16-02-2022, 02:36 PM
(This post was last modified: 27-03-2022, 08:38 AM by modern.mastram. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
साइमा को तसल्ली हो गया था। उसने कहा "मैं साइमा हूं। रास्ता भटक गई हूं। हम 7 लोगों के ग्रुप में थे। आप प्लीज़ मुझे उत्तरकाशी तक पहुंचने में हेल्प करेंगे? होपफुली वहां मोबाइल नेटवर्क काम करेगा। फिर मैं अपने ग्रुप से कॉन्टैक्ट कर पाऊंगी। हमारा नेक्स्ट हाल्ट उत्तरकाशी ही था।"
"उत्तरकाशी जाने के लिए आप इधर क्या कर रहीं थी? किस टूट ऑपरेटर ने आपको इस रास्ते पर भेज दिया? ये तो उत्तरकाशी ट्रेक का पार्ट नहीं है।"
"दरअसल हम टूर ऑपरेटर के साथ नहीं, खुद से रूट डिसाइड करके ट्रैकिंग कर रहे हैं।"
"व्हाट? आर यू मैड? ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ये बहुत डेंजरस है। ख़ैर, चलिए आपको उत्तरकाशी पहुंचा दें। हमारे साथ आइए।"
"थैंक यू ऑफिसर्स। आई एम रियली सॉरी फॉर माइ अर्लियर रूड बेहवियर।"
"इट्स आलराइट।"
दो जवान तगड़े घोड़े आगे आगे बढ़े, कबूतरी पीछे पीछे। नदी के किनारे जाता ये रास्ता ऊपर के रास्ते इतना सुगम नहीं था। दुर्गम भी था और जोखिम भरा भी। पैर फिसला तो सीधा नदी में। नदी में गई तो बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। अगले दिन उसका लाश हरिद्वार में तैरता हुआ मिलेगा। साइमा को बार बार लुढ़कते, फिसलते देख कर नीरज ने उसका बैग अपने पीठ पर टांग लिया था। आगे आगे राजीव, बीच में साइमा और पीछे पीछे नीरज। कभी राजीव हाथ थाम कर सहारा देता, तो कभी नीरज उसे फिसलने और गिरने से बचाता। खूबसूरत सूरत और मादक जिस्म वाली साइमा के बदन को बार बार छूने के बाद तो देवता की भी वासना जाग जाए, ये तो मृत्युलोक के तुच्छ प्राणी थे। नीरज की नजर नितम्ब पर टिक गई थी तो राजीव मुड़ मुड़ कर कभी साइमा का शक्ल तो कभी साइमा का स्तन देखता।
"उत्तरकाशी जाने के लिए आप इधर क्या कर रहीं थी? किस टूट ऑपरेटर ने आपको इस रास्ते पर भेज दिया? ये तो उत्तरकाशी ट्रेक का पार्ट नहीं है।"
"दरअसल हम टूर ऑपरेटर के साथ नहीं, खुद से रूट डिसाइड करके ट्रैकिंग कर रहे हैं।"
"व्हाट? आर यू मैड? ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ये बहुत डेंजरस है। ख़ैर, चलिए आपको उत्तरकाशी पहुंचा दें। हमारे साथ आइए।"
"थैंक यू ऑफिसर्स। आई एम रियली सॉरी फॉर माइ अर्लियर रूड बेहवियर।"
"इट्स आलराइट।"
दो जवान तगड़े घोड़े आगे आगे बढ़े, कबूतरी पीछे पीछे। नदी के किनारे जाता ये रास्ता ऊपर के रास्ते इतना सुगम नहीं था। दुर्गम भी था और जोखिम भरा भी। पैर फिसला तो सीधा नदी में। नदी में गई तो बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। अगले दिन उसका लाश हरिद्वार में तैरता हुआ मिलेगा। साइमा को बार बार लुढ़कते, फिसलते देख कर नीरज ने उसका बैग अपने पीठ पर टांग लिया था। आगे आगे राजीव, बीच में साइमा और पीछे पीछे नीरज। कभी राजीव हाथ थाम कर सहारा देता, तो कभी नीरज उसे फिसलने और गिरने से बचाता। खूबसूरत सूरत और मादक जिस्म वाली साइमा के बदन को बार बार छूने के बाद तो देवता की भी वासना जाग जाए, ये तो मृत्युलोक के तुच्छ प्राणी थे। नीरज की नजर नितम्ब पर टिक गई थी तो राजीव मुड़ मुड़ कर कभी साइमा का शक्ल तो कभी साइमा का स्तन देखता।