17-03-2022, 01:08 PM
भव्या (फिर से मुंह बना कर)- तू अपना सोच जो कलयुग में हो कर भी सतयुग की बेटी की तरह बस सिर झुकाए हुए खड़ी रहेगी और घरवाला जिससे करा दे, उससे कर लेगी।.... हुंह...
नीतिका (शांति से) - भावी, ये शादी ब्याह, सब किस्मत की बातें हैं जिस पर हमारा कोई भी जोर नहीं चलता, जो जोड़ियां ऊपर पहले ही बन गईं वो ही आगे भी मिलेंगी, फिर क्यों बेकार में सोच -सोच कर अपना खून जलाना।
भव्या (कुछ सोच कर)- फिर भी, अगर कहीं किसी अजीब से इंसान से तेरा पाला पड़ गया तो???
नीतिका (सोचते हुए)- यार, सच कहूं तो वो इंसान जो भी हो, जैसा भी हो, बस शांत और तमीजदार हो, बांकी कोई फर्क नहीं पड़ता।
दोनों ऐसे ही अपनी पसंद -नापसंद की बातें करते घर लौट आईं।
उधर आज काफी वक्त बाद आद्विक और दर्श भी अपने पुराने और पसंदीदा जगह "चाचा की चाय" वाली दुकान पर जो कि उनके कॉलेज से थोड़ी ही दूर पर था, वहीं आ कर बैठे थे ताकि दोनों दोस्त आराम से थोड़ी देर इधर उधर की बातें कर सके। वे दोनों अपनी अपनी चाय और उस दुकान के श्याम चाचा की खैर खबर ले कर बगल में पड़ी बेंच पर बैठे ही थे कि इतने में वहीं एक और लड़का -लड़की जो शायद आपस में काफी करीबी जान पड़ते थे, वहीं आ कर बैठ गए। उन दोनों की बातों से यही लग रहा था कि लड़की उस लड़के को रिश्तों की कद्र और उसकी इज्जत करने की बात समझा रही था वहीं वो लड़का बस ये कह कर उसकी बात टाल रहा था कि हर किसी को अपनी जिंदगी में हर वक्त एक ज्ञान देने वाली मां नहीं बल्कि ऐसा शक्श चाहिए होता है कि जिन्हें देख या जिनसे मिल कर इंसान कितना भी थका हो उसका मूड फ्रेश हो जाए वो सुकून पा पाए क्योंकि अगर कोई इंसान हर वक्त यही सोचता रहा कि आस पास के लोग क्या बोलेंगे और क्या सोचेंगे तो इंसान खुद की मर्जी से कब जिएगा।
थोड़ी देर बातें कर और अपनी चाय खत्म कर वे दोनों अजनबी तो वहां से चले गए लेकिन दर्श उनकी बातें सुन कुछ सोचने लगा।
आद्विक - क्या हुआ भाई, अब तुम क्या सोचने लगे??
आद्विक (फिर से दर्श की ओर देखते हुए)- अब plz ये तो बिल्कुल भी मत कहना कि वो लड़की कितनी समझदार थी...., गंभीर थी....... कितनी अच्छी थी।
दर्श (कुछ सोच कर)- क्यों, सही तो कह रही थी वो, क्या गलत कहा उसने......
आद्विक (बात बीच में ही काटते हुए)- क्या खाक सही बोल रही थी, देखा नहीं उसकी गर्लफ्रेंड कम और उसकी गुरु मां ज्यादा लग रही थी। पता नहीं इन्हें ये बात क्यों समझ नहीं आती कि बीवी या गर्लफ्रेंड वही बन कर रहें तो ज्यादा बेहतर है, हम हर किसी की जिंदगी में हर बात पर ज्ञान के लिए दादी नानी हैं।
आद्विक (फिर से)- और सच कहूं तो यार शादी में अगर एक जैसी सोच वाले लोग ना मिले तो उस शादी को आज के जमाने में तो भगवान भी नहीं चला पाएंगे। इसीलिए तो मैं सीधा मानता हूं कि बांकी कोई काम अपनी पसंद से करो या ना करो, लेकिन शादी तो खुद की पसंद की होनी ही चाहिए।
दर्श - नहीं यार, एक समझदार लड़की हर रिश्ते को बखूबी संभाल सकती है, और ये खोजने की जो पारखी नज़र हमारे बड़े या मां बाप की होगी वो किसी और की हो ही नही सकती है।
दोनों भाई यूं ही कुछ वक्त तक अपनी -अपनी राय देते रहे फिर अपने अपने घर के लिए निकल गए।
नीतिका (शांति से) - भावी, ये शादी ब्याह, सब किस्मत की बातें हैं जिस पर हमारा कोई भी जोर नहीं चलता, जो जोड़ियां ऊपर पहले ही बन गईं वो ही आगे भी मिलेंगी, फिर क्यों बेकार में सोच -सोच कर अपना खून जलाना।
भव्या (कुछ सोच कर)- फिर भी, अगर कहीं किसी अजीब से इंसान से तेरा पाला पड़ गया तो???
