14-01-2022, 03:56 PM
मैं दीदी को सिर्फ़ ब्रा और पेंटी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुट्ठ मारना था। मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।
पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर हम लोग समुंदर के किनारे गए, फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे।
फिर मैंने दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गईं, फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पेंटी और ब्रा चेंज की थी।
एकाएक मेरे दिमाग़ यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पेंटी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झाँक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से दीदी उतरी हुई पेंटी निकाल कर अपनी जेब में रख ली।
मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया।
फिर मैंने दीदी की गीली पेंटी को खोला और और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहाँ पर दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफ़ेद-सफ़ेद गाढ़ा-गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है, जब मैंने वो जगह छुई तो मुझे चिपचिपा सा लगा।
मैंने पेंटी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा।
दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था। मैं दीदी की पेंटी की चूत वाली जगह को चाटने लगा। वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है, मजा आ गया।
मैं दीदी की पेंटी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ। मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पेंटी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।
थोड़ी देर के बाद जब दीदी को अपनी भीगी पेंटी की याद आई तो वो उसको बैग में ढूँढने लगीं। शायद दीदी को उसे साफ़ करना था। दीदी को उनकी पेंटी और ब्रा बैग में नहीं मिली।
थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा- “मुझे अपनी पुरानी पेंटी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।”
मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।
‘तू हँस क्यों रहा हैं? इसमें हँसने की क्या बात है।’ दीदी ने मुझसे पूछा।
मैंने दीदी से पूछा- तुम्हें अपनी पुरानी पेंटी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पेंटी मिल गई।
तब कुछ-कुछ समझ कर मुझसे पूछा- उनको तुमने लिया है?
मैं भी कह दिया- हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर।
तब दीदी बोलीं- सोनू, वो गंदे हैं।
मैं मुस्कुरा कर दीदी से बोला- मैंने उनको साफ़ कर लिया।
लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- मैं बाद में दे दूंगा।
अब माँ कमरे आ गईं थीं। इसलिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा।
अगले सुबह मैंने दीदी से पूछा- क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?
दीदी ने हँसते हुए पूछा- कौन दिखायेगा?
मैं भी हँस के बोला- मैं।
दीदी बोलीं- मुझे क्या पता तेरे को कौन सा सिनेमा देखने जाना है।
मैंने दीदी से बोला- हम लोग न्यू थियेटर चलें?
वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।
‘ठीक है, चल चलें।’ दीदी मुझसे बोलीं।
असल में दीदी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था। मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।
पिछले कई दिनों से मैंने दीदी की मुसम्मियों को कई बार दबाया था और मसला था और दो तीन-बार चूसा भी था। अब मुझे और कुछ चाहिए था और इसीलिए मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।
मुझे दीदी को छूने का अच्छा मौक़ा सिनेमा हॉल में मिल सकता था, या फिर सिनेमा के बाद और कहीं ले जाने के बाद मिल सकता था।
जब दीदी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगी तो मैं धीरे से दीदी से कहा- आज तुम स्कर्ट पहन कर चलो।
दीदी बस थोड़ा सा मुस्कुरा दीं और स्कर्ट पहनने के लिए राज़ी हो गईं।
ठंड का मौसम था इसलिए मैं और दीदी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था।
मैंने आज यह सिनेमा हॉल जान बूझ कर चुना था क्योंकि यह हॉल शहर से थोड़ा सा बाहर था और वहाँ जो सिनेमा चल रहा था। वो दो हफ़्ते पुरानी हो गई थी।
मुझे मालूम था कि हॉल में ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं होगी। हम लोग वहाँ पहुँच कर टिकट ले लिए और हॉल में जब घुसे तो किसी और सिनेमा का ट्रेलर चल रहा था। इसलिए हॉल के अंदर अंधेरा था।
जब अंदर जा कर मेरी आँखें अंधेरे में देखने में कुछ अभ्यस्त हो गई, तो मैंने देखा कि हॉल में कुछ लोग ही बैठे हुए हैं और मैं एक किनारे वाली सीट पर दीदी को ले जाकर बैठ गया।
हम लोग जहाँ बैठे थे उसके आस पास और कोई नहीं था। और जो भी हॉल में बैठे थे वो सब किनारे वाली सीट पर बैठे हुए थे।
हम लोग भी बैठ गए सिनेमा देखने लगे। मैं सिनेमा देख रहा था और दिमाग़ में सोच रहा था मैं पहले दीदी की चूची को दबाऊँगा, मसलूँगा और अगर दीदी मान गईं तो फिर दीदी की स्कर्ट के अंदर अपना हाथ डालूँगा।
मैंने क़रीब 15 मिनट तक इंतज़ार किया और फिर अपनी सीट पर मैं आराम से पैर फैला कर बैठ गया। संगीता दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थीं।
मैं धीरे से अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर दीदी की जाँघों पर रख दिया। फिर मैं धीरे-धीरे दीदी की जाँघों पर स्कर्ट के ऊपर से हाथ फेरने लगा। दीदी कुछ नहीं बोलीं।
दीदी बस चुपचाप बैठी रही और मैं उनकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा।
अब मैं धीरे-धीरे दीदी की स्कर्ट को पैरों से ऊपर उठाने लगा जिससे कि मैं अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल सकूँ।
दीदी ने मुझको रोका नहीं और ऊपर से मेरे कानों के पास अपनी मुँह लेकर के बोलीं- कोई देख ना ले।
इधर-उधर देख कर मैंने भी धीरे से बोला- नहीं कोई नहीं देख पाएगा।
दीदी फिर से बोलीं- स्क्रीन की लाइट काफ़ी ज़्यादा है और इसमें कोई भी हमें देख सकता है।
मैंने दीदी से कहा- अपना जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लो।
दीदी ने थोड़ी देर रुक कर अपनी जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लीं। और इससे उनकी जाँघ और मेरा हाथ दोनों जैकेट के अंदर छुप गया।
मैं अब अपना हाथ दीदी के स्कर्ट के अंदर डाल कर के उनके पैरों और जाँघों को सहलाने लगा।
दीदी फिर फुसफुसा कर बोलीं- कोई हमें देख ना ले!
