14-01-2022, 03:54 PM
अगले दिन शाम को मैं दीदी को अपनी किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना। मैंने सुना की दीदी अपनी सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही हैं।
मैं दीदी को अकेला पाकर बोला- मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूँ?
दीदी कुछ सोचती रहीं और फिर बोलीं- सोनू, मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रहीं है और फिर मैंने माँ से भी अभी नहीं कही है कि मैं शॉपिंग के लिए जा रही हूँ।
मैंने दीदी से कहा- तुम जाकर माँ से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना, माँ तुम्हें जाने देंगी। फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोन कर देंगे कि मार्केटिंग का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है। ठीक है ना?
“हाँ”, यह बात मुझे भी ठीक लगती है, मैं जा कर माँ से बात करती हूँ!”
और यह कह कर दीदी माँ से बात करने अंदर चली गईं, माँ ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दीं।
उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक दीदी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और दीदी के चूतड़ मेरे जांघों से टकरा रहे थे।
मैं दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे। हम जब भी कोई फुटपाथ के दुकान में खड़े होकर कपड़े देखते तो दीदी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होतीं और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता।
अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखतीं तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चूतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मैं उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता।
हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों को दीदी कुछ समझ नहीं पा रही थीं क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी।
मैं दीदी को अकेला पाकर बोला- मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूँ?
दीदी कुछ सोचती रहीं और फिर बोलीं- सोनू, मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रहीं है और फिर मैंने माँ से भी अभी नहीं कही है कि मैं शॉपिंग के लिए जा रही हूँ।
मैंने दीदी से कहा- तुम जाकर माँ से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना, माँ तुम्हें जाने देंगी। फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोन कर देंगे कि मार्केटिंग का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है। ठीक है ना?
“हाँ”, यह बात मुझे भी ठीक लगती है, मैं जा कर माँ से बात करती हूँ!”
और यह कह कर दीदी माँ से बात करने अंदर चली गईं, माँ ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दीं।
उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक दीदी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और दीदी के चूतड़ मेरे जांघों से टकरा रहे थे।
मैं दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे। हम जब भी कोई फुटपाथ के दुकान में खड़े होकर कपड़े देखते तो दीदी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होतीं और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता।
अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखतीं तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चूतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मैं उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता।
हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों को दीदी कुछ समझ नहीं पा रही थीं क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.