24-12-2021, 03:47 PM
नीरज: "स्लीपर में एक ही कोच में ७०-८० लोग होते है, वहाँ फर्स्ट क्लास वाली प्राइवेसी कहाँ होती है। यहाँ देखो हम चारो ही है। कुछ भी कर सकते हैं"
मै उनके "कुछ भी करने" का मतलब नहीं समझा था, उनके इरादे नेक नहीं लग रहे थे। मैं और नीरज जीजाजी एक बर्थ पर बैठे थे और सामने दोनों बहने बैठी थी। बातें करने में सहुलीयत हो इसके लिए नीरू और उसके जीजाजी आमने सामने ही बैठे थे। इसलिये मेरे सामने ऋतू दीदी बैठी थी। मैं और ऋतू दीदी सिर्फ उन दोनों की बातें सुन रहे थे जो मस्ती मजाक में एक दूसरे की टाँग खिंच रहे थे। दोनो एक दूसरे को धमकी दे रहे थे की कल बीच पर देखना मैं क्या करता या करती हूं। उन्होंने अब तक जो किया था उसी से मैं सदमें में था तो आगे क्या होने वाला था यह सोच चिन्तित भी था। इन सब के बीच ऋतू दीदी एकदम शांत थी। क्या उनको भी मेरी तरह शक नहीं होता होगा अपने पति और बहन के रिश्ते पर? या फिर वो जान बुझ कर उनको करने देती होगी क्यों की वो मेरी तरह भोलि थी। मैने देखा था की ऋतू दीदी कभी कभार नीरू को डाँट देती थी। शायद उनके बचपन की आदत होगी नीरू के इस शरारती रूप को देखने की और उसे डाँटने की। यही कारण होगा की वो नीरू की जिजाजी से सब मस्तियो को हंस कर टाल देती होगी। ऋतू दीदी अपनी शाल निकालने के लिए अपनी सीट के नीचे पड़े बैग को निकालने के लिए आगे झुकी। मेरा ध्यान ऋतू दीदी पर गया और झुकने के साथ ही उनके शर्ट के ऊपर के हिस्से से उनके बूब्स के उभार की थोड़ी झलक मिली। मै घबरा कर दूसरी तरफ देखने लगा जहाँ नीरू और जीजाजी बातों में मशगुल थे। मेरे मन में चोर था। मैंने मौका देखते हुए फिर ऋतू दीदी को देखा। ऋतू दीदी को कभी इन गन्दी नज़रो से नहीं देखा था पर कुछ घंटो से जीजाजी और नीरू की हरकतें देख मेरा दिमाग भी करप्ट हो गया था। ऋतू दीदी बैग की चेन खोले शाल निकालने के लिए हिली और उनके बूब्स का उभार भी उनके हिलने के साथ जेली की तरह हिलता हुआ बड़ा मादक दिखाई दिया। मेरे मन में घंटियां बजने लगी। मै फिर एक सेकंड दूसरी तरफ देखने लगा की कही कोई मुझे ऋतू दीदी के बूब्स घुरते तो नहीं देख रहा। और फिर मैं ऋतू दीदी के बूब्स की थोड़ी सी दिखती झलक को घुरने लगा।
ऋतू दीदी ने शाल निकाल लिया था और बैग की चेन वापसी बंद करने लगी। मैं थोड़ी देर और उस नज़ारे के मजे लेना चाहता था पर मैं अब दूसरी तरफ देखने लगा, ताकि ऋतू दीदी मुझे उन्हें घुरते हुए ना देख ले। ऋतू दीदी बैग अंदर रख सीधा हो चुकी थी। मैं फिर उनकी तरफ देख थोड़ी स्माइल करने लगा। दीदी ने जीजा साली की बातो में ध्यान लगाने उनकी तरफ देखा तो मैं उनकी छाती को घुरने लगा। कुछ दीख तो नहीं रहा था पर शर्ट के अंदर से ही उनके उभारों को देखने लगा। फिर अपने आप पर गुस्सा भी आया की मैं यह क्या कर रहा हूँ? थोड़ी देर बाद ऋतू दीदी ने बोला की उनको नींद आ रही हैं तो सब सो जाते है। मैं उनकी बात का सम्मान करते हुए तुरंत उठ खड़ा हुआ। पर जीजा साली की बातें अभी ख़त्म नहीं हुयी थी और उन्होंने हम दोनों को ऊपर की दोनों बर्थ पर सोने का बोल दिया।
