अपना सिर कजरी की जांघों के बीच घुसेड़ दिया जब तक कजरी गांठ खोलती खोलकर सरयू सिंह की लंबी जीभ कजरी की बुर से चिपचिपा नारियल पानी पीने लगी। उनके हाथ कजरी के चूतड़ों पर थे वह उसे अपनी तरफ खींचे हुए थे ऊपर का रस खत्म होने के बाद उन्होंने अपनी जीभ को नुकीला कर उस मलमली छेद में घुसेड दिया कजरी बेचैन हो गयी। उसने गांठ पर से ध्यान हटा दिया और सरयू सिंह के सर को अपनी जांघों की तरफ खींचने लगी।
तवा गर्म हो चुका था नारियल पानी पीकर लंड और तन कर खड़ा हो गया सरयू सिंह ने अपना सर बाहर निकाला और एक ही झटके में पेटीकोट को फाड़ डाला उसने उन्हें बहुत तंग किया था।
पेटीकोट के फटने की चरर्रर्रर्रर की आवाज तेज थी जो सुगना के कानों तक पहुंची उसने वहीं से आवाज दी "सासू मां ठीक बानी नु"
"हां, सुगना बेटा "
सुगना की कोमल आवाज से सरयू सिंह और जोश में आ गए उन्होंने कजरी को चारपाई पर लिटाया और अपना फनफनाता हुआ लंड एक ही झटके में अपनी कजरी भाभी की चूत में उतार दिया। उनकी कमर तेजी से हिलने लगी कजरी ने भी अपनी टांगे उठा लीं। जैसे-जैसे रफ्तार बढ़ती गई कमरे में आवाज बढ़ती गई।
तभी सुगना के बच्चे की रोने की आवाज आई
" सुगना बेटी….. दूध पिया दा चुप हो जाई" कजरी ने आवाज दी. सरयू सिंह की चुदाई जारी होने से उसकी आवाज लहरा रही थी.
"ठीक बा" सुगना की कोमल आवाज फिर सरयू सिंह के गानों में पड़ी।
सुगना की दूध भरी फूली हुई चुचियों को याद कर उनकी उत्तेजना आसमान पर पहुंच गई जैसे-जैसे सरयू सिंह अपनी चुदाई की रफ्तार बढ़ाते गए चारपाई की आवाज बढ़ती गई जिसकी आवाज सुगना के कानों तक पहुंच रही थी उसे पूरा अंदाज था की सासू मां अपने हिस्से का आनंद भोग रही थीं।
कुछ ही देर में कजरी के पैर सीधे हो गए सरयू सिंह के अंडकोष में भरा हुआ ज्वालामुखी फूट चुका था उनका गाढ़ा वीर्य कजरी की बुर की गहराई में भर रहा था। लंड के बाहर आते ही कजरी की बुर भूलने पिचकने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे वह लावा को ढकेल कर बाहर फेंक रही वैसे भी अब 45 की उम्र में उस लावा का उसके लिए कोई मतलब नहीं था वह मेनोपाज से गुजर रही थी। उसके पैर भारी होने की कोई संभावना नहीं थी। कुछ ही देर में उसने अपने कपड़े पहने और अपनी बहू के पास आ गई।
सरयू सिंह ने नग्न अवस्था में ही चादर ओढ़ ली और पुरानी यादों में खो गए।
कजरी, सरयू सिंह से उम्र में लगभग 5 वर्ष छोटी थी गवना के बाद जब वह घर आई थी तो वह अपने पति से कम शर्माती सरयू सिंह से ज्यादा। सरयू सिंह का गठीला शरीर मन ही मन कजरी को आकर्षित करता वह उन्हें कुंवर जी कहती।
सरयू सिंह का भाई इस योग्य नहीं था कि वह कजरी की जवानी को संभाल पाता कहावत है "अनाड़ी चुदईयां अउर बुर का सत्यानाश"
