21-03-2022, 04:59 PM
ऐसे ही 4-5 दिन गुजर गए. मैं शुक्रवार के दिन उसके घर गया था, तब मेरा दोस्त कहीं बाहर गांव गया हुआ था. उस वक़्त घर पर छाया और उसके पति थे. उसके पति भी कहीं जा रहे थे.
मैंने पूछा- शंकर कहां है?
तो वो बोले- वो बाहर गांव गया हुआ है.
मैं बोला- दीदी उससे मुझे मेरी किताब वापिस लेनी है, आप जरा निकाल दोगी?
वो बोली- रुको … तुम्हारे जीजा को टिफ़िन पैक करके दे दूँ, फिर तुम्हें दे दूँगी.
तब तक मैं बैठ गया. छाया ने मुझे पानी दिया, मैंने पानी पिया. दस मिनट बाद उसका पति चला गया. फिर छाया दो कप चाय लेकर आयी. वो मेरे साथ बैठ कर चाय पीने लगी.
हम दोनों बातें कर रहे थे. मैंने जानबूझ कर उससे कहा- दीदी दरवाजा बंद किया करो, आप डायरेक्ट इस तरफ बाहर आती हो, कोई दूसरा होता तो न जाने क्या हो जाता.
वो बोली- अरे यार उस दिन तेरे जीजा जी घर पर ही थे, इसलिये दरवाजा खुला था … मुझे मालूम ही नहीं चला और वो मार्किट चले गए थे. मैं बाथरूम में थी तो दरवाजा कैसे लगाती.
मैं बोला- चलो ठीक है … मगर आगे से ध्यान रखना.
मैंने पूछा- शंकर कहां है?
तो वो बोले- वो बाहर गांव गया हुआ है.
मैं बोला- दीदी उससे मुझे मेरी किताब वापिस लेनी है, आप जरा निकाल दोगी?
वो बोली- रुको … तुम्हारे जीजा को टिफ़िन पैक करके दे दूँ, फिर तुम्हें दे दूँगी.
तब तक मैं बैठ गया. छाया ने मुझे पानी दिया, मैंने पानी पिया. दस मिनट बाद उसका पति चला गया. फिर छाया दो कप चाय लेकर आयी. वो मेरे साथ बैठ कर चाय पीने लगी.
हम दोनों बातें कर रहे थे. मैंने जानबूझ कर उससे कहा- दीदी दरवाजा बंद किया करो, आप डायरेक्ट इस तरफ बाहर आती हो, कोई दूसरा होता तो न जाने क्या हो जाता.
वो बोली- अरे यार उस दिन तेरे जीजा जी घर पर ही थे, इसलिये दरवाजा खुला था … मुझे मालूम ही नहीं चला और वो मार्किट चले गए थे. मैं बाथरूम में थी तो दरवाजा कैसे लगाती.
मैं बोला- चलो ठीक है … मगर आगे से ध्यान रखना.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.