14-05-2019, 10:28 PM
भाग ५): अलग एहसास
करीब १०-१२ दिन बीत गए हैं ---
पिछली घटना को हुए --- |
आशा की नौकरी लग गई है कॉलेज में --- नॉन टीचिंग स्टाफ कम रिजर्व्ड टीचर के रूप में --- कभी कोई टीचर नहीं आ पाए तो उसके जगह आशा क्लास ले लेती --- हालाँकि रणधीर बाबू के पास आप्शन तो था, आशा को नर्सरी या जूनियर क्लासेज में टीचर नियुक्त करने का --- पर इससे होता यह कि वह आशा को हर वक़्त अपने पास नहीं पाता --- नॉन टीचिंग स्टाफ़ बनाने से वह जब चाहे आशा को अपने कमरे में बुला सकता है और जो जी में आये कर सकता है | आशा तो पहले ही सरेंडर कर चुकी है --- मौखिक और लिखित --- दोनों रूपों में; --- इसलिए उसकी ओर से रणधीर बाबू को रत्ती भर की चिंता नहीं थी --- और आशा के अलावा जितनी भी लेडी टीचर्स हैं कॉलेज में; उन सबको रणधीर बाबू बहुत अच्छे से महीनों और सालों तक भोग चुके हैं – रणधीर बाबू के कॉलेज में काम करना अपने आप में एक गर्व की बात है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता --- इसके अलावा भी, रणधीर बाबू उन सबको समय समय पर इन्क्रीमेंट, हॉलीडेज, और दूसरे सुविधाएँ देते रहते थें --- |
इसलिए, कॉलेज छोड़ कर जाना किसी से बनता नहीं था ---
और जितने मेल टीचर्स हैं, वे सब रणधीर बाबू के मैनपॉवर से डरते हैं --- कई नामी गुंडों, नेताओं, मंत्रियों, सिक्युरिटी और वकीलों के साथ जान पहचान और उठना-बैठना है | इन सब के बीच रणधीर बाबू की छवि एक बहुत बड़े और पैसे वाले बिज़नेसमैन, ऐय्याश आदमी और अपने काम के लिए किसी भी हद तक गुज़र जाने वाले एक ज़िद्दी इंसान के रूप में प्रचलित है ---
खुद को हरेक दिशा, हरेक कोण से पूरी तरह सुरक्षित कर रखे हैं ये रणधीर बाबू ---
आम इंसान जिस कानून से डरता है,
रणधीर बाबू का उसी के साथ उठना बैठना है ---
जो उसका (रणधीर) साथ दिया--- उसका वारा न्यारा
और जो कोई भी विरोध करने के विषय में सोचने के बारे में भी कभी भूल से सोचा ---
रणधीर बाबू उसका ऐसा इंतज़ाम लगाते कि वह फ़िर कभी कोई भूल करने की स्थिति में न रहा |
पर साथ ही रणधीर बाबू की ख़ासियत भी हमेशा से यह रही की वे कभी भी अपने चाहने वालों को निराश नहीं करते --- फ़िर चाहे कभी किसी हॉस्पिटल का खर्चा उठाना हो --- या नौकरी दिलवाना --- कहीं एडमिशन करवाना हो ---- या फिर नगद (कैश) सहायता ---- कभी पीछे नहीं हटते |
जैसे,
उसी के शागिर्द / चमचों में किसी ने अगर किसी ज़रूरी काम के लिए एक लाख़ रुपए माँगे ; तो रणधीर बाबू उसे दो लाख़ दे देते ---- और दिलदारी ऐसी की बाकि के पैसों के बारे में कुछ पूछते भी नहीं |
किसी शागिर्द / चमचे के घर का कोई सदस्य अगर अस्पताल में है और पैसे कम पड़ रहे हैं तो रणधीर बाबू को पता चलते ही डॉक्टर के बिल से लेकर अस्पताल और दवाईयों के बिल तक चुका देते हैं --- |
रणधीर बाबू को पार्टियों का भी बहुत शौक है ---
अक्सर ही पार्टी देते रहते हैं --- और ऐसी वैसी नहीं ---- बिल्कुल टॉप क्लास की --- हाई फाई लेवल की --- |
और ऐसी पार्टियों में, कानून के पैरोकार हो या उसके रक्षक , मंत्री --- नेता ---- सब अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाते --- |
पार्टियों में जम कर शराब --- शवाब --- और कबाब परोसा जाता ---
और इन सब का बिल जाता रणधीर बाबू के खाते में --- और बिल भी हज़ारों में नहीं ---
वरन लाखों में होते --- जिनका भुगतान बड़े शौक से करते हैं बाबू --- ‘रणधीर बाबू’ |
अब भला ऐसे आदमी को किसका डर--- किस बात का डर ?!
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इन्हीं दस - बारह दिनों में कई बार छू चुके हैं आशा को रणधीर बाबू ---- और जाहिर ही है की केवल छूने तक खुद को सीमित नहीं रखा है उन्होंने --- अपने रूम में बुला कर बेरहमी से चूचियों को मसलना, देर तक किस करना---- नर्म, फ्लेवर वाले लिपस्टिक लगे होंठों को चूसते रहना --- टेबल के नीचे घुटनों के बल बैठा कर लंड चुसवाना --- ये सब करवाए – किए बिना तो जैसे रणधीर बाबू को दिन ; दिन नहीं लगता और रात को तो नींद आती ही नहीं |
हद तो तब होती जब रणधीर बाबू घंटों आशा को अपनी गोद में बैठाए, मेज़ पर रखे ज़रूरी फाइल्स के काम निपटाते और बीच – बीच में दूसरे हाथ से आशा के नर्म, गदराये, बड़े-बड़े, पुष्टकर चूचियों को पल्लू के नीचे से दम भर दबाते रहते ---
और अगर इतने में कोई लेडी स्टाफ़ / लेडी टीचर किसी काम से कमरे में आने के लिए बाहर से नॉक करती तो आशा को बिना गोद से उतरने को कहे ही स्टाफ़/टीचर को अंदर आने की परमिशन देते और उनके सामने भी आशा की चूचियों के साथ साथ जिस्म के दूसरे हिस्सों से खेलते रहते --- |
बेचारी लेडी स्टाफ़ मारे शर्म के कुछ कह नहीं पाती और ---
यही हालत आशा की भी होती --- |
शर्म – ओ – ह्या से आशा का चेहरा लाल होना और हल्के दर्द में एक तेज़; धीमी सिसकारी लेना रणधीर बाबू को बहुत अच्छा लगता है --- और यही कारण है कि जब आशा को गोद में, बाएँ जांघ पर बैठा कर बाएँ हाथ से --- पल्लू के नीचे से --- बाईं चूची के साथ खेलते हुए मेज़ पर रखी फ़ाइलों पर दस्तख़त या कुछ और कर रहे होते और अगर तभी कोई लेडी स्टाफ़ आ जाए रूम में तो उसके सामने आ कर खड़े या बैठते ही रणधीर बाबू अपने बाएँ हाथ की तर्जनी अंगुली और अँगूठे को अपनी थूक से थोड़ा भिगोते और दोबारा पल्लू के नीचे ले जाकर उसकी बायीं चूची के निप्पल को ट्रेस करते और निप्पल हाथ में आते ही तर्जनी अंगुली और अंगूठे से उसे पकड़ कर ज़ोर से मसलते हुए आगे की ओर खींचते ---
और हर बार ऐसा करते ही ---
आशा भी दर्द के मारे --- ज़ोर से कराह उठती ----
शुरू शुरू में तो लेडी स्टाफ़ चौंक जाती कि ‘अरे क्या हुआ?!’ ----
पर मामला समझ में आते ही शर्म वाली हँसी रोकने के असफ़ल प्रयास में बगलें झाँकने लगती --- |
पर धीरे धीरे ये रोज़ की बात हो गई ---
रोज़ ही कोई न कोई लेडी स्टाफ़ रूम में आती ---
रोज़ ही आशा, रणधीर बाबू की गोद में बैठी हुई पाई जाती ---
और रोज़ ही लेडी स्टाफ़ के सामने ही,
रणधीर बाबू, तर्जनी ऊँगली और अंगूठे पर थूक लगाते ---
और,
फिर, उसी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बीच दबा कर निप्पल को मसलते हुए आगे की ओर खींचने लगते,
और;
रोज़ ही की तरह, हर बार आशा दर्द से एक मीठी आर्तनाद कर उठती --- !