मैंने दीदी को समझाते हुए कहा- हमें कोई नहीं देख पाएगा। आप चुपचाप बैठी रहो।
मैंने अपना हाथ अब दीदी के जाँघों के अंदर तक ले जाकर उनकी जाँघ के अंदरूनी भाग को सहलाने लगा और धीर-धीरे अपना हाथ दीदी की पेंटी की तरफ़ बढ़ाने लगा।
मेरा हाथ इतना घूम गया की दीदी की पेंटी तक नहीं पहुँच रहा था।
मैंने फिर हल्के से दीदी के कानों में कहा- थोड़ा नीचे खिसक कर बैठो न।
दीदी ने हँसते हुए पूछा- क्या तुम्हारा हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच रहा है।
‘हाँ’ मैंने दबी जुबान से दीदी को बोला।
दीदी धीरे से हँसते हुए बोलीं- तुमको अपना हाथ कहाँ तक पहुँचाना है?
मैं शर्माते हुए बोला- तुमको मालूम तो है!
दीदी मेरी बातों को समझ गईं और नीचे खिसक कर बैठीं। मेरा हाथ शुरू से दीदी के स्कर्ट के अंदर ही घुसा हुआ था और जैसे ही दीदी नीचे खिसकी मेरा हाथ जा करा अपने आप दीदी की पेंटी से लग गया।
फिर मैं अपने हाथ को उठा कर पेंटी के ऊपर से दीदी की चूत पर रखा और ज़ोर से दीदी की चूत को छू लिया।
यह पहलीं बार था कि अपने दीदी की चूत को छू रहा था। दीदी की चूत बहुत गर्म थीं। मैं अपनी ऊँगलीं को दीदी की चूत के छेद के ऊपर चलाने लगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी फुसफुसा कर बोलीं- रुक जाओ, नहीं तो फिर से मेरी पेंटी गीलीं हो जायेगी।
लेकिन मैंने दीदी की बात को अनसुनी कर दी और दीदी की चूत के छेद को पेंटी के ऊपर से सहलाता रहा।
दीदी फिर से बोलीं- प्लीज़, अब मत करो, नहीं तो मेरी पेंटी और स्कर्ट दोनों गंदी हो जायेगीं।
मैं समझ गया कि दीदी बहुत गर्मा गईं हैं। लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि जब हम लोग सिनेमा से निकलें तो लोगों को दीदी गंदी स्कर्ट दिखे। इसलिए मैं रुक गया।
मैंने अपना हाथ चूत पर से हटा कर दीदी की जाँघों को सहलाने लगा। थोड़ी देर के बाद इंटरवल हो गया।
इंटरवल होते ही मैं और दीदी अलग-अलग बैठ गए और मैं उठ कर पॉपकॉर्न और पेप्सी ले आया।
मैंने दीदी से धीरे से कहा- तुम टॉयलेट जाकर अपनी पेंटी निकाल कर नंगी होकर आ जाओ।
दीदी ने आँखें फाड़ कर मुझसे पूछा- मैं अपनी पेंटी क्यों निकालूँ?
मैं हँस कर बोला- निकाल लेने से पेंटी गीलीं नहीं होगी।
दीदी ने तपाक से पूछा- और स्कर्ट का क्या करें? क्या उसे भी उतार कर आऊँ?
‘सिंपल सी बात है जब टॉयलेट से लौट कर आओगी तो बैठने से पहले अपनी स्कर्ट उठा कर बैठ जाना’ मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला।
पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर हम लोग समुंदर के किनारे गए, फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे।
फिर मैंने दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गईं, फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पेंटी और ब्रा चेंज की थी।
एकाएक मेरे दिमाग़ यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पेंटी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झाँक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से दीदी उतरी हुई पेंटी निकाल कर अपनी जेब में रख ली।
मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया।
फिर मैंने दीदी की गीली पेंटी को खोला और और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहाँ पर दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफ़ेद-सफ़ेद गाढ़ा-गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है, जब मैंने वो जगह छुई तो मुझे चिपचिपा सा लगा।
मैंने पेंटी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा।
दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था। मैं दीदी की पेंटी की चूत वाली जगह को चाटने लगा। वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है, मजा आ गया।
मैं दीदी की पेंटी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ। मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पेंटी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।
थोड़ी देर के बाद जब दीदी को अपनी भीगी पेंटी की याद आई तो वो उसको बैग में ढूँढने लगीं। शायद दीदी को उसे साफ़ करना था। दीदी को उनकी पेंटी और ब्रा बैग में नहीं मिली।
थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा- “मुझे अपनी पुरानी पेंटी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।”
मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।
‘तू हँस क्यों रहा हैं? इसमें हँसने की क्या बात है।’ दीदी ने मुझसे पूछा।
मैंने दीदी से पूछा- तुम्हें अपनी पुरानी पेंटी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पेंटी मिल गई।
तब कुछ-कुछ समझ कर मुझसे पूछा- उनको तुमने लिया है?
मैं भी कह दिया- हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर।
तब दीदी बोलीं- सोनू, वो गंदे हैं।
मैं मुस्कुरा कर दीदी से बोला- मैंने उनको साफ़ कर लिया।
लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- मैं बाद में दे दूंगा।
अब माँ कमरे आ गईं थीं। इसलिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा।
अगले सुबह मैंने दीदी से पूछा- क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?
दीदी ने हँसते हुए पूछा- कौन दिखायेगा?
मैं भी हँस के बोला- मैं।
दीदी बोलीं- मुझे क्या पता तेरे को कौन सा सिनेमा देखने जाना है।
मैंने दीदी से बोला- हम लोग न्यू थियेटर चलें?
वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।
‘ठीक है, चल चलें।’ दीदी मुझसे बोलीं।
असल में दीदी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था। मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।
पिछले कई दिनों से मैंने दीदी की मुसम्मियों को कई बार दबाया था और मसला था और दो तीन-बार चूसा भी था। अब मुझे और कुछ चाहिए था और इसीलिए मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।
मुझे दीदी को छूने का अच्छा मौक़ा सिनेमा हॉल में मिल सकता था, या फिर सिनेमा के बाद और कहीं ले जाने के बाद मिल सकता था।
जब दीदी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगी तो मैं धीरे से दीदी से कहा- आज तुम स्कर्ट पहन कर चलो।
दीदी बस थोड़ा सा मुस्कुरा दीं और स्कर्ट पहनने के लिए राज़ी हो गईं।
ठंड का मौसम था इसलिए मैं और दीदी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था।
मैंने आज यह सिनेमा हॉल जान बूझ कर चुना था क्योंकि यह हॉल शहर से थोड़ा सा बाहर था और वहाँ जो सिनेमा चल रहा था। वो दो हफ़्ते पुरानी हो गई थी।
मुझे मालूम था कि हॉल में ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं होगी। हम लोग वहाँ पहुँच कर टिकट ले लिए और हॉल में जब घुसे तो किसी और सिनेमा का ट्रेलर चल रहा था। इसलिए हॉल के अंदर अंधेरा था।
जब अंदर जा कर मेरी आँखें अंधेरे में देखने में कुछ अभ्यस्त हो गई, तो मैंने देखा कि हॉल में कुछ लोग ही बैठे हुए हैं और मैं एक किनारे वाली सीट पर दीदी को ले जाकर बैठ गया।
हम लोग जहाँ बैठे थे उसके आस पास और कोई नहीं था। और जो भी हॉल में बैठे थे वो सब किनारे वाली सीट पर बैठे हुए थे।
हम लोग भी बैठ गए सिनेमा देखने लगे। मैं सिनेमा देख रहा था और दिमाग़ में सोच रहा था मैं पहले दीदी की चूची को दबाऊँगा, मसलूँगा और अगर दीदी मान गईं तो फिर दीदी की स्कर्ट के अंदर अपना हाथ डालूँगा।
मैंने क़रीब 15 मिनट तक इंतज़ार किया और फिर अपनी सीट पर मैं आराम से पैर फैला कर बैठ गया। संगीता दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थीं।
मैं धीरे से अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर दीदी की जाँघों पर रख दिया। फिर मैं धीरे-धीरे दीदी की जाँघों पर स्कर्ट के ऊपर से हाथ फेरने लगा। दीदी कुछ नहीं बोलीं।
दीदी बस चुपचाप बैठी रही और मैं उनकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा।
अब मैं धीरे-धीरे दीदी की स्कर्ट को पैरों से ऊपर उठाने लगा जिससे कि मैं अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल सकूँ।
दीदी ने मुझको रोका नहीं और ऊपर से मेरे कानों के पास अपनी मुँह लेकर के बोलीं- कोई देख ना ले।
इधर-उधर देख कर मैंने भी धीरे से बोला- नहीं कोई नहीं देख पाएगा।
दीदी फिर से बोलीं- स्क्रीन की लाइट काफ़ी ज़्यादा है और इसमें कोई भी हमें देख सकता है।
मैंने दीदी से कहा- अपना जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लो।
दीदी ने थोड़ी देर रुक कर अपनी जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लीं। और इससे उनकी जाँघ और मेरा हाथ दोनों जैकेट के अंदर छुप गया।
मैं अब अपना हाथ दीदी के स्कर्ट के अंदर डाल कर के उनके पैरों और जाँघों को सहलाने लगा।
दीदी फिर फुसफुसा कर बोलीं- कोई हमें देख ना ले!
