17-03-2022, 01:13 PM
भव्या (मजाक में)- अच्छा यह सब छोड़ो, ये बताओ यहां अब तक इतने लड़कों में तुम्हें सबसे स्मार्ट कौन लगा??
नीतिका (मुंह बना कर)- मुझे क्या पता, तुम ही खोजो, वैसे भी तुम्हें ही रचानी है ना प्यार वाली शादी। मेरे लिए तो सब एक ही जैसे हैं।
भव्या (मुंह बना कर)- कितनी बोर है तू यार, पता नहीं कैसे झेलेगा तेरा पति तुझ जैसी सती सावित्री को।
नीतिका (हंसती हुई)- अरे तू अपनी चिंता कर ना तू कब खोजेगी अपना राजकुमार, जो भाई मैडम के दिन रात आगे पीछे करे, इनके हजारों नखड़े उठाए।
भव्या - हुंह..... उड़ा ले मेरा मजाक, लेकिन देखना जब वक्त आएगा तब तुझे समझ आएगी मेरी बात कि अच्छी और सुकून की जिंदगी के लिए लव मैरिज कितना जरूरी है।
नीतिका (हंसती हुई)- हां, तेरी बात सुन लूं तो जिंदगी का एक मात्र गोल शादी ही लगने लगेगी मुझे, ना बाबा ना..... फिर मेरी नौकरी का क्या होगा।
भव्या (सिर पर हाथ रखती हुई)- हे प्रभु, फिर से कर दी ना चिंदी वाली बात?? शादी के बाद वाली नौकरी तो बस मजे के लिए होती है ना, घर मैं ही चलाऊंगी तो फिर वो क्या करेगा।
नीतिका (मुंह बना कर)- कुछ नहीं हो सकता तेरा....
दोनों यूं ही आपस में बात कर रही थीं कि अचानक घड़ी की ओर देखा तो याद आया कि क्लास होने का समय कब का हो गया और वे बातों में भूली बैठी थीं। दोनों सहेलियां हड़बड़ाते हुए क्लास की ओर जा रही थीं कि तेजी में नीतिका अचानक किसी से टकरा गई और उसका बैग और सामने वाले के हाथ से उसका फोन गिर पड़ा।
अनजान इंसान (थोड़ा गुस्से में)- ओ मैडम, क्या बदतमीजी है ये, कॉलेज में पैर रखे दो घंटे नहीं हुए हैं कि अपनी हरकतें चालू कर दीं।
नीतिका उसकी बातें सुन बस बुत सी वहीं खड़ी हो गई और ना चाह कर भी उसकी आंखें भर आईं। उस अनजान शक्श की ऐसी बातें सुन भव्या भी गुस्से में कुछ कहने के लिए मुड़ी ही थी कि तब तक वो इंसान वहां से जा चुका था। उसने नीतिका को प्यार से संभाला और फिर आगे बढ़ गईं।
उस अनजान आदमी की ऐसी बातें सुन आज नीतिका का मन अब कहीं भी नहीं लग रहा था उसे क्लास में भी थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी। वॉशरूम का बहाना बना कर वो आखिर बाहर निकल कर क्लास के दूसरी ओर के कॉरिडोर में जहां एक बेंच लगा पड़ा था वहीं बैठ गई।
नीतिका (खुद से)- पता नहीं लोग खुद को क्या समझते हैं, सेकंड भर भी नहीं सोचते और अपनी राय बना लेते हैं, भले ही सामने वाले की कोई गलती हो भी या नहीं। उन्हें क्यों फर्क पड़ेगा कि उनकी ऐसी बातों ने सामने वाले को कितनी तकलीफ पहुंचाई होगी।
"हम्मम...... बात तो आपकी बिल्कुल सही है लेकिन सच कहें तो उनकी भी क्या गलती है, उन्होंने जो उस एक पल में देखा, वही सोचा और वही समझा। या ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त उसकी भी मनोस्थिति कुछ अलग हो और वो कहीं की बात कहीं और ही कह गया हो।" बोलता हुआ एक शक्श वहीं मुस्कुराता हुआ निकिता के बगल में बैठ गया।
नीतिका ने हड़बड़ा कर बगल वाले सक्श की ओर देखा तो वो अब भी मुस्कुरा रहा था।
हैलो मैँ दर्श ( "Hello, I am) दर्श, कॉमर्स थर्ड ईयर का स्टूडेंट...." मुस्कुरा कर बोलते हुए दर्श ने अपना हाथ आगे बढाया।
चूंकि आज तो सुबह से ही नीतिका का वक्त बुरा चल रहा था तो वो खुद ही मन में ये सोच कर बड़बड़ाने लगी कि पता नहीं अब ये क्या नई आफत है। कहीं कोई उसकी रैगिंग तो नहीं ले रहा।