और फ़िर,
दोनों ही --- लेडी स्टाफ़ --- जो कोई भी हो --- वो और आशा दोनों ही मारे शर्म के एक दूसरे से आँखें मिलाने से तब तक बचने की कोशिश करती जब तक वो लेडी स्टाफ़ वहाँ से उठ कर चली नहीं जाती ---
और उसके जाते ही आशा थोड़ा गुस्सा और थोड़ा शिकायत के मिले जुले भाव चेहरे पे लिए रणधीर बाबू की ओर देखती --- और रणधीर बाबू एक गन्दी हँसी हँसते हुए उसके चूचियों से खेलते हुए उसके चेहरे और होंठों को चूमने – चूसने लगते |
धीरे धीरे कुछ लेडी टीचर्स को यह बात खटकने लगी की हालाँकि रणधीर बाबू ने उन लोगों के साथ भी काफ़ी मौज किये हैं; पर आख़िर ये आशा नाम की बला में ऐसी क्या ख़ास बात है जो रणधीर बाबू हमेशा --- सुबह – शाम उसके साथ चिपके रहते हैं ---
सुन्दर तो वाकई में वो है ही ---
बदन भी अच्छा खासा भरा हुआ है ---
ये दो ही बातें तो चाहिए होती हैं किसी भी मर्द को अपना गुलाम बनाने के लिए --- और रणधीर बाबू की बात की जाए तो वो गुलाम बनने वालों में नहीं बल्कि बनाने वालों में से हैं ---
और जो बंदा दूसरों को अपना गुलाम बनाने में माहिर हो --- वह इस एक औरत के पीछे लट्टू हुए क्यूँ घूमेगा भला ??
कोई तो ख़ास वजह होगी ही --- पर क्या ---
ये बात उन लेडी टीचर्स को समझ न आती थी --- और आती भी कैसे --- रणधीर बाबू तो वो हवसी शिकारी है जो हर खूबसूरत औरत को अपना बनाने में लगा रहता है और पहली बार आशा के रूप में उसे वह रत्न मिली जिसे पा कर वह दूसरी सभी औरतों को कुर्बान कर सकता था --- या अब यूँ कहा जा सकता है कि लगभग कुर्बान कर चुके हैं ---
आशा के कॉलेज ज्वाइन करने के बाद से ही शायद ही रणधीर बाबू ने किसी ओर औरत के बारे में शायद ही सोचा होगा --- ये और बात है कि रणधीर बाबू के द्वारा; कॉलेज के गैलरी या लॉबी में चलते वक़्त कोई लेडी टीचर मिल जाए तो उसके होंठों पर किस करना --- या बूब्स मसल देना या फ़िर पिछवाड़े पर ‘ठास !’ से एक थप्पड़ रसीद देना; ---- ये सब बहुत कॉमन था और चलता ही रहता था और आगे भी न जाने कितने ही दिनों तक चलता रहेगा --- |
उन्हीं टीचर्स में एक है मिसेस शालिनी --- कॉलेज में बहुत पहले से टीचर पोस्ट पर पोस्टेड है, पर उम्र में आशा से छोटी है --- चौंतीस साल की --- चूचियाँ उसकी आशा जैसी तो नहीं पर छत्तीस के आसपास की है --- गोल पिछवाड़ा --- आशा के तुलना में पतली कमर --- आशा जैसी दूध सी गोरी भी नहीं पर रंग फ़िर भी साफ़ है --- कह सकते हैं की वो भी गोरी ही है --- दोनों गालों पर दो-तीन पिम्पल्स हैं --- अधिकांश वो सलवार कुरता ही पहनती है --- कुछ ख़ास मौकों पर ही साड़ी पहनना होता है उसका |
शालिनी पिछले सप्ताह भर से देख रही है कि रणधीर बाबू उसकी तरफ़ कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं --- जबकि वो उनकी फेवरेट हुआ करती थी |
ठरकी बुड्ढे से कोई विशेष तो क्या ; रत्ती भर की कोई प्यार व्यार की गुंजाइश नहीं रखती है शालिनी ---
पर अचानक से ही पता नहीं क्यूँ ,
वो थोड़ा इंसिक्योर सा फ़ील करने लगी है ---
आशा जाए भाड़ में --- पर अगर बुड्ढा भी उसके साथ भाड़ में चला गया तो ??
खैर,
उसने तय कर लिया कि वह धीरे धीरे आशा के करीब आएगी और एक दिन सारे राज़ जान कर उसे ब्लैकमेल कर के या तो कॉलेज से हटा देगी या फ़िर किसी तरह आशा को साइड कर फ़िर से बुड्ढे के दिल ओ दिमाग में अपने लिए जगह बना लेगी |
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एक दिन की बात है,
आशा समय से बीस मिनट पहले कॉलेज पहुँच गई थी ---- नीर को उसके क्लास में बैठा आई --- बहुत ही कम स्टाफ्स और स्टूडेंट्स को आए देख वह आराम करने का सोची --- पर तभी ध्यान आया कि उसे थोड़ा और सलीके से ठीक होना है --- रणधीर बाबू के लिए --- |
एक श्वास छोड़ी,
एक से दस तक गिनी और फ़िर चल दी वाशरूम की ओर --- ;
लेडीज़ वाशरूम की अपनी ही एक अलग ख़ासियत है इस कॉलेज में ---- और जब बनवाने वाला ख़ुद रणधीर बाबू हो, तब तो खास होना ही है |
टाइल्स, मार्बल्स, फैंसी वॉशबेसिंस , लाइटिंग, ... आहा... एक अलग ही बात है ऐसे वाशरूम में...
आशा अब तक एक बात छुपाती आ रही थी रणधीर बाबू से ----
और वो बात यह थी कि ---- ;
आशा ब्रा पहन कर कॉलेज आती थी !
घर से निकलते समय तो उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा पहनी होती पर जैसे ही वो कॉलेज पहुँचती, जल्दी से नीर को उसके क्लास में पहुँचा कर वह लगभग भागती हुई सी वाशरूम पहुँचती और ब्रा उतार कर अपने बैग में रख लेती !
आज भी वह वाशरूम में घुस कर यही कर रही थी कि तभी शालिनी आ गई --- !
आशा चौंकी; उस वक़्त किसी के आने की कल्पना की ही नहीं थी आशा ने ---- पर अच्छी बात यह रही कि शालिनी के भीतर कदम रखने के दस सेकंड पहले ही उसने अपनी ब्रा बैग में रख चुकी थी और फिलहाल साड़ी पल्लू को सीने पर रख पल्लू के नीचे से हाथ घुसा कर हुक्स लगा रही थी ---
शालिनी भी इक पल को ठिठकी .. उसने भी किसी के वहाँ होने की कल्पना नहीं की थी ---
और अभी अपने सामने आशा को देख वह भी दो पल के लिए भौचक सी रह गई --- |
और कुछ ही सेकंड्स में उसके होंठों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई ---
उसकी अनचाही प्रतिद्वंदी; आशा जो खड़ी है सामने --- आज शायद कुछ अच्छी बातें हो जाए इसके साथ ---
हौले से मुस्कराकर ‘गुड मोर्निंग’ विश की आशा को और दीवार पर लगे लार्ज फ्रेम आईने के सामने खड़ी हो कर अपना दुपट्टा और बाल ठीक करने लगी ---
आशा भी मुस्करा कर रिटर्न विश की दोबारा अपने काम में लग गई --- ब्लाउज हुक्स लगाने के काम में ---
इधर शालिनी भी मन ही मन अपने सवालों को अच्छे से सजाने में लगी रही --- और जल्द ही तैयार भी हुई ---
आईने में देखते हुए अपने बालों के जुड़े को ठीक करते हुए बोली,
‘दीदी, आज जल्दी आ गई आप?’
