14-03-2022, 11:10 AM
(This post was last modified: 14-03-2022, 11:12 AM by Hot_Guy. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
PART-2
शिवानी जल्द ही पानी का गिलास लेकर गौरव के कमरे में पहुँच गयी
शिवानी ने इस समय हलके नीले रंग की साड़ी पहने हुई थी
गौरव टी शर्ट और जींस पहने हुए सोफे पर एक पैर दूसरे पैर पर रखा बैठा हुआ था
उसने शिवानी के हाथ से गिलास ले लिया और पानी पीने लगा
शिवानी पानी देकर वापस जाने लगी तो गौरव कड़क आवाज़ में बोला : यहीं खड़ी रहो. लगता है तुम्हे इस घर में रहने के तौर-तरीके मुझे ही समझाने पड़ेंगे
शिवानी उसकी रौबीली आवाज़ सुनकर एकदम रुक गयी और बोली : कैसे तौर तरीके ?
गौरव अब हल्के हल्के मुस्कराते हुए बोला : पहले तो यह समझ लो कि इस घर में मर्दों की बात फाइनल होती है और घर की औरतों को वही सब कुछ करना होता है जो उनसे करने के लिए कहा जाए जब मेरे पास पानी लेकर आयी हो तो यहां तब तक खड़ी रहो जब तक मैं तुमसे जाने के लिए न कहूँ -समझी कि नहीं ?
शिवानी हालांकि गौरव की इस दबंगई से काफी सहम गयी थी लेकिन फिर भी उसने इसका विरोध करते हुए कहा : मुझे क्या तुम लोगों ने अनपढ़ गंवार औरत समझा हुआ है जो मैं तुम्हारे इशारों पर नाचूंगी-आगे से मुझसे इस तरह से बात करने की जरूरत नहीं है- जिस तरह इशारों पर नाचने वाली औरत तुम्हे चाहिए तो तुम खुद अपनी शादी किसी ऐसी लड़की से कर लो जो तुम्हारे इशारों पर नाचती रहे.
गौरव : तेरी जुबान ज्यादा चलने लगी है -हमारे घर में औरतों को मर्दों से ऊंची आवाज़ में बात करने की इज़ाज़त नहीं है -रही बात तुझे इशारों पर नचाने की तो यह समझ ले कि तुझे न सिर्फ इशारों पर नाचना होगा बल्कि मैं जब चाहूँ और जैसे चाहूँ वैसे मुजरा भी करना होगा
इससे पहले शिवानी कुछ और बोल पाती, दरवाज़े पर घंटी बजने लगी और गौरव उससे बोला : चल अब जाकर दरवाज़ा खोल-लगता है भैया और मम्मी-पापा वापस आ गए हैं-तेरी खबर अब मैं बाद में लूँगा
शिवानी वहां से दरवाज़ा खोलने आ गयी और उसके बाद अपने पति विवेक को लेकर अपने कमरे में आ गयी -उसके मन में लगातार गौरव की कही हुए बातें चल रही थीं और वह इस उधेड़बुन में थी कि वह गौरव की उन बदतमीजियों को विवेक को बताये कि न बताये.
दोपहर को खाने के वक्त सब लोग एक साथ टेबल पर बैठकर खाना खा रहे थे. किचिन में खाना बनाने का काम हालांकि मेड करती थी लेकिन खाना परोसने का काम सुनीता देवी और अब शिवानी के जिम्मे आ गया था
शिवानी ने सुनीता देवी से कहा : मम्मी आप भी टेबल पर आकर खाना खाओ. खाना परोसने के काम मैं अकेले ही कर लूंगी
इसके बाद सुनीता देवी भी गौरव,विवेक और अपने पति के साथ खाना खाने बैठ गयीं
गौरव ने खाना खाते खाते अचानक यह नोटिस किया कि टेबल पर पानी नहीं रखा है. उसने तुरंत शिवानी को आवाज़ लगाते हुए कहा : भाभी, पानी देना -बहुत मिर्च लगी है
कुछ देर बाद शिवानी पानी लेकर आ गयी
गौरव ने शिवानी के हाथ से गिलास पकड़ते हुए उसे जमीन पर गिरा दिया और गुस्से में बोला : तुमसे कोई भी काम ढंग से नहीं होता है-जाओ अब पोछा लेकर आओ और फर्श पर पोछा लगाओ
