24-12-2021, 03:46 PM
नीरु: "जीजा जी आप मेरे साथ चलो और बताओ की मैं क्या पहनू"
नीरु अब अपने जीजा को लेकर मेरे बैडरूम में चली गयी और दरवाजा बंद हो गया। अन्दर से सिर्फ नीरू के चहकने और खिलखिलाने की आवाज आ रही थी और बीच बीच में जीजा जी के हंसी की। इधर दीदी मेरे साथ बात कर रही थी।
दीदी: "नीरू घर में सबसे छोटी हैं तो सबकी लाड़ली रही है। उसकी बचपने की आदत तुम्हे अजीब तो नहीं लगती न?"
प्रशांत: "बिलकुल नहीं दीदी। घर चहकता हैं तो अच्छा लगता है। जब वो घर पर नहीं होती हैं तो घर सुना और अजीब लगता हैं"
दीदी: "मेरा पीहर हो या मेरा ससुराल, जब तक नीरू रहती हैं तो किसी बच्चे की कमी नहीं खलती। उसके जाते ही सन्नाटा छा जाता हैं और सब उसको मिस करते हैं"
प्रशांत: "अच्छा हैं उसको सब मिस करते है। मेरे जैसे का तो होना न होना सब एक हैं"
दीदी: "नहीं, ऐसी बात नहीं है। मम्मी पापा तुम्हारी बहुत तारीफ़ करते है। नीरज से भी ज्यादा वो तुम्हे पसंद करते हैं"
दीदी से बात करके थोड़ी शान्ति मिल रही थी पर बेडरूम से लगातार आती आवाजो से मैं थोड़ा अनकम्फर्टेबल हो रहा था। मैंने दीदी को भी तैयार होने को बोल दिया। दीदी अब उठ खड़ी हुयी और नीरज को आवाज लगा कर बुलाया ताकि नीरू तैयार हो सके ताकि देर न हो। दीदी अब गेस्ट रूम में चेंज करने गयी।
मै अपने बैडरूम के दरवाजे तक पंहुचा और अंदर से आती जीजा साली की मस्तियो की आवाज में मेरी अंदर जाने की हिम्मत नहीं थी। क्या पता क्या देखने को मिले? मन में कही न कही एक डर घर कर गया था। मैं वही सोफे से लेकर बैडरूम के दरवाजे तक चक्कर लगता रहा। कुछ मिनट्स के बाद ही जीजाजी मेरे बैडरूम से बाहर आए। मै चुपके से जीजाजी को ऊपर से नीचे देखते हुए निरिक्षण करने लगा की वो क्या करके आये होंगे। उनके बाल बिखरे हुए थे और टीशर्ट पर खींचने की वजह से सिलवटे थी। मै अपने बैडरूम की तरफ बढा ताकि अंदर जाकर नीरू की खोज खबर ले सकू। पर जीजाजी ने बीच में ही रोक दिया। जीजाजी ने बोला की लड़कियो को तैयार होने में टाइम लगता है, हम मर्दो को नहीं। हम थोड़ी देर बाद जायेंगे तैयार होंने। उन्होंने मुझे बातों में उलझाये २-३ मिनट रोके रखा। फिर मैंने ही उन्हें कहा की मुझे कपडे थोड़े आयरन भी करने हैं तो मैं अंदर जाता हूं। जीजाजी वहीं सोफे पर बैठ अपना फ़ोन चेक करने लगे और मैं बैडरूम में गया। नीरु अल्मारी के सामने ही खड़ी थी और सिर्फ अपनी ब्रा और पेंटी में थी। मुझे देखते ही उसने दरवाजा बंद करने को कहा। मैंने दरवाजा बंद किया और टाइमिंग गिनने लगा। जीजजी के बैडरूम से जाने के बाद से लेकर अब तक २-३ मिनट्स हुए होंगे। क्या नीरू इतना जल्दी अपने कपडे खोल कर सिर्फ ब्रा और पेंटी में आ सकती हैं की नहीं। उसने साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज जीजाजी के जाने के बाद इतना जल्दी खोल लिए होंगे या जीजाजी के रहते हुए ही उसने कपडे खोल दिए थे? या फिर हो सकता हैं की नीरू के कपडे खुद जीजाजी ने ही खोले होंगे तभी तो अंदर से इतनी मस्ती की अवाजे आ रही थी। मैने अपने आप को डांट दिