21-03-2022, 03:10 PM
अब यूं ही किसी ऐरे गैरे को अपना आप नहीं सौंप सकती थी क्योंकि जब जब भी मैं अपने
घर में शीशे के सामने नंगी हो कर खड़ी होती, तो मेरा दर्पण मेरे हुस्न की इतनी तारीफ
करता मेरे चेहरे की, मेरे गोरे बदन बदन की, मेरे मम्मों की, मेरी चूत की, मेरे
चूतड़ों की, मेरी जांघों की, मेरे पेटकी, मेरी पीठ की कि मैं खुद ही शर्मा जाती।
सर से पाँव तक हल्के गुलाबी रंग की 19 साल की लड़की, जिसको खुद अपने हुस्न पर इतना
गुमान हो वो किसी भी टुच्चे से लड़के से तो हाथ लगवाना भी पसंद न करे।
खैर मैंने सोचा, इस तड़पती हुई जवानी को संभालने का एक ही तरीका है कि अपना दिमाग
कहीं और लगाया जाए. और इस लिए मैंने सोचा कि कहीं बाहर घूम कर आया जाए।
तो मैंने अपने पापा से कहा- पापा, कॉलेज की छुट्टियाँ हैं, मैं सोच रही थी कि मैं
बुआ जी के घर कुछ दिन लगा आऊँ।
पापा को भी कोई ऐतराज नहीं था तो उन्होंने मुझे जाने की इजाज़त दे दी।
बुआ मेरे शहर से बस थोड़ी ही दूर रहती है, बस में बैठ कर मैं एक घंटे में बुआ के घर
पहुँच गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.