‘हाँ शालिनी, वो गाड़ी आज जल्दी आ गई थी तो ---- ’
आशा ने अपने वाक्य को अधूरा ही छोड़ा |
‘ओह्ह अच्छा---’ शालिनी ने बात को ज़ारी रखने की कोशिश में बोली |
आशा ने हुक्स लगा लिए --- अब पल्लू को सलीके से प्लेट्स बना कर कंधे पर रखना रह गया जिसे बखूबी, बड़े आहिस्ते से कर रही थी आशा ---
शालिनी को कुछ सूझा,
समथिंग हॉट --- वैरी नॉटी !!
कुछ ऐसा जिसे सोचने मात्र से ही वह शर्मा कर अंदर तक हिल गई ---
आशा की ओर देख चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लिए बोली,
‘वाह दीदी ! आज तो बड़ी सुंदर लग रही हो इस साड़ी में....’
सुनकर आशा भी मुस्कुराये बिना रह न सकी |
वो खुद भी अब तक तीन - चार बार आईने में गौर से देख देख कर ख़ुद ही पर मोहित सी हो गई है --- और हो भी क्यूँ न ?
गोरे तन पे नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में वह वाकई अद्भुत सुन्दर लग रही है आज ---
पुरुष तो क्या ; औरत भी आज उसकी अनुपम सुंदरता पर मुग्ध हुए बिना न रह पाए --- |
और हॉट तो वह हमेशा से ही लगती है |
अभी वो पल्लू के एक हिस्से को लेकर सीने पर रखी ही थी कि तभी उसे यह अहसास हुआ कि जैसे शालिनी उसके पास आ कर खड़ी हो गई है --- और तुरंत ही पीछे खड़ी हो गई ---
आशा भौंचक सी हो, सिर उठा कर सामने आईने की ओर देखी --- और पाया की वाकई शालिनी उसके पीछे खड़ी हो कर; पीछे से सामने आईने में आशा को ही अपलक देखे जा रही है --- होंठों पर प्यारी सी मुस्कान --- आँखों में चमक --- ऐसे जैसे किसी छोटी बच्ची को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो --- |
पीछे इस तरह से खड़ी हुई थी शालिनी, कि उसका वक्षस्थल आशा की पीठ से सटे जा रहा था --- आशा को इसका अहसास तो हो रहा था पर एकदम से उससे कुछ कहते नहीं बना --- क्या बोले, ये सोचने, शालिनी को देखने और उसके अगले कदम के धैर्यहीन प्रतीक्षा में ही उसके बोल होंठों से बाहर आज़ादी नहीं पा रहे थे |
दोनों एक दूसरे को आईने में देख रही हैं --- एक, चेहरे पर एक बड़ी सी शर्मीली – शरारती मुस्कान लिए और दूजी, चेहरे पर जिज्ञासा का भाव लिए --- |
अचानक से शालिनी आईने में ही देखते हुए आशा से आँखें मिलाई --- दोनों की आँखें मिलते ही शालिनी के गाल लाज से लाल हो गए --- आशा को अब थोड़ा अजीब लगने लगा --- और कोई बात बेवजह अजीब लगना आशा को बिल्कुल सहन नही होता --- इसलिए और देर न करते हुए भौंहें सिकुड़ते हुए फीकी सी मुस्कान लिए, बहुत धीमे स्वर में पूछी,
‘क्या हुआ----?’
प्रत्युत्तर में शालिनी सिर को हल्के से दाएँ बाएँ घूमा कर ‘ना या कुछ नहीं’ बोलना चाही --- |
फ़िर से दो – चार पलों की चुप्पी ---
और,
तभी एक हरकत हुई;
हरकत हुई शालिनी की तरफ़ से ----
आशा की डीप ‘यू’ कट ब्लाउज से उसकी गोरी चिकनी, बेदाग़ पीठ का बहुत सा हिस्सा बाहर निकला हुआ था --- और अभी – अभी शालिनी ने जो किया उससे आशा के शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई --- |
दरअसल,
हुआ ये कि आशा के पीछे खड़ी हो कर उससे आती भीनी भीनी चन्दन सी खुशबू और गोरे तन पर नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज और उसपे भी डीप यू कट बैक ब्लाउज से झाँकती आधे से भी अधिक गोरी बेदाग़, चमचम करती पीठ; जोकि थोड़ी भीगी हुई थी आशा के ही भीगे बालों के कारण --- देख कर खुद पर नियंत्रण न रख सकी शालिनी और अपना दाँया हाथ सीधा उठा कर, तर्जनी ऊँगली की लंबी नाखून को आशा की पीठ पर टिकाते, धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी थी |
पीठ पर से आशा के कमर तक आते काले लम्बे बाल, जिन्हें वो वाशरूम में खुला छोड़ दी थी; को हटा कर धीरे धीरे उसकी पूरी पीठ पर अपनी ऊँगली के पोर और नाखून से सहलाने लगी ---
आशा हतप्रभ सी कुछ देर तक सहती रही ---
समझ नहीं आ रहा था उसे कि आखिर वो करे तो करे क्या?
सिंगल मदर होने के कारण यौन आकांक्षाओं को अपने अंदर ही मार देना उसने अपनी नियति समझ ली थी ----
पर ये भी सत्य है कि;
ज़रा सा उत्तेजक बात या ऐसी कोई बात हो जाए जिसमें यौनता प्रमुख हो --- तो वह तुरंत ही कामाग्नि में जल उठती थी ---
और आज, अभी ऐसा ही हो रहा है ---
उससे कम उम्र की, उसी की सहकर्मी, कॉलेज की एक टीचर उसे यौनेत्तेजक रूप से छू रही है और कहाँ तो उसे रोकने के बजाए उल्टे आशा ही मज़े लेने लगी ---- |
करीब पांच मिनट तक ऐसे ही करते रहने के बाद, शालिनी दोनों हाथों की तर्जनी ऊँगली के नाख़ून से आशा के गदराए मांसल पीठ को सहलाने लगी और फ़िर तीन मिनट बाद दोनों हाथों की तर्जनी और अँगूठे से आशा के कंधे पर से ब्लाउज के बॉर्डर को पकड़ कर बहुत ही धीरे से कंधे पर से सरका दी ---
आशा की अब तक आँखें बंद हो आई थीं ---
कहीं और ही खो गई थी अब तक वो --- अतः उसे शालिनी की करतूत के बारे में पता ही न चला --- वो तो बस अपनी पीठ पर शालिनी के नुकीले नाखूनों से मिलने वाली गुदगुदी और आराम को भोग करने में लगी थी ---- |
पल्लू चमचमाते फर्श पर लोटने लगी और आशा रोम रोम में उठने वाले यौन उत्तेजना की अनुभूति करने में खो गई --- ये देख कर शालिनी ने अब पूरे नंगे कंधे से होकर गर्दन के पीछे वाले हिस्से तक नाखूनों से सहलाते हुए हल्के साँस छोड़ने लगी --- और इसी के साथ ही बीच बीच में दोनों हाथों की अपनी लंबी तर्जनी ऊँगली को गर्दन से नीचे उतारते हुए आशा की उन्नत चूचियों के ऊपरी गोलाईयों के अग्र फूले हिस्सों पर, जो ब्लाउज के “वी” कट से ऊपर की ओर निकले हुए थे; पर हल्के दबावों से दबाने लगी ----
और ऐसा करते ही आशा एक मादक कराह दे बैठी -----
