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Incest बहन के जिस्म का
#30
“उसमें एक ही बाथरूम हुआ करता था.”
“हाँ सही कहा.”
“आपके नहाने के बाद मैं अक्सर बाथरूम में जाता था, आपकी गर्म पैंटी सूंघता था और मुठ मारता था. आपके कॉलेज में जाने पर तो कभी कभी मुझे आपकी गीली पैंटी मिल जाती थी जिसे मैं सूँघता और चाटता था. आपकी चूत की खुशबू बहुत मादक लगती थी. मेरे लौड़े का बुरा हाल हो जाता था.”
“हे भगवान, तू तो नंगी देखता तो चोद ही डालता मुझे!”
उसकी बातों से मैं फिर से गर्म हो रही थी.
“नहीं दीदी, नंगी तो मैंने कई बार देखा तुम्हें, मैं अक्सर आपको कपड़े बदलते हुये, बाथरूम में नहाते हुए छुप कर देखता था। लेकिन पहल करने की हिम्मत न हुई।”
अब मैं समझी कि मेरी नंगी फोटोज देख कर भी उसने प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी। नंगी तो वो मुझे बचपन से देखता आ रहा है.
“तो अब तो कर लिया न!”
“अब तो रोज करूँगा दीदी!”
“अच्छा जी?”
“हाँ, मेरी डार्लिंग दीदी!”
“अच्छा सुन, ये बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए, किसी को पता चला तो बड़ी बदनामी होगी.”
“उस सब की टेंशन आप मुझ पर छोड़ दो दीदी, सबके सामने हम भाई बहन की तरह ही रहेंगे.”
“ओके”
“बोलो, रोज चुदोगी न मुझसे?”
“हम्म बाबा ठीक है.”
“नहीं, मुँह से बोलो.”
“ओके बाबा रोज चुदूँगी अपने छोटे भाई से, अब सो जा मुझे भी सोने दे.”
“दीदी एक बार और करने दो न … मैं आपसे बातें करके गर्म हो चुका हूँ.” विशाल ने मेरे बोबे दबाते हुए बोला.
“अभी तो किया था?”
“क्या करूँ दीदी, आप इतनी सेक्सी हॉट हो कि आप को देख कर हमेशा मेरा लन्ड खड़ा हो जाता है.” वो लगातार मेरे बोबे दबाते हुए मुझे सूँघते हुए चूमता-चाटता जा रहा था।
मैं भी थोड़ा गर्म हो गयी थी उसकी बचपन की कहानियां सुनकर- भाई, गर्म तो मैं भी हूं लेकिन मेरी चूत चुदने के हालात में नहीं है.
उसने जो चुदाई की थी उससे मेरी चूत पाव रोटी बन गयी थी और काफी दर्द कर रही थी.
मैंने कहा- तू कहे तो मैं हाथ से शांत कर दूं तेरे लंड को?
वो तो मेरी गांड मारने की फिराक में था लेकिन मैंने साफ मना कर दिया। कुछ देर की बहस के बाद में वो मान गया।
फिर मैं उसके पैरों के पास आई। उसका मूसल लन्ड फुंफकार रहा था। मैंने उसे हाथों से पकड़ लिया. वो काफी मोटा और लम्बा था। उसका लंड मेरी मुट्ठी में पूरा आ भी नहीं रहा था. मुझे यकीन नहीं हुआ कि मैं कुछ देर पहले ही इस लंड से चुद चुकी हूं.
मैंने हाथ ऊपर नीचे करना शुरू किया। उसका लन्ड खम्भे की तरह खड़ा था और गर्म भी था। भाई को भी मस्ती छाने लगी जो उसके चेहरे पर साफ दिख सकती थी। उसका मस्त लौड़ा देख मेरे मुंह में पानी आ रहा था। मैंने न चाहते हुए भी उसके टोपे पर जीभ से फेर दिया। हल्का नमकीन स्वाद था उसके लंड का.
जीभ से सुपारे को चाटते हुए उसका टोपा मैंने मुँह में भर लिया। उसका टोपा काफी बड़ा था, मुश्किल से मुंह में आ पा रहा था। मैं उसके टोपे को मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ में नीचे ही नीचे उसके लन्ड को मुठिया भी रही थी। अब मुझे भी मस्ती छा रही थी. मैंने उसका लण्ड अंदर लेना शुरू किया।
विशाल:
दीदी रंडियों की तरह मेरा लौड़ा चूस रही थी। उन्होंने लौड़े को गले तक उतार रखा था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वो लंड को पहली बार चूस रही है।
वो मेरा लंड अपने गले तक उतार रही थी. जब उसकी सांस फूल जाती तो फिर से बाहर निकाल लेती. फिर मेरे लौड़े पर जीभ फिराने लगती. बीच बीच में दीदी मेरे अंडकोष भी चाट रही थी.
प्रीति:
मुझे अब मजा आ रहा था। उसका प्रीकम का स्वाद मैं अपनी जीभ पर महसूस कर सकती थी। भाई अहहह … इस्स … की कामुक आवाजें निकाल रहा था।
15 मिनट से मैं उसका लौड़ा चूस रही थी लेकिन साला झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरा मुँह दर्द करने लगा तो वो मेरा सिर पकड़ कर मेरा मुख चोदन करने लगा।
5 मिनट के मुख चोदन में भी वो नहीं झड़ा तो मैंने हार मान कर उसे चुदाई की इजाजत दे दी।
मैं उसके लन्ड पर सवार हो गई। वो धक्के लगाने लगा। उसने मुझे अपने से चिपका रखा था। मेरा भाई मेरे होंठ चूसते हुए धक्के लगा रहा था। मैं भी उसका लन्ड चूस कर गर्म हो चुकी थी और मस्ती में चुद रही थी।
अगले 20 मिनट मुझे अलग अलग आसनों में चोदने के बाद वो मेरी चूत में ही झड़ गया। मैं जीवन में पहली बार एक ही दिन में तीसरी बार झड़ी थी। उसका जोश काबिले तारीफ था। लेकिन लौड़ा बड़ा ही बेदर्द था. इसका अहसास तो मुझे सुबह ही होने वाला था।
मैं थक गई थी। कब आंख लग गयी पता ही नहीं चला। सुबह उठी तो मैंने पाया कि हम दोनों नंगे ही चिपक कर सो रहे थे। मैंने मोबाइल देखा तो दिन के 10 बज रहे थे। मैंने भाई को उठाया और खुद भी कपड़े पहने।
कल की चुदाई के बाद जो हाल था उसके कारण मैं लँगड़ा कर चल रही थी। भाई ने मुझे सहारा देकर कमरे तक पहुंचाया। उसने बर्फ से मेरी चूत की सिकाई की। तब जाकर मैं थोड़ा चलने के काबिल हुई।
आते समय भी वो जुगाड़ लगाकर मेरे साथ अकेले हो लिया। रास्ते में उसने एक बार फिर मुझे चोद दिया ये कहते हुए कि फिर “आपकी रसीली चूत पता नहीं कब नसीब हो”
इसके बाद तो वो जब मन करता वो मेरी चुदाई करता। मुझे भी जब मन करता उससे चुदने लगी. वैसे ऐसा कभी नहीं होता कि मेरा मन न हो चुदाई के लिए. मैं हमेशा तैयार रहती हूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बहन के जिस्म का - by neerathemall - 09-03-2022, 04:04 PM



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