21-03-2022, 05:38 PM
मैं उसे शाम को मेले में ले गया.
वहां पर हम लोग अभी घूम ही रहे थे कि तभी वहां अनुराधा दिख गयी. वो भी अपने छोटे भाई के साथ मेले में आयी थी.
उसे देखते ही मेरे बदन में सिहरन सी उठने लगी और मेरे मन में कामवासना की आग धीरे धीरे भड़कने लगी क्योंकि वो उस दिन इतना सज-धज कर आयी थी जैसे वो मुझसे कह रही हो कि अब मैं उसके बदन की प्यास बुझा ही दूं.
उसकी चंचल निगाहें मुझे समझ आ रही थीं कि लौंडिया चुदने को मचल रही है.
उस दिन उसने सफ़ेद रंग की कसी हुई कुर्ती पहनी थी. उसका गला आगे पीछे दोनों तरफ से गहरा होने के कारण उसकी गोरी पीठ लगभग दिख रही थी और आगे उसकी कसी हुई चूचियों के उभार साफ़ दिख रहे थे. जिससे वो और भी कामुक दिख रही थी.
उसने नीचे लाल रंग की कसी हुई लैगी पहनी थी जो बहुत ही चुस्त थी.
अपने होंठों पर उसने लाल लिपस्टिक लगायी थी जो कि मेरे औज़ार को बाहर आने पर मजबूर कर रही थी. उसकी गोरी उंगलियों के नाखूनों पर लाल रंग की नेलपॉलिश लगी थी.
उसने मेरे करीब आते हुए मुझसे इठला कर कहा- चलिए न जीजा जी, मौत का कुआं देखते हैं. मैंने कहा- हां चलो.
मेरी बीवी का भी मौत के कुंए की कलाबाजी देखने का मन था. हम सब मौत के कुएं की तरफ़ चल दिए.
वहां पर पहले से ही काफी भीड़ थी. मैंने भीड़ देख कर कहा- रुको, मैं टिकट लेकर आता हूँ.
वो सब वहीं रुक गए और मैं टिकट खिड़की से टिकट लेने लगा.
किसी तरह से टिकट लेने के बाद मैंने कहा- अब चलो चलते हैं.
मौत के कुएं में ऊपर जाने के लिए सीढ़ी बनी थी. मेरे आगे आगे अनुराधा और उसके भाई सीढ़ी चढ़ने लगे. मैं और मेरी बीवी उनके पीछे चलने लगे.
थोड़ा चढ़ने पर ही हवा से उसकी कुर्ती उड़ने लगी और मेरी नजर उसके हिलते हुए चूतड़ों पर टिक गयी. सच में क्या कामुक नजारा था.
अनुराधा की मटकती गांड किसी भी मर्द को वासना से पागल कर देने के लिए काफी थी.
यदि अनुराधा इस समय सन्नाटे में होती, तो शायद मैं उसे उधर ही पटक कर चोद देता!
उसके हिलते चूतड़ों पर चिपकी हुई कसी लैगी में से उसकी पैंटी की लकीरें साफ़ दिख रही थीं. मुझे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी पैंटी अभी फट कर बाहर आ जाएगी.
मैं किसी तरह से अपना लंड दबाए ऊपर पहुंच गया. हम सभी के ऊपर आते ही शो शुरू हो गया.
सभी लोग शो का मज़ा ले रहे थे लेकिन मैं अपनी सुधबुध खो चुका था; मेरे दिमाग़ में बस उसके कसे हुए चूतड़ ही घूम रहे थे.
बीस मिनट बाद शो खत्म हुआ, लेकिन मेरे कामुक मन की कामुकता शांत नहीं हो रही थी.
अब लोगों की भीड़ नीचे उतर रही थी. आगे अनुराधा थी, मैं उसके ठीक पीछे था. मैंने ठान लिया था कि आज इसके चूतड़ों को छूना ही है.
वो एक जीने पर खड़ी हो गयी क्योंकि आगे बहुत भीड़ थी. लोग धीरे धीरे नीचे उतर रहे थे.
