17-03-2022, 01:04 PM
नीतिका और भव्या: दोनों ही पक्की और बचपन की सहेलियां थीं, चूंकि दोनों के ही पिता अखिल जी (नीतिका के पापा) और प्रदीप जी (भव्या के पापा) एक ही सरकारी महकमे में लगभग एक ही पद पर भले ही अलग अलग विभागों में कार्यरत थे लेकिन आपस में काफी अच्छे दोस्त थे। यही वजह थी जो शायद इनकी माएं, विभाजी (नीतिका की मां और मोहिनी जी (भव्या की मां) भी आपस में बहुत गहरी दोस्त तो नहीं, लेकिन एक दूसरे के प्रति काफी मेलजोल था। इनका घर भी आपस में बहुत ज्यादा दूर नहीं था, दोनों एक ही कॉलोनी के बस अलग अलग छोरों पर ही था।
एक ओर जहां नीतिका स्वभाव से थोड़ा गंभीर शांत और शर्मीली सी थी वहीं दूसरी ओर भव्या थोड़ी शरारती, मूडी और बेबाक अंदाज वाली लड़की थी। देखने में दोनों ही सुंदर और प्यारी तो थीं ही लेकिन वहीं साथ -साथ पढ़ाई में भी काफी होशियार थीं तो इम्तिहान में इनके नंबर भी अच्छे ही आते थे। जिस काम को करने में नीतिका दस बार सोचती उसी काम को भव्या पहले धड़ाक से कर बैठती फिर सोचती। यही वजह भी थी कि जहां दोनों दिन में हजार बार लड़ती फिर अगले ही मिनट दोस्त बन जाती।
आस पास रहने की वजह और आपसी मेलजोल की वजह से लगभग सारे पर्व त्योहार भी साथ ही मनाते और यही वजह थी कि इनके ज्यादातर रिश्तेदारों से भी ये दोनों ही परिवार भली भांति परिचित थे।
नीतिका और भव्या दोनों ही एक मामले में और भी एक से थे, वो ये कि दोनों ही एक भाई और एक बहन थे। बस फर्क इतना था कि नीतिका अपने भाई शुभम से बड़ी लेकिन भव्या अपने भाई विवेक से छोटी थी।
जहां कभी नीतिका को लगता कि काश वो छोटी होती अपने भाई शुभम से तो घरवाले उसे ज्यादा प्यार करते क्योंकि उसे लगता था कि हर बात पर उसे ही टोका और समझाया जाता है, शुभम को छोटे होने की वजह से कभी भी कोई कुछ कहता ही नहीं है वहीं भव्या सोचती कि काश वो बड़ी होती तो जितना रोब विवेक उसके ऊपर जमाता है, उतना ही वो उसपर जमाती। घर वाले भी हर बात पर वो बड़ा है, उससे सीखो, उसको देखो कह कर परेशान भी नहीं करते। इस बात पर भी दोनों सहेलियां घंटों बातें करती और अपना दुखड़ा सुना कर मन हल्का करतीं।
चूंकि दोनों ही सहेलियां अब तक अपना लगभग हर काम एक जैसा और एक साथ करती आईं थीं तो जाहिर था कि अब बारहवीं खत्म होने के बाद दोनों एक ही कॉलेज में और एक ही विभाग में अपना नाम भी लिखवाना चाहती थीं। दोनों के मां बाप भी इस बात से काफी खुश थे कि अगर दोनों एक दूसरे के साथ रहेंगी तो इनके घरवालों को भी इनकी थोड़ी कम चिंता होगी जो इस उम्र की हर लड़कियों के मां बाप को ना चाहते हुए भी रहती ही है।
