14-01-2022, 03:53 PM
मैं बार बार यह कोशिश करता था कि मेरा दिमाग दीदी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग घूम फिर कर दीदी पर ही आ जाता। मैं हमेशा 24 घंटे दीदी के बारे में और उसको चोदने के बारे में ही सोचता रहता।
मैं जब भी घर पर होता तो दीदी को ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी को नहीं थीं। दीदी जब भी अपने कपड़े बदलती थीं या माँ के साथ घर के काम में हाथ बटाती तो मैं चुपके चुपके उन्हें देखा करता था और कभी कभी मुझे उनकी सुडौल चूची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी।
दीदी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फायदा हुआ करता था। कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं दीदी के दो भरे भरे चूची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था।
मेरा सबसे अच्छा टाइम पास था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना, और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चूचियों को छूना।
हमारे घर की बालकोनी कुछ ऐसी थी कि उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में थी और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे।
मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेलिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।
कभी कभी दीदी आती तो मैं थोड़ा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता कि दीदी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। दीदी की भरी भरी चूची मेरे सीने से सट जाता था।
मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो कि बालकोनी के रेलिंग के सहारे रहती वे दीदी की चूचियों से छू जाती थी।
मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चूचियों पर हल्के हल्के चलाता था और दीदी को यह बात नहीं मालूम थी। मैं उँगलियों से दीदी की चूची को छू कर देखा कि उनकी चूची कितनी नरम और मुलायम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती है कभी कभी मैं दीदी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था।
मैं हमेशा ही दीदी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छूता था।
मैं जब भी घर पर होता तो दीदी को ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी को नहीं थीं। दीदी जब भी अपने कपड़े बदलती थीं या माँ के साथ घर के काम में हाथ बटाती तो मैं चुपके चुपके उन्हें देखा करता था और कभी कभी मुझे उनकी सुडौल चूची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी।
दीदी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फायदा हुआ करता था। कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं दीदी के दो भरे भरे चूची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था।
मेरा सबसे अच्छा टाइम पास था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना, और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चूचियों को छूना।
हमारे घर की बालकोनी कुछ ऐसी थी कि उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में थी और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे।
मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेलिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।
कभी कभी दीदी आती तो मैं थोड़ा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता कि दीदी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। दीदी की भरी भरी चूची मेरे सीने से सट जाता था।
मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो कि बालकोनी के रेलिंग के सहारे रहती वे दीदी की चूचियों से छू जाती थी।
मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चूचियों पर हल्के हल्के चलाता था और दीदी को यह बात नहीं मालूम थी। मैं उँगलियों से दीदी की चूची को छू कर देखा कि उनकी चूची कितनी नरम और मुलायम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती है कभी कभी मैं दीदी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था।
मैं हमेशा ही दीदी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छूता था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.