16-05-2019, 09:42 AM
कवितायें
![[Image: B-W-62dce43fbcdd2ba4a345e52f8901ccdb.jpg]](https://i.ibb.co/QcVGHry/B-W-62dce43fbcdd2ba4a345e52f8901ccdb.jpg)
और उसके बाद कवितायें ,... रोज के हिसाब से ,..
और मेरे बालों से लेकर पैरों तक कोई अंग बचा नहीं था ,...
उनका जो सबसे फेवरिट पार्ट , जिसे देख कर वो बेचारा हदम ललचाता रहता था , मेरे किशोर उरोज , ... दर्जन भर , ...
![[Image: ecea9e5fbdac1adca393d709a4e641aa.jpg]](https://i.ibb.co/L5dygmW/ecea9e5fbdac1adca393d709a4e641aa.jpg)
देखने में ये एकदम सीधे लगते थे , लेकिन सब की सब ऐसी एरोटिक,
वो बोला-
“रोज तुम मुझे सपने में आकर तंग करती थी। इसलिये जैसा तुम दिखती थी, नख सिख वर्णन, सारे अंगों के…”
मैं प्यार से लताड़ के बोली- “क्या सारे अंगों के?”
वो हँसकर बोला- “हाँ पढ़ो तो… सारे अंगों के। मुझसे क्या छुपाव, दुराव…”
मैंने पढ़ना शुरू किया। पहली कविता थी ‘केश’
उन्मुक्त कर दो केश, मत बांधो इन्हें,
ये भ्रमर से डोलते मुख पर तुम्हारे,
चांद की जैसे नजर कोई उतारे।
दे रहे संदेश, मत बांधो इन्हें,
खा रहे हैं खम दमकते भाल पे,
छोड़ दो इनको इन्हीं के हाल पे,
दे रहे आदेश मत बांधो इन्हें।
![[Image: Eyes-8d202a08db25670c0b1df3e587e68d21.jpg]](https://i.ibb.co/K0pzDR6/Eyes-8d202a08db25670c0b1df3e587e68d21.jpg)
और उसके बाद आँखों और फिर होंठों
और उसके साथ-साथ वो और ज्यादा रसिक होते जा रहे थे।
मीन सी, कानों से बातें करती, आँखें, ढीठ दीठ, लजायी सकुचायी,
मेरे सपने जहां जाकर पल भर चुम्बनों के स्वादों से लदी थकी पलकें,
कटार सी तिरछी भौंहें,
और सुधा के सदन, मधुर रस मयी अधर, प्रतीक्षारत मेरे अधर
![[Image: Lips-2244534089ea254bf1416fefaa4194aae1e2f61e.jpg]](https://i.ibb.co/BNB7vpP/Lips-2244534089ea254bf1416fefaa4194aae1e2f61e.jpg)
जिनके स्वाद के, स्नेह के लेकिन सबसे ज्यादा कवितायें जिन पे थीं वे थे मेरे उरोज।
पूरी 7 और एक से एक और सिर्फ उनपर ही नहीं मेरे निपल्स के बारे में,
उसके आस-पास के रंग के बारे में-
![[Image: nips-J-tumblr-nso25e9bpw1sajoh5o1-500.jpg]](https://i.ibb.co/LZC6gWG/nips-J-tumblr-nso25e9bpw1sajoh5o1-500.jpg)
“ये तेरे यौवन के रस कलश, ये किशोर उभार,
खोल दो घट पी लेने दो मेरे अतृप्त नयन, प्यासे अधर…”
“व्याकुल हैं मेरे कर युगल पाने को, पागल है मेरा मन,
ये आंनद शिखर, उन पे शोभित कलश,
तन भी तेरी देह लता के ये फल चखने को…”
![[Image: sixteen-nips-3.jpg]](https://i.ibb.co/hVCXN5S/sixteen-nips-3.jpg)
मेरा तो मन खराब हो गया इन कविताओं को पढ़ के और मैंने कई पन्ने पलट दिये।
अब नितम्बों का वणर्न था-
“कामदेव के उल्टे मृदंग, भारी घने नितंब…”
![[Image: rear-end-1a4f6c6d3e24cb5ae004eb2fc49b9cf1.jpg]](https://i.ibb.co/F8mPRb1/rear-end-1a4f6c6d3e24cb5ae004eb2fc49b9cf1.jpg)
कई इंग्लिश में भी थीं।
तब तो वो बोले- “पन्ने पीछे पलटो- ‘वो’ तो तुमने छोड़ ही दिया जिसके बारे में पूछ रही थी…”
और वास्तव में नितंब के पहले, नाभी के बाद थी वो- ‘रस कूप, मदन स्थान’
करती रहोगी तुम नहीं नहीं, शर्माती,
