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Adultery प्यार या धोखा
#56
अध्याय 10
यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी में मैं सबसे दूर एक पुस्तक लेकर बैठी थी,कौन सी बुक थी वो तो मुझे भी नही पता था,लेकिन यंहा वो शांति थी जो मुझे चाहिए थी,मैं सपना और रोहन दोनों को ही अपने सामने नही देखना चाहती थी,इसलिए एक ऐसी जगह चुनी जंहा वो कभी नही आते हो,यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी…….
“वाओ तुम्हे केमेस्ट्री में इतना इंटरेस्ट है मुझे पता नही था”
एक आवाज मेरे पीछे से आयी ,वो गौरव सर थे,मैं उन्हें अचानक से देख कर खड़ी होने लगी ..
“अरे बैठो बैठो..”
वो मेरे सामने वाली चेयर मे बैठ गए और मेरे सामने रखी पुस्तक को उठा लिया ..
“ह्म्म्म तो तुम ये पड़ रही हो,ऐसे बीएससी के छात्रों को ये पड़ते मैंने बहुत कम ही देखा है ,ये तो पीएचडी वाले लोग ही पड़ते है,कुछ समझ भी आ रहा है या हु ही ..”
मेरा ध्यान उस पुस्तक पर गया जिसे मैं पिछले आधे घंटे से लिए बैठी थी लेकिन उसका नाम भी मुझे पता नही था…
मुझे कोई जवाब ही नही सुझा,क्योंकि जब दिमाग में हजारों सवाल चल रहे हो तो आदमी खोया खोया सा ही रहता है ,शायद मेरी मनोस्थिति को गौरव सर समझ चुके थे..
“क्या हुआ कोई प्रॉब्लम है क्या “
उन्होंने धीरे से कहा ,और मेरे आंखों से आंसू छलक गए,मैं भरी पड़ी थी ,मुझे एक कंधा चाहिए था जिसपर मैं सर रखकर रो सकू लेकिन अपना दुखड़ा मैं किसे सुनाती...मेरे सबसे अच्छे दोस्त ही तो मुझसे दूर थे ..
“अरे क्या हुआ तुम्हे “उन्हेंने एक बार इधर उधर देखा फिर अचानक से खड़े होकर मेरा हाथ पकड़कर उसे उठा लिए और एक ऐसे कोने में ले गए जंहा कोई भी नही था,मुझे आज ही पता चला की हमारी लाइब्रेरी इतनी बड़ी है की प्रेमी जोड़े अपने प्रेम लीला भी कर ले तो कोई पकड़ने वाला नही है ..
उन्होंने एक शांत जगह पर मुझे बिठाया और मेरे सामने बैठ गए ,
“अब बताओ क्या प्रॉब्लम है “
अब तो पता नही मुझे क्या हुआ मैं फुट फुट कर रोई,और मेरे मुह से सच ऐसे निकला जैसे ऑटोमेटिक मशीन गन वाली गोली हो एक बार चला दो तो पूरी गोली  खत्म करके ही बंद होती है ..
मैंने उन्हें हर चीज बता दी की कैसे रोहन ने मुझे प्रपोज किया,फिर कैसे धोखा दिया,और फिर कैसे मैं उनके पास पहुची और साथ साथ ही कैसे मैंने रोहन और सपना से बदला लिया, एक एक सच मैं कह गई जैसे वो मेरे पुराने दोस्त हो,ऐसे सच भी जो कोई लड़की किसी अनजान तो क्या ,जानपहचान वाले इंसान को भी ना बताए.
