14-01-2022, 03:56 PM
दीदी मुस्कुरा कर बोलीं- तुम बहुत शैतान हो और तुम्हारे पास हर बात का जवाब है।
जैसा मैंने कहा था, दीदी टॉयलेट में गईं और थोड़ी देर के बाद लौट आईं।
जब मैं दीदी को देख कर मुस्कुराया तो दीदी शर्मा गईं और अपनी गर्दन झुका लीं।
हम लोग फिर से हॉल में चले गए जब बैठने लगीं तो अपनी स्कर्ट ऊपर उठा लीं, लेकिन पूरी नहीं।
हम लोगों के जैकेट अपने-अपने गोद में थीं और हम लोग पॉपकॉर्न खाना शुरू किया। थोड़ी देर के बाद हम लोगों ने पॉपकॉर्न खत्म किए और फिर पेप्सी भी खत्म कर लिया।
फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर नीचे हो कर पैर फैला कर आराम से बैठ गए थोड़ी देर के बाद मैंने अपना हाथ बढ़ा कर दीदी की गोद पर रखी हुई जैकेट के नीचे से ले जाकर के दीदी की जाँघों पर रख दिया।
मेरे हाथों को दीदी की जाँघों से छूते ही दीदी ने अपने जाँघों को और फैला दिया। फिर दीदी ने अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर उठा करके अपने नीचे से अपनी स्कर्ट को खींच करके निकाल दिया और फिर से बैठ गईं अब दीदी हॉल के सीट पर अपनी नंगी चूतड़ों के सहारे बैठी थीं।
सीट की रेग्जीन से दीदी को कुछ ठंड लगीं पर वो आराम से सीट पर नीचे होकर के बैठ गईं। मैं फिर से अपने हाथ को दीदी की स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मैं सीधे दीदी की चूत पर अपना हाथ ले गया।
जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूत को छुआ, दीदी झुक गईं जैसे कि वो मुझे रोक रही हो। मुझे दीदी की नंगी चूत में हाथ फेरना बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे चूत पर हाथ फेरते-फेरते चूत के ऊपरी भाग पर कुछ बाल का होना महसूस हुआ।
मैं दीदी की नंगी चूत और उसके बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा। मैं दीदी की चूत को कभी अपने हाथ में पकड़ कर कस कर दबा रहा था, कभी अपने हाथ उसके ऊपर रगड़ रहा था और कभी-कभी उनकी क्लिंट को भी अपने उँगलियों से रगड़ रहा था।
मैं जब दीदी की क्लिंट को छेड़ रहा था तब दीदी का शरीर कांप सा जाता था। उनको एक झुरझुरी सी होती थीं। मैंने अपनी एक ऊँगलीं दीदी की चूत के छेद में घुसेड़ दी।
ओह भगवान चूत अंदर से बहुत गर्म थीं और मुलायम भी थीं। चूत अंदर से पूरी रस से भरी हुई थीं।
मैं अपनी ऊँगलीं को धीरे-धीरे चूत के अंदर और बाहर करने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपनी दूसरी ऊँगलीं भी चूत में डाल दी। ये तो और भी आसानी से चूत में समा गईं।
मैंने दोनों उँगलियों से दीदी चूत को चोदना शुरू किया।
दीदी की तेज सांसों की आवाज मझे साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थीं। थोड़ी देर के बाद दीदी का शरीर अकड़ गया, कुछ ही देर के बाद दीदी शांत हो कर सीट पर बैठ गईं।
अब दीदी की चूत में से ढेर सारा पानी निकलने लगा। चूत की पानी से मेरा पूरा हाथ गीला हो गया।
मैं थोड़ी देर रुक कर फिर से दीदी की चूत में अपनी ऊँगलीं चलाने लगा। थोड़ी देर के बाद दीदी दोबारा झड़ी। फिर मुझे जब लगा कि सिनेमा अब खत्म होने वाला है, तो मैंने अपना हाथ दीदी की चूत पर से हटा लिया।
जैसे ही सिनेमा खत्म हुआ, मैं और दीदी उठ कर बाहर निकल आए।
बाहर आने के बाद मैंने दीदी से कहा- अगले शो में जो भी उस सीट पर बैठेगा उसका पैंट या उसकी साड़ी भीग जाएगी।
दीदी मेरे बातों को सुन कर बहुत शर्मा गईं और मुझसे नज़र हटा लीं।
दीदी टॉयलेट चलीं गईं हो सकता था, कि अपनी चूत और जाँघों को धोकर साफ़ करने के लिए और अपनी पेंटी फिर से पहनने के लिए गईं हों।
अभी सिर्फ़ तीन बजे थे और मैंने दीदी से बोला- तो बहुत टाइम है और माँ भी घर पर सो रही होंगी।
क्या तुम अभी घर जाना चाहती हो? वैसे मुझे कुछ प्राइवेट में चलने का इच्छा हैं।
क्या तुम मेरे साथ चलोगी?
