14-01-2022, 03:55 PM
मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।
दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
‘हाँ’ सोनू, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतने उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।’ दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोलीं- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झाड़ना और भी अच्छा लगा। दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गईं और मुझसे बोलीं- सोनू, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोलीं- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोलीं- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पेंटी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- सोनू, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था कि दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
मैंने फ़ौरन दीदी से बोला- एक काम करते हैं। वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहाँ जाओ और अपने पेंटी को बदल लो। अरे तुमने अभी अभी जो पेंटी खरीदी है, वहाँ जाकर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पेंटी को निकाल दो।
दीदी मुझे देखते हुए बोलीं- तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपनी पेंटी बदल कर आती हूँ।
हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पेंटी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं।
जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी, मैंने दीदी से धीरे से बोला- तुम अपनी पेंटी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं!!
दीदी मेरी बातों को सुन कर हँस पड़ीं और मुझसे बोलीं- बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।
दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गईं।
क़रीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गईं और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थीं।
बस क़रीब-क़रीब ख़ाली थीं। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए।
सीट पर बैठने के बाद मैंने दीदी से पूछा- तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?
दीदी मेरी तरफ़ देख कर हँस पड़ीं।
मैंने फिर दीदी से पूछा- बताओ ना दीदी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?
तब दीदी ने धीरे से बोलीं- हाँ सोनू, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।
मैं फिर दीदी से बोला- मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?
दीदी ने मेरी तरफ देखा और कहा- हाँ बोल।
‘मैं तुम्हें तुम्हारे नए पेंटी और ब्रा में देखना चाहता हूँ।’ मैंने दीदी से कहा।
दीदी फ़ौरन घबरा कर बोलीं- यहाँ? तुम मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पेंटी में देखना चाहते हो?
मैंने दीदी को समझाते हुए बोला- नहीं, यहाँ नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पेंटी में देखना चाहता हूँ।
दीदी फिर मुझसे बोलीं- पर घर पर कैसे होगा। माँ घर पर होगी। घर पर यह संभव नहीं हैं।
‘कोई समस्या नहीं हैं’, माँ घर पर खाना बना रही होंगी और तुम रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी। जैसे तुम रोज़ करती हो।
लेकिन जब तुम कपड़े बदलो। ‘रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पेंटी में देख लूँगा।’
दीदी मेरी बातें सुन कर बोलीं- नहीं सोनू, फिर भी देखते हैं।
फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए। हमने घर पहुँच कर देखा कि माँ रसोई में खाना बना रही हैं।
हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर रसोई में कपड़े बदलने चली गईं। मैं हॉल में ही बैठा रहा।
रसोई में पहुँच कर दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दीं और हल्के से आँख मार दीं।
मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया। दीदी मुझसे सिर्फ़ 5 फ़ीट की दूरी पर खड़ी थीं और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थीं। माँ दीदी से कुछ बातें कर रही थीं।
दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दीं।
टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदीं हुई ब्रा दिखने लगी। वाह क्या ब्रा थीं।
फिर दीदी ने फ़ौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और अपनी स्कर्ट भी उतार दीं। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पेंटी में थीं।
दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पेंटी खरीदीं है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थीं और उसके साथ पेंटी में भी खूब लेस लगा हुआ था।
मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे। फिर मेरी आँखें दीदी की पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं।
दीदी की पेंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे।
मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पेंटी में अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा। लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।
दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे।
सारे वक़्त दीदी मुझसे आँखें चुरा रही थीं। शायद दीदी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पेंटी में खड़ी होना कुछ अटपटा सा लग रहा था।
जैसे ही दीदी ने मुझे देखा, तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया। दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गईं लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा।
मैं दीदी को अब पीछे से देख रहा था। दीदी की पेंटी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी।
मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूँगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउँगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गईं और अपनी मैक्सी उठा लीं और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ।
मैंने दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। दीदी बस मुस्कुरा दीं और अपनी मैक्सी पहन लीं।
मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।
दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गईं। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गईं। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।
दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गईं। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गईं।
दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
‘हाँ’ सोनू, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतने उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।’ दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोलीं- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झाड़ना और भी अच्छा लगा। दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गईं और मुझसे बोलीं- सोनू, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोलीं- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोलीं- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पेंटी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- सोनू, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था कि दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
मैंने फ़ौरन दीदी से बोला- एक काम करते हैं। वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहाँ जाओ और अपने पेंटी को बदल लो। अरे तुमने अभी अभी जो पेंटी खरीदी है, वहाँ जाकर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पेंटी को निकाल दो।
दीदी मुझे देखते हुए बोलीं- तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपनी पेंटी बदल कर आती हूँ।
हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पेंटी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं।
जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी, मैंने दीदी से धीरे से बोला- तुम अपनी पेंटी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं!!