वहां पर हम लोग अभी घूम ही रहे थे कि तभी वहां अनुराधा दिख गयी. वो भी अपने छोटे भाई के साथ मेले में आयी थी.
उसे देखते ही मेरे बदन में सिहरन सी उठने लगी और मेरे मन में कामवासना की आग धीरे धीरे भड़कने लगी क्योंकि वो उस दिन इतना सज-धज कर आयी थी जैसे वो मुझसे कह रही हो कि अब मैं उसके बदन की प्यास बुझा ही दूं.
उसकी चंचल निगाहें मुझे समझ आ रही थीं कि लौंडिया चुदने को मचल रही है.
उस दिन उसने सफ़ेद रंग की कसी हुई कुर्ती पहनी थी. उसका गला आगे पीछे दोनों तरफ से गहरा होने के कारण उसकी गोरी पीठ लगभग दिख रही थी और आगे उसकी कसी हुई चूचियों के उभार साफ़ दिख रहे थे. जिससे वो और भी कामुक दिख रही थी.
उसने नीचे लाल रंग की कसी हुई लैगी पहनी थी जो बहुत ही चुस्त थी.
अपने होंठों पर उसने लाल लिपस्टिक लगायी थी जो कि मेरे औज़ार को बाहर आने पर मजबूर कर रही थी. उसकी गोरी उंगलियों के नाखूनों पर लाल रंग की नेलपॉलिश लगी थी.
उसने मेरे करीब आते हुए मुझसे इठला कर कहा- चलिए न जीजा जी, मौत का कुआं देखते हैं. मैंने कहा- हां चलो.
मेरी बीवी का भी मौत के कुंए की कलाबाजी देखने का मन था. हम सब मौत के कुएं की तरफ़ चल दिए.
वहां पर पहले से ही काफी भीड़ थी. मैंने भीड़ देख कर कहा- रुको, मैं टिकट लेकर आता हूँ.
वो सब वहीं रुक गए और मैं टिकट खिड़की से टिकट लेने लगा.
किसी तरह से टिकट लेने के बाद मैंने कहा- अब चलो चलते हैं.
मौत के कुएं में ऊपर जाने के लिए सीढ़ी बनी थी. मेरे आगे आगे अनुराधा और उसके भाई सीढ़ी चढ़ने लगे. मैं और मेरी बीवी उनके पीछे चलने लगे.
थोड़ा चढ़ने पर ही हवा से उसकी कुर्ती उड़ने लगी और मेरी नजर उसके हिलते हुए चूतड़ों पर टिक गयी. सच में क्या कामुक नजारा था.
अनुराधा की मटकती गांड किसी भी मर्द को वासना से पागल कर देने के लिए काफी थी.
यदि अनुराधा इस समय सन्नाटे में होती, तो शायद मैं उसे उधर ही पटक कर चोद देता!
उसके हिलते चूतड़ों पर चिपकी हुई कसी लैगी में से उसकी पैंटी की लकीरें साफ़ दिख रही थीं. मुझे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी पैंटी अभी फट कर बाहर आ जाएगी.
मैं किसी तरह से अपना लंड दबाए ऊपर पहुंच गया. हम सभी के ऊपर आते ही शो शुरू हो गया.
सभी लोग शो का मज़ा ले रहे थे लेकिन मैं अपनी सुधबुध खो चुका था; मेरे दिमाग़ में बस उसके कसे हुए चूतड़ ही घूम रहे थे.
बीस मिनट बाद शो खत्म हुआ, लेकिन मेरे कामुक मन की कामुकता शांत नहीं हो रही थी.
अब लोगों की भीड़ नीचे उतर रही थी. आगे अनुराधा थी, मैं उसके ठीक पीछे था. मैंने ठान लिया था कि आज इसके चूतड़ों को छूना ही है.
वो एक जीने पर खड़ी हो गयी क्योंकि आगे बहुत भीड़ थी. लोग धीरे धीरे नीचे उतर रहे थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.