दीदी मेरी आँखों में झाँकती हुई बोलीं- प्राइवेट में चलने की क्या बात हैं? वैसे मैं भी अभी घर नहीं जाना चाहती।
मैं बोला- प्राइवेट का मतलब है कि किसी होटल में जाना हैं?
दीदी बोलीं- सिर्फ़ होटल? या और कुछ?
मैं दीदी से बोला- सिर्फ़ होटल या और कुछ! मतलब?
दीदी बोलीं- तेरा मतलब होटल के कमरा से है?
‘हाँ मेरा मतलब होटल के कमरे से ही है।’ मैंने कहा।
दीदी ने तब मुझसे फिर पूछा- होटल के कमरे में ही क्यों?
मैंने दीदी की बातों को सुन कर यह समझा कि दीदी ने अभी भी होटल चलने के लिए ना नहीं किया हैं।
मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए बोला- अभी तक मैंने कई बार तुम्हारी चूची को छुआ, दबाया, मसला और चूसा है, फिर मैंने तुम्हारी चूत को भी छुआ और उसके अंदर अपनी ऊँगलीं भी डालीं। और तुमने कभी भी मना नहीं किया।
मैं आगे बढ़ने से रुका तो इस बात से कि हमारे पास पूरी प्राइवेसी नहीं थीं। इस बात के डर से कि कोई आ ना जाए, या हमें देख न ले। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब होटल के कमरे में जाकर हम लोगों को पूरी प्राइवेसी मिले।
मैं इतना कह कर रुक गया और दीदी की तरफ़ देखने लगा कि अब दीदी भी कुछ बोले। जब दीदी कुछ नहीं बोलीं तो मैंने फिर उनसे कहा- तुम क्या चाहती हो?
दीदी मुझसे बोलीं- मतलब यह हुआ कि तुम इसलिए मेरे साथ होटल जाना चाहते हो ताकि वहाँ जा कर तू मुझे अच्छी तरफ़ से छू सके। मेरे दूध को चूस सके और मेरे पैरों के बीच अपना हाथ डाल कर मजा ले सके?
‘ठीक’ कह रही हो, दीदी। मैं जब भी तुम्हें छूता हूँ तो हम लोगों के पास प्राइवेसी ना होने की वजह से रुकना पड़ता है,
‘जैसे आज सिनेमा हॉल में ही देख लो’ मैंने दीदी से कहा।
‘तो तू मुझे ठीक से और बिना डर के छूना चाहता है। मेरी चूची पीना चाहता है, और मेरी टांगो के बीच हाथ डाल कर अपनी ऊँगलीं चूत में डाल कर देखना चाहता है?’
दीदी ने मुझसे पूछा। मैंने तब थोड़ा झल्ला कर दीदी से कहा- तुम बिल्कुल सही कह रही हो। और मुझे लगता है कि तुम भी यही चाहती हो।
दीदी कुछ नहीं बोलीं और मैं उनकी चुप्पी को उनकी हाँ समझ रहा था। फिर दीदी थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोलीं- कमरे में जाने का मतलब होता है कि हम वो सब भी???
मैंने तब दीदी को समझाते हुए कहा- लेकिन तुम चाहोगी तभी। नहीं तो कुछ नहीं।
दीदी फिर भी बोलीं- पता नहीं सोनू, यह बहुत बड़ा क़दम है।
मैंने तब फिर से दीदी को समझाते हुए बोला- बाबा, अगर तुम नहीं चाहोगी तो वो सब काम नहीं होगा और वही होगा जो जो तुम चाहोगी। लेकिन मुझे तुम्हारी दोनों मुसम्मियाँ बिना किसी के डर के साथ पीना है बस!
