17-03-2022, 01:07 PM
आज काफी वक्त बाद जहां भव्या को आखिर चैन मिला कि अब जा कर उसका एडमिशन उसके पसंद के कॉलेज में हो पाएगा, वहीं अब वो दूसरी सोच में गुम होने लगी, कि नया कॉलेज कैसा होगा, लोग कैसे होंगे... पहली बार को-एजुकेशन में कैसे मैनेज करेगी। वहीं दूसरी ओर ये सारे सवाल तो नीतिका के भी मन में चल रहे थे जिसे वो भी नहीं समझ पा रही थी।
अगले ही दिन दोनों दोस्तें तैयार हो कर कॉलेज के लिए निकल गईं। कॉलेज पहुंचते ही चारों तरफ इतनी रौनक और भीड़ देख कर दोनों के ही कदम धीरे हो गए। फॉर्म काउंटर पर खड़ी लाइन देख कर ही उन दोनों ने अपना सिर पकड़ लिया क्योंकि केवल एक फॉर्म लेने और जमा करने में ही कम से कम पूरा का पूरा दिन निकलना था।
खैर कोई दूसरा उपाय ना देख दोनों वहीं लाइन में लग गईं। अभी तक थोड़े ही लोगों का काम हुआ था कि अचानक से एक लड़का तेजी से काउंटर की ओर आगे बढ़ा और वहां बैठे शक्श जो फॉर्म बांटने का काम कर रहा था, को गुस्से में कुछ कहा फिर वहीं उसके बगल में रखा "closed" का बैनर खड़ा कर दिया। इन दोनों सहेलियों को तो उस पल कुछ भी समझ नहीं आया लेकिन जब थोड़ा नॉर्मल हुईं तो पता चला कि उतने रौब से आने वाला और इतना कुछ करने वाला शक्श इस कॉलेज का यूनियन लीडर और थर्ड ईयर का स्टूडेंट आद्विक सिन्हा था।
आद्विक सिन्हा, उसी शहर के एक सबसे मशहूर वकील का बेटा और उसी शहर के हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज का पोता था। तीन भाई बहनों में सबसे छोटा, सबका दुलारा, ऊपर से सभी को मनमौजी, दिलफेंक दिखने वाला लड़का अंदर से उतना ही भावुक था जिसका अंदाजा उसके दादाजी को छोड़ और बहुत ही कम लोगों को था। हां, उसकी सारी अच्छी बुरी शैतानियों का गवाह और कोई हो ना हो लेकिन उसका अपना ममेरा भाई दर्श था, जो बचपन से ही एक दूसरे के काफी करीब थे।
जहां स्वभाव में आद्विक चंचल, गुस्सैल और लगभग हर बात में हड़बड़ी मचाने वाला था वहीं दर्श अपने दो भाई बहनों में बड़ा और काफी शांत और सौम्य स्वभाव का था। दोनों की किसी बात पर एक मत हो जाए ऐसा लगभग असंभव ही था लेकिन फिर भी दोनों ही भाइयों के रिश्ते और दोस्ती की गांठ इतनी मजबूत थी कि उन्हें बांकी किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था।
आद्विक के साथ ही उसी कॉलेज में उसी क्लास में दर्श भी था लेकिन स्वभाव की वजह से दोनों का ही ग्रुप और दोस्त बिल्कुल अलग अलग थे। यही वजह भी थी कि वे दोनों आपस में भाई या दोस्त थे ये बहुत ही कम लोगों को अब तक पता चल पाया था।
"यार, क्या ड्रामा है ये, हरकतें तो इनकी ऐसी हैं कि इनके बाप का ये कॉलेज हो?? यूनियन लीडर ना हो गया कि कोई राष्ट्रपति हो गया, जो कि जो कह दे, वही पत्थर की लकीर हो जायेगी।" गुस्से में बड़बड़ाती हुई भव्या बोल पड़ी।
नीतिका (थोड़ा उदासी से)- हां यार, आज का पूरा दिन बर्बाद हो गया, उसपर कोई काम भी नहीं निकला सो अलग।
".........पता नहीं, इस सड़ियल को कोई झेलता कैसे होगा।" फिर से भव्या बोल पड़ी।
नीतिका (भव्या का गुस्सा कम करते हुए)- अच्छा छोड़ ना, हमें क्या करना है ये सब जान कर, वो सोचे, जो इसे झेले, हमारा सोचो अब क्या करना है।
कुछ सोच कर दोनों ही थोड़ी देर के लिए उसी कॉलेज के पार्क के एक बेंच पर बैठ गईं और अपने बैग से पानी की बोतल निकाल कर पीने लगीं।
"अच्छा एक बात तो बता निकू कि अगर तेरी शादी ऐसे अड़ियल से ही हो गई, तो फिर क्या करेगी तू??" कुछ सोचती हुई अगले ही पल भव्या खिलखिलाती हुई नीतिका से बोल पड़ी।
नीतिका (गुस्से में चिढ़ कर)- मेरा जो होगा वो होगा, तू ही सोच अगर तुझे ऐसा पीस मिल गया तो फिर क्या होगा, या तो वो ही बचेगा या तू क्योंकि, काट -मार तो मचना निश्चित है।
भव्या (हंसती हुई)- ना नीकू ना........ तेरी दोस्त इतनी भी पागल नहीं है कि जिंदगी का इतना बड़ा कदम यूं ही बिना सोचे समझे उठाएगी। मैं तो देखना तुम्हे पहले भी कहा है और अब फिर से कह रही हूं कि जब भी करूंगी, लव मैरिज ही करूंगी, ताकि शादी के बाद कोई स्यापा का कोई चांस ही नहीं हो, और लाइफ बस परफेक्ट, मस्त और चिल.......