इठलाती और बल पूवर्क खोल दूंगा मैं हटाकर लाज के सारे पहरे, पर्दे,
छिपी रहती होगी जो किरणों से भी,
रस कूप, गुलाबी पंखुड़ियों से बंद आसव का वो प्याला।
![[Image: pussy-v2.jpg]](https://i.ibb.co/kHfvDct/pussy-v2.jpg)
पढ़ते-पढ़ते मेरी आँखें मस्ती से मुंदी जा रहीं थी।
मैं सोच भी नहीं सकती थी कि शब्द भी इतने रसीले हो सकते हैं।
मैं वहां भी गीली हो रही थी, मेरे रस कूप एक बार फिर रस से छलक रहे थे।
और जहां तक उनकी हालत थी, मुझे तो लगने लगा था की जब तक मैं उनके पास रहती थी, उनका तो ‘वो’ खड़ा ही रहता था।
मैंने उनसे कहा-
“आपने ने जो मेरे बारे में… वो मैं आपके मुँह से सुनना चाहती हूँ…”
उन्होंने डायरी के पन्ने खोले तो शरारत से मैंने उसे बंद कर दिया और बोली-
“ऐसे थोड़ी, तुरंत बना के आशु कवि ऐसे जो भी आपके मन में आये…”
तभी मुझे ध्यान आया, पढ़ने के बहाने उन्होंने लाईट जला दी थी,
और निवर्सना मैं, मेरा सब कुछ… शर्माकर मैंने उनकी आँखें अपनी हथेली बंद कर दीं।
वो बोले- “अरे देखूंगा नहीं, तो बोलूंगा कैसे?”
मैंने उनका हाथ अपने सीने पे रखकर कहा- “उंगलियों से देख के…”
फिर मैंने कहा- “मुझे अपनी प्रशंसा सुनना अच्छा लगता है और वो भी आपके मुँह से…”
वो बोलने लगे-
तेरे ये मदभरे, मतवाले, रस कलश,
किशोर यौवन के उभार, रूप के शिखर,
डोम्स आफ ज्वाय, जवानी की जुन्हाई से नहाये जोबन,
प्यासे हैं मेरे अधर, इनका रस पाने को,
छू लेने को चख लेने को, छक लेने को सुधा रस।
और मेरी आँखें भी मस्ती में बंद हो गईं।
![[Image: nip-suck-18602421.gif]](https://i.ibb.co/jTjZBvR/nip-suck-18602421.gif)
मैंने खुद उनके प्यासे अधरों को खींचकर अपने जोबन के उभारों पे लगा दिया।
और अब उनकी उंगलियां भी सरक के और नीचे सीधे मेरे रस कूप पे
और वो बोले जा रहे थे-
तेरे ये भीगे गुलाबी प्रेम के स्वाद को चखने को बैचेन होंठ,
थरथराते, लजाते, ये गुलाबी पंखुड़ियां किशोर खिलने को बेताब ये कली
(उनकी उंगलियां अब मेरे भगोष्ठों का फैलाकर अंदर घुस चुकी थीं),
ये संकरी प्रेम-गली, मेरे चुम्बनों के स्वाद से सजी रस से पगी,
![[Image: pussy-fingering-tumblr-n1ciai-Jq-DH1rw5um0o1-r1-400.gif]](https://i.ibb.co/jfKcrzG/pussy-fingering-tumblr-n1ciai-Jq-DH1rw5um0o1-r1-400.gif)
स्वागत करने को बेताब, भींच लेने को, कस लेने को, सिकोड़ लेने को,
अपनी बांहो में मेरा मिलन को उत्सुक बेचैन उत्थीत काम-दंड।
हम दोनों रस से पगे बेताब हो रहे थे।
हमारी शादी के फोटो और स्केच ,.. और सबसे आखिरी पन्ने पर ,
जो मेरी चूड़ियां टूटी थीं , पहले मिलन में , जो गुलाब की , चमेली की पंखुड़ियां ,
इन्ही सब को जोड़ के क्या जबरदस्त कोलाज़ इन्होने बनाया था
और वो बात लिख दी ,
जिसे कहने की आज तक ये लड़का हिम्मत नहीं जुटा पाया ,
आई लव यू।
अभी भी मारे डर के उनकी आँखे बंद थी ,
' सजा तो तुम्हे मिलेगी , चोर डाकू , बदमाश। "
मैं बोली और अब वो थोड़ा सा मुस्कराये।
और उन मुस्कराते होंठों पर होंठ रख के कस के मैंने चुम्मी ले ली।
![[Image: B-W-62dce43fbcdd2ba4a345e52f8901ccdb.jpg]](https://i.ibb.co/QcVGHry/B-W-62dce43fbcdd2ba4a345e52f8901ccdb.jpg)
और उसके बाद कवितायें ,... रोज के हिसाब से ,..
