11-01-2022, 01:32 PM
वो बोला- भाभी, आप जाओ, मैं आता हूँ।
उसकी बात सुन कर जब मैंने उसकी पैंट की ओर देखा तो मैं समझ गई कि यह अब उठने की हालत में नहीं है।
मैंने बर्तन उठाये और रसोई में छोड़ कर अपने सैंडल टकटकाती अपने कमरे में आ गई। थोड़ी देर बाद ही विकास भी मेरे कमरे में आ गया और बिस्तर के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने टीवी चालू किया और बिस्तर पर टाँगें लंबी करके बैठ गई और विकास को भी बिस्तर पर आने के लिए कहा।
वो बोला- नहीं भाभी, मैं यहाँ ठीक हूँ।
मैंने कहा- अच्छा तो अपना वादा भूल गये कि तुम मेरे पास बैठोगे...?
यह सुन कर उसको बिस्तर पर आना ही पड़ा! मगर फिर भी वो मुझसे दूर ही बैठा। मैंने उसको और नजदीक आने के लिए कहा, वो थोड़ा सा और पास आ गया। मैंने फिर कहा तो थोड़ा ओर वो मेरे पास आ गया, बाकी जो थोड़ी बहुत कसर रहती थी वो मैंने खुद उसके साथ जुड़ कर निकाल दी।
वो नज़रें झुकाये बस मेरे पैरों को ही ताक रहा था। मैंने अपनी एक टाँग थोड़ी उठा कर लचकाते हुए अपना सैंडल पहना हुआ पैर हवा में उसकी नज़रों के सामने मरोड़ा और बोली- क्यो विकास! सैक्सी हैं ना?
ये शब्द सुनकर वो सकपक गया! क.... क... कौन... भाभी!
मुझे हंसी आ गयी और मैं बोली- सैंडल! अपने सैंडलों के बारे में पूछ रही हूँ मेरे भोले देवर...! बताओ इनमें मेरे पैर सैक्सी लग रहे हैं कि नहीं?
जी..जी भाभी! बहुत सुंदर हैं...!
इसी तरह मैं बीच-बीच में उसे उकसाने के लिये छेड़ रही थी लेकिन वो ऐसे ही छोटे-छोटे जवाब दे कर चुप हो जाता। मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था। मैं समझ गयी कि अब तो मुझे इसके साथ जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी... पता नहीं फिर मौका मिले या ना मिले। अगर मैं बिल्कुल नंगी भी इसके सामने कड़ी हो जाऊँ तो भी ये चूतिया ऐसे ही नज़रें झुकाये बैठ रहेगा।
टीवी में भी जब भी कोई गर्म नजारा आता तो वो अपना ध्यान दूसरी ओर कर लेता... मगर उसके लौड़े पर मेरा और उन नजारों का असर हो रहा था, जिसको वो बड़ी मुश्किल से अपनी टांगों में छिपा रहा था।
मैंने अपना सर उसके कंधे पर रख दिया और बोली- विकास आज तो बहुत गर्मी है...
उसने बस सिर हिला हाँ में जवाब दे दिया। वैसे तो कमरे में ए-सी चल रहा था और गर्मी तो बस मेरे बदन में ही थी।
फिर मैंने अपना दुप्पटा अपने गले से निकाल दिया, जिससे मेरे मम्मे उसके सामने आ गये, वो कभी-कभी मेरे मम्मों की ओर देखता और फिर टीवी देखने लगता। ए-सी में भी उसके पसीने छुटने शुरू हो गये थे।
मैंने कहा- विकास, तुमको तो बहुत पसीना आ रहा है, तुम अपनी टी-शर्ट उतार लो।
यह सुनकर तो उसके और छक्के छुट गये, बोला- नहीं भाभी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ।
मैंने उसकी टी-शर्ट में हाथ घुसा कर उसकी छाती पर हाथ रगड़ कर कहा- कैसे ठीक हो, यह देखो, कितना पसीना है? और अपने हाथ से उसकी टी-शर्ट ऊपर उठाने लगी...
वो अपनी टी-शर्ट उतारने को नहीं मान रहा था, तो मैंने उसकी टी-शर्ट अपने दोनों हाथों से ऊपर उठा दी। वो टी-शर्ट को नीचे खींच रहा था और मैं ऊपर.. इसी बीच मैं अपने मम्मे कभी उसकी बाजू पर लगाती और कभी उसकी पीठ पर... और कभी उसके सर से लगाती...