अगले ही दिन दोनों दोस्तें तैयार हो कर कॉलेज के लिए निकल गईं। कॉलेज पहुंचते ही चारों तरफ इतनी रौनक और भीड़ देख कर दोनों के ही कदम धीरे हो गए। फॉर्म काउंटर पर खड़ी लाइन देख कर ही उन दोनों ने अपना सिर पकड़ लिया क्योंकि केवल एक फॉर्म लेने और जमा करने में ही कम से कम पूरा का पूरा दिन निकलना था।
खैर कोई दूसरा उपाय ना देख दोनों वहीं लाइन में लग गईं। अभी तक थोड़े ही लोगों का काम हुआ था कि अचानक से एक लड़का तेजी से काउंटर की ओर आगे बढ़ा और वहां बैठे शक्श जो फॉर्म बांटने का काम कर रहा था, को गुस्से में कुछ कहा फिर वहीं उसके बगल में रखा "closed" का बैनर खड़ा कर दिया। इन दोनों सहेलियों को तो उस पल कुछ भी समझ नहीं आया लेकिन जब थोड़ा नॉर्मल हुईं तो पता चला कि उतने रौब से आने वाला और इतना कुछ करने वाला शक्श इस कॉलेज का यूनियन लीडर और थर्ड ईयर का स्टूडेंट आद्विक सिन्हा था।
आद्विक सिन्हा, उसी शहर के एक सबसे मशहूर वकील का बेटा और उसी शहर के हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज का पोता था। तीन भाई बहनों में सबसे छोटा, सबका दुलारा, ऊपर से सभी को मनमौजी, दिलफेंक दिखने वाला लड़का अंदर से उतना ही भावुक था जिसका अंदाजा उसके दादाजी को छोड़ और बहुत ही कम लोगों को था। हां, उसकी सारी अच्छी बुरी शैतानियों का गवाह और कोई हो ना हो लेकिन उसका अपना ममेरा भाई दर्श था, जो बचपन से ही एक दूसरे के काफी करीब थे।
जहां स्वभाव में आद्विक चंचल, गुस्सैल और लगभग हर बात में हड़बड़ी मचाने वाला था वहीं दर्श अपने दो भाई बहनों में बड़ा और काफी शांत और सौम्य स्वभाव का था। दोनों की किसी बात पर एक मत हो जाए ऐसा लगभग असंभव ही था लेकिन फिर भी दोनों ही भाइयों के रिश्ते और दोस्ती की गांठ इतनी मजबूत थी कि उन्हें बांकी किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था।
आद्विक के साथ ही उसी कॉलेज में उसी क्लास में दर्श भी था लेकिन स्वभाव की वजह से दोनों का ही ग्रुप और दोस्त बिल्कुल अलग अलग थे। यही वजह भी थी कि वे दोनों आपस में भाई या दोस्त थे ये बहुत ही कम लोगों को अब तक पता चल पाया था।
"यार, क्या ड्रामा है ये, हरकतें तो इनकी ऐसी हैं कि इनके बाप का ये कॉलेज हो?? यूनियन लीडर ना हो गया कि कोई राष्ट्रपति हो गया, जो कि जो कह दे, वही पत्थर की लकीर हो जायेगी।" गुस्से में बड़बड़ाती हुई भव्या बोल पड़ी।
नीतिका (थोड़ा उदासी से)- हां यार, आज का पूरा दिन बर्बाद हो गया, उसपर कोई काम भी नहीं निकला सो अलग।
".........पता नहीं, इस सड़ियल को कोई झेलता कैसे होगा।" फिर से भव्या बोल पड़ी।
नीतिका (भव्या का गुस्सा कम करते हुए)- अच्छा छोड़ ना, हमें क्या करना है ये सब जान कर, वो सोचे, जो इसे झेले, हमारा सोचो अब क्या करना है।
कुछ सोच कर दोनों ही थोड़ी देर के लिए उसी कॉलेज के पार्क के एक बेंच पर बैठ गईं और अपने बैग से पानी की बोतल निकाल कर पीने लगीं।
"अच्छा एक बात तो बता निकू कि अगर तेरी शादी ऐसे अड़ियल से ही हो गई, तो फिर क्या करेगी तू??" कुछ सोचती हुई अगले ही पल भव्या खिलखिलाती हुई नीतिका से बोल पड़ी।
नीतिका (गुस्से में चिढ़ कर)- मेरा जो होगा वो होगा, तू ही सोच अगर तुझे ऐसा पीस मिल गया तो फिर क्या होगा, या तो वो ही बचेगा या तू क्योंकि, काट -मार तो मचना निश्चित है।
भव्या (हंसती हुई)- ना नीकू ना........ तेरी दोस्त इतनी भी पागल नहीं है कि जिंदगी का इतना बड़ा कदम यूं ही बिना सोचे समझे उठाएगी। मैं तो देखना तुम्हे पहले भी कहा है और अब फिर से कह रही हूं कि जब भी करूंगी, लव मैरिज ही करूंगी, ताकि शादी के बाद कोई स्यापा का कोई चांस ही नहीं हो, और लाइफ बस परफेक्ट, मस्त और चिल.......
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.