लेकिन पता नही सर में वो क्या आकर्षण था,या शायद मैं बहुत ही ज्यादा दुखी थी और मुझे एक ऐसे इंसान की जरूरत थी जिससे मैं अपने सारे दर्द शेयर कर सकू…
वो भी चुपचाप मेरी बातों को सुनते रहे,और अंत में मुझे दिलासा देने लगे,वो बहुत ही सुलझे हुए इंसान लगे जो दुसरो की तकलीफों को समझता है ,और रात वाली घटना से ये भी समझ आ गया था की वो जरूरतमंदों की मदद को भी तैयार रहते है,उनकी आंखों में मैंने अभी तक कोई ऐसे भाव नही देखे जो मुझे उनपर किसी भी तरह का शक करने को मजबूर  करे,वो अभी भी मुझसे ऐसे ही पेश आ रहे थे जैसा एक टीचर अपने स्टूडेंट से आता है,बिल्कुल ही सभ्य तरीका था उनका,उन्होंने मुझे समझाया थोड़ा पानी पिलाया ,और इधर उधर की बातों से मेरे मन को शान्त किया..
उस दिन के बाद अक्सर हमारी मुलाकातें होती रही ,अधिकतर लाइब्रेरी में ही ,जंहा पहले मैं बिल्कुल ही नही आती थी लेकिन अब सिर्फ उनसे मिलने ही आने लगी,वो मुझे सब्जेक्ट से रिलेटेड कई बाते बताया करते जिनमे मुझे बिल्कुल भी इंटरेस्ट नही था,मुझे धीरे धीरे पता चला की वो यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट है,इतने कम उम्र में ही उन्होंने कई शोध पत्र रिलीज करवा चुके है,और आने वाले दिन में इस यूनिवर्सिटी के केमेस्ट्री डिपार्टमेंट का भविष्य कहे जाते है,कई होनहार विद्यार्थियों के लिए वो प्रेरणा के स्रोत थे लेकिन मेरे लिए …???
मुझे पढ़ाई में कभी भी कोई भी इंटरेस्ट नही था और केमेस्टि में तो तो बिल्कुल भी नही ,मुझे ग्रेजुएशन के बाद MBA करना था और पाप का बिजिनेस सम्हालना था,मैं अभी से उनके बिजिनेस में उनका हाथ बटाने लगी थी ,असल में हम तीनो दोस्तो का एक ही प्लान था की अपने बाप के बिजिनेस को और बड़ा करना,यंहा तो हम बस डिग्री लेने आये थे ,लेकिन सर से मिलने का एक ही तरीका था और वो था लाइब्रेरी में उनके साथ वो सब बाते सुनना ,वो ही मैं कर रही थी,वो कोई पुस्तक खोले या किसी रिसर्च पेपर पर चर्चा करते थे जो मेरे दिमाग के बिल्कुल ही ऊपर से जाता था,और उनके कुछ सलेक्टेड विद्यार्थी उनकी बात पर बहस भी करते ,उनसे सवाल पूछते वो जवाब देते,सब चलता रहता ,मैं बस उनके साथ बैठकर उनके चहरे को निहारती रहती,पता नही उस चहरे में क्या था..
एक सामान्य सा चहरा तो था ,एक सामान्य से डीलडौल का व्यक्ति,मैं तो उन्हें एक साल से देख रही थी लेकिन वो इतने आकर्षक कभी भी नही लगे थे,अगर पहले मुझे कोई कहता की ये व्यक्ति आकर्षक है तो शायद मैं हंस पड़ती,लेकिन अब मुझे ये क्या हो रहा था,उनकी मुस्कान,उनका वो बोलने का शालीन अंदाज,उनकी वो सादगी,उनका वो अपने विषय में गहरा ज्ञान ये सभी वो चीजे थी जिससे पहले मेरा कोई भी वास्ता नही था लेकिन अब वही चीजे मुझे आकर्षित करती थी,मैं उन्हें देखते रहती ,फिर खुद ही कुछ सोच कर शर्मा जाती,और खुद ही मुस्कुराती ,क्या हो रहा था मुझे??
लेकिन मेरी इन हरकतों की भनक उन्हें भी लगने लगी थी,एक दिन सब लोगो के जाने के बाद उन्होंने मुझे रोक लिया ..