जब वो नहीं माना तो मैंने उसे जबरदस्ती बिस्तर पर गिरा दिया और... खुद उसके ऊपर लेट गई जिससे अब मेरे मम्मे उसकी छाती पर टकरा रहे थे और मैं लगातार उसकी टी-शर्ट ऊपर खींच रही थी। उसके गिरने के कारण उसका लौड़ा भी पैंट में उछल रहा था, जो मेरे पेट से कभी-कभी रगड़ जाता, मगर विकास अपनी कमर को दूसरी ओर घुमा रहा था ताकि उसका लौड़ा मेरे बदन के साथ न लग सके...। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
आखिर में उसने हर मान ली और मैंने उसकी टी-शर्ट उतार दी।
अब उसकी छाती जिस पर छोटे-छोटे बाल थे मेरे मम्मों के नीचे थी.. मगर मैंने अभी उसको और गर्म करना चाहा ताकि मुझे उसका बलात्कार ना करना पड़े और वो खुद मुझे चोदने के लिए मान जाये।
मैं उसके ऊपर से उठी और रसोई में गयी। मेरी साँसें तेज़ चल रही थी और चेहरा उत्तेजना से तमतमया हुआ था। मैंने शराब का एक पैग बना कर जल्दी से पिया तो कुछ अच्छा लगा। मैंने सोचा कि एक बार फिर रिझाने की कोशिश करके देखती हूँ क्योंकि कुँवारा लौंडा है... कहीं जबरदस्ती करने जल्दी ना झड़ जाये... सब चौपट हो जायेगा।
फिर आईसक्रीम एक ही कप में ले आई। मेरे आने तक वह बैठ चुका था। मैं फिर से उसके साथ बैठ गई और खुद एक चम्मच खाकर कप उसके आगे कर दिया। उसने चम्मच उठाया और आईसक्रीम खाने लगा तो मैंने उसको अपना कंधा मारा जिससे उसकी आईस क्रीम उसके पेट पर गिर गई। मैंने झट से उसके पेट से ऊँगली के साथ आईस क्रीम उठाई और उसी के मुँह की ओर कर दी। उसको समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ आज क्या हो रहा है।
फिर उसने मेरी ऊँगली अपने मुँह में ली और चाट ली मगर मैं अपनी ऊँगली उसके मुँह से नहीं निकाल रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेरी ऊँगली मुँह से बाहर निकाली।
अब मैंने जानबूझ कर एक बार आईसक्रीम अपनी छाती पर गिरा दी जो मेरे बड़े से गोल उभार पर टिक गई। मैंने एक हाथ में कप पकड़ा था और दूसरे में चम्मच।
मैंने विकास को कहा- विकास यह देखो, आईसक्रीम गिर गई... इसे उठा कर मेरे मुँह में डाल दो।
यह देख कर तो विकास की हालत बहुत खराब हो गयी। उसका लौड़ा अब उससे भी नहीं संभल रहा था। उसने डरते हुए मेरे हाथ से चम्मच लेने की कोशिश की मगर मैंने कहा- अरे विकास, हाथ से डाल दो। चम्मच से तो खुद भी डाल सकती थी।
यह सुन कर तो वो और चौंक गया..
फिर उसका कांपता हुआ हाथ मेरे मम्मे की तरफ बढ़ा और एक ऊँगली से उसने आईसक्रीम उठाई और फिर मेरे मुँह में डाल दी। मैंने उसकी ऊँगली अपने दांतों के नीचे दबा ली और अपनी जुबान से चाटने लगी। उसने खींच कर अपनी ऊँगली बाहर निकल ली तो मैंने कहा- क्यों देवर जी दर्द तो नहीं हुआ..?
उसने कहा- नहीं भाभी...!
मैंने कहा- फिर इतना डर क्यों रहे हो...?
उसने कांपते हुए होंठों से कहा- नहीं भाभी, डर कैसा...?
मैंने कहा- मुझे तो ऐसा ही लग रहा है...!
फिर मैंने चम्मच फेंक दी और अपनी ऊँगली से उसको आईसक्रीम चटाने लगी। वो डर भी रहा और शरमा भी रहा था और चुपचाप मेरी ऊँगली चाट रहा था।
मैंने कहा- अब मुझे भी खिलाओ....!
