28-03-2022, 05:23 PM
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नमस्ते भईया!’
एक दिन एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. अचानक से इस शब्द ने मेरी तंद्रा भंग कर दी.
वो आवाज ऐसी मीठी लगी कि उसके बाद मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म हो गया.
सामने एक सम्पूर्ण नारी को देखकर हृदय के किसी कोने से आकर्षित होने वाली भावनाओं की अनुभूति सी हुई।
सिर से पैर तक रतिरूपी नारी को इतने पास से देखकर कामदेव ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
यह थी रेनू … मेरे दूर के चाचा के बेटे वैभव की पत्नी.
वो दोनों नवविवाहित थे और मेरे फ्लिअत के साथ लगते एक डबल बेडरूम फ्लैट में रहने आये थे।
24 वर्षीय वैभव और मैं वैसे तो हमउम्र थे मगर उसकी शादी मुझसे पहले हो गयी थी.
इससे पहले वैभव और रेनू अपने पारीवारिक घर में रहते थे. संयोगवश उसकी नौकरी मेरे शहर में लग गयी.
मैं यहां पर पहले से ही अकेला रह रहा था तो इसी बिल्डिंग में मैंने उनको ये फ्लैट वाजिब किराये में दिलवा दिया था जो मेरे फ्लैट के एकदम साथ ही था.
पहले वैभव और मैं ज्यादा नहीं मिलते थे क्योंकि उसके पापा मेरे सगे चाचा नहीं थे.
पर अब उसकी रेनू को देखने के बाद तो वैभव मुझे अपने सगे से भी अधिक प्रिय हो गया. उसकी 21 वर्षीय पत्नी का यौवन देखकर मेरे नीरस जीवन में जैसे बहार आ गयी थी.
अभी तक मैं अपने लिंग को अश्लील फिल्मों और कहानियों के माध्यम से ही बहलाता आ रहा था.
रेनू को देखने के बाद जैसे मेरे लिंग को एक मंजिल मिल गयी.
वो मंजिल थी रेनू की नयी नवेली योनि जिसके ख्वाब मेरे लिंग ने पहले दिने से ही देखने शुरू कर दिये.
फिर बस जितनी बार मौका मिला मैंने उस सुंदरी के यौवन का मूक रसास्वादन किया।
उसका सौंदर्य किसी पर्वतीय स्थल जैसा था. ना जाने क्यों नेत्र बार-बार उस सौंदर्य के उतार-चढ़ाव में भटक से रहे थे।
मैंने बहुत बारीकी से उस यौवना के यौवन का निरीक्षण किया। उसका हर अंग मादक और सम्पूर्ण था। जब वो चलती थी तो लगता था कि किसी झरने से पानी गिर रहा हो।
उसके नितंब इतने माँसल थे कि मानो वस्त्रों से बाहर निकल आएंगे. दोनों नितंबों के बीच का घर्षण किसी भी नर को कामरस में सराबोर कर सकता था। न चाहते हुए भी मैं उस यौवना के सौंदर्य का उपासक सा हो गया।
नमस्ते भईया!’
एक दिन एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. अचानक से इस शब्द ने मेरी तंद्रा भंग कर दी.
वो आवाज ऐसी मीठी लगी कि उसके बाद मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म हो गया.
सामने एक सम्पूर्ण नारी को देखकर हृदय के किसी कोने से आकर्षित होने वाली भावनाओं की अनुभूति सी हुई।
सिर से पैर तक रतिरूपी नारी को इतने पास से देखकर कामदेव ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
यह थी रेनू … मेरे दूर के चाचा के बेटे वैभव की पत्नी.
वो दोनों नवविवाहित थे और मेरे फ्लिअत के साथ लगते एक डबल बेडरूम फ्लैट में रहने आये थे।
24 वर्षीय वैभव और मैं वैसे तो हमउम्र थे मगर उसकी शादी मुझसे पहले हो गयी थी.
इससे पहले वैभव और रेनू अपने पारीवारिक घर में रहते थे. संयोगवश उसकी नौकरी मेरे शहर में लग गयी.
मैं यहां पर पहले से ही अकेला रह रहा था तो इसी बिल्डिंग में मैंने उनको ये फ्लैट वाजिब किराये में दिलवा दिया था जो मेरे फ्लैट के एकदम साथ ही था.
पहले वैभव और मैं ज्यादा नहीं मिलते थे क्योंकि उसके पापा मेरे सगे चाचा नहीं थे.
पर अब उसकी रेनू को देखने के बाद तो वैभव मुझे अपने सगे से भी अधिक प्रिय हो गया. उसकी 21 वर्षीय पत्नी का यौवन देखकर मेरे नीरस जीवन में जैसे बहार आ गयी थी.
अभी तक मैं अपने लिंग को अश्लील फिल्मों और कहानियों के माध्यम से ही बहलाता आ रहा था.
रेनू को देखने के बाद जैसे मेरे लिंग को एक मंजिल मिल गयी.
वो मंजिल थी रेनू की नयी नवेली योनि जिसके ख्वाब मेरे लिंग ने पहले दिने से ही देखने शुरू कर दिये.
फिर बस जितनी बार मौका मिला मैंने उस सुंदरी के यौवन का मूक रसास्वादन किया।
उसका सौंदर्य किसी पर्वतीय स्थल जैसा था. ना जाने क्यों नेत्र बार-बार उस सौंदर्य के उतार-चढ़ाव में भटक से रहे थे।
मैंने बहुत बारीकी से उस यौवना के यौवन का निरीक्षण किया। उसका हर अंग मादक और सम्पूर्ण था। जब वो चलती थी तो लगता था कि किसी झरने से पानी गिर रहा हो।
उसके नितंब इतने माँसल थे कि मानो वस्त्रों से बाहर निकल आएंगे. दोनों नितंबों के बीच का घर्षण किसी भी नर को कामरस में सराबोर कर सकता था। न चाहते हुए भी मैं उस यौवना के सौंदर्य का उपासक सा हो गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.