शिवानी हालांकि यह समझ गयी थी कि गौरव ने जान बूझकर पानी का गिलास नीचे गिराया है लेकिन वह कुछ बोले बिना अपने पति विवेक की तरफ देखती हुई किचिन में चली गयी
इतनी देर में विवेक और उसके मम्मी पापा खाना खाकर टेबल से उठ चुके थे लेकिन गौरव अभी भी टेबल पर ही बैठा हुआ था
शिवानी पोछा लेकर वापस आयी और फर्श पर नीचे बैठकर पोछा लगाने लगी. घर में पोछा लगाने का काम वैसे तो सुबह सुबह मेड करती है लेकिन इस समय तो मेड जा चुकी थी
पोछा लगाते लगाते बार बार शिवानी की साड़ी का पल्लू नीचे गिर रहा था और गौरव को शिवानी के डीप कट ब्लाउज में से उसके मस्त मस्त मम्मे साफ़ नज़र आ रहे थे
शिवानी पोछा लगाकर उठने लगी तो गौरव ने उसे रोक दिया : उठो मत-मेरे पैरों पर भी पानी गिरा है-उन्हें भी साफ़ करो
शिवानी ने आस पास देखा कि वहां कोई और तो नहीं है और अपने हाथ में लिए पोछे से वह गौरव के पैरों को भी साफ़ करने लगी
गौरव ने शिवानी की तरफ हँसते हुए देखा और बोला : तुम्हारी असली जगह यहीं पर है-मेरे पैरों में. जितनी जल्दी तुम्हे यह बात समझ आ जाएगी उतना ही तुम्हारे लिए बेहतर होगा. चलो अब उठ जाओ और खाना खा लो
यह कहकर गौरव अपने कमरे की तरफ चला गया
खाना खाते खाते शिवानी के मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे और जिस तरह से उसके साथ घटनाएं हो रही थीं, उसे गौरव की कही गयी बातें ध्यान आ रही थीं कि इस घर में सिर्फ मर्दों की चलती है और औरतों को सिर्फ उनका कहा मानना होता है. उसे ध्यान आने लगा कि जब से वह इस घर में आयी है, उसे सबसे ज्यादा डर गौरव से ही लगता है क्योंकि वह हमेशा ही उसे ज़लील करने की कोशिश में लगा रहता है-आज उसने सोचा कि वह इस बारे से खुलकर अपने पति विवेक से बात करेगी ताकि रोज रोज का यह झगड़ा हमेशा के लिए बंद हो सके.
शेष अगले भाग में ............
शिवानी जल्द ही पानी का गिलास लेकर गौरव के कमरे में पहुँच गयी
शिवानी ने इस समय हलके नीले रंग की साड़ी पहने हुई थी
गौरव टी शर्ट और जींस पहने हुए सोफे पर एक पैर दूसरे पैर पर रखा बैठा हुआ था
उसने शिवानी के हाथ से गिलास ले लिया और पानी पीने लगा
शिवानी पानी देकर वापस जाने लगी तो गौरव कड़क आवाज़ में बोला : यहीं खड़ी रहो. लगता है तुम्हे इस घर में रहने के तौर-तरीके मुझे ही समझाने पड़ेंगे
शिवानी उसकी रौबीली आवाज़ सुनकर एकदम रुक गयी और बोली : कैसे तौर तरीके ?
गौरव अब हल्के हल्के मुस्कराते हुए बोला : पहले तो यह समझ लो कि इस घर में मर्दों की बात फाइनल होती है और घर की औरतों को वही सब कुछ करना होता है जो उनसे करने के लिए कहा जाए जब मेरे पास पानी लेकर आयी हो तो यहां तब तक खड़ी रहो जब तक मैं तुमसे जाने के लिए न कहूँ -समझी कि नहीं ?
शिवानी हालांकि गौरव की इस दबंगई से काफी सहम गयी थी लेकिन फिर भी उसने इसका विरोध करते हुए कहा : मुझे क्या तुम लोगों ने अनपढ़ गंवार औरत समझा हुआ है जो मैं तुम्हारे इशारों पर नाचूंगी-आगे से मुझसे इस तरह से बात करने की जरूरत नहीं है- जिस तरह इशारों पर नाचने वाली औरत तुम्हे चाहिए तो तुम खुद अपनी शादी किसी ऐसी लड़की से कर लो जो तुम्हारे इशारों पर नाचती रहे.
