21-03-2022, 05:51 PM
म जाकर दूसरी बोगी में अपने कन्फर्म टिकट पर बैठने लगे. ऊपर चढ़ाते समय मैंने शलाका के चूतड़ों को अपने हाथों से कस कर भींच दिया था.
शलाका मुस्कुराती हुई ऊपर चढ़ गई. उसके बाद मैं भी ऊपर चढ़ गया.
सारी सीट स्लीपर क्लास (शयन श्रेणी) वाली थी. सब लोग सो रहे थे. हमारे सामने वाली बर्थ पर एक छोटी लड़की सो रही थी. उसी साइड में बीच वाली बर्थ पर उसकी माँ और नीचे वाली बर्थ पर उसकी दादी सो रही थी शायद.
सारी लाइटें और पंखे बंद थे. बस एक नाइट बल्ब जल रहा था.
शलाका हमारी सीट पर जाकर लेट गई.
मैं बैठा हुआ था.
वो बोली- लेटोगे नहीं?
मैंने कहा- कहां लेटूँ? जगह तो है ही नहीं.
ऐसा कहने पर उसने करवट ले ली और मुझे फिर उसकी बगल में लेटने के लिए कहा.
मैं भी शलाका की बगल में लेट गया.
हम दोनों ने शॉल ओढ़ लिया.
शलाका का मुंह मेरी तरफ था और उसकी चूचियां मेरी छाती पर आकर दब गई थीं. शलाका की चूत तो मेरे दिमाग में पहले से ही घूम रही थी. मैंने खुद को शलाका के बदन से और करीब होकर चिपका लिया.
शलाका मुस्कुराती हुई ऊपर चढ़ गई. उसके बाद मैं भी ऊपर चढ़ गया.
सारी सीट स्लीपर क्लास (शयन श्रेणी) वाली थी. सब लोग सो रहे थे. हमारे सामने वाली बर्थ पर एक छोटी लड़की सो रही थी. उसी साइड में बीच वाली बर्थ पर उसकी माँ और नीचे वाली बर्थ पर उसकी दादी सो रही थी शायद.
सारी लाइटें और पंखे बंद थे. बस एक नाइट बल्ब जल रहा था.
शलाका हमारी सीट पर जाकर लेट गई.
मैं बैठा हुआ था.
वो बोली- लेटोगे नहीं?
मैंने कहा- कहां लेटूँ? जगह तो है ही नहीं.
ऐसा कहने पर उसने करवट ले ली और मुझे फिर उसकी बगल में लेटने के लिए कहा.
मैं भी शलाका की बगल में लेट गया.
हम दोनों ने शॉल ओढ़ लिया.
शलाका का मुंह मेरी तरफ था और उसकी चूचियां मेरी छाती पर आकर दब गई थीं. शलाका की चूत तो मेरे दिमाग में पहले से ही घूम रही थी. मैंने खुद को शलाका के बदन से और करीब होकर चिपका लिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.