उसने कजरी की बूर को सूखा ही चोद दिया। उस रात कजरी दर्द से बिलबिला उठी और तेजी से चीख उठी। उसकी आवाज सुनकर सरयू सिंह और उनकी मां कजरी के कोठरी तक पहुंच गए। बाद में सरयू सिंह की मां दर्द का कारण जानकर सरयू सिंह को लेकर वहां से हट गयीं। चुदाई से जब तक कजरी की चूत पनिया रही थी तब तक उसे चोद रहे लंड ने पानी छोड़ दिया कजरी तड़प कर रह गई।
कजरी का यह अवांछित मिलन कुछ दिनों तक होता रहा उसका महीना बंद हो गया और पेट फूलता गया। 18 वर्ष की कमसिन कली बिना एक भी बार चरम सुख पाए मां बनने वाली थी सरयू सिंह अपने सामने एक मदमस्त कामुक लड़की की जवानी को बर्बाद होते हुए देख रहे थे।
इसी दौरान सरयू सिंह के पिता की मृत्यु हो गई। कजरी का पेट पहले ही फूल चुका था उसने और चुदने से साफ मना कर दिया था। सरयू सिंह का भाई थोड़ा विक्षिप्त पहले से ही था उसका परिवार और कजरी से मोह खत्म हो गया। वह गांव में आए साधुओ की टोली के साथ गायब हो गया। परिवार की सारी जिम्मेदारी सरयू सिंह के कंधों पर आ गयी।
कजरी को अपने पति के जाने का कोई गम नहीं था। उसने कजरी के मन पर पुरुषों की गलत छाप छोड़ी थी। कजरी की कोमल बुर उसके अनाड़ी पन की वजह से बिना आनंद लिए ही गर्भवती हो गई थी।
खैर, जो होना था हो चुका था। परिवार में आए इतने कष्टों में एक खुशी की बात भी थी। सरयू सिंह पटवारी पद पर सेलेक्ट हो गए थे।
सरयू सिंह ने परिवार के मुखिया का कार्यभार बखूबी संभाल लिया। कजरी और सरयू सिंह दोनों करीब आ रहे थे कजरी का शारीरिक आकर्षण लगभग खत्म हो चुका था। फूला हुआ पेट चुचियों की खूबसूरती को ढक ले रहा था। चेहरा भी बदरंग हो गया था। वह बड़ी मुश्किल से चल पाती पर सरयू सिंह ने कजरी से मेल मुलाकात जारी रखी। वह दोनों घंटो बातें करते और एक दूसरे को हंसाते रहते। सरयू सिंह माहिर खिलाड़ी थे। उन्हें पता था यदि उन्होंने कजरी को हंसाते हंसाते उसके ऊपर के होंठ खोल दिए तो नीचे चूत की फांकें खोलना भी आसान होगा। देवर भाभी दोस्त बन चुके थे।
कुछ ही दिनों में रजनी ने रतन को जन्म दिया। उस दिन भी कुछ ऐसा ही दृश्य था जैसा कल सुगना के साथ था। सरयू सिंह होठों पर मोहक मुस्कान लिए सो गए।
"ए सरयू भैया कब ले सुतल रहब.. उठा देखा के आईल बा" हरिया की बुलंद आवाज सुनकर सरयू सिंह की नींद खुल गई। उन्होंने अपनी लंगोट बांधी और धोती कुर्ता पहन कर बाहर आ गए।
सुबह-सुबह रतन घर पर आ गया था। रतन मुंबई में कोई नौकरी करता था वहां उसमें किसी महाराष्ट्रीयन लड़की से विवाह कर लिया था। सुगना उसकी पत्नी अवश्य थी पर आज तक सुगना और रतन ने एक दूसरे को छुआ भी नहीं था। हां, वह दोनों बातें जरूर करते थे। सुगना को रतन के दूसरे विवाह के बारे में पूरी जानकारी थी और उसने उसे उसने स्वीकार कर लिया था।