मैंने दीदी को समझाते हुए कहा- हमें कोई नहीं देख पाएगा। आप चुपचाप बैठी रहो।
मैंने अपना हाथ अब दीदी के जाँघों के अंदर तक ले जाकर उनकी जाँघ के अंदरूनी भाग को सहलाने लगा और धीर-धीरे अपना हाथ दीदी की पेंटी की तरफ़ बढ़ाने लगा।
मेरा हाथ इतना घूम गया की दीदी की पेंटी तक नहीं पहुँच रहा था।
मैंने फिर हल्के से दीदी के कानों में कहा- थोड़ा नीचे खिसक कर बैठो न।
दीदी ने हँसते हुए पूछा- क्या तुम्हारा हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच रहा है।
‘हाँ’ मैंने दबी जुबान से दीदी को बोला।
दीदी धीरे से हँसते हुए बोलीं- तुमको अपना हाथ कहाँ तक पहुँचाना है?
मैं शर्माते हुए बोला- तुमको मालूम तो है!
दीदी मेरी बातों को समझ गईं और नीचे खिसक कर बैठीं। मेरा हाथ शुरू से दीदी के स्कर्ट के अंदर ही घुसा हुआ था और जैसे ही दीदी नीचे खिसकी मेरा हाथ जा करा अपने आप दीदी की पेंटी से लग गया।
फिर मैं अपने हाथ को उठा कर पेंटी के ऊपर से दीदी की चूत पर रखा और ज़ोर से दीदी की चूत को छू लिया।
यह पहलीं बार था कि अपने दीदी की चूत को छू रहा था। दीदी की चूत बहुत गर्म थीं। मैं अपनी ऊँगलीं को दीदी की चूत के छेद के ऊपर चलाने लगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी फुसफुसा कर बोलीं- रुक जाओ, नहीं तो फिर से मेरी पेंटी गीलीं हो जायेगी।
लेकिन मैंने दीदी की बात को अनसुनी कर दी और दीदी की चूत के छेद को पेंटी के ऊपर से सहलाता रहा।
दीदी फिर से बोलीं- प्लीज़, अब मत करो, नहीं तो मेरी पेंटी और स्कर्ट दोनों गंदी हो जायेगीं।
मैं समझ गया कि दीदी बहुत गर्मा गईं हैं। लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि जब हम लोग सिनेमा से निकलें तो लोगों को दीदी गंदी स्कर्ट दिखे। इसलिए मैं रुक गया।
मैंने अपना हाथ चूत पर से हटा कर दीदी की जाँघों को सहलाने लगा। थोड़ी देर के बाद इंटरवल हो गया।
इंटरवल होते ही मैं और दीदी अलग-अलग बैठ गए और मैं उठ कर पॉपकॉर्न और पेप्सी ले आया।
मैंने दीदी से धीरे से कहा- तुम टॉयलेट जाकर अपनी पेंटी निकाल कर नंगी होकर आ जाओ।
दीदी ने आँखें फाड़ कर मुझसे पूछा- मैं अपनी पेंटी क्यों निकालूँ?
मैं हँस कर बोला- निकाल लेने से पेंटी गीलीं नहीं होगी।
दीदी ने तपाक से पूछा- और स्कर्ट का क्या करें? क्या उसे भी उतार कर आऊँ?
‘सिंपल सी बात है जब टॉयलेट से लौट कर आओगी तो बैठने से पहले अपनी स्कर्ट उठा कर बैठ जाना’ मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.