दीदी मेरी बातों को सुन कर हँस पड़ीं और मुझसे बोलीं- बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।
दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गईं।
क़रीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गईं और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थीं।
बस क़रीब-क़रीब ख़ाली थीं। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए।
सीट पर बैठने के बाद मैंने दीदी से पूछा- तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?
दीदी मेरी तरफ़ देख कर हँस पड़ीं।
मैंने फिर दीदी से पूछा- बताओ ना दीदी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?
तब दीदी ने धीरे से बोलीं- हाँ सोनू, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।
मैं फिर दीदी से बोला- मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?
दीदी ने मेरी तरफ देखा और कहा- हाँ बोल।
‘मैं तुम्हें तुम्हारे नए पेंटी और ब्रा में देखना चाहता हूँ।’ मैंने दीदी से कहा।
दीदी फ़ौरन घबरा कर बोलीं- यहाँ? तुम मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पेंटी में देखना चाहते हो?
मैंने दीदी को समझाते हुए बोला- नहीं, यहाँ नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पेंटी में देखना चाहता हूँ।
दीदी फिर मुझसे बोलीं- पर घर पर कैसे होगा। माँ घर पर होगी। घर पर यह संभव नहीं हैं।
‘कोई समस्या नहीं हैं’, माँ घर पर खाना बना रही होंगी और तुम रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी। जैसे तुम रोज़ करती हो।
लेकिन जब तुम कपड़े बदलो। ‘रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पेंटी में देख लूँगा।’
दीदी मेरी बातें सुन कर बोलीं- नहीं सोनू, फिर भी देखते हैं।
फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए। हमने घर पहुँच कर देखा कि माँ रसोई में खाना बना रही हैं।
हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर रसोई में कपड़े बदलने चली गईं। मैं हॉल में ही बैठा रहा।
रसोई में पहुँच कर दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दीं और हल्के से आँख मार दीं।
मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया। दीदी मुझसे सिर्फ़ 5 फ़ीट की दूरी पर खड़ी थीं और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थीं। माँ दीदी से कुछ बातें कर रही थीं।
दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दीं।
टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदीं हुई ब्रा दिखने लगी। वाह क्या ब्रा थीं।
फिर दीदी ने फ़ौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और अपनी स्कर्ट भी उतार दीं। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पेंटी में थीं।
दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पेंटी खरीदीं है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थीं और उसके साथ पेंटी में भी खूब लेस लगा हुआ था।
मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे। फिर मेरी आँखें दीदी की पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं।
दीदी की पेंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे।
मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पेंटी में अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा। लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।
दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे।
सारे वक़्त दीदी मुझसे आँखें चुरा रही थीं। शायद दीदी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पेंटी में खड़ी होना कुछ अटपटा सा लग रहा था।
जैसे ही दीदी ने मुझे देखा, तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया। दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गईं लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा।
मैं दीदी को अब पीछे से देख रहा था। दीदी की पेंटी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी।
मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूँगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउँगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गईं और अपनी मैक्सी उठा लीं और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ।
मैंने दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। दीदी बस मुस्कुरा दीं और अपनी मैक्सी पहन लीं।
मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।
दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गईं। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गईं। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।
दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गईं। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गईं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.