गौरव : तेरी जुबान ज्यादा चलने लगी है -हमारे घर में औरतों को मर्दों से ऊंची आवाज़ में बात करने की इज़ाज़त नहीं है -रही बात तुझे इशारों पर नचाने की तो यह समझ ले कि तुझे न सिर्फ इशारों पर नाचना होगा बल्कि मैं जब चाहूँ और जैसे चाहूँ वैसे मुजरा भी करना होगा
इससे पहले शिवानी कुछ और बोल पाती, दरवाज़े पर घंटी बजने लगी और गौरव उससे बोला : चल अब जाकर दरवाज़ा खोल-लगता है भैया और मम्मी-पापा वापस आ गए हैं-तेरी खबर अब मैं बाद में लूँगा
शिवानी वहां से दरवाज़ा खोलने आ गयी और उसके बाद अपने पति विवेक को लेकर अपने कमरे में आ गयी -उसके मन में लगातार गौरव की कही हुए बातें चल रही थीं और वह इस उधेड़बुन में थी कि वह गौरव की उन बदतमीजियों को विवेक को बताये कि न बताये.
दोपहर को खाने के वक्त सब लोग एक साथ टेबल पर बैठकर खाना खा रहे थे. किचिन में खाना बनाने का काम हालांकि मेड करती थी लेकिन खाना परोसने का काम सुनीता देवी और अब शिवानी के जिम्मे आ गया था
शिवानी ने सुनीता देवी से कहा : मम्मी आप भी टेबल पर आकर खाना खाओ. खाना परोसने के काम मैं अकेले ही कर लूंगी
इसके बाद सुनीता देवी भी गौरव,विवेक और अपने पति के साथ खाना खाने बैठ गयीं
गौरव ने खाना खाते खाते अचानक यह नोटिस किया कि टेबल पर पानी नहीं रखा है. उसने तुरंत शिवानी को आवाज़ लगाते हुए कहा : भाभी, पानी देना -बहुत मिर्च लगी है
कुछ देर बाद शिवानी पानी लेकर आ गयी
गौरव ने शिवानी के हाथ से गिलास पकड़ते हुए उसे जमीन पर गिरा दिया और गुस्से में बोला : तुमसे कोई भी काम ढंग से नहीं होता है-जाओ अब पोछा लेकर आओ और फर्श पर पोछा लगाओ
शिवानी हालांकि यह समझ गयी थी कि गौरव ने जान बूझकर पानी का गिलास नीचे गिराया है लेकिन वह कुछ बोले बिना अपने पति विवेक की तरफ देखती हुई किचिन में चली गयी
इतनी देर में विवेक और उसके मम्मी पापा खाना खाकर टेबल से उठ चुके थे लेकिन गौरव अभी भी टेबल पर ही बैठा हुआ था
शिवानी पोछा लेकर वापस आयी और फर्श पर नीचे बैठकर पोछा लगाने लगी. घर में पोछा लगाने का काम वैसे तो सुबह सुबह मेड करती है लेकिन इस समय तो मेड जा चुकी थी
पोछा लगाते लगाते बार बार शिवानी की साड़ी का पल्लू नीचे गिर रहा था और गौरव को शिवानी के डीप कट ब्लाउज में से उसके मस्त मस्त मम्मे साफ़ नज़र आ रहे थे
शिवानी पोछा लगाकर उठने लगी तो गौरव ने उसे रोक दिया : उठो मत-मेरे पैरों पर भी पानी गिरा है-उन्हें भी साफ़ करो
शिवानी ने आस पास देखा कि वहां कोई और तो नहीं है और अपने हाथ में लिए पोछे से वह गौरव के पैरों को भी साफ़ करने लगी
गौरव ने शिवानी की तरफ हँसते हुए देखा और बोला : तुम्हारी असली जगह यहीं पर है-मेरे पैरों में. जितनी जल्दी तुम्हे यह बात समझ आ जाएगी उतना ही तुम्हारे लिए बेहतर होगा. चलो अब उठ जाओ और खाना खा लो
यह कहकर गौरव अपने कमरे की तरफ चला गया
खाना खाते खाते शिवानी के मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे और जिस तरह से उसके साथ घटनाएं हो रही थीं, उसे गौरव की कही गयी बातें ध्यान आ रही थीं कि इस घर में सिर्फ मर्दों की चलती है और औरतों को सिर्फ उनका कहा मानना होता है. उसे ध्यान आने लगा कि जब से वह इस घर में आयी है, उसे सबसे ज्यादा डर गौरव से ही लगता है क्योंकि वह हमेशा ही उसे ज़लील करने की कोशिश में लगा रहता है-आज उसने सोचा कि वह इस बारे से खुलकर अपने पति विवेक से बात करेगी ताकि रोज रोज का यह झगड़ा हमेशा के लिए बंद हो सके.
शेष अगले भाग में ............
to my Thread containing Sex stories based on Humiliation, Blackmail & BDSM
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ जाएंगे खुद रास्ता बन जाएगा
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ जाएंगे खुद रास्ता बन जाएगा