09-03-2022, 03:17 PM
मैं भीगे बदन के कारण ठंड से ठिठुर रही थी।
भाई ने कहा- दीदी, आप भीग चुकी हो. कपड़े बदल लो.
हमने एक्स्ट्रा कपड़े लिए ही नहीं थे। सारे लग्गेज को हमने मां और पापा के साथ ही भेज दिया था.
उसने मुझे ठंड से ठिठुरती देख कर अपनी जैकेट ऑफ़र की। लेकिन मैं पूरी तरह भीगी हुई थी। उसके कपड़े उसके लैदर जैकेट की वजह से काफी हद तक बचे हुए थे।
कुछ देर बाद वो बोला- दीदी अगर आप बुरा न मानो तो आप मेरे कपड़े पहन सकती हो.
“और तू क्या पहनेगा फिर?” मैंने पूछा.
वो बोला- “मेरे पास है न. वैसे भी मैं भीगा नहीं हूं, मुझे जरूरत नहीं है”
चूंकि छोटे कपड़े तो मैं घर में भी पहनती थी। वैसे भी नंगी तो वो मुझे देख ही चुका था। उसे रिझाने का ये मौका मैं कैसे गंवा देती।
मैं कपड़े बदलने गयी तब तक उसने होटल वालों से कह कर अलाव का इंतजाम करवा लिया था। कुछ देर आग के सामने बैठे हुए हम बातें करते रहे। आग की गर्मी से हमें कुछ राहत मिली.
आज सुबह से ही मेरी चूत फड़क रही थी। मुझे अहसास हो रहा था कि आज कुछ होने वाला है लेकिन मुझे इसकी उमीद नहीं थी कि मैं भाई के साथ घर से इतनी दूर इस होटल में अकेले एक कमरे में होंगी।
पिछले कई महीनों से मैं एक किसी ऐसे ही अवसर की तलाश में थी. उस रात भाई को देख कर मेरे मन में एक ही तमन्ना बार बार उठ रही थी कि वो अपनी मजबूत बांहों में भर कर मुझे पूरी रात प्यार करे.
मैं उसके सेक्सी बदन को भोगना चाह रही थी. मगर अभी भी हमारे बीच में बहन-भाई के रिश्ते की दीवार सी खड़ी थी. उस दीवार को लांघने की हिम्मत भी नहीं हो पा रही थी मुझसे.
भाई ने कहा- दीदी, आप भीग चुकी हो. कपड़े बदल लो.
हमने एक्स्ट्रा कपड़े लिए ही नहीं थे। सारे लग्गेज को हमने मां और पापा के साथ ही भेज दिया था.
उसने मुझे ठंड से ठिठुरती देख कर अपनी जैकेट ऑफ़र की। लेकिन मैं पूरी तरह भीगी हुई थी। उसके कपड़े उसके लैदर जैकेट की वजह से काफी हद तक बचे हुए थे।
कुछ देर बाद वो बोला- दीदी अगर आप बुरा न मानो तो आप मेरे कपड़े पहन सकती हो.
“और तू क्या पहनेगा फिर?” मैंने पूछा.
वो बोला- “मेरे पास है न. वैसे भी मैं भीगा नहीं हूं, मुझे जरूरत नहीं है”
चूंकि छोटे कपड़े तो मैं घर में भी पहनती थी। वैसे भी नंगी तो वो मुझे देख ही चुका था। उसे रिझाने का ये मौका मैं कैसे गंवा देती।
मैं कपड़े बदलने गयी तब तक उसने होटल वालों से कह कर अलाव का इंतजाम करवा लिया था। कुछ देर आग के सामने बैठे हुए हम बातें करते रहे। आग की गर्मी से हमें कुछ राहत मिली.
आज सुबह से ही मेरी चूत फड़क रही थी। मुझे अहसास हो रहा था कि आज कुछ होने वाला है लेकिन मुझे इसकी उमीद नहीं थी कि मैं भाई के साथ घर से इतनी दूर इस होटल में अकेले एक कमरे में होंगी।
पिछले कई महीनों से मैं एक किसी ऐसे ही अवसर की तलाश में थी. उस रात भाई को देख कर मेरे मन में एक ही तमन्ना बार बार उठ रही थी कि वो अपनी मजबूत बांहों में भर कर मुझे पूरी रात प्यार करे.
मैं उसके सेक्सी बदन को भोगना चाह रही थी. मगर अभी भी हमारे बीच में बहन-भाई के रिश्ते की दीवार सी खड़ी थी. उस दीवार को लांघने की हिम्मत भी नहीं हो पा रही थी मुझसे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.