मैं समझ रहा था कि दीदी मन ही मन चाह तो रही थीं कि मैं उनकी चूची को बिना किसी डर के चूसूं और उनकी चूत से खेलूँ।
दीदी बोलीं- बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। लेकिन यह बात तो तय है कि मैं अभी घर नहीं जाना चाहती हूँ।
इसका मतलब साफ़ था कि दीदी मेरे साथ होटल में और होटल के कमरे में जाना चाहती हैं।
इसलिए मैंने पूछा- तो होटल चलें? दीदी मेरे साथ चल पडीं। मैं बहुत खुश हो गया। दीदी मेरे साथ होटल में चलने के लिए राज़ी हो गईं है।
मैं खुशी-खुशी होटल की तरफ़ चल पड़ा। मैं इतना समझ गया था कि शायद दीदी मुझे खुल कर अपनी चूची और चूत मुझसे छुआना चाहती हैं और हो सकता हैं कि वो बाद में मुझसे अपनी चूत भी चुदवाना भी चाहती हों।
यह सब सोच-सोच कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैं सोच रहा था कि आज मैं अपनी दीदी को ज़रूर चोदूंगा। मैं बहुत खुश था और गर्म हो रहा था।
मुझे यह मालूम था कि उस सिनेमा हॉल के पास दो-तीन ऐसे होटल हैं जहाँ पर कमरे घंटे के हिसाब से मिलते हैं। मैं एक दो बार उन होटलों में अपने गर्लफ्रेंड के साथ आ चुका हूँ।
मैं वैसे ही एक होटल में अपनी दीदी को लेकर गया और वहाँ बात करके एक कमरा तय किया और कमरे का किराया भी दे दिया। होटल का वेटर हम लोगों को एक कमरे में ले गया।
जैसे ही वेटर वापस गया, मैंने कमरे के दरवाज़े को अच्छी तरह से बंद किया। मैंने कमरे की खिड़की को भी चेक किया और उनमें पर्दा डाल दिया। तब तक दीदी कमरे में घुस कर कमरे के बीच में खड़ी हो गईं।
दीदी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वो चुपचाप खड़ी थीं। मैं तब बाथरूम में गया और बाथरूम की लाइट को जला करके बाथरूम का दरवाज़ा आधा बंद कर दिया, जिससे कि कमरे में बाथरूम से थोड़ी बहुत रोशनी आती रहे। फिर मैंने कमरे की रोशनी को बंद कर दिया।
जैसा मैंने कहा था, दीदी टॉयलेट में गईं और थोड़ी देर के बाद लौट आईं।
जब मैं दीदी को देख कर मुस्कुराया तो दीदी शर्मा गईं और अपनी गर्दन झुका लीं।
हम लोग फिर से हॉल में चले गए जब बैठने लगीं तो अपनी स्कर्ट ऊपर उठा लीं, लेकिन पूरी नहीं।
हम लोगों के जैकेट अपने-अपने गोद में थीं और हम लोग पॉपकॉर्न खाना शुरू किया। थोड़ी देर के बाद हम लोगों ने पॉपकॉर्न खत्म किए और फिर पेप्सी भी खत्म कर लिया।
फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर नीचे हो कर पैर फैला कर आराम से बैठ गए थोड़ी देर के बाद मैंने अपना हाथ बढ़ा कर दीदी की गोद पर रखी हुई जैकेट के नीचे से ले जाकर के दीदी की जाँघों पर रख दिया।
मेरे हाथों को दीदी की जाँघों से छूते ही दीदी ने अपने जाँघों को और फैला दिया। फिर दीदी ने अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर उठा करके अपने नीचे से अपनी स्कर्ट को खींच करके निकाल दिया और फिर से बैठ गईं अब दीदी हॉल के सीट पर अपनी नंगी चूतड़ों के सहारे बैठी थीं।
सीट की रेग्जीन से दीदी को कुछ ठंड लगीं पर वो आराम से सीट पर नीचे होकर के बैठ गईं। मैं फिर से अपने हाथ को दीदी की स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मैं सीधे दीदी की चूत पर अपना हाथ ले गया।
जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूत को छुआ, दीदी झुक गईं जैसे कि वो मुझे रोक रही हो। मुझे दीदी की नंगी चूत में हाथ फेरना बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे चूत पर हाथ फेरते-फेरते चूत के ऊपरी भाग पर कुछ बाल का होना महसूस हुआ।