नीतिका (सोचते हुए)- यार, सच कहूं तो वो इंसान जो भी हो, जैसा भी हो, बस शांत और तमीजदार हो, बांकी कोई फर्क नहीं पड़ता।
दोनों ऐसे ही अपनी पसंद -नापसंद की बातें करते घर लौट आईं।
उधर आज काफी वक्त बाद आद्विक और दर्श भी अपने पुराने और पसंदीदा जगह "चाचा की चाय" वाली दुकान पर जो कि उनके कॉलेज से थोड़ी ही दूर पर था, वहीं आ कर बैठे थे ताकि दोनों दोस्त आराम से थोड़ी देर इधर उधर की बातें कर सके। वे दोनों अपनी अपनी चाय और उस दुकान के श्याम चाचा की खैर खबर ले कर बगल में पड़ी बेंच पर बैठे ही थे कि इतने में वहीं एक और लड़का -लड़की जो शायद आपस में काफी करीबी जान पड़ते थे, वहीं आ कर बैठ गए। उन दोनों की बातों से यही लग रहा था कि लड़की उस लड़के को रिश्तों की कद्र और उसकी इज्जत करने की बात समझा रही था वहीं वो लड़का बस ये कह कर उसकी बात टाल रहा था कि हर किसी को अपनी जिंदगी में हर वक्त एक ज्ञान देने वाली मां नहीं बल्कि ऐसा शक्श चाहिए होता है कि जिन्हें देख या जिनसे मिल कर इंसान कितना भी थका हो उसका मूड फ्रेश हो जाए वो सुकून पा पाए क्योंकि अगर कोई इंसान हर वक्त यही सोचता रहा कि आस पास के लोग क्या बोलेंगे और क्या सोचेंगे तो इंसान खुद की मर्जी से कब जिएगा।
थोड़ी देर बातें कर और अपनी चाय खत्म कर वे दोनों अजनबी तो वहां से चले गए लेकिन दर्श उनकी बातें सुन कुछ सोचने लगा।
आद्विक - क्या हुआ भाई, अब तुम क्या सोचने लगे??
आद्विक (फिर से दर्श की ओर देखते हुए)- अब plz ये तो बिल्कुल भी मत कहना कि वो लड़की कितनी समझदार थी...., गंभीर थी....... कितनी अच्छी थी।
दर्श (कुछ सोच कर)- क्यों, सही तो कह रही थी वो, क्या गलत कहा उसने......
आद्विक (बात बीच में ही काटते हुए)- क्या खाक सही बोल रही थी, देखा नहीं उसकी गर्लफ्रेंड कम और उसकी गुरु मां ज्यादा लग रही थी। पता नहीं इन्हें ये बात क्यों समझ नहीं आती कि बीवी या गर्लफ्रेंड वही बन कर रहें तो ज्यादा बेहतर है, हम हर किसी की जिंदगी में हर बात पर ज्ञान के लिए दादी नानी हैं।
आद्विक (फिर से)- और सच कहूं तो यार शादी में अगर एक जैसी सोच वाले लोग ना मिले तो उस शादी को आज के जमाने में तो भगवान भी नहीं चला पाएंगे। इसीलिए तो मैं सीधा मानता हूं कि बांकी कोई काम अपनी पसंद से करो या ना करो, लेकिन शादी तो खुद की पसंद की होनी ही चाहिए।
दर्श - नहीं यार, एक समझदार लड़की हर रिश्ते को बखूबी संभाल सकती है, और ये खोजने की जो पारखी नज़र हमारे बड़े या मां बाप की होगी वो किसी और की हो ही नही सकती है।
दोनों भाई यूं ही कुछ वक्त तक अपनी -अपनी राय देते रहे फिर अपने अपने घर के लिए निकल गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.