सरयू सिंह और रतन ने आपस में यह सहमति बना ली थी की रतन साल में दो बार गांव अवश्य आएगा ताकि गांव वालों की नजर में सुगना और उसका विवाह जारी रह सके। सरयू सिंह यह कभी नहीं चाहते थे की उन पर यह आरोप लगे कि उनके भतीजे रतन ने सुगना को छोड़ दिया है। वह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे अपने ही घर में हो रहे इस अन्याय को वह सहन नहीं कर पाते। रतन ने उनकी बात मान ली थी उसके एवज में उसे सरयू सिंह से उसे अनाज और पैसों की मदद मिलती।
जिस समय यह समझौता हुआ था सुगना छोटी थी। उसका विवाह तो हो गया था पर गवना होना बाकी था। नियति ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था। गवना के बाद सुगना घर में बहू बनकर आई पर रतन और उसके बीच कभी नजदीकियां नहीं बनी। अपितु तीसरे दिन ही रतन वापस मुंबई चला गया।
रतन अपनी महाराष्ट्रीयन पत्नी के प्रति वफादार था वह सुगना के करीब आकर खुद को व्यभिचारी की श्रेणी में नहीं लाना चाहता था।
आज सभी लोग रतन को बधाइयां दे रहे थे वह बधाइयां स्वीकार भी कर रहा था। उसके मन में बार-बार यह प्रश्न आ रहा था की सुगना की मांग पर सिंदूर तो उसके नाम का था पर उसकी क्यारी किसने जोती थी जिसकी सुंदर फसल सुगना की गोद में थी। इस प्रश्न का उत्तर वह सरयू सिंह और अपनी मां से नहीं पूछ सकता था एक दिन बातों ही बातों में उसने सुगना से ही पूछ लिया।
सुगना ने हंसकर कहा
" अरे, ई आपि के बेटा ह, लीं खेलायीं" और अपने पुत्र को रतन को पकड़ा कर काम करने चली गई। रतन बच्चे को गोद में लिए हुए सुगना का मुंह ताकता रह गया। सरयू सिंह के करीब आकर सुगना हाजिर जवाब और समझदार हो गई थी।
रतन घर पर एक हफ्ते तक रहा इस दौरान सुगना भी धीरे-धीरे सामान्य हो गई। तथा घर के कामकाज मैं हाथ बटाने लगी। सुगना को घर के आंगन में इधर उधर घूमते देख सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई।
शेष अगले भाग में।
सरयू सिंह ने दूध का आखरी घूंट एक झटके में पी लिया। नीचे उनका लंड पूरी तरह तन चुका था। दूध का गिलास नीचे रखकर वह उठ खड़े हुए। अचानक उठने से लंड कजरी के मुंह से निकल कर बाहर आ गया और ऊपर नीचे हिलने लगा कजरी इसके लिए तैयार नहीं थी उसका मुंह खुला रह गया मुंह से ढेर सारी लार टपक रही थी जिसमें सरयू सिंह के लंड से रिसा हुआ वीर्य भी शामिल था।
सरयू सिंह ने अपना कुर्ता उतार दिया लंगोट की डोरी खोलते ही वह पूरी तरह नंगे हो गए
समाज में वह जितने सम्मानित थे इस कमरे में उतने ही नंगे दिखाई पड़ रहे थे सुगना और कजरी दोनों सरयू सिंह की नस नस पहचानते थे। उन्होंने कजरी को ऊपर उठा लिया और उसके गालों को चुमते हुए बोले "अब खुश बाड़ू नु दादी बन गईलू"