तो उसने भी ऊँगली से मुझे आईसक्रीम खिलानी शुरू कर दी। मैं हर बार उससे कोई ना कोई शरारत कर रही थी और वो और घबरा रहा था। आखिर आईसक्रीम ख़त्म हो गई और हम ठीक से बैठ गये।
उसकी बात सुन कर जब मैंने उसकी पैंट की ओर देखा तो मैं समझ गई कि यह अब उठने की हालत में नहीं है।
मैंने बर्तन उठाये और रसोई में छोड़ कर अपने सैंडल टकटकाती अपने कमरे में आ गई। थोड़ी देर बाद ही विकास भी मेरे कमरे में आ गया और बिस्तर के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने टीवी चालू किया और बिस्तर पर टाँगें लंबी करके बैठ गई और विकास को भी बिस्तर पर आने के लिए कहा।
वो बोला- नहीं भाभी, मैं यहाँ ठीक हूँ।
मैंने कहा- अच्छा तो अपना वादा भूल गये कि तुम मेरे पास बैठोगे...?
यह सुन कर उसको बिस्तर पर आना ही पड़ा! मगर फिर भी वो मुझसे दूर ही बैठा। मैंने उसको और नजदीक आने के लिए कहा, वो थोड़ा सा और पास आ गया। मैंने फिर कहा तो थोड़ा ओर वो मेरे पास आ गया, बाकी जो थोड़ी बहुत कसर रहती थी वो मैंने खुद उसके साथ जुड़ कर निकाल दी।
वो नज़रें झुकाये बस मेरे पैरों को ही ताक रहा था। मैंने अपनी एक टाँग थोड़ी उठा कर लचकाते हुए अपना सैंडल पहना हुआ पैर हवा में उसकी नज़रों के सामने मरोड़ा और बोली- क्यो विकास! सैक्सी हैं ना?
ये शब्द सुनकर वो सकपक गया! क.... क... कौन... भाभी!
मुझे हंसी आ गयी और मैं बोली- सैंडल! अपने सैंडलों के बारे में पूछ रही हूँ मेरे भोले देवर...! बताओ इनमें मेरे पैर सैक्सी लग रहे हैं कि नहीं?
जी..जी भाभी! बहुत सुंदर हैं...!
इसी तरह मैं बीच-बीच में उसे उकसाने के लिये छेड़ रही थी लेकिन वो ऐसे ही छोटे-छोटे जवाब दे कर चुप हो जाता। मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था। मैं समझ गयी कि अब तो मुझे इसके साथ जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी... पता नहीं फिर मौका मिले या ना मिले। अगर मैं बिल्कुल नंगी भी इसके सामने कड़ी हो जाऊँ तो भी ये चूतिया ऐसे ही नज़रें झुकाये बैठ रहेगा।
टीवी में भी जब भी कोई गर्म नजारा आता तो वो अपना ध्यान दूसरी ओर कर लेता... मगर उसके लौड़े पर मेरा और उन नजारों का असर हो रहा था, जिसको वो बड़ी मुश्किल से अपनी टांगों में छिपा रहा था।
मैंने अपना सर उसके कंधे पर रख दिया और बोली- विकास आज तो बहुत गर्मी है...
उसने बस सिर हिला हाँ में जवाब दे दिया। वैसे तो कमरे में ए-सी चल रहा था और गर्मी तो बस मेरे बदन में ही थी।
फिर मैंने अपना दुप्पटा अपने गले से निकाल दिया, जिससे मेरे मम्मे उसके सामने आ गये, वो कभी-कभी मेरे मम्मों की ओर देखता और फिर टीवी देखने लगता। ए-सी में भी उसके पसीने छुटने शुरू हो गये थे।
मैंने कहा- विकास, तुमको तो बहुत पसीना आ रहा है, तुम अपनी टी-शर्ट उतार लो।
यह सुनकर तो उसके और छक्के छुट गये, बोला- नहीं भाभी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ।
मैंने उसकी टी-शर्ट में हाथ घुसा कर उसकी छाती पर हाथ रगड़ कर कहा- कैसे ठीक हो, यह देखो, कितना पसीना है? और अपने हाथ से उसकी टी-शर्ट ऊपर उठाने लगी...
वो अपनी टी-शर्ट उतारने को नहीं मान रहा था, तो मैंने उसकी टी-शर्ट अपने दोनों हाथों से ऊपर उठा दी। वो टी-शर्ट को नीचे खींच रहा था और मैं ऊपर.. इसी बीच मैं अपने मम्मे कभी उसकी बाजू पर लगाती और कभी उसकी पीठ पर... और कभी उसके सर से लगाती...
