14-01-2022, 03:53 PM
मैं समझता था कि दीदी मेरे हरकतों और मेरे इरादों से अनजान हैं दीदी को इस बात का पता भी नहीं था कि उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था।
फिर एक दिन दीदी ने मुझे पकड़ लिया। उस दिन दीदी किचन में जा कर अपने कपड़े बदल रही थीं। हॉल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थीं और अपनी कुर्ती उतार रही थीं और उनकी ब्रा में छूपी हुई चूची मेरे नज़रों के सामने था।
फ़िर रोज़ की तरह मैं टी वी देख रहा था और दीदी को भी कनखियों से देख रहा था।
दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगे शीशे को देखा और मुझे आँखें फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। दीदी ने देखा कि मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे शीशे में टकरा गई मैं शर्मा गया और अपनी आँखें टी वी की तरफ़ कर ली।
मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया कि दीदी जान गई हैं कि मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब दीदी क्या करेंगी?
क्या दीदी माँ और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी?
इसी तरह से हज़ारों प्रश्न मेरे दिमाग़ में घूम रहे थे। मैं दीदी की तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।
उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दिनों तक मैं दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दिनों में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घूरना चालू कर दिया।
दीदी ने मुझे 2-3 बार फिर घूरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोलीं। मैं समझ गया कि दीदी को मालूम हो चुका है कि मैं क्या चाहता हूँ!
ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से दीदी को घूरने लगा।
एक दिन मैं और दीदी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थीं और मैं अपने उँगलियों को दीदी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था।
मुझे लगा कि दीदी को शायद यह बात नहीं मालूम कि मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकि दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थीं।
लेकिन मैं यह तो समझ रहा था क्योंकि दीदी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ।
हम लोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हम लोग कॉलेज और स्पोर्ट्स के बारे में बातें कर रहे थे। हमारे बालकोनी से सामने एक गली थी तो हम लोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था।
बातें करते करते दीदी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़ कर अपनी चूची से हटा दिया। दीदी को अपनी चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बातें करना बंद कर दीं और उनकी शरीर कुछ अकड़ गईं लेकिन, दीदी अपने जगह से हिलीं नहीं और मेरे हाथों से सट कर खड़ी रहीं।
दीदी ने मुझसे कुछ नहीं बोलीं तो मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।
मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर काँप रहा था। लेकिन दीदी कुछ नहीं बोलीं। दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखीं और फिर सड़क पर देखने लगीं। मैं भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था।
मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपने हाथ से दीदी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे दीदी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथों से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। दीदी की चूची काफ़ी बड़ी थी और मेरे पंजों में नहीं समा रही थी।
फिर एक दिन दीदी ने मुझे पकड़ लिया। उस दिन दीदी किचन में जा कर अपने कपड़े बदल रही थीं। हॉल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थीं और अपनी कुर्ती उतार रही थीं और उनकी ब्रा में छूपी हुई चूची मेरे नज़रों के सामने था।
फ़िर रोज़ की तरह मैं टी वी देख रहा था और दीदी को भी कनखियों से देख रहा था।
दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगे शीशे को देखा और मुझे आँखें फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। दीदी ने देखा कि मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे शीशे में टकरा गई मैं शर्मा गया और अपनी आँखें टी वी की तरफ़ कर ली।
मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया कि दीदी जान गई हैं कि मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब दीदी क्या करेंगी?
क्या दीदी माँ और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी?
इसी तरह से हज़ारों प्रश्न मेरे दिमाग़ में घूम रहे थे। मैं दीदी की तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।
उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दिनों तक मैं दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दिनों में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घूरना चालू कर दिया।
दीदी ने मुझे 2-3 बार फिर घूरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोलीं। मैं समझ गया कि दीदी को मालूम हो चुका है कि मैं क्या चाहता हूँ!
ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से दीदी को घूरने लगा।
एक दिन मैं और दीदी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थीं और मैं अपने उँगलियों को दीदी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था।
मुझे लगा कि दीदी को शायद यह बात नहीं मालूम कि मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकि दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थीं।
लेकिन मैं यह तो समझ रहा था क्योंकि दीदी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ।
हम लोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हम लोग कॉलेज और स्पोर्ट्स के बारे में बातें कर रहे थे। हमारे बालकोनी से सामने एक गली थी तो हम लोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था।
बातें करते करते दीदी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़ कर अपनी चूची से हटा दिया। दीदी को अपनी चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बातें करना बंद कर दीं और उनकी शरीर कुछ अकड़ गईं लेकिन, दीदी अपने जगह से हिलीं नहीं और मेरे हाथों से सट कर खड़ी रहीं।
दीदी ने मुझसे कुछ नहीं बोलीं तो मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।
मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर काँप रहा था। लेकिन दीदी कुछ नहीं बोलीं। दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखीं और फिर सड़क पर देखने लगीं। मैं भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था।
मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपने हाथ से दीदी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे दीदी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथों से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। दीदी की चूची काफ़ी बड़ी थी और मेरे पंजों में नहीं समा रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.