कजरी ने लंड को अपनी मुट्ठी में दबाया और बोली "ई जादुई मुसल जउन न कराए कम बा"
अपनी तारीफ सुनकर लंड फड़क उठा कजरी उसे अपने हाथों में रख पाने में नाकाम हो रही थी। वह ऊपर नीचे हिल रहा था। उधर कजरी लंड को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही थी इधर सरयू सिंह के हाथ कजरी का वस्त्र हरण कर रहे थे। कजरी भी हिलडुल कर उन्हें हटाने में मदद कर रही थी।
कजरी की चुचियां सुगना की दो गुनी थी। दशहरी और लंगड़ा आम का अंतर सरयू सिंह को पता था। उन्होंने गप्प से बड़ा सा मुंह खोला और कजरी की एक चूची को अपने मुंह में भर लिया। निप्पल जाकर उनके गले से टकराया वह गूँ गूँ करके अपना मुंह थोड़ा पीछे ले आए।
कजरी हंसने लगी और बोली
"कुंवर जी ई सुगना बेटी के चूची ना ह"
सरयू सिंह के हाथ कजरी के पेटीकोट के नाड़े से उलझ गए। चुची मुंह में फंसी होने के कारण वह गांठ को देख नहीं पा रहे थे।
जैसे ही उन्होंने चूची छोड़कर पेटीकोट की गांठ देखने की कोशिश की कजरी ने अपनी छाती घुमाई और दूसरी चूची मुंह में पकड़ा दी।
उनके लंड का तनाव ढीला पड़ रहा था। वह अपने हाथ से उसे सहलाने लगे। दोनों चूचियों को चूसने के बाद। वह नीचे आए तब तक कजरी खुद ही पेटिकोट की गांठ को खोलने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह को देरी बर्दाश्त नहीं थी। उन्होंने पेटीकोट उठाया और अपना सिर कजरी की जांघों के बीच घुसेड़ दिया जब तक कजरी गांठ खोलती खोलकर सरयू सिंह की लंबी जीभ कजरी की बुर से चिपचिपा नारियल पानी पीने लगी। उनके हाथ कजरी के चूतड़ों पर थे वह उसे अपनी तरफ खींचे हुए थे ऊपर का रस खत्म होने के बाद उन्होंने अपनी जीभ को नुकीला कर उस मलमली छेद में घुसेड दिया कजरी बेचैन हो गयी। उसने गांठ पर से ध्यान हटा दिया और सरयू सिंह के सर को अपनी जांघों की तरफ खींचने लगी।
तवा गर्म हो चुका था नारियल पानी पीकर लंड और तन कर खड़ा हो गया सरयू सिंह ने अपना सर बाहर निकाला और एक ही झटके में पेटीकोट को फाड़ डाला उसने उन्हें बहुत तंग किया था।
पेटीकोट के फटने की चरर्रर्रर्रर की आवाज तेज थी जो सुगना के कानों तक पहुंची उसने वहीं से आवाज दी "सासू मां ठीक बानी नु"
"हां, सुगना बेटा "
सुगना की कोमल आवाज से सरयू सिंह और जोश में आ गए उन्होंने कजरी को चारपाई पर लिटाया और अपना फनफनाता हुआ लंड एक ही झटके में अपनी कजरी भाभी की चूत में उतार दिया। उनकी कमर तेजी से हिलने लगी कजरी ने भी अपनी टांगे उठा लीं। जैसे-जैसे रफ्तार बढ़ती गई कमरे में आवाज बढ़ती गई।
तभी सुगना के बच्चे की रोने की आवाज आई
" सुगना बेटी….. दूध पिया दा चुप हो जाई" कजरी ने आवाज दी. सरयू सिंह की चुदाई जारी होने से उसकी आवाज लहरा रही थी.