शालिनी के लंबी उँगलियों के हल्के पड़ते दबाव एक मीठी सी गुदगुदी दौड़ा दे रही थी आशा के पूरे जिस्म में --- पूरे दिल से वह रोकना चाहती है फ़िलहाल शालिनी को; पर पता नही ऐसी कौन सी चीज़ है तो जो आशा के हाथों और होंठों को थामे हुए है --- मना कर रही है उसे कि जो हो रहा है उसे होने दो ---- ऐसे पल बार बार नहीं मिलते ---- जस्ट एन्जॉय द फ़ील --- द मोमेंट --- |
करीब दस मिनट ऐसे ही हल्के दबाव देते देते शालिनी की चूत भी पनिया गई --- वो आशा से प्रतिद्वंद्विता का भाव अवश्य रखती है मन में ; पर फ़िलहाल मन के साथ साथ चूत में भी चींटियों की सी रेंगती गुदगुदी ने उसके अंदर की स्वाभाविक कामुकता को इतना बढ़ा दिया कि वह लगभग भूल ही चुकी है की वो और आशा फ़िलहाल कॉलेज के वाशरूम में हैं और क्लासेज स्टार्ट होने में कुछ ही मिनट रह गए हैं ----
शालिनी ने ब्लाउज के बॉर्डर वाले सिरों को तर्जनी और अंगूठे से थाम कंधे से और नीचे उतार दी ----
और,
अपने दोनों हाथों को कन्धों के ऊपर से ही ले जाते हुए, थोड़ा हिम्मत करते हुए, काँपते हाथों से ; ब्लाउज के प्रथम हुक को आहिस्ते से खोल दी ----
और बिना कोई समय गंवाते हुए,
शालिनी ने अपने पतले लंबे ऊँगलियों से, खुले हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब आशा के पुष्टकर, नर्म, फूले हुए बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और गहरी क्लीवेज और भी अधिक दर्शनीय हो गई ---- बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए | क्लीवेज के गहराई में शालिनी की ऊँगलियों की छूअन ने आशा को और भी मस्ती में भर दिया और अब वह अपने शरीर को थोड़ा ढीला छोड़ते हुए अपना भार, खुद को पीछे करते हुए शालिनी के जिस्म से टिका कर छोड़ दी ---
शालिनी ने भी कोई और मौका गंवाए बिना, फट से आशा के बगलों से होते हुए उसके बड़े बूब्स को पकड़ ली ;
और पकड़ते ही उसके विशाल चूचियों की नरमी का एक सुखद अहसास हुआ ---
और यह अहसास ऐसा था कि पकड़ने के साथ ही आधे से अधिक दुश्चिन्ताओं को शालिनी खड़े खड़े ही भूल गई ---- टेंशन फ्री ---- और अपने भीतर एक हल्कापन फ़ील होते ही शालिनी ने मस्ती में नर्म चूचियों को दो-तीन बार लगातार ज़ोर से दबा दी ---
आशा एक मृदु ‘आह:’ कर उठी ;
पर शालिनी तीन बार चूची दबाने के बाद ही अचानक से रुक गई ---
आश्चर्य से उसकी आँखें बड़ी होती चली गई ---
कारण,
उसके हाथों ने कुछ महसूस किया किया अभी अभी ---
और वो यह कि आशा ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी है, और उसके खड़े निप्पल जैसे शालिनी की ऊँगलियों को एक मौन उत्तेजक आमन्त्रण दे रहे हों --- कि,
‘आओ, और प्लीज खेलो हमसे--- ’
ना जाने इसी तरह पकड़े, चूचियों से कितनी ही देर खेलती रही वह--- बीच बीच में खुद की चूचियों को भी आगे तान कर आशा की पीठ से लगा देती ----
और आशा भी शालिनी की कोमल वक्षों के नर्म स्पर्श पाते ही अपनी पीठ और अधिक पीछे की ओर ले जाती जिससे की शालिनी की चूचियाँ उसके पीठ से टकरा टकरा कर दबतीं और शालिनी के साथ साथ --;
आशा के मज़े को दोगुना कर देती ---
एक प्रतिष्ठित कॉलेज के बंद वाशरूम में दो मादाओं का एक अलग ही खेल चल रहा था --- जोकि निःसंदेह उन दोनों को अपने अपने गदराए जिस्म का परम आनंद देने वाला एक 'अलग एहसास' करा रहा था ----- !!
शालिनी को हैरानी तो बहुत जबरदस्त हुई; क्यूंकि आम तौर पर कोई भी बड़े और भरे स्तनों वाली महिला बिना ब्रा के ब्लाउज पहनती नहीं है,
और आशा के तो काफ़ी अच्छे साइज़ के स्तन हैं, तो फिर इसके ब्रा न पहनने का कारण??!!
शालिनी सोचती रही ---- पर नर्म चूचियों के स्पर्श का आनंद अपने मन से निकाल न सकी--- और सोचते हुए ही दबाते रही --- ब्लाउज कप के पतले कपड़े के ऊपर से ही दोनों निप्पल्स को पकड़ ली और बड़े प्यार से उमेठने लगी ---- निप्पल अब तक सख्त हो कर खड़े भी हो चुके थे --- अतः ब्लाउज के ऊपर से पकड़ने में कोई ख़ास मशक्कत नहीं करनी पड़ी शालिनी को |
आशा सिवाय एक मीठी ‘आह्ह... उम्म्म...’ के और कुछ न कह सकी ----- आँखें अब भी बंद हैं उसकी --- |
एक और बड़ी हैरानी वाली बात ये घटी शालिनी के साथ की चूचियों और निप्पल को दबाते दबाते उसके हाथ, उँगलियाँ कुछ भीगी भीगी, चिपचिपी सी हो गई थी---
शालिनी कन्फर्म थी की इतनी भी पसीने से न आशा नहाई थी और न ही शालिनी ख़ुद --- तो फ़िर ऐसा क्यों लग रहा है ??
इतने में ही अचानक से घंटी की आवाज़ सुनाई दी ----
इस आवाज़ के साथ ही दोनों हडबडा उठी ---
शालिनी जल्दी से पीछे हटी और अब तक आशा भी आंखें खोल, ख़ुद को ऐसी स्थिति में देख शर्म से दोहरी हो जल्दी जल्दी कपड़े ठीक कर बैग उठा कर वहाँ से निकल गई ---- बिना शालिनी की ओर देखे ----
(आशा पल्लू ठीक करती हुई--)
और,
यहीं काश कि वह एक बार पलट कर शालिनी की ओर एक बार अच्छे से देख लेती--- या कपड़े ठीक करते वक़्त ही --- |
इस पूरे घटनाक्रम के यूँ घटने से शालिनी भी ख़ुद को संभाल नहीं पाई थी और अब आशा के वाशरूम से निकल जाने के बाद ख़ुद को इत्मीनान से व्यवस्थित करने में लग गई --- करीब दस मिनट लगे उसे अपने उखड़ती साँसों पर काबू पाने में --- ‘जागुआर’ टैप खोल कर गिरते पानी के जोर के छींटे लिए उसने अपने चेहरे पर --- कम से कम दस बार --- फ़िर सीधे, आईने में अपने को देखने लगी --- कुछ देर पहले घटी घटना उसे फ़िर धीरे धीरे याद आने लगी ---
सिर झटकते हुए नजर दूसरी ओर करना चाहती ही थी कि तभी उसे टैप के पीछे, दीवार से सटे, थोड़ा हट कर थोड़ी तिरछी हो कर खड़ी रखी उसकी मोबाइल दिखी---
वीडियो रिकॉर्डिंग चालू था !!