और मेरे बालों से लेकर पैरों तक कोई अंग बचा नहीं था ,...
उनका जो सबसे फेवरिट पार्ट , जिसे देख कर वो बेचारा हदम ललचाता रहता था , मेरे किशोर उरोज , ... दर्जन भर , ...
![[Image: ecea9e5fbdac1adca393d709a4e641aa.jpg]](https://i.ibb.co/L5dygmW/ecea9e5fbdac1adca393d709a4e641aa.jpg)
देखने में ये एकदम सीधे लगते थे , लेकिन सब की सब ऐसी एरोटिक,
वो बोला-
“रोज तुम मुझे सपने में आकर तंग करती थी। इसलिये जैसा तुम दिखती थी, नख सिख वर्णन, सारे अंगों के…”
मैं प्यार से लताड़ के बोली- “क्या सारे अंगों के?”
वो हँसकर बोला- “हाँ पढ़ो तो… सारे अंगों के। मुझसे क्या छुपाव, दुराव…”
मैंने पढ़ना शुरू किया। पहली कविता थी ‘केश’
उन्मुक्त कर दो केश, मत बांधो इन्हें,
ये भ्रमर से डोलते मुख पर तुम्हारे,
चांद की जैसे नजर कोई उतारे।
दे रहे संदेश, मत बांधो इन्हें,
खा रहे हैं खम दमकते भाल पे,
छोड़ दो इनको इन्हीं के हाल पे,
दे रहे आदेश मत बांधो इन्हें।
![[Image: Eyes-8d202a08db25670c0b1df3e587e68d21.jpg]](https://i.ibb.co/K0pzDR6/Eyes-8d202a08db25670c0b1df3e587e68d21.jpg)
और उसके बाद आँखों और फिर होंठों
और उसके साथ-साथ वो और ज्यादा रसिक होते जा रहे थे।
मीन सी, कानों से बातें करती, आँखें, ढीठ दीठ, लजायी सकुचायी,
मेरे सपने जहां जाकर पल भर चुम्बनों के स्वादों से लदी थकी पलकें,
कटार सी तिरछी भौंहें,
और सुधा के सदन, मधुर रस मयी अधर, प्रतीक्षारत मेरे अधर
![[Image: Lips-2244534089ea254bf1416fefaa4194aae1e2f61e.jpg]](https://i.ibb.co/BNB7vpP/Lips-2244534089ea254bf1416fefaa4194aae1e2f61e.jpg)
जिनके स्वाद के, स्नेह के लेकिन सबसे ज्यादा कवितायें जिन पे थीं वे थे मेरे उरोज।
पूरी 7 और एक से एक और सिर्फ उनपर ही नहीं मेरे निपल्स के बारे में,
उसके आस-पास के रंग के बारे में-
![[Image: nips-J-tumblr-nso25e9bpw1sajoh5o1-500.jpg]](https://i.ibb.co/LZC6gWG/nips-J-tumblr-nso25e9bpw1sajoh5o1-500.jpg)
“ये तेरे यौवन के रस कलश, ये किशोर उभार,
खोल दो घट पी लेने दो मेरे अतृप्त नयन, प्यासे अधर…”
“व्याकुल हैं मेरे कर युगल पाने को, पागल है मेरा मन,
ये आंनद शिखर, उन पे शोभित कलश,
तन भी तेरी देह लता के ये फल चखने को…”
![[Image: sixteen-nips-3.jpg]](https://i.ibb.co/hVCXN5S/sixteen-nips-3.jpg)
मेरा तो मन खराब हो गया इन कविताओं को पढ़ के और मैंने कई पन्ने पलट दिये।
अब नितम्बों का वणर्न था-
“कामदेव के उल्टे मृदंग, भारी घने नितंब…”
![[Image: rear-end-1a4f6c6d3e24cb5ae004eb2fc49b9cf1.jpg]](https://i.ibb.co/F8mPRb1/rear-end-1a4f6c6d3e24cb5ae004eb2fc49b9cf1.jpg)
कई इंग्लिश में भी थीं।
तब तो वो बोले- “पन्ने पीछे पलटो- ‘वो’ तो तुमने छोड़ ही दिया जिसके बारे में पूछ रही थी…”
और वास्तव में नितंब के पहले, नाभी के बाद थी वो- ‘रस कूप, मदन स्थान’
करती रहोगी तुम नहीं नहीं, शर्माती,
इठलाती और बल पूवर्क खोल दूंगा मैं हटाकर लाज के सारे पहरे, पर्दे,