मैं दीदी की नंगी चूत और उसके बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा। मैं दीदी की चूत को कभी अपने हाथ में पकड़ कर कस कर दबा रहा था, कभी अपने हाथ उसके ऊपर रगड़ रहा था और कभी-कभी उनकी क्लिंट को भी अपने उँगलियों से रगड़ रहा था।
मैं जब दीदी की क्लिंट को छेड़ रहा था तब दीदी का शरीर कांप सा जाता था। उनको एक झुरझुरी सी होती थीं। मैंने अपनी एक ऊँगलीं दीदी की चूत के छेद में घुसेड़ दी।
ओह भगवान चूत अंदर से बहुत गर्म थीं और मुलायम भी थीं। चूत अंदर से पूरी रस से भरी हुई थीं।
मैं अपनी ऊँगलीं को धीरे-धीरे चूत के अंदर और बाहर करने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपनी दूसरी ऊँगलीं भी चूत में डाल दी। ये तो और भी आसानी से चूत में समा गईं।
मैंने दोनों उँगलियों से दीदी चूत को चोदना शुरू किया।
दीदी की तेज सांसों की आवाज मझे साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थीं। थोड़ी देर के बाद दीदी का शरीर अकड़ गया, कुछ ही देर के बाद दीदी शांत हो कर सीट पर बैठ गईं।
अब दीदी की चूत में से ढेर सारा पानी निकलने लगा। चूत की पानी से मेरा पूरा हाथ गीला हो गया।
मैं थोड़ी देर रुक कर फिर से दीदी की चूत में अपनी ऊँगलीं चलाने लगा। थोड़ी देर के बाद दीदी दोबारा झड़ी। फिर मुझे जब लगा कि सिनेमा अब खत्म होने वाला है, तो मैंने अपना हाथ दीदी की चूत पर से हटा लिया।
जैसे ही सिनेमा खत्म हुआ, मैं और दीदी उठ कर बाहर निकल आए।
बाहर आने के बाद मैंने दीदी से कहा- अगले शो में जो भी उस सीट पर बैठेगा उसका पैंट या उसकी साड़ी भीग जाएगी।
दीदी मेरे बातों को सुन कर बहुत शर्मा गईं और मुझसे नज़र हटा लीं।
दीदी टॉयलेट चलीं गईं हो सकता था, कि अपनी चूत और जाँघों को धोकर साफ़ करने के लिए और अपनी पेंटी फिर से पहनने के लिए गईं हों।
अभी सिर्फ़ तीन बजे थे और मैंने दीदी से बोला- तो बहुत टाइम है और माँ भी घर पर सो रही होंगी।
क्या तुम अभी घर जाना चाहती हो? वैसे मुझे कुछ प्राइवेट में चलने का इच्छा हैं।
क्या तुम मेरे साथ चलोगी?
दीदी मेरी आँखों में झाँकती हुई बोलीं- प्राइवेट में चलने की क्या बात हैं? वैसे मैं भी अभी घर नहीं जाना चाहती।
मैं बोला- प्राइवेट का मतलब है कि किसी होटल में जाना हैं?
दीदी बोलीं- सिर्फ़ होटल? या और कुछ?
मैं दीदी से बोला- सिर्फ़ होटल या और कुछ! मतलब?
दीदी बोलीं- तेरा मतलब होटल के कमरा से है?
‘हाँ मेरा मतलब होटल के कमरे से ही है।’ मैंने कहा।
दीदी ने तब मुझसे फिर पूछा- होटल के कमरे में ही क्यों?
मैंने दीदी की बातों को सुन कर यह समझा कि दीदी ने अभी भी होटल चलने के लिए ना नहीं किया हैं।
मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए बोला- अभी तक मैंने कई बार तुम्हारी चूची को छुआ, दबाया, मसला और चूसा है, फिर मैंने तुम्हारी चूत को भी छुआ और उसके अंदर अपनी ऊँगलीं भी डालीं। और तुमने कभी भी मना नहीं किया।
मैं आगे बढ़ने से रुका तो इस बात से कि हमारे पास पूरी प्राइवेसी नहीं थीं। इस बात के डर से कि कोई आ ना जाए, या हमें देख न ले। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब होटल के कमरे में जाकर हम लोगों को पूरी प्राइवेसी मिले।
मैं इतना कह कर रुक गया और दीदी की तरफ़ देखने लगा कि अब दीदी भी कुछ बोले। जब दीदी कुछ नहीं बोलीं तो मैंने फिर उनसे कहा- तुम क्या चाहती हो?