नीतिका (मुंह बना कर)- मुझे क्या पता, तुम ही खोजो, वैसे भी तुम्हें ही रचानी है ना प्यार वाली शादी। मेरे लिए तो सब एक ही जैसे हैं।
भव्या (मुंह बना कर)- कितनी बोर है तू यार, पता नहीं कैसे झेलेगा तेरा पति तुझ जैसी सती सावित्री को।
नीतिका (हंसती हुई)- अरे तू अपनी चिंता कर ना तू कब खोजेगी अपना राजकुमार, जो भाई मैडम के दिन रात आगे पीछे करे, इनके हजारों नखड़े उठाए।
भव्या - हुंह..... उड़ा ले मेरा मजाक, लेकिन देखना जब वक्त आएगा तब तुझे समझ आएगी मेरी बात कि अच्छी और सुकून की जिंदगी के लिए लव मैरिज कितना जरूरी है।
नीतिका (हंसती हुई)- हां, तेरी बात सुन लूं तो जिंदगी का एक मात्र गोल शादी ही लगने लगेगी मुझे, ना बाबा ना..... फिर मेरी नौकरी का क्या होगा।
भव्या (सिर पर हाथ रखती हुई)- हे प्रभु, फिर से कर दी ना चिंदी वाली बात?? शादी के बाद वाली नौकरी तो बस मजे के लिए होती है ना, घर मैं ही चलाऊंगी तो फिर वो क्या करेगा।
नीतिका (मुंह बना कर)- कुछ नहीं हो सकता तेरा....
दोनों यूं ही आपस में बात कर रही थीं कि अचानक घड़ी की ओर देखा तो याद आया कि क्लास होने का समय कब का हो गया और वे बातों में भूली बैठी थीं। दोनों सहेलियां हड़बड़ाते हुए क्लास की ओर जा रही थीं कि तेजी में नीतिका अचानक किसी से टकरा गई और उसका बैग और सामने वाले के हाथ से उसका फोन गिर पड़ा।
अनजान इंसान (थोड़ा गुस्से में)- ओ मैडम, क्या बदतमीजी है ये, कॉलेज में पैर रखे दो घंटे नहीं हुए हैं कि अपनी हरकतें चालू कर दीं।
नीतिका उसकी बातें सुन बस बुत सी वहीं खड़ी हो गई और ना चाह कर भी उसकी आंखें भर आईं। उस अनजान शक्श की ऐसी बातें सुन भव्या भी गुस्से में कुछ कहने के लिए मुड़ी ही थी कि तब तक वो इंसान वहां से जा चुका था। उसने नीतिका को प्यार से संभाला और फिर आगे बढ़ गईं।
उस अनजान आदमी की ऐसी बातें सुन आज नीतिका का मन अब कहीं भी नहीं लग रहा था उसे क्लास में भी थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी। वॉशरूम का बहाना बना कर वो आखिर बाहर निकल कर क्लास के दूसरी ओर के कॉरिडोर में जहां एक बेंच लगा पड़ा था वहीं बैठ गई।
नीतिका (खुद से)- पता नहीं लोग खुद को क्या समझते हैं, सेकंड भर भी नहीं सोचते और अपनी राय बना लेते हैं, भले ही सामने वाले की कोई गलती हो भी या नहीं। उन्हें क्यों फर्क पड़ेगा कि उनकी ऐसी बातों ने सामने वाले को कितनी तकलीफ पहुंचाई होगी।
"हम्मम...... बात तो आपकी बिल्कुल सही है लेकिन सच कहें तो उनकी भी क्या गलती है, उन्होंने जो उस एक पल में देखा, वही सोचा और वही समझा। या ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त उसकी भी मनोस्थिति कुछ अलग हो और वो कहीं की बात कहीं और ही कह गया हो।" बोलता हुआ एक शक्श वहीं मुस्कुराता हुआ निकिता के बगल में बैठ गया।
नीतिका ने हड़बड़ा कर बगल वाले सक्श की ओर देखा तो वो अब भी मुस्कुरा रहा था।
हैलो मैँ दर्श ( "Hello, I am) दर्श, कॉमर्स थर्ड ईयर का स्टूडेंट...." मुस्कुरा कर बोलते हुए दर्श ने अपना हाथ आगे बढाया।
चूंकि आज तो सुबह से ही नीतिका का वक्त बुरा चल रहा था तो वो खुद ही मन में ये सोच कर बड़बड़ाने लगी कि पता नहीं अब ये क्या नई आफत है। कहीं कोई उसकी रैगिंग तो नहीं ले रहा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.