अब बात आई कॉलेज और विषय तय करने की तो बहुत मुश्किल से दोनों कॉमर्स पर आ कर मानी। जहां भव्या को कॉमर्स काफी पसंद था वहीं नीतिका के लिए ये सब समझना थोड़ा मुश्किल था लेकिन साथ रहेंगी ये सोच कर दोनों ही तैयार थीं। जब कॉलेज की बात आई तो उस वक्त उस एक साधारण से शहर में कुछ ही गिने चुने कॉलेज थे जो कॉमर्स की अच्छी पढ़ाई के लिए जाने जाते थे लेकिन मुसीबत ये थी कि वे सारे ही कॉलेज को-एजुकेशन वाले थे यानी कि जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों ही थे।
कॉलेज का को-एजुकेशन होने की वजह से नीतिका के घरवाले शुरू में थोड़ा हिचकिचाए लेकिन फिर बच्ची का अच्छा फ्यूचर सोच कर मान गए। दूसरी ओर भव्या के घर में तो मानो तूफान ही आने वाला था क्योंकि ये ना तो उसकी दादी चाहती थीं और ना ही उसका बड़ा भाई, विवेक। विवेक दिल का बुरा नहीं था लेकिन उसकी सोच भी बस आम भाइयों जैसी थी जिसकी वजह से वो अपनी बहन को उस दुनिया से दूर रखना चाहता था।
भव्या के कहने की वजह से नीतिका ने विवेक को काफी समझाया और तैयार किया ताकि वो घर में बांकी सभी को भी मना पाए। नीतिका और विवेक का रिश्ता भी अक्सर मिलने जुलने की वजह से काफी अच्छा था, नीतिका भी चूंकि उसका कोई खुद का बड़ा भाई नहीं था तो वो भी उसे ही बहुत मानती और इज्जत करती थी। वहीं विवेक भी उसका अपनी छोटी बहन भव्या की तरह ही खयाल भी रखता था। यही वजह भी थी कि नीतिका ने जबको-एजुकेशन वाले कॉलेज को लेकर मना नहीं किया तो वो उससे भी काफी नाराज़ था।
नीतिका - क्यों, इतना नाराज़ हो रहे हैं आप भैया, जबकि आप भी अच्छे से जानते हैं कि वो कॉलेज काफी अच्छा है।
विवेक (थोड़ा गुस्से में)- तुम लोगों को समझ नहीं आता, अभी तक तुम लोगों की दुनिया बस तुम्हारे कॉलेज से ले कर तुम्हारे चाट और गोलगप्पे की दुकान तक की ही है ना, इसीलिए.....
एक ओर जहां नीतिका स्वभाव से थोड़ा गंभीर शांत और शर्मीली सी थी वहीं दूसरी ओर भव्या थोड़ी शरारती, मूडी और बेबाक अंदाज वाली लड़की थी। देखने में दोनों ही सुंदर और प्यारी तो थीं ही लेकिन वहीं साथ -साथ पढ़ाई में भी काफी होशियार थीं तो इम्तिहान में इनके नंबर भी अच्छे ही आते थे। जिस काम को करने में नीतिका दस बार सोचती उसी काम को भव्या पहले धड़ाक से कर बैठती फिर सोचती। यही वजह भी थी कि जहां दोनों दिन में हजार बार लड़ती फिर अगले ही मिनट दोस्त बन जाती।
आस पास रहने की वजह और आपसी मेलजोल की वजह से लगभग सारे पर्व त्योहार भी साथ ही मनाते और यही वजह थी कि इनके ज्यादातर रिश्तेदारों से भी ये दोनों ही परिवार भली भांति परिचित थे।
नीतिका और भव्या दोनों ही एक मामले में और भी एक से थे, वो ये कि दोनों ही एक भाई और एक बहन थे। बस फर्क इतना था कि नीतिका अपने भाई शुभम से बड़ी लेकिन भव्या अपने भाई विवेक से छोटी थी।
