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Adultery अहसान का कर्ज
#14
दस मिनट के बाद वो दीदी के ऊपर से हट गए. दीदी की पकौड़े सी फूली चुत को देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे रात भर चुत का सत्यानाश किया गया हो.
कुछ देर के बाद दीदी उठ कर अपने कपड़ों को पहन कर तैयार हो गईं. उनकी चाल बदल गई थी. दीदी बाहर को आने लगी थीं, तो मैं वहां से हट गया और अपने घर आ गया.
कुछ देर के बाद मैंने दरवाजे की घंटी सुनी, तो मैंने दरवाजा खोल दिया.
दीदी ने पूछा- तुम कब आए?
मैंने बताया- बस मैं अभी ही आया हूँ.
हम दोनों अपने अपने रूम में चले गए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: अहसान का कर्ज - by neerathemall - 09-03-2022, 04:25 PM



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