हाथ पोंछ कर सावधानी से मोबाइल उठाई ---
रिकॉर्डिंग बंद की ---
गैलरी में गई ----
पहला वीडियो ऑप्शन पर टैप की ---
वीडियो खुला,
फ़िर टैप;
वीडियो प्ले होना शुरू हुआ ----
ज्यों ज्यों वीडियो प्ले होता गया, त्यों त्यों शालिनी के चेहरे में एक चमक और होंठों पर एक बड़ी ही कमीनी सी मुस्कान आती गई -------
(क्रमशः)
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करीब १०-१२ दिन बीत गए हैं ---
पिछली घटना को हुए --- |
आशा की नौकरी लग गई है कॉलेज में --- नॉन टीचिंग स्टाफ कम रिजर्व्ड टीचर के रूप में --- कभी कोई टीचर नहीं आ पाए तो उसके जगह आशा क्लास ले लेती --- हालाँकि रणधीर बाबू के पास आप्शन तो था, आशा को नर्सरी या जूनियर क्लासेज में टीचर नियुक्त करने का --- पर इससे होता यह कि वह आशा को हर वक़्त अपने पास नहीं पाता --- नॉन टीचिंग स्टाफ़ बनाने से वह जब चाहे आशा को अपने कमरे में बुला सकता है और जो जी में आये कर सकता है | आशा तो पहले ही सरेंडर कर चुकी है --- मौखिक और लिखित --- दोनों रूपों में; --- इसलिए उसकी ओर से रणधीर बाबू को रत्ती भर की चिंता नहीं थी --- और आशा के अलावा जितनी भी लेडी टीचर्स हैं कॉलेज में; उन सबको रणधीर बाबू बहुत अच्छे से महीनों और सालों तक भोग चुके हैं – रणधीर बाबू के कॉलेज में काम करना अपने आप में एक गर्व की बात है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता --- इसके अलावा भी, रणधीर बाबू उन सबको समय समय पर इन्क्रीमेंट, हॉलीडेज, और दूसरे सुविधाएँ देते रहते थें --- |
इसलिए, कॉलेज छोड़ कर जाना किसी से बनता नहीं था ---
और जितने मेल टीचर्स हैं, वे सब रणधीर बाबू के मैनपॉवर से डरते हैं --- कई नामी गुंडों, नेताओं, मंत्रियों, सिक्युरिटी और वकीलों के साथ जान पहचान और उठना-बैठना है | इन सब के बीच रणधीर बाबू की छवि एक बहुत बड़े और पैसे वाले बिज़नेसमैन, ऐय्याश आदमी और अपने काम के लिए किसी भी हद तक गुज़र जाने वाले एक ज़िद्दी इंसान के रूप में प्रचलित है ---
खुद को हरेक दिशा, हरेक कोण से पूरी तरह सुरक्षित कर रखे हैं ये रणधीर बाबू ---
आम इंसान जिस कानून से डरता है,
रणधीर बाबू का उसी के साथ उठना बैठना है ---
जो उसका (रणधीर) साथ दिया--- उसका वारा न्यारा
और जो कोई भी विरोध करने के विषय में सोचने के बारे में भी कभी भूल से सोचा ---
रणधीर बाबू उसका ऐसा इंतज़ाम लगाते कि वह फ़िर कभी कोई भूल करने की स्थिति में न रहा |
पर साथ ही रणधीर बाबू की ख़ासियत भी हमेशा से यह रही की वे कभी भी अपने चाहने वालों को निराश नहीं करते --- फ़िर चाहे कभी किसी हॉस्पिटल का खर्चा उठाना हो --- या नौकरी दिलवाना --- कहीं एडमिशन करवाना हो ---- या फिर नगद (कैश) सहायता ---- कभी पीछे नहीं हटते |
जैसे,
उसी के शागिर्द / चमचों में किसी ने अगर किसी ज़रूरी काम के लिए एक लाख़ रुपए माँगे ; तो रणधीर बाबू उसे दो लाख़ दे देते ---- और दिलदारी ऐसी की बाकि के पैसों के बारे में कुछ पूछते भी नहीं |
किसी शागिर्द / चमचे के घर का कोई सदस्य अगर अस्पताल में है और पैसे कम पड़ रहे हैं तो रणधीर बाबू को पता चलते ही डॉक्टर के बिल से लेकर अस्पताल और दवाईयों के बिल तक चुका देते हैं --- |
रणधीर बाबू को पार्टियों का भी बहुत शौक है ---
अक्सर ही पार्टी देते रहते हैं --- और ऐसी वैसी नहीं ---- बिल्कुल टॉप क्लास की --- हाई फाई लेवल की --- |
और ऐसी पार्टियों में, कानून के पैरोकार हो या उसके रक्षक , मंत्री --- नेता ---- सब अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाते --- |
पार्टियों में जम कर शराब --- शवाब --- और कबाब परोसा जाता ---
और इन सब का बिल जाता रणधीर बाबू के खाते में --- और बिल भी हज़ारों में नहीं ---
वरन लाखों में होते --- जिनका भुगतान बड़े शौक से करते हैं बाबू --- ‘रणधीर बाबू’ |
अब भला ऐसे आदमी को किसका डर--- किस बात का डर ?!
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इन्हीं दस - बारह दिनों में कई बार छू चुके हैं आशा को रणधीर बाबू ---- और जाहिर ही है की केवल छूने तक खुद को सीमित नहीं रखा है उन्होंने --- अपने रूम में बुला कर बेरहमी से चूचियों को मसलना, देर तक किस करना---- नर्म, फ्लेवर वाले लिपस्टिक लगे होंठों को चूसते रहना --- टेबल के नीचे घुटनों के बल बैठा कर लंड चुसवाना --- ये सब करवाए – किए बिना तो जैसे रणधीर बाबू को दिन ; दिन नहीं लगता और रात को तो नींद आती ही नहीं |
हद तो तब होती जब रणधीर बाबू घंटों आशा को अपनी गोद में बैठाए, मेज़ पर रखे ज़रूरी फाइल्स के काम निपटाते और बीच – बीच में दूसरे हाथ से आशा के नर्म, गदराये, बड़े-बड़े, पुष्टकर चूचियों को पल्लू के नीचे से दम भर दबाते रहते ---
और अगर इतने में कोई लेडी स्टाफ़ / लेडी टीचर किसी काम से कमरे में आने के लिए बाहर से नॉक करती तो आशा को बिना गोद से उतरने को कहे ही स्टाफ़/टीचर को अंदर आने की परमिशन देते और उनके सामने भी आशा की चूचियों के साथ साथ जिस्म के दूसरे हिस्सों से खेलते रहते --- |
बेचारी लेडी स्टाफ़ मारे शर्म के कुछ कह नहीं पाती और ---
यही हालत आशा की भी होती --- |
शर्म – ओ – ह्या से आशा का चेहरा लाल होना और हल्के दर्द में एक तेज़; धीमी सिसकारी लेना रणधीर बाबू को बहुत अच्छा लगता है --- और यही कारण है कि जब आशा को गोद में, बाएँ जांघ पर बैठा कर बाएँ हाथ से --- पल्लू के नीचे से --- बाईं चूची के साथ खेलते हुए मेज़ पर रखी फ़ाइलों पर दस्तख़त या कुछ और कर रहे होते और अगर तभी कोई लेडी स्टाफ़ आ जाए रूम में तो उसके सामने आ कर खड़े या बैठते ही रणधीर बाबू अपने बाएँ हाथ की तर्जनी अंगुली और अँगूठे को अपनी थूक से थोड़ा भिगोते और दोबारा पल्लू के नीचे ले जाकर उसकी बायीं चूची के निप्पल को ट्रेस करते और निप्पल हाथ में आते ही तर्जनी अंगुली और अंगूठे से उसे पकड़ कर ज़ोर से मसलते हुए आगे की ओर खींचते ---
और हर बार ऐसा करते ही ---
आशा भी दर्द के मारे --- ज़ोर से कराह उठती ----
शुरू शुरू में तो लेडी स्टाफ़ चौंक जाती कि ‘अरे क्या हुआ?!’ ----
पर मामला समझ में आते ही शर्म वाली हँसी रोकने के असफ़ल प्रयास में बगलें झाँकने लगती --- |
पर धीरे धीरे ये रोज़ की बात हो गई ---
रोज़ ही कोई न कोई लेडी स्टाफ़ रूम में आती ---
रोज़ ही आशा, रणधीर बाबू की गोद में बैठी हुई पाई जाती ---
और रोज़ ही लेडी स्टाफ़ के सामने ही,
रणधीर बाबू, तर्जनी ऊँगली और अंगूठे पर थूक लगाते ---
और,
फिर, उसी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बीच दबा कर निप्पल को मसलते हुए आगे की ओर खींचने लगते,
और;
रोज़ ही की तरह, हर बार आशा दर्द से एक मीठी आर्तनाद कर उठती --- !