"ठीक बा" सुगना की कोमल आवाज फिर सरयू सिंह के गानों में पड़ी।
सुगना की दूध भरी फूली हुई चुचियों को याद कर उनकी उत्तेजना आसमान पर पहुंच गई जैसे-जैसे सरयू सिंह अपनी चुदाई की रफ्तार बढ़ाते गए चारपाई की आवाज बढ़ती गई जिसकी आवाज सुगना के कानों तक पहुंच रही थी उसे पूरा अंदाज था की सासू मां अपने हिस्से का आनंद भोग रही थीं।
कुछ ही देर में कजरी के पैर सीधे हो गए सरयू सिंह के अंडकोष में भरा हुआ ज्वालामुखी फूट चुका था उनका गाढ़ा वीर्य कजरी की बुर की गहराई में भर रहा था। लंड के बाहर आते ही कजरी की बुर भूलने पिचकने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे वह लावा को ढकेल कर बाहर फेंक रही वैसे भी अब 45 की उम्र में उस लावा का उसके लिए कोई मतलब नहीं था वह मेनोपाज से गुजर रही थी। उसके पैर भारी होने की कोई संभावना नहीं थी। कुछ ही देर में उसने अपने कपड़े पहने और अपनी बहू के पास आ गई।
सरयू सिंह ने नग्न अवस्था में ही चादर ओढ़ ली और पुरानी यादों में खो गए।
कजरी, सरयू सिंह से उम्र में लगभग 5 वर्ष छोटी थी गवना के बाद जब वह घर आई थी तो वह अपने पति से कम शर्माती सरयू सिंह से ज्यादा। सरयू सिंह का गठीला शरीर मन ही मन कजरी को आकर्षित करता वह उन्हें कुंवर जी कहती।
सरयू सिंह का भाई इस योग्य नहीं था कि वह कजरी की जवानी को संभाल पाता कहावत है "अनाड़ी चुदईयां अउर बुर का सत्यानाश"
उसने कजरी की बूर को सूखा ही चोद दिया। उस रात कजरी दर्द से बिलबिला उठी और तेजी से चीख उठी। उसकी आवाज सुनकर सरयू सिंह और उनकी मां कजरी के कोठरी तक पहुंच गए। बाद में सरयू सिंह की मां दर्द का कारण जानकर सरयू सिंह को लेकर वहां से हट गयीं। चुदाई से जब तक कजरी की चूत पनिया रही थी तब तक उसे चोद रहे लंड ने पानी छोड़ दिया कजरी तड़प कर रह गई।
कजरी का यह अवांछित मिलन कुछ दिनों तक होता रहा उसका महीना बंद हो गया और पेट फूलता गया। 18 वर्ष की कमसिन कली बिना एक भी बार चरम सुख पाए मां बनने वाली थी सरयू सिंह अपने सामने एक मदमस्त कामुक लड़की की जवानी को बर्बाद होते हुए देख रहे थे।
इसी दौरान सरयू सिंह के पिता की मृत्यु हो गई। कजरी का पेट पहले ही फूल चुका था उसने और चुदने से साफ मना कर दिया था। सरयू सिंह का भाई थोड़ा विक्षिप्त पहले से ही था उसका परिवार और कजरी से मोह खत्म हो गया। वह गांव में आए साधुओ की टोली के साथ गायब हो गया। परिवार की सारी जिम्मेदारी सरयू सिंह के कंधों पर आ गयी।
कजरी को अपने पति के जाने का कोई गम नहीं था। उसने कजरी के मन पर पुरुषों की गलत छाप छोड़ी थी। कजरी की कोमल बुर उसके अनाड़ी पन की वजह से बिना आनंद लिए ही गर्भवती हो गई थी।
खैर, जो होना था हो चुका था। परिवार में आए इतने कष्टों में एक खुशी की बात भी थी। सरयू सिंह पटवारी पद पर सेलेक्ट हो गए थे।