“पूर्वी यु आर आ गुड गर्ल ,और तुम रोज लाइब्रेरी में आती भी हो ,सब्जेक्ट की हर बातों को इतने ध्यान से सुनती हो…”
वो थोड़े देर चुप हो गए और मुझे निहारने लगे,
“लेकिन फिर भी मुझे नही लगता की तुम्हारा ध्यान कभी पढ़ाई में रहता है ,तुम तो कही और ही खोई हुई लगती हो “
उनकी बात से मैं बुरी तरह से झेंप गई ,मुझे समझ नही आ रहा था की मैं क्या करू,ऐसा लगा जैसे मेरी चोरी किसी ने पकड़ ली हो..
मैं कुछ भी नही बोल पाई लेकिन वो बोल पड़े..
“देखो पूर्वी मैं समझता हु की तुम्हारे साथ क्या हो रहा है लेकिन तुम्हे भी समझने की जरूरत है की ये सब तुम्हारे उम्र के कारण हो रहा है ,तुम्हारी उम्र ही ऐसी है की किसी के प्रति आकर्षण जाग जाए,अभी तुम्हे सही गलत की ज्यादा समझ नही है …”
मैं दंग थी ,ये आदमी मुझे सीधे सीधे रिजेक्ट कर रहा है ,मैं आज तक कभी रिजेक्ट नही हुई थी ,असल में मैंने कई लोगो को रिजेक्ट किया था..
“लेकिन सर मैं ..”
“कोई बात नही ,मैं जानता हु की तुम अभी दुखी हो,मेरा मानना है की तुम्हे फिर से अपने दोस्त के साथ रहना चाहिए,पढ़ाई में तुम्हारा इंटरेस्ट नही है ,तुम यंहा अपना समय ही बर्बाद कर रही हो ,अपने दोस्तो को माफ करो और फिर से उनके साथ दोस्तो की ही तरह रहो,मुझे लगता है की तुम्हे दर्द देकर वो भी खुश नही है,मैं रोहन और उस लड़की क्या नाम था हा सपना को आजकल बहुत ही अपसेट और दुखी देखता हु ,पहले तुम लोग कितने खुश दिखाई देते थे….”
उनकी बात से मेरा ध्यान एक बार फिर से रोहन और सपना की ओर गया,कई दिन हो गए थे उनलोगों से बात किये ,मैं तो उनका चहरा भी देखना पसंद नही कर रही थी ..
“सर मुझे लगता है की मैं आपसे प्यार करने लगी हु “
मैंने बहुत ही सीरियस हो कर कहा ,लेकिन सर हँसे जोरो से हँसे ..
“होता है होता है,जब मैं तुम्हारी उम्र में था तो मुझे भी अपनी  टीचर से प्यार हो गया था,मैंने भी उन्हें प्रपोज कर दिया था,तुम उन्हें जानती होगी ,हमारे विभाग की HOD ...मेडम ने मुझे यही चीज समझाई जो मैं तुम्हे समझा रहा हु ,और प्यार तो आज भी उनके लिए है लेकिन अब उस प्यार का स्वरूप बदल गया है,अब मैं मेडम की बेहद ही इज्जत करता हु,समझ लो की अब वो मेरे लिए मेरी माँ की तरह है ,और उन्होंने भी हमेशा ही मुझे अपने बेटे की तरह प्यार दिया है ..”
मैं अजीब से पशोपेश में पड़ गई थी ,इसका मतलब है की गौरव सर मुझे अपनी बेटी मानते है???
“लेकिन सर ..”
“पूर्वी ...घर जाओ और मेरी बात को समझो ,अपने दोस्तो से मिलो और कुछ दिन में ही तुम्हे समझ आ जाएगा की ये महज एक आकर्षण है ना की प्यार ..”
वो वंहा से निकल गए मुझे फिर से सोचता हुआ छोड़कर ……..
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RE: प्यार या धोखा - by Chutiyadr - 15-05-2019, 12:40 AM



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