और फ़िर,
दोनों ही --- लेडी स्टाफ़ --- जो कोई भी हो --- वो और आशा दोनों ही मारे शर्म के एक दूसरे से आँखें मिलाने से तब तक बचने की कोशिश करती जब तक वो लेडी स्टाफ़ वहाँ से उठ कर चली नहीं जाती ---
और उसके जाते ही आशा थोड़ा गुस्सा और थोड़ा शिकायत के मिले जुले भाव चेहरे पे लिए रणधीर बाबू की ओर देखती --- और रणधीर बाबू एक गन्दी हँसी हँसते हुए उसके चूचियों से खेलते हुए उसके चेहरे और होंठों को चूमने – चूसने लगते |
धीरे धीरे कुछ लेडी टीचर्स को यह बात खटकने लगी की हालाँकि रणधीर बाबू ने उन लोगों के साथ भी काफ़ी मौज किये हैं; पर आख़िर ये आशा नाम की बला में ऐसी क्या ख़ास बात है जो रणधीर बाबू हमेशा --- सुबह – शाम उसके साथ चिपके रहते हैं ---
सुन्दर तो वाकई में वो है ही ---
बदन भी अच्छा खासा भरा हुआ है ---
ये दो ही बातें तो चाहिए होती हैं किसी भी मर्द को अपना गुलाम बनाने के लिए --- और रणधीर बाबू की बात की जाए तो वो गुलाम बनने वालों में नहीं बल्कि बनाने वालों में से हैं ---
और जो बंदा दूसरों को अपना गुलाम बनाने में माहिर हो --- वह इस एक औरत के पीछे लट्टू हुए क्यूँ घूमेगा भला ??
कोई तो ख़ास वजह होगी ही --- पर क्या ---
ये बात उन लेडी टीचर्स को समझ न आती थी --- और आती भी कैसे --- रणधीर बाबू तो वो हवसी शिकारी है जो हर खूबसूरत औरत को अपना बनाने में लगा रहता है और पहली बार आशा के रूप में उसे वह रत्न मिली जिसे पा कर वह दूसरी सभी औरतों को कुर्बान कर सकता था --- या अब यूँ कहा जा सकता है कि लगभग कुर्बान कर चुके हैं ---
आशा के कॉलेज ज्वाइन करने के बाद से ही शायद ही रणधीर बाबू ने किसी ओर औरत के बारे में शायद ही सोचा होगा --- ये और बात है कि रणधीर बाबू के द्वारा; कॉलेज के गैलरी या लॉबी में चलते वक़्त कोई लेडी टीचर मिल जाए तो उसके होंठों पर किस करना --- या बूब्स मसल देना या फ़िर पिछवाड़े पर ‘ठास !’ से एक थप्पड़ रसीद देना; ---- ये सब बहुत कॉमन था और चलता ही रहता था और आगे भी न जाने कितने ही दिनों तक चलता रहेगा --- |
उन्हीं टीचर्स में एक है मिसेस शालिनी --- कॉलेज में बहुत पहले से टीचर पोस्ट पर पोस्टेड है, पर उम्र में आशा से छोटी है --- चौंतीस साल की --- चूचियाँ उसकी आशा जैसी तो नहीं पर छत्तीस के आसपास की है --- गोल पिछवाड़ा --- आशा के तुलना में पतली कमर --- आशा जैसी दूध सी गोरी भी नहीं पर रंग फ़िर भी साफ़ है --- कह सकते हैं की वो भी गोरी ही है --- दोनों गालों पर दो-तीन पिम्पल्स हैं --- अधिकांश वो सलवार कुरता ही पहनती है --- कुछ ख़ास मौकों पर ही साड़ी पहनना होता है उसका |
शालिनी पिछले सप्ताह भर से देख रही है कि रणधीर बाबू उसकी तरफ़ कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं --- जबकि वो उनकी फेवरेट हुआ करती थी |
ठरकी बुड्ढे से कोई विशेष तो क्या ; रत्ती भर की कोई प्यार व्यार की गुंजाइश नहीं रखती है शालिनी ---
पर अचानक से ही पता नहीं क्यूँ ,
वो थोड़ा इंसिक्योर सा फ़ील करने लगी है ---
आशा जाए भाड़ में --- पर अगर बुड्ढा भी उसके साथ भाड़ में चला गया तो ??
खैर,
उसने तय कर लिया कि वह धीरे धीरे आशा के करीब आएगी और एक दिन सारे राज़ जान कर उसे ब्लैकमेल कर के या तो कॉलेज से हटा देगी या फ़िर किसी तरह आशा को साइड कर फ़िर से बुड्ढे के दिल ओ दिमाग में अपने लिए जगह बना लेगी |
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एक दिन की बात है,
आशा समय से बीस मिनट पहले कॉलेज पहुँच गई थी ---- नीर को उसके क्लास में बैठा आई --- बहुत ही कम स्टाफ्स और स्टूडेंट्स को आए देख वह आराम करने का सोची --- पर तभी ध्यान आया कि उसे थोड़ा और सलीके से ठीक होना है --- रणधीर बाबू के लिए --- |
एक श्वास छोड़ी,
एक से दस तक गिनी और फ़िर चल दी वाशरूम की ओर --- ;
लेडीज़ वाशरूम की अपनी ही एक अलग ख़ासियत है इस कॉलेज में ---- और जब बनवाने वाला ख़ुद रणधीर बाबू हो, तब तो खास होना ही है |
टाइल्स, मार्बल्स, फैंसी वॉशबेसिंस , लाइटिंग, ... आहा... एक अलग ही बात है ऐसे वाशरूम में...
आशा अब तक एक बात छुपाती आ रही थी रणधीर बाबू से ----
और वो बात यह थी कि ---- ;
आशा ब्रा पहन कर कॉलेज आती थी !
घर से निकलते समय तो उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा पहनी होती पर जैसे ही वो कॉलेज पहुँचती, जल्दी से नीर को उसके क्लास में पहुँचा कर वह लगभग भागती हुई सी वाशरूम पहुँचती और ब्रा उतार कर अपने बैग में रख लेती !
आज भी वह वाशरूम में घुस कर यही कर रही थी कि तभी शालिनी आ गई --- !
आशा चौंकी; उस वक़्त किसी के आने की कल्पना की ही नहीं थी आशा ने ---- पर अच्छी बात यह रही कि शालिनी के भीतर कदम रखने के दस सेकंड पहले ही उसने अपनी ब्रा बैग में रख चुकी थी और फिलहाल साड़ी पल्लू को सीने पर रख पल्लू के नीचे से हाथ घुसा कर हुक्स लगा रही थी ---
शालिनी भी इक पल को ठिठकी .. उसने भी किसी के वहाँ होने की कल्पना नहीं की थी ---
और अभी अपने सामने आशा को देख वह भी दो पल के लिए भौचक सी रह गई --- |
और कुछ ही सेकंड्स में उसके होंठों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई ---
उसकी अनचाही प्रतिद्वंदी; आशा जो खड़ी है सामने --- आज शायद कुछ अच्छी बातें हो जाए इसके साथ ---
हौले से मुस्कराकर ‘गुड मोर्निंग’ विश की आशा को और दीवार पर लगे लार्ज फ्रेम आईने के सामने खड़ी हो कर अपना दुपट्टा और बाल ठीक करने लगी ---
आशा भी मुस्करा कर रिटर्न विश की दोबारा अपने काम में लग गई --- ब्लाउज हुक्स लगाने के काम में ---
इधर शालिनी भी मन ही मन अपने सवालों को अच्छे से सजाने में लगी रही --- और जल्द ही तैयार भी हुई ---
आईने में देखते हुए अपने बालों के जुड़े को ठीक करते हुए बोली,
‘दीदी, आज जल्दी आ गई आप?’