जब वो नहीं माना तो मैंने उसे जबरदस्ती बिस्तर पर गिरा दिया और... खुद उसके ऊपर लेट गई जिससे अब मेरे मम्मे उसकी छाती पर टकरा रहे थे और मैं लगातार उसकी टी-शर्ट ऊपर खींच रही थी। उसके गिरने के कारण उसका लौड़ा भी पैंट में उछल रहा था, जो मेरे पेट से कभी-कभी रगड़ जाता, मगर विकास अपनी कमर को दूसरी ओर घुमा रहा था ताकि उसका लौड़ा मेरे बदन के साथ न लग सके...। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
आखिर में उसने हर मान ली और मैंने उसकी टी-शर्ट उतार दी।
अब उसकी छाती जिस पर छोटे-छोटे बाल थे मेरे मम्मों के नीचे थी.. मगर मैंने अभी उसको और गर्म करना चाहा ताकि मुझे उसका बलात्कार ना करना पड़े और वो खुद मुझे चोदने के लिए मान जाये।
मैं उसके ऊपर से उठी और रसोई में गयी। मेरी साँसें तेज़ चल रही थी और चेहरा उत्तेजना से तमतमया हुआ था। मैंने शराब का एक पैग बना कर जल्दी से पिया तो कुछ अच्छा लगा। मैंने सोचा कि एक बार फिर रिझाने की कोशिश करके देखती हूँ क्योंकि कुँवारा लौंडा है... कहीं जबरदस्ती करने जल्दी ना झड़ जाये... सब चौपट हो जायेगा।
फिर आईसक्रीम एक ही कप में ले आई। मेरे आने तक वह बैठ चुका था। मैं फिर से उसके साथ बैठ गई और खुद एक चम्मच खाकर कप उसके आगे कर दिया। उसने चम्मच उठाया और आईसक्रीम खाने लगा तो मैंने उसको अपना कंधा मारा जिससे उसकी आईस क्रीम उसके पेट पर गिर गई। मैंने झट से उसके पेट से ऊँगली के साथ आईस क्रीम उठाई और उसी के मुँह की ओर कर दी। उसको समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ आज क्या हो रहा है।
फिर उसने मेरी ऊँगली अपने मुँह में ली और चाट ली मगर मैं अपनी ऊँगली उसके मुँह से नहीं निकाल रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेरी ऊँगली मुँह से बाहर निकाली।
अब मैंने जानबूझ कर एक बार आईसक्रीम अपनी छाती पर गिरा दी जो मेरे बड़े से गोल उभार पर टिक गई। मैंने एक हाथ में कप पकड़ा था और दूसरे में चम्मच।
मैंने विकास को कहा- विकास यह देखो, आईसक्रीम गिर गई... इसे उठा कर मेरे मुँह में डाल दो।
यह देख कर तो विकास की हालत बहुत खराब हो गयी। उसका लौड़ा अब उससे भी नहीं संभल रहा था। उसने डरते हुए मेरे हाथ से चम्मच लेने की कोशिश की मगर मैंने कहा- अरे विकास, हाथ से डाल दो। चम्मच से तो खुद भी डाल सकती थी।
यह सुन कर तो वो और चौंक गया..
फिर उसका कांपता हुआ हाथ मेरे मम्मे की तरफ बढ़ा और एक ऊँगली से उसने आईसक्रीम उठाई और फिर मेरे मुँह में डाल दी। मैंने उसकी ऊँगली अपने दांतों के नीचे दबा ली और अपनी जुबान से चाटने लगी। उसने खींच कर अपनी ऊँगली बाहर निकल ली तो मैंने कहा- क्यों देवर जी दर्द तो नहीं हुआ..?
उसने कहा- नहीं भाभी...!
मैंने कहा- फिर इतना डर क्यों रहे हो...?
उसने कांपते हुए होंठों से कहा- नहीं भाभी, डर कैसा...?
मैंने कहा- मुझे तो ऐसा ही लग रहा है...!
फिर मैंने चम्मच फेंक दी और अपनी ऊँगली से उसको आईसक्रीम चटाने लगी। वो डर भी रहा और शरमा भी रहा था और चुपचाप मेरी ऊँगली चाट रहा था।
मैंने कहा- अब मुझे भी खिलाओ....!
तो उसने भी ऊँगली से मुझे आईसक्रीम खिलानी शुरू कर दी। मैं हर बार उससे कोई ना कोई शरारत कर रही थी और वो और घबरा रहा था। आखिर आईसक्रीम ख़त्म हो गई और हम ठीक से बैठ गये।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