छिपी रहती होगी जो किरणों से भी,
रस कूप, गुलाबी पंखुड़ियों से बंद आसव का वो प्याला।
![[Image: pussy-v2.jpg]](https://i.ibb.co/kHfvDct/pussy-v2.jpg)
पढ़ते-पढ़ते मेरी आँखें मस्ती से मुंदी जा रहीं थी।
मैं सोच भी नहीं सकती थी कि शब्द भी इतने रसीले हो सकते हैं।
मैं वहां भी गीली हो रही थी, मेरे रस कूप एक बार फिर रस से छलक रहे थे।
और जहां तक उनकी हालत थी, मुझे तो लगने लगा था की जब तक मैं उनके पास रहती थी, उनका तो ‘वो’ खड़ा ही रहता था।
मैंने उनसे कहा-
“आपने ने जो मेरे बारे में… वो मैं आपके मुँह से सुनना चाहती हूँ…”
उन्होंने डायरी के पन्ने खोले तो शरारत से मैंने उसे बंद कर दिया और बोली-
“ऐसे थोड़ी, तुरंत बना के आशु कवि ऐसे जो भी आपके मन में आये…”
तभी मुझे ध्यान आया, पढ़ने के बहाने उन्होंने लाईट जला दी थी,
और निवर्सना मैं, मेरा सब कुछ… शर्माकर मैंने उनकी आँखें अपनी हथेली बंद कर दीं।
वो बोले- “अरे देखूंगा नहीं, तो बोलूंगा कैसे?”
मैंने उनका हाथ अपने सीने पे रखकर कहा- “उंगलियों से देख के…”
फिर मैंने कहा- “मुझे अपनी प्रशंसा सुनना अच्छा लगता है और वो भी आपके मुँह से…”
वो बोलने लगे-
तेरे ये मदभरे, मतवाले, रस कलश,
किशोर यौवन के उभार, रूप के शिखर,
डोम्स आफ ज्वाय, जवानी की जुन्हाई से नहाये जोबन,
प्यासे हैं मेरे अधर, इनका रस पाने को,
छू लेने को चख लेने को, छक लेने को सुधा रस।
और मेरी आँखें भी मस्ती में बंद हो गईं।
![[Image: nip-suck-18602421.gif]](https://i.ibb.co/jTjZBvR/nip-suck-18602421.gif)
मैंने खुद उनके प्यासे अधरों को खींचकर अपने जोबन के उभारों पे लगा दिया।
और अब उनकी उंगलियां भी सरक के और नीचे सीधे मेरे रस कूप पे
और वो बोले जा रहे थे-
तेरे ये भीगे गुलाबी प्रेम के स्वाद को चखने को बैचेन होंठ,
थरथराते, लजाते, ये गुलाबी पंखुड़ियां किशोर खिलने को बेताब ये कली
(उनकी उंगलियां अब मेरे भगोष्ठों का फैलाकर अंदर घुस चुकी थीं),
ये संकरी प्रेम-गली, मेरे चुम्बनों के स्वाद से सजी रस से पगी,
![[Image: pussy-fingering-tumblr-n1ciai-Jq-DH1rw5um0o1-r1-400.gif]](https://i.ibb.co/jfKcrzG/pussy-fingering-tumblr-n1ciai-Jq-DH1rw5um0o1-r1-400.gif)
स्वागत करने को बेताब, भींच लेने को, कस लेने को, सिकोड़ लेने को,
अपनी बांहो में मेरा मिलन को उत्सुक बेचैन उत्थीत काम-दंड।
हम दोनों रस से पगे बेताब हो रहे थे।
हमारी शादी के फोटो और स्केच ,.. और सबसे आखिरी पन्ने पर ,
जो मेरी चूड़ियां टूटी थीं , पहले मिलन में , जो गुलाब की , चमेली की पंखुड़ियां ,
इन्ही सब को जोड़ के क्या जबरदस्त कोलाज़ इन्होने बनाया था
और वो बात लिख दी ,
जिसे कहने की आज तक ये लड़का हिम्मत नहीं जुटा पाया ,
आई लव यू।
अभी भी मारे डर के उनकी आँखे बंद थी ,
' सजा तो तुम्हे मिलेगी , चोर डाकू , बदमाश। "
मैं बोली और अब वो थोड़ा सा मुस्कराये।
और उन मुस्कराते होंठों पर होंठ रख के कस के मैंने चुम्मी ले ली।