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Incest बहन के जिस्म का
#29
वो मेरी चूत चाटने लगा। मैं मदमस्त हो उठी। कुछ देर में फिर वो अलग हुआ। मेरी वासना चरम पराकाष्ठा पर थी. मुझे वर्तमान में आने में समय लगा। आंखें खोल कर जब मैंने देखा तो अगले ही मिनट वो सिर्फ चड्डी में था, जिसमें उसका तना हुआ वज्र लण्ड साफ दिखाई दे रहा था। वो मुस्कराते हुये अपनी चड्डी के ऊपर से ही अपने लंड को मसल रहा था.
उसने मेरी ललचाई नजरों को झेंपते हुये मुझे अपना लौड़ा ऑफर किया चाटने के लिये। मैंने साफ मना कर दिया। इस पर उसने अपनी चड्डी भी निकाल फेंकी। 8 इंच का मूसल लंड फुफकारता हुआ बाहर निकल आया. वो तोप की तरह टाइट था।
वैसे तो मुझे लंड चूसना पसंद नहीं था लेकिन उसके मदमस्त लन्ड को देख मेरे मुँह में पानी आ गया। हालांकि उसने दोबारा नहीं पूछा। वो झुका और उसने अपने नीचे गिरी लोअर से कंडोम का पैकेट निकाल लिया. पैकेट को मुंह से फाड़ कर लौड़े पर लगाने लगा।
उसने मुझे पीठ के बल लिटा दिया। इतना भयंकर लन्ड देख मेरी गांड तो फटने लगी थी लेकिन पीछे हटने की हालत में मैं भी नहीं थी। मेरी कमर के नीचे विशाल ने तकिया डाल दिया ताकि मेरी चूत थोड़ी उठ जाए. वो थूक लगा कर मेरी चूत पर मलने लगा। मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी।
डर के मारे मैं बोली- भाई, थोड़ा आराम से … करना।
वो मेरी ओर देख कर शैतानी मुस्कान से हँसने लगा. फिर अपने लंड के टोपे को मेरी चूत पर मसलने लगा. मैं फिर से मचल उठी. तेज तेज सिसकारियां लेने लगी.
उसने लंड को मेरी चूत के छेद पर सेट कर दिया और अंदर पेलने लगा. मेरे मुंह से चीख निकल गयी. मैं चिल्लाई तो उसने मेरे मुंह पर हाथ रख लिया और मेरी चीख को अंदर ही दबा लिया. वो मेरे होंठों को चूमने लगा और चूचियों को मसलने लगा.
दोस्तो, मेरी चूत नयी तो नहीं थी. मैं दो दो लंड से चुद चुकी थी. मगर भाई का लंड उन दोनों लंड पर बहुत भारी था. विशाल ने दबाव बनाया और उसका लंड मेरी चूत की दीवारों को चीरते हुए अंदर तक चला गया.
दर्द के मारे मेरी आंखों से आंसू आ गये. वो लगातार मुझे चूमे-चाटे जा रहा था।
मैं सामान्य हुई।
उसने धक्के लगाना शुरू किया। हल्के हल्के धक्के लगाता रहा।
कुछ देर में मेरी चूत ने उसके लन्ड को एडजस्ट कर लिया. उसने धक्के तेज कर दिये.
अब मैं भी मस्ती से सिसकारियां ले रही थी। मेरी और उसकी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं।
मैं उसके भार से नीचे दबी थी। इसी आसन में वो मुझे करीब 10 मिनट तक चोदता रहा। साथ ही साथ वो मेरी चूचियां मसलता तो कभी चूसता और चाट लेता. कभी मेरे होंठों को चूसता तो कभी मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन कर देता. उसके ऐसा करने से मैं कुछ ज्यादा ही गर्म हो गयी थी.
फिर उसने आसन चेंज किया. मुझे घोड़ी बना दिया और पीछे से उसने लन्ड पेल दिया और घोड़ी वाले आसन में चुदाई करने लगा। मेरी कमर पकड़ कर धक्के लगाते हुए उसका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में जा रहा था जिसके कारण फच-फच की आवाज हो रही थी. लगता उसका लन्ड पूरा मेरी चुत में घुसता जिससे फच फच की आवाज होती।
‘आह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… इस्स… ह्म्म्म… यस. फक मी… याह्ह’ करके मैं और वो दोनों कामुक आवाजें निकाल रहे थे.
फिर वो नीचे आ गया और मुझे अपने लौड़े पर बिठा लिया और नीचे से धक्के लगाने लगा।
विशाल- ये काफी मस्त आसान था। मैं दीदी की कमर से पकड़ कर बैलेंस बनाये हुए था. वो खुद ही उछल कर मेरे लंड को अंदर ले रही थी. दीदी का खुला बदन मेरी आंखों के सामने था। हर एक धक्के के साथ उनकी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थीं। दीदी के हाथ उसके बालों में थे। उनकी चिकनी काखें मेरे सामने थीं। दीदी का वो चुदक्कड़ और कामुक रूप सच में देखने लायक था.
प्रीति- भाई काफी उत्तेजित था। उसके धक्के अपने पूरे जोर पर थे। मैं भी अब अपने चरम सुख के करीब पहुंच गयी थी। वो मुझे अपनी बांहों में जकड़े हुए धक्के लगा रहा था। उसकी पकड़ मुझ पर मजबूत होती जा रही थी। मेरा बदन अकड़ने लगा.
मैं कांपते हुए झड़ने लगी और उसे कसकर अपने बांहों में जकड़ने लगी। कुछ देर में वो भी झड़ गया। निढाल होकर विशाल मेरे ऊपर गिर गया। हाँफते हुए वो मेरे होंठों को चूमने लगा। फिर मेरे बगल में लेट गया।
कुछ देर तो हम यूं ही पड़े हुए हाँफते रहे. 30 मिनट तक जबरदस्त चुदाई हुई थी। चढ़ाई करके मैं उसके विशालकाय शरीर पर लेटी हुई उससे पूछने लगी- अच्छा सच बता कि तू स्कूल में मेरे पीछे क्यों बैठा करता था.
वो बोला- मुझे आपके बदन की खुशबू बहुत पसंद थी। आप नई नई जवान हुई थी. आपकी कांखों से आती मादक खुशबू मुझे पागल बनाती थी। आप के बदन की खुशबू लेने के लिए मैं आपके पीछे बैठता था।
“छीईई …”
“इसमें छी क्या दीदी, आपकी गर्म जवानी थी ही ऐसी!”
“और क्या क्या किया है तूने मेरे पीठ पीछे?”
“आपके चूचे आपकी उम्र की लड़कियों से काफी बड़े थे। स्कूली ड्रेस में आपके तने हुए चूचों को देख कर मेरा लन्ड खड़ा हो जाता था।”
“अच्छा जी!” मैंने कहा.
“हाँ, स्कर्ट में आपकी मटकती गांड देखकर जी करता था कि काट खाऊँ मैं आपके मस्त चूतड़ों को!”
“बदमाश … अपनी बहन के चूचे और गांड देखता था तू!” मैंने उसके सीने पर प्यार से मुक्का मारते हुए कहा.
“आपको हमारा किराये का घर याद है जब हम छोटे थे?”
“हाँ याद है.”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बहन के जिस्म का - by neerathemall - 09-03-2022, 04:03 PM



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