मै उनके "कुछ भी करने" का मतलब नहीं समझा था, उनके इरादे नेक नहीं लग रहे थे। मैं और नीरज जीजाजी एक बर्थ पर बैठे थे और सामने दोनों बहने बैठी थी। बातें करने में सहुलीयत हो इसके लिए नीरू और उसके जीजाजी आमने सामने ही बैठे थे। इसलिये मेरे सामने ऋतू दीदी बैठी थी। मैं और ऋतू दीदी सिर्फ उन दोनों की बातें सुन रहे थे जो मस्ती मजाक में एक दूसरे की टाँग खिंच रहे थे। दोनो एक दूसरे को धमकी दे रहे थे की कल बीच पर देखना मैं क्या करता या करती हूं। उन्होंने अब तक जो किया था उसी से मैं सदमें में था तो आगे क्या होने वाला था यह सोच चिन्तित भी था। इन सब के बीच ऋतू दीदी एकदम शांत थी। क्या उनको भी मेरी तरह शक नहीं होता होगा अपने पति और बहन के रिश्ते पर? या फिर वो जान बुझ कर उनको करने देती होगी क्यों की वो मेरी तरह भोलि थी। मैने देखा था की ऋतू दीदी कभी कभार नीरू को डाँट देती थी। शायद उनके बचपन की आदत होगी नीरू के इस शरारती रूप को देखने की और उसे डाँटने की। यही कारण होगा की वो नीरू की जिजाजी से सब मस्तियो को हंस कर टाल देती होगी। ऋतू दीदी अपनी शाल निकालने के लिए अपनी सीट के नीचे पड़े बैग को निकालने के लिए आगे झुकी। मेरा ध्यान ऋतू दीदी पर गया और झुकने के साथ ही उनके शर्ट के ऊपर के हिस्से से उनके बूब्स के उभार की थोड़ी झलक मिली। मै घबरा कर दूसरी तरफ देखने लगा जहाँ नीरू और जीजाजी बातों में मशगुल थे। मेरे मन में चोर था। मैंने मौका देखते हुए फिर ऋतू दीदी को देखा। ऋतू दीदी को कभी इन गन्दी नज़रो से नहीं देखा था पर कुछ घंटो से जीजाजी और नीरू की हरकतें देख मेरा दिमाग भी करप्ट हो गया था। ऋतू दीदी बैग की चेन खोले शाल निकालने के लिए हिली और उनके बूब्स का उभार भी उनके हिलने के साथ जेली की तरह हिलता हुआ बड़ा मादक दिखाई दिया। मेरे मन में घंटियां बजने लगी। मै फिर एक सेकंड दूसरी तरफ देखने लगा की कही कोई मुझे ऋतू दीदी के बूब्स घुरते तो नहीं देख रहा। और फिर मैं ऋतू दीदी के बूब्स की थोड़ी सी दिखती झलक को घुरने लगा।
ऋतू दीदी ने शाल निकाल लिया था और बैग की चेन वापसी बंद करने लगी। मैं थोड़ी देर और उस नज़ारे के मजे लेना चाहता था पर मैं अब दूसरी तरफ देखने लगा, ताकि ऋतू दीदी मुझे उन्हें घुरते हुए ना देख ले। ऋतू दीदी बैग अंदर रख सीधा हो चुकी थी। मैं फिर उनकी तरफ देख थोड़ी स्माइल करने लगा। दीदी ने जीजा साली की बातो में ध्यान लगाने उनकी तरफ देखा तो मैं उनकी छाती को घुरने लगा। कुछ दीख तो नहीं रहा था पर शर्ट के अंदर से ही उनके उभारों को देखने लगा। फिर अपने आप पर गुस्सा भी आया की मैं यह क्या कर रहा हूँ? थोड़ी देर बाद ऋतू दीदी ने बोला की उनको नींद आ रही हैं तो सब सो जाते है। मैं उनकी बात का सम्मान करते हुए तुरंत उठ खड़ा हुआ। पर जीजा साली की बातें अभी ख़त्म नहीं हुयी थी और उन्होंने हम दोनों को ऊपर की दोनों बर्थ पर सोने का बोल दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