सरयू सिंह ने परिवार के मुखिया का कार्यभार बखूबी संभाल लिया। कजरी और सरयू सिंह दोनों करीब आ रहे थे कजरी का शारीरिक आकर्षण लगभग खत्म हो चुका था। फूला हुआ पेट चुचियों की खूबसूरती को ढक ले रहा था। चेहरा भी बदरंग हो गया था। वह बड़ी मुश्किल से चल पाती पर सरयू सिंह ने कजरी से मेल मुलाकात जारी रखी। वह दोनों घंटो बातें करते और एक दूसरे को हंसाते रहते। सरयू सिंह माहिर खिलाड़ी थे। उन्हें पता था यदि उन्होंने कजरी को हंसाते हंसाते उसके ऊपर के होंठ खोल दिए तो नीचे चूत की फांकें खोलना भी आसान होगा। देवर भाभी दोस्त बन चुके थे।
कुछ ही दिनों में रजनी ने रतन को जन्म दिया। उस दिन भी कुछ ऐसा ही दृश्य था जैसा कल सुगना के साथ था। सरयू सिंह होठों पर मोहक मुस्कान लिए सो गए।
"ए सरयू भैया कब ले सुतल रहब.. उठा देखा के आईल बा" हरिया की बुलंद आवाज सुनकर सरयू सिंह की नींद खुल गई। उन्होंने अपनी लंगोट बांधी और धोती कुर्ता पहन कर बाहर आ गए।
सुबह-सुबह रतन घर पर आ गया था। रतन मुंबई में कोई नौकरी करता था वहां उसमें किसी महाराष्ट्रीयन लड़की से विवाह कर लिया था। सुगना उसकी पत्नी अवश्य थी पर आज तक सुगना और रतन ने एक दूसरे को छुआ भी नहीं था। हां, वह दोनों बातें जरूर करते थे। सुगना को रतन के दूसरे विवाह के बारे में पूरी जानकारी थी और उसने उसे उसने स्वीकार कर लिया था।
सरयू सिंह और रतन ने आपस में यह सहमति बना ली थी की रतन साल में दो बार गांव अवश्य आएगा ताकि गांव वालों की नजर में सुगना और उसका विवाह जारी रह सके। सरयू सिंह यह कभी नहीं चाहते थे की उन पर यह आरोप लगे कि उनके भतीजे रतन ने सुगना को छोड़ दिया है। वह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे अपने ही घर में हो रहे इस अन्याय को वह सहन नहीं कर पाते। रतन ने उनकी बात मान ली थी उसके एवज में उसे सरयू सिंह से उसे अनाज और पैसों की मदद मिलती।
जिस समय यह समझौता हुआ था सुगना छोटी थी। उसका विवाह तो हो गया था पर गवना होना बाकी था। नियति ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था। गवना के बाद सुगना घर में बहू बनकर आई पर रतन और उसके बीच कभी नजदीकियां नहीं बनी। अपितु तीसरे दिन ही रतन वापस मुंबई चला गया।
रतन अपनी महाराष्ट्रीयन पत्नी के प्रति वफादार था वह सुगना के करीब आकर खुद को व्यभिचारी की श्रेणी में नहीं लाना चाहता था।
आज सभी लोग रतन को बधाइयां दे रहे थे वह बधाइयां स्वीकार भी कर रहा था। उसके मन में बार-बार यह प्रश्न आ रहा था की सुगना की मांग पर सिंदूर तो उसके नाम का था पर उसकी क्यारी किसने जोती थी जिसकी सुंदर फसल सुगना की गोद में थी। इस प्रश्न का उत्तर वह सरयू सिंह और अपनी मां से नहीं पूछ सकता था एक दिन बातों ही बातों में उसने सुगना से ही पूछ लिया।
सुगना ने हंसकर कहा
" अरे, ई आपि के बेटा ह, लीं खेलायीं" और अपने पुत्र को रतन को पकड़ा कर काम करने चली गई। रतन बच्चे को गोद में लिए हुए सुगना का मुंह ताकता रह गया। सरयू सिंह के करीब आकर सुगना हाजिर जवाब और समझदार हो गई थी।
रतन घर पर एक हफ्ते तक रहा इस दौरान सुगना भी धीरे-धीरे सामान्य हो गई। तथा घर के कामकाज मैं हाथ बटाने लगी। सुगना को घर के आंगन में इधर उधर घूमते देख सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई।
शेष अगले भाग में।