14-01-2022, 03:54 PM
वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गईं। मैंने दुकान को देखा, वो महिलाओं के अंडरगार्मेन्ट की दुकान थी। मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया। मैं देखा कि दीदी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है, और वो मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगीं।
कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आईं। दीदी के हाथ में एक बैग था।
मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोलीं- अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल!
हम लोग चुपचाप चल रहे थे। मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।
मैंने दीदी से बोला- चलो कुछ देर हम लोग समुंदर के किनारे पर बैठते हैं और भेलपुड़ी खाते हैं।
‘नहीं, देर हो जाएगी!’ दीदी मुझसे बोलीं। लेकिन मैंने फिर दीदी से कहा- चलो भी दीदी।
अभी सिर्फ़ 7:30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, इसलिए वो चिंता भी नहीं करेंगी।
दीदी थोड़ी सोच कर बोलीं- चल समुंदर के किनारे चलते हैं।
दीदी के राज़ी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों समुंदर के किनारे, जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था, चल दिए।
हमने पहले एक भेलपुड़ी वाले से भेलपुड़ी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर समुंदर के किनारे बैठ गए।
हम लोग समुंदर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए। अभी समुंदर का पानी पीछे था और हमारे चारों तरफ़ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे।
वहाँ खूब ज़ोरों की हवा चल रहीं थी और समुंदर की लहरें भी तेज़ थी। इस समय बहुत सुहाना मौसम था। हम लोग भेलपुड़ी खा रहे थे और बातें कर रहे थें।
दीदी मुझ से सट कर बैठी थीं और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था। दीदी आज काले रंग की एक स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला सा टॉप पहनी हुई थीं।
एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुड़ी खा रहीं थी, तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की स्कर्ट उनकी जाँघ के ऊपर तक उठ गईं और दीदी की जांघें नंगी हो गईं।
दीदी ने अपने जाँघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उन्होंने पहले भेलपुड़ी खाईं और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी स्कर्ट को जाँघों के नीचे किया और स्कर्ट को पैरों से दबा लिया।
वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रोशनी में मुझे दीदी की गोरी-गोरी जाँघों का पूरा नज़ारा मिला। दीदी की जाँघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।
जब दीदी ने अपनी भेलपुड़ी खा चुकी तो मैं दीदी से पूछा- दीदी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?
दीदी ने फ़ौरन मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।
दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?
‘लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा!’ मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोला।
तब दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोलीं- तुझे लोगों के नज़रों से दूर क्यों बैठना है?
मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला- तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है।
दीदी मुस्कुरा कर बोलीं- हाँ मालूम तो है, लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे। हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है। और दीदी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।
मैं भी झट से उठ कर पहले अपना बैग संभाला और दीदी के पीछे-पीछे चल पड़ा। वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा।
मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया। दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गईं। दीदी मुझसे क़रीब एक फ़ुट की दूरी पर बैठी थीं।
मैंने दीदी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा। दीदी थोड़ा सा सरक कर मेरे पास आ गईं और अब दीदी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे।
मैंने दीदी के गले में बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया। मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फ़िर दीदी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर धीरे से कहा- आप बहुत सुंदर हो।
‘सोनू’, क्या तुम सही बोल रहे हो?’ दीदी ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं।
मैंने दीदी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला- मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।
दीदी धीरे से बोलीं- मेरे लिए?
मैंने फिर दीदी से धीरे से पूछा- मैं तुम्हें क़िस कर सकता हूँ?
दीदी कुछ नहीं बोलीं और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आँखें बंद कर लीं। मैंने दीदी की ठुड्डी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया। तो दीदी ने एकाएक मेरी आँखों में झाँका और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख दिए। ओह! भगवान दीदी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।
जैसे ही मैंने अपने होंठ दीदी के होंठ पर रखे। दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गईं। मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि दीदी भी गर्मा गईं हैं।
दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थीं। अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।
मैं थोड़ी देर तक दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची मींज़ने लगा।
कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आईं। दीदी के हाथ में एक बैग था।
मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोलीं- अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल!
हम लोग चुपचाप चल रहे थे। मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।
मैंने दीदी से बोला- चलो कुछ देर हम लोग समुंदर के किनारे पर बैठते हैं और भेलपुड़ी खाते हैं।
‘नहीं, देर हो जाएगी!’ दीदी मुझसे बोलीं। लेकिन मैंने फिर दीदी से कहा- चलो भी दीदी।
अभी सिर्फ़ 7:30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, इसलिए वो चिंता भी नहीं करेंगी।
दीदी थोड़ी सोच कर बोलीं- चल समुंदर के किनारे चलते हैं।
दीदी के राज़ी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों समुंदर के किनारे, जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था, चल दिए।
हमने पहले एक भेलपुड़ी वाले से भेलपुड़ी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर समुंदर के किनारे बैठ गए।
हम लोग समुंदर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए। अभी समुंदर का पानी पीछे था और हमारे चारों तरफ़ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे।
वहाँ खूब ज़ोरों की हवा चल रहीं थी और समुंदर की लहरें भी तेज़ थी। इस समय बहुत सुहाना मौसम था। हम लोग भेलपुड़ी खा रहे थे और बातें कर रहे थें।
दीदी मुझ से सट कर बैठी थीं और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था। दीदी आज काले रंग की एक स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला सा टॉप पहनी हुई थीं।
एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुड़ी खा रहीं थी, तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की स्कर्ट उनकी जाँघ के ऊपर तक उठ गईं और दीदी की जांघें नंगी हो गईं।
दीदी ने अपने जाँघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उन्होंने पहले भेलपुड़ी खाईं और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी स्कर्ट को जाँघों के नीचे किया और स्कर्ट को पैरों से दबा लिया।
वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रोशनी में मुझे दीदी की गोरी-गोरी जाँघों का पूरा नज़ारा मिला। दीदी की जाँघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।
जब दीदी ने अपनी भेलपुड़ी खा चुकी तो मैं दीदी से पूछा- दीदी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?
दीदी ने फ़ौरन मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।
दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?
‘लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा!’ मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोला।
तब दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोलीं- तुझे लोगों के नज़रों से दूर क्यों बैठना है?
मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला- तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है।
दीदी मुस्कुरा कर बोलीं- हाँ मालूम तो है, लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे। हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है। और दीदी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।
मैं भी झट से उठ कर पहले अपना बैग संभाला और दीदी के पीछे-पीछे चल पड़ा। वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा।
मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया। दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गईं। दीदी मुझसे क़रीब एक फ़ुट की दूरी पर बैठी थीं।
मैंने दीदी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा। दीदी थोड़ा सा सरक कर मेरे पास आ गईं और अब दीदी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे।
मैंने दीदी के गले में बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया। मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फ़िर दीदी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर धीरे से कहा- आप बहुत सुंदर हो।
‘सोनू’, क्या तुम सही बोल रहे हो?’ दीदी ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं।
मैंने दीदी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला- मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।
दीदी धीरे से बोलीं- मेरे लिए?
मैंने फिर दीदी से धीरे से पूछा- मैं तुम्हें क़िस कर सकता हूँ?
दीदी कुछ नहीं बोलीं और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आँखें बंद कर लीं। मैंने दीदी की ठुड्डी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया। तो दीदी ने एकाएक मेरी आँखों में झाँका और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख दिए। ओह! भगवान दीदी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।
जैसे ही मैंने अपने होंठ दीदी के होंठ पर रखे। दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गईं। मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि दीदी भी गर्मा गईं हैं।
दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थीं। अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।
मैं थोड़ी देर तक दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची मींज़ने लगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.