दीदी मुझसे बोलीं- मतलब यह हुआ कि तुम इसलिए मेरे साथ होटल जाना चाहते हो ताकि वहाँ जा कर तू मुझे अच्छी तरफ़ से छू सके। मेरे दूध को चूस सके और मेरे पैरों के बीच अपना हाथ डाल कर मजा ले सके?
‘ठीक’ कह रही हो, दीदी। मैं जब भी तुम्हें छूता हूँ तो हम लोगों के पास प्राइवेसी ना होने की वजह से रुकना पड़ता है,
‘जैसे आज सिनेमा हॉल में ही देख लो’ मैंने दीदी से कहा।
‘तो तू मुझे ठीक से और बिना डर के छूना चाहता है। मेरी चूची पीना चाहता है, और मेरी टांगो के बीच हाथ डाल कर अपनी ऊँगलीं चूत में डाल कर देखना चाहता है?’
दीदी ने मुझसे पूछा। मैंने तब थोड़ा झल्ला कर दीदी से कहा- तुम बिल्कुल सही कह रही हो। और मुझे लगता है कि तुम भी यही चाहती हो।
दीदी कुछ नहीं बोलीं और मैं उनकी चुप्पी को उनकी हाँ समझ रहा था। फिर दीदी थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोलीं- कमरे में जाने का मतलब होता है कि हम वो सब भी???
मैंने तब दीदी को समझाते हुए कहा- लेकिन तुम चाहोगी तभी। नहीं तो कुछ नहीं।
दीदी फिर भी बोलीं- पता नहीं सोनू, यह बहुत बड़ा क़दम है।
मैंने तब फिर से दीदी को समझाते हुए बोला- बाबा, अगर तुम नहीं चाहोगी तो वो सब काम नहीं होगा और वही होगा जो जो तुम चाहोगी। लेकिन मुझे तुम्हारी दोनों मुसम्मियाँ बिना किसी के डर के साथ पीना है बस!
मैं समझ रहा था कि दीदी मन ही मन चाह तो रही थीं कि मैं उनकी चूची को बिना किसी डर के चूसूं और उनकी चूत से खेलूँ।
दीदी बोलीं- बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। लेकिन यह बात तो तय है कि मैं अभी घर नहीं जाना चाहती हूँ।
इसका मतलब साफ़ था कि दीदी मेरे साथ होटल में और होटल के कमरे में जाना चाहती हैं।
इसलिए मैंने पूछा- तो होटल चलें? दीदी मेरे साथ चल पडीं। मैं बहुत खुश हो गया। दीदी मेरे साथ होटल में चलने के लिए राज़ी हो गईं है।
मैं खुशी-खुशी होटल की तरफ़ चल पड़ा। मैं इतना समझ गया था कि शायद दीदी मुझे खुल कर अपनी चूची और चूत मुझसे छुआना चाहती हैं और हो सकता हैं कि वो बाद में मुझसे अपनी चूत भी चुदवाना भी चाहती हों।
यह सब सोच-सोच कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैं सोच रहा था कि आज मैं अपनी दीदी को ज़रूर चोदूंगा। मैं बहुत खुश था और गर्म हो रहा था।
मुझे यह मालूम था कि उस सिनेमा हॉल के पास दो-तीन ऐसे होटल हैं जहाँ पर कमरे घंटे के हिसाब से मिलते हैं। मैं एक दो बार उन होटलों में अपने गर्लफ्रेंड के साथ आ चुका हूँ।
मैं वैसे ही एक होटल में अपनी दीदी को लेकर गया और वहाँ बात करके एक कमरा तय किया और कमरे का किराया भी दे दिया। होटल का वेटर हम लोगों को एक कमरे में ले गया।
जैसे ही वेटर वापस गया, मैंने कमरे के दरवाज़े को अच्छी तरह से बंद किया। मैंने कमरे की खिड़की को भी चेक किया और उनमें पर्दा डाल दिया। तब तक दीदी कमरे में घुस कर कमरे के बीच में खड़ी हो गईं।
दीदी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वो चुपचाप खड़ी थीं। मैं तब बाथरूम में गया और बाथरूम की लाइट को जला करके बाथरूम का दरवाज़ा आधा बंद कर दिया, जिससे कि कमरे में बाथरूम से थोड़ी बहुत रोशनी आती रहे। फिर मैंने कमरे की रोशनी को बंद कर दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.