17-03-2022, 01:14 PM
"घबराओ मत, कोई रैगिंग नहीं हो रही तुम्हारी, सब ठीक है। तुम्हें ऐसे अकेले परेशान बैठे देखा तो रुक गया।" मुस्कुराते हुए दर्श फिर से बोल पड़ा।
अब तक नीतिका भी खुद को काफी संभाल चुकी थी तो उसने भी मुस्कुरा कर हाथ मिला लिया और अपना नाम बता दिया। वे दोनों आगे कुछ और बोल पाते कि तब तक भव्या भी वहां नीतिका को खोजती हुई आ पहुंची थी।
भव्या (दर्श की तरफ घूरते हुए)- क्या हुआ, यहां क्या कर रही है?? ठीक है ना??
नीतिका (शांति से मुस्कुरा कर)- हां, बिल्कुल ठीक हूं, बस क्लास की ही ओर आ रही थी।
भव्या - हूं....... इतने देर से नहीं लौटी तो टेंशन हो रही थी।
नीतिका - हम्मम..... चलो।
नीतिका (अचानक रुक कर)- भावी, इनसे मिलो ये दर्श हैं, हमारे सीनियर.......
भव्या (बीच में ही बात काट कर गुस्से में)- क्या हुआ, किसी ने फिर से कुछ कहा क्या??
नीतिका उसे इशारों में चुप रहने को कहती रही लेकिन उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
भव्या - इस बार तो बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली मैं, तू देख क्या करती हूं मैं??
दर्श (मुस्कुराते हुए)- तुम्हें अपना इतना खून जलाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है तुम्हारी दोस्त को।
दर्श की बात से नीतिका भी मुस्कुराने लगी। अब तक भव्या का गुस्सा भी भले ही कम हो चुका था लेकिन अब वो दर्श की बेबाक बात पर बस उसे घूरे जा रही थी।
दर्श (हाथ आगे बढ़ा कर)- अब तो जान गई ना??
भव्या ने एक नज़र उसे घूरा और फिर से नीतिका को ले कर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई और दर्श वहां खड़ा उसकी हरकत को देख मुस्कुराता रहा।
शाम को कॉलेज से लौटते वक्त सामने फिर से नीतिका और भव्या की नजर दर्श पर गई तो उसने हाथ के इशारे से दोनो को बाय किया। जवाब में नीतिका भी मुस्कुरा दी।
भव्या (चिढ़ कर)- ये चिपकू कुछ ज्यादा तेज नही बन रहा??
नीतिका (प्यार से)- ऐसे क्यों कह रही है, देखा नहीं कितने डिसेंट से हैं, वरना यहां तो....... नीतिका फिर अचानक सुबह उस अनजान शक्श की बात याद कर दुखी हो गई।
भव्या - हुंह.... वो तो दुष्ट था ही, ये चिपकू भी कम नहीं लगता है मुझे। तुम उससे थोड़ा संभल कर रहो।
नीतिका - तुम्हारी सुई तो यार बस एक ही जगह आ कर रुक गई है, कितने सीधे से तो हैं वे।
भव्या - हुंह..... सीधा
दोनों दोस्त यूं ही आज पूरे दिन भर की बातें करती रहीं और आखिर यूं ही उन दोनों का आज के कॉलेज का पहला दिन निकल गया और दोनों घर लौट गईं।
अब तक नीतिका भी खुद को काफी संभाल चुकी थी तो उसने भी मुस्कुरा कर हाथ मिला लिया और अपना नाम बता दिया। वे दोनों आगे कुछ और बोल पाते कि तब तक भव्या भी वहां नीतिका को खोजती हुई आ पहुंची थी।
भव्या (दर्श की तरफ घूरते हुए)- क्या हुआ, यहां क्या कर रही है?? ठीक है ना??
नीतिका (शांति से मुस्कुरा कर)- हां, बिल्कुल ठीक हूं, बस क्लास की ही ओर आ रही थी।
भव्या - हूं....... इतने देर से नहीं लौटी तो टेंशन हो रही थी।
नीतिका - हम्मम..... चलो।
नीतिका (अचानक रुक कर)- भावी, इनसे मिलो ये दर्श हैं, हमारे सीनियर.......
भव्या (बीच में ही बात काट कर गुस्से में)- क्या हुआ, किसी ने फिर से कुछ कहा क्या??
नीतिका उसे इशारों में चुप रहने को कहती रही लेकिन उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
भव्या - इस बार तो बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली मैं, तू देख क्या करती हूं मैं??
दर्श (मुस्कुराते हुए)- तुम्हें अपना इतना खून जलाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है तुम्हारी दोस्त को।
दर्श की बात से नीतिका भी मुस्कुराने लगी। अब तक भव्या का गुस्सा भी भले ही कम हो चुका था लेकिन अब वो दर्श की बेबाक बात पर बस उसे घूरे जा रही थी।
दर्श (हाथ आगे बढ़ा कर)- अब तो जान गई ना??
भव्या ने एक नज़र उसे घूरा और फिर से नीतिका को ले कर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई और दर्श वहां खड़ा उसकी हरकत को देख मुस्कुराता रहा।
शाम को कॉलेज से लौटते वक्त सामने फिर से नीतिका और भव्या की नजर दर्श पर गई तो उसने हाथ के इशारे से दोनो को बाय किया। जवाब में नीतिका भी मुस्कुरा दी।
भव्या (चिढ़ कर)- ये चिपकू कुछ ज्यादा तेज नही बन रहा??
नीतिका (प्यार से)- ऐसे क्यों कह रही है, देखा नहीं कितने डिसेंट से हैं, वरना यहां तो....... नीतिका फिर अचानक सुबह उस अनजान शक्श की बात याद कर दुखी हो गई।
भव्या - हुंह.... वो तो दुष्ट था ही, ये चिपकू भी कम नहीं लगता है मुझे। तुम उससे थोड़ा संभल कर रहो।
नीतिका - तुम्हारी सुई तो यार बस एक ही जगह आ कर रुक गई है, कितने सीधे से तो हैं वे।
भव्या - हुंह..... सीधा
दोनों दोस्त यूं ही आज पूरे दिन भर की बातें करती रहीं और आखिर यूं ही उन दोनों का आज के कॉलेज का पहला दिन निकल गया और दोनों घर लौट गईं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.