‘हाँ शालिनी, वो गाड़ी आज जल्दी आ गई थी तो ---- ’
आशा ने अपने वाक्य को अधूरा ही छोड़ा |
‘ओह्ह अच्छा---’ शालिनी ने बात को ज़ारी रखने की कोशिश में बोली |
आशा ने हुक्स लगा लिए --- अब पल्लू को सलीके से प्लेट्स बना कर कंधे पर रखना रह गया जिसे बखूबी, बड़े आहिस्ते से कर रही थी आशा ---
शालिनी को कुछ सूझा,
समथिंग हॉट --- वैरी नॉटी !!
कुछ ऐसा जिसे सोचने मात्र से ही वह शर्मा कर अंदर तक हिल गई ---
आशा की ओर देख चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लिए बोली,
‘वाह दीदी ! आज तो बड़ी सुंदर लग रही हो इस साड़ी में....’
सुनकर आशा भी मुस्कुराये बिना रह न सकी |
वो खुद भी अब तक तीन - चार बार आईने में गौर से देख देख कर ख़ुद ही पर मोहित सी हो गई है --- और हो भी क्यूँ न ?
गोरे तन पे नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में वह वाकई अद्भुत सुन्दर लग रही है आज ---
पुरुष तो क्या ; औरत भी आज उसकी अनुपम सुंदरता पर मुग्ध हुए बिना न रह पाए --- |
और हॉट तो वह हमेशा से ही लगती है |
अभी वो पल्लू के एक हिस्से को लेकर सीने पर रखी ही थी कि तभी उसे यह अहसास हुआ कि जैसे शालिनी उसके पास आ कर खड़ी हो गई है --- और तुरंत ही पीछे खड़ी हो गई ---
आशा भौंचक सी हो, सिर उठा कर सामने आईने की ओर देखी --- और पाया की वाकई शालिनी उसके पीछे खड़ी हो कर; पीछे से सामने आईने में आशा को ही अपलक देखे जा रही है --- होंठों पर प्यारी सी मुस्कान --- आँखों में चमक --- ऐसे जैसे किसी छोटी बच्ची को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो --- |
पीछे इस तरह से खड़ी हुई थी शालिनी, कि उसका वक्षस्थल आशा की पीठ से सटे जा रहा था --- आशा को इसका अहसास तो हो रहा था पर एकदम से उससे कुछ कहते नहीं बना --- क्या बोले, ये सोचने, शालिनी को देखने और उसके अगले कदम के धैर्यहीन प्रतीक्षा में ही उसके बोल होंठों से बाहर आज़ादी नहीं पा रहे थे |
दोनों एक दूसरे को आईने में देख रही हैं --- एक, चेहरे पर एक बड़ी सी शर्मीली – शरारती मुस्कान लिए और दूजी, चेहरे पर जिज्ञासा का भाव लिए --- |
अचानक से शालिनी आईने में ही देखते हुए आशा से आँखें मिलाई --- दोनों की आँखें मिलते ही शालिनी के गाल लाज से लाल हो गए --- आशा को अब थोड़ा अजीब लगने लगा --- और कोई बात बेवजह अजीब लगना आशा को बिल्कुल सहन नही होता --- इसलिए और देर न करते हुए भौंहें सिकुड़ते हुए फीकी सी मुस्कान लिए, बहुत धीमे स्वर में पूछी,
‘क्या हुआ----?’
प्रत्युत्तर में शालिनी सिर को हल्के से दाएँ बाएँ घूमा कर ‘ना या कुछ नहीं’ बोलना चाही --- |
फ़िर से दो – चार पलों की चुप्पी ---
और,
तभी एक हरकत हुई;
हरकत हुई शालिनी की तरफ़ से ----
आशा की डीप ‘यू’ कट ब्लाउज से उसकी गोरी चिकनी, बेदाग़ पीठ का बहुत सा हिस्सा बाहर निकला हुआ था --- और अभी – अभी शालिनी ने जो किया उससे आशा के शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई --- |
दरअसल,
हुआ ये कि आशा के पीछे खड़ी हो कर उससे आती भीनी भीनी चन्दन सी खुशबू और गोरे तन पर नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज और उसपे भी डीप यू कट बैक ब्लाउज से झाँकती आधे से भी अधिक गोरी बेदाग़, चमचम करती पीठ; जोकि थोड़ी भीगी हुई थी आशा के ही भीगे बालों के कारण --- देख कर खुद पर नियंत्रण न रख सकी शालिनी और अपना दाँया हाथ सीधा उठा कर, तर्जनी ऊँगली की लंबी नाखून को आशा की पीठ पर टिकाते, धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी थी |
पीठ पर से आशा के कमर तक आते काले लम्बे बाल, जिन्हें वो वाशरूम में खुला छोड़ दी थी; को हटा कर धीरे धीरे उसकी पूरी पीठ पर अपनी ऊँगली के पोर और नाखून से सहलाने लगी ---
आशा हतप्रभ सी कुछ देर तक सहती रही ---
समझ नहीं आ रहा था उसे कि आखिर वो करे तो करे क्या?
सिंगल मदर होने के कारण यौन आकांक्षाओं को अपने अंदर ही मार देना उसने अपनी नियति समझ ली थी ----
पर ये भी सत्य है कि;
ज़रा सा उत्तेजक बात या ऐसी कोई बात हो जाए जिसमें यौनता प्रमुख हो --- तो वह तुरंत ही कामाग्नि में जल उठती थी ---
और आज, अभी ऐसा ही हो रहा है ---
उससे कम उम्र की, उसी की सहकर्मी, कॉलेज की एक टीचर उसे यौनेत्तेजक रूप से छू रही है और कहाँ तो उसे रोकने के बजाए उल्टे आशा ही मज़े लेने लगी ---- |
करीब पांच मिनट तक ऐसे ही करते रहने के बाद, शालिनी दोनों हाथों की तर्जनी ऊँगली के नाख़ून से आशा के गदराए मांसल पीठ को सहलाने लगी और फ़िर तीन मिनट बाद दोनों हाथों की तर्जनी और अँगूठे से आशा के कंधे पर से ब्लाउज के बॉर्डर को पकड़ कर बहुत ही धीरे से कंधे पर से सरका दी ---
आशा की अब तक आँखें बंद हो आई थीं ---
कहीं और ही खो गई थी अब तक वो --- अतः उसे शालिनी की करतूत के बारे में पता ही न चला --- वो तो बस अपनी पीठ पर शालिनी के नुकीले नाखूनों से मिलने वाली गुदगुदी और आराम को भोग करने में लगी थी ---- |
पल्लू चमचमाते फर्श पर लोटने लगी और आशा रोम रोम में उठने वाले यौन उत्तेजना की अनुभूति करने में खो गई --- ये देख कर शालिनी ने अब पूरे नंगे कंधे से होकर गर्दन के पीछे वाले हिस्से तक नाखूनों से सहलाते हुए हल्के साँस छोड़ने लगी --- और इसी के साथ ही बीच बीच में दोनों हाथों की अपनी लंबी तर्जनी ऊँगली को गर्दन से नीचे उतारते हुए आशा की उन्नत चूचियों के ऊपरी गोलाईयों के अग्र फूले हिस्सों पर, जो ब्लाउज के “वी” कट से ऊपर की ओर निकले हुए थे; पर हल्के दबावों से दबाने लगी ----
और ऐसा करते ही आशा एक मादक कराह दे बैठी -----
शालिनी के लंबी उँगलियों के हल्के पड़ते दबाव एक मीठी सी गुदगुदी दौड़ा दे रही थी आशा के पूरे जिस्म में --- पूरे दिल से वह रोकना चाहती है फ़िलहाल शालिनी को; पर पता नही ऐसी कौन सी चीज़ है तो जो आशा के हाथों और होंठों को थामे हुए है --- मना कर रही है उसे कि जो हो रहा है उसे होने दो ---- ऐसे पल बार बार नहीं मिलते ---- जस्ट एन्जॉय द फ़ील --- द मोमेंट --- |