जहां कभी नीतिका को लगता कि काश वो छोटी होती अपने भाई शुभम से तो घरवाले उसे ज्यादा प्यार करते क्योंकि उसे लगता था कि हर बात पर उसे ही टोका और समझाया जाता है, शुभम को छोटे होने की वजह से कभी भी कोई कुछ कहता ही नहीं है वहीं भव्या सोचती कि काश वो बड़ी होती तो जितना रोब विवेक उसके ऊपर जमाता है, उतना ही वो उसपर जमाती। घर वाले भी हर बात पर वो बड़ा है, उससे सीखो, उसको देखो कह कर परेशान भी नहीं करते। इस बात पर भी दोनों सहेलियां घंटों बातें करती और अपना दुखड़ा सुना कर मन हल्का करतीं।
चूंकि दोनों ही सहेलियां अब तक अपना लगभग हर काम एक जैसा और एक साथ करती आईं थीं तो जाहिर था कि अब बारहवीं खत्म होने के बाद दोनों एक ही कॉलेज में और एक ही विभाग में अपना नाम भी लिखवाना चाहती थीं। दोनों के मां बाप भी इस बात से काफी खुश थे कि अगर दोनों एक दूसरे के साथ रहेंगी तो इनके घरवालों को भी इनकी थोड़ी कम चिंता होगी जो इस उम्र की हर लड़कियों के मां बाप को ना चाहते हुए भी रहती ही है।
अब बात आई कॉलेज और विषय तय करने की तो बहुत मुश्किल से दोनों कॉमर्स पर आ कर मानी। जहां भव्या को कॉमर्स काफी पसंद था वहीं नीतिका के लिए ये सब समझना थोड़ा मुश्किल था लेकिन साथ रहेंगी ये सोच कर दोनों ही तैयार थीं। जब कॉलेज की बात आई तो उस वक्त उस एक साधारण से शहर में कुछ ही गिने चुने कॉलेज थे जो कॉमर्स की अच्छी पढ़ाई के लिए जाने जाते थे लेकिन मुसीबत ये थी कि वे सारे ही कॉलेज को-एजुकेशन वाले थे यानी कि जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों ही थे।
कॉलेज का को-एजुकेशन होने की वजह से नीतिका के घरवाले शुरू में थोड़ा हिचकिचाए लेकिन फिर बच्ची का अच्छा फ्यूचर सोच कर मान गए। दूसरी ओर भव्या के घर में तो मानो तूफान ही आने वाला था क्योंकि ये ना तो उसकी दादी चाहती थीं और ना ही उसका बड़ा भाई, विवेक। विवेक दिल का बुरा नहीं था लेकिन उसकी सोच भी बस आम भाइयों जैसी थी जिसकी वजह से वो अपनी बहन को उस दुनिया से दूर रखना चाहता था।
भव्या के कहने की वजह से नीतिका ने विवेक को काफी समझाया और तैयार किया ताकि वो घर में बांकी सभी को भी मना पाए। नीतिका और विवेक का रिश्ता भी अक्सर मिलने जुलने की वजह से काफी अच्छा था, नीतिका भी चूंकि उसका कोई खुद का बड़ा भाई नहीं था तो वो भी उसे ही बहुत मानती और इज्जत करती थी। वहीं विवेक भी उसका अपनी छोटी बहन भव्या की तरह ही खयाल भी रखता था। यही वजह भी थी कि नीतिका ने जबको-एजुकेशन वाले कॉलेज को लेकर मना नहीं किया तो वो उससे भी काफी नाराज़ था।
नीतिका - क्यों, इतना नाराज़ हो रहे हैं आप भैया, जबकि आप भी अच्छे से जानते हैं कि वो कॉलेज काफी अच्छा है।
विवेक (थोड़ा गुस्से में)- तुम लोगों को समझ नहीं आता, अभी तक तुम लोगों की दुनिया बस तुम्हारे कॉलेज से ले कर तुम्हारे चाट और गोलगप्पे की दुकान तक की ही है ना, इसीलिए.....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.