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Adultery व्हाट्सएप
#4
खुले आसमान में उड़ने की ख़्वाहिशों को दफ़न कर वो जमीं पर चलने में ही संतोष किये हुए थी.
मैंने उसे कई बार वासना के सागर में उतारने की कोशिश की मगर उसकी तैरने की क्षमता पर संदेह था मुझे.
पुरुष शुरू से ही काम-वासना से पीड़ित रहा है, ना जाने कितने रजवाड़े इस वासना की आग में जल गए। स्त्री अगर रतिरूप है तो वो ज्ञानपुंज भी है।
स्त्रियों ने सदैव पुरुषों को मार्गदर्शित किया है. पुरूष की काम वासना का अंत ही स्त्री है. चाहे वो किसी रूप में करे, गुरु बनकर या रति के रूप में। मेरे लिये वो एक मार्गदर्शक बन गयी।
मगर इतने वर्षों के बाद आज भी हम दोनों आपस में बेहद खुले हुए बहुत अच्छे मित्र थे किंतु फिर भी बात नहीं कर पाते थे।
यही सोचता रहा कि मित्रता पर वासना का बोझ पड़ गया तो वो संबंध कहीं टूट न जाये.
कुछ वक्त और बीत जाने के बाद आखिरकार रेनू ने मुझे मिलने की स्वीकृति दे दी. उस वक्त मेरे मन उपवन में हर्ष के हजारों फूल खिल उठे थे. मेरे घर से उसके घर की दूरी मात्र 20 मिनट की ही थी.
मैंने शाम का खाना हल्का ही खाया ताकि स्वास्थ्य खराब ना हो। रात में सही से नींद नहीं आ रही थी. 8-9 साल पहले मिली उस नवयौवना का यौवन बार-बार नेत्रों के सामने आ रहा था।
उसके उन माँसल नितंबों को न जाने मैंने कितनी बार कामुक कल्पनाओं में दुलारा था। उसने वैभव के दफ्तर जाने के बाद सुबह 9 बजे बुलाया था।
उस सुबह का समय पहाड़ जैसा प्रतीत हो रहा था। 8.45 बजे उसकी कॉल आयी और मैं उस रास्ते पर निकल पड़ा जिस पर पर मैंने कई बार कल्पनाओं का सफर किया था।
दरवाजे पर पहुंचकर कांपते हाथों से डोरबेल बजाई.
जैसे ही दरवाजा खुला और सामने साक्षात रतिरूपी उस अप्सरा को साड़ी में देखा तो जैसे कामदेव ने बाणों की बरसात कर दी।
“दरवाजे से ही देख कर जाना है क्या?” उसने हँसते हुए कहा और धीरे से हाथ पकड़ कर मुझे अन्दर बुला लिया।
उस दिन पहली बार उसने मेरे शरीर को छुआ था.
मानो जिस्म में करंट सा दौड़ गया हो. अंदर आकर मैंने उसके चेहरे को देखा जिस पर एक मादक मुस्कान थी।
वो पहले से और ज्यादा सम्मोहक हो गयी थी. उसका हर अंग पहले से ज्यादा मादक और मांसल हो गया था।
समय ने उसके जिस्म में और भी अधिक सौंदर्य भर दिया था। उसने अपनी 3 साल की बेटी को दूसरे कमरे में टी.वी. चलाकर बाहर से बन्द कर दिया।
“चाय लोगे या ठंडा?” उसने तंद्रा भंग करते हुए कहा.
मैंने मुस्कराकर कर उसके होंठों की तरफ इशारा किया और वो किचन की ओर चल दी. आज भी वो माँसल नितंबों का घर्षण वैसा ही था जो किसी भी पुरूष का पुरूषत्व हिला दे।
वो इठलाती हुई रसोई में चली गई. उसको भी अपनी कमनीय काया का ज्ञान था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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व्हाट्सएप - by neerathemall - 28-03-2022, 05:20 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 28-03-2022, 05:23 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 28-03-2022, 05:25 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 28-03-2022, 05:26 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 28-03-2022, 05:27 PM
RE: व्हाट्सएप - by Hot_Guy - 28-03-2022, 08:18 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 29-03-2022, 09:51 PM
RE: व्हाट्सएप - by ghost19 - 07-04-2022, 09:48 AM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 25-04-2022, 07:02 PM
RE: व्हाट्सएप - by bhavna - 26-04-2022, 01:19 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 28-04-2022, 07:00 PM
RE: व्हाट्सएप - by bhavna - 29-04-2022, 07:51 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 03-05-2022, 09:26 PM
RE: व्हाट्सएप - by neerathemall - 10-05-2022, 10:01 PM



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