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Adultery मस्तराम के मस्त किस्से
"ओह हो! तुम फिर शुरू हो गई। एक दिन से क्या फर्क पड़ता है? कल शाम को वापस आ ही रहा हूं न।"

"हां, तुम्हें एक दिन क्या एक साल से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर काम से इतना प्रेम था तो शादी क्यों की?"

"अरे, मेरी बात सुनो तो।"

"मुझे कुछ नहीं सुनना। तुम्हें जो करना है करो, जहां जाना है जाओ। कौन सी नई बात है। हमेशा अकेली रहती हूं, यहां भी रह लूंगी। तुम अपना ऑफिस संभालो। अग्नि के सात फेरे लेकर जन्म जन्म तक कंपनी का साथ निभाने की कसम खाई है न तुमने।"

मनीष जितना समझाने का प्रयास करता, शालिनी उतना क्रोधित होती। मनीष को एहसास होने लगा था कि समझाना व्यर्थ है। शालिनी को मनाने के चक्कर में फ्लाइट छूट जाएगी। जो मान मनौवल करना है वो लौट कर कर लेगा। "देखो, मेरी फ्लाइट छूट जाएगी। अभी मैं नहाने जा रहा हूं। कल लौट कर आऊंगा तब जितना मन करे झगड़ लेना।"

मनीष बाथरूम में घुस गया। शालिनी की इच्छा थी की जा ही रहा है तो कम से कम नहाते समय ही सेक्स कर ले। पर उस मुरख ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया था। शालिनी का गुस्सा और बढ़ गया। वो वैसे ही नंगी बैठी रही। मनीष बाथरूम से निकल कर फिर से शालिनी से उलझना नहीं चाह रहा था। वो तैयार होने और अपना कुछ कपड़ा छांट कर बैग में भरने लगा। वो देख कर भी नंगी बैठी शालिनी को अनदेखा कर रहा था और क्रोध की अग्नि से पिघल कर शालिनी की वासना आंसू बन उसके आंखों से बहने लगे थे। मनीष शालिनी को औपचारिक किस करके बैग ले कमरे से निकल गया।

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RE: मस्तराम के मस्त किस्से - by modern.mastram - 03-03-2022, 10:06 PM



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