करीब दस मिनट ऐसे ही हल्के दबाव देते देते शालिनी की चूत भी पनिया गई --- वो आशा से प्रतिद्वंद्विता का भाव अवश्य रखती है मन में ; पर फ़िलहाल मन के साथ साथ चूत में भी चींटियों की सी रेंगती गुदगुदी ने उसके अंदर की स्वाभाविक कामुकता को इतना बढ़ा दिया कि वह लगभग भूल ही चुकी है की वो और आशा फ़िलहाल कॉलेज के वाशरूम में हैं और क्लासेज स्टार्ट होने में कुछ ही मिनट रह गए हैं ----
शालिनी ने ब्लाउज के बॉर्डर वाले सिरों को तर्जनी और अंगूठे से थाम कंधे से और नीचे उतार दी ----
और,
अपने दोनों हाथों को कन्धों के ऊपर से ही ले जाते हुए, थोड़ा हिम्मत करते हुए, काँपते हाथों से ; ब्लाउज के प्रथम हुक को आहिस्ते से खोल दी ----
और बिना कोई समय गंवाते हुए,
शालिनी ने अपने पतले लंबे ऊँगलियों से, खुले हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब आशा के पुष्टकर, नर्म, फूले हुए बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और गहरी क्लीवेज और भी अधिक दर्शनीय हो गई ---- बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए | क्लीवेज के गहराई में शालिनी की ऊँगलियों की छूअन ने आशा को और भी मस्ती में भर दिया और अब वह अपने शरीर को थोड़ा ढीला छोड़ते हुए अपना भार, खुद को पीछे करते हुए शालिनी के जिस्म से टिका कर छोड़ दी ---
शालिनी ने भी कोई और मौका गंवाए बिना, फट से आशा के बगलों से होते हुए उसके बड़े बूब्स को पकड़ ली ;
और पकड़ते ही उसके विशाल चूचियों की नरमी का एक सुखद अहसास हुआ ---
और यह अहसास ऐसा था कि पकड़ने के साथ ही आधे से अधिक दुश्चिन्ताओं को शालिनी खड़े खड़े ही भूल गई ---- टेंशन फ्री ---- और अपने भीतर एक हल्कापन फ़ील होते ही शालिनी ने मस्ती में नर्म चूचियों को दो-तीन बार लगातार ज़ोर से दबा दी ---
आशा एक मृदु ‘आह:’ कर उठी ;
पर शालिनी तीन बार चूची दबाने के बाद ही अचानक से रुक गई ---
आश्चर्य से उसकी आँखें बड़ी होती चली गई ---
कारण,
उसके हाथों ने कुछ महसूस किया किया अभी अभी ---
और वो यह कि आशा ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी है, और उसके खड़े निप्पल जैसे शालिनी की ऊँगलियों को एक मौन उत्तेजक आमन्त्रण दे रहे हों --- कि,
‘आओ, और प्लीज खेलो हमसे--- ’
ना जाने इसी तरह पकड़े, चूचियों से कितनी ही देर खेलती रही वह--- बीच बीच में खुद की चूचियों को भी आगे तान कर आशा की पीठ से लगा देती ----
और आशा भी शालिनी की कोमल वक्षों के नर्म स्पर्श पाते ही अपनी पीठ और अधिक पीछे की ओर ले जाती जिससे की शालिनी की चूचियाँ उसके पीठ से टकरा टकरा कर दबतीं और शालिनी के साथ साथ --;
आशा के मज़े को दोगुना कर देती ---
एक प्रतिष्ठित कॉलेज के बंद वाशरूम में दो मादाओं का एक अलग ही खेल चल रहा था --- जोकि निःसंदेह उन दोनों को अपने अपने गदराए जिस्म का परम आनंद देने वाला एक 'अलग एहसास' करा रहा था ----- !!
शालिनी को हैरानी तो बहुत जबरदस्त हुई; क्यूंकि आम तौर पर कोई भी बड़े और भरे स्तनों वाली महिला बिना ब्रा के ब्लाउज पहनती नहीं है,
और आशा के तो काफ़ी अच्छे साइज़ के स्तन हैं, तो फिर इसके ब्रा न पहनने का कारण??!!
शालिनी सोचती रही ---- पर नर्म चूचियों के स्पर्श का आनंद अपने मन से निकाल न सकी--- और सोचते हुए ही दबाते रही --- ब्लाउज कप के पतले कपड़े के ऊपर से ही दोनों निप्पल्स को पकड़ ली और बड़े प्यार से उमेठने लगी ---- निप्पल अब तक सख्त हो कर खड़े भी हो चुके थे --- अतः ब्लाउज के ऊपर से पकड़ने में कोई ख़ास मशक्कत नहीं करनी पड़ी शालिनी को |
आशा सिवाय एक मीठी ‘आह्ह... उम्म्म...’ के और कुछ न कह सकी ----- आँखें अब भी बंद हैं उसकी --- |
एक और बड़ी हैरानी वाली बात ये घटी शालिनी के साथ की चूचियों और निप्पल को दबाते दबाते उसके हाथ, उँगलियाँ कुछ भीगी भीगी, चिपचिपी सी हो गई थी---
शालिनी कन्फर्म थी की इतनी भी पसीने से न आशा नहाई थी और न ही शालिनी ख़ुद --- तो फ़िर ऐसा क्यों लग रहा है ??
इतने में ही अचानक से घंटी की आवाज़ सुनाई दी ----
इस आवाज़ के साथ ही दोनों हडबडा उठी ---
शालिनी जल्दी से पीछे हटी और अब तक आशा भी आंखें खोल, ख़ुद को ऐसी स्थिति में देख शर्म से दोहरी हो जल्दी जल्दी कपड़े ठीक कर बैग उठा कर वहाँ से निकल गई ---- बिना शालिनी की ओर देखे ----
(आशा पल्लू ठीक करती हुई--)
और,
यहीं काश कि वह एक बार पलट कर शालिनी की ओर एक बार अच्छे से देख लेती--- या कपड़े ठीक करते वक़्त ही --- |
इस पूरे घटनाक्रम के यूँ घटने से शालिनी भी ख़ुद को संभाल नहीं पाई थी और अब आशा के वाशरूम से निकल जाने के बाद ख़ुद को इत्मीनान से व्यवस्थित करने में लग गई --- करीब दस मिनट लगे उसे अपने उखड़ती साँसों पर काबू पाने में --- ‘जागुआर’ टैप खोल कर गिरते पानी के जोर के छींटे लिए उसने अपने चेहरे पर --- कम से कम दस बार --- फ़िर सीधे, आईने में अपने को देखने लगी --- कुछ देर पहले घटी घटना उसे फ़िर धीरे धीरे याद आने लगी ---
सिर झटकते हुए नजर दूसरी ओर करना चाहती ही थी कि तभी उसे टैप के पीछे, दीवार से सटे, थोड़ा हट कर थोड़ी तिरछी हो कर खड़ी रखी उसकी मोबाइल दिखी---
वीडियो रिकॉर्डिंग चालू था !!
हाथ पोंछ कर सावधानी से मोबाइल उठाई ---
रिकॉर्डिंग बंद की ---
गैलरी में गई ----
पहला वीडियो ऑप्शन पर टैप की ---
वीडियो खुला,
फ़िर टैप;
वीडियो प्ले होना शुरू हुआ ----
ज्यों ज्यों वीडियो प्ले होता गया, त्यों त्यों शालिनी के चेहरे में एक चमक और होंठों पर एक बड़ी ही कमीनी सी मुस्कान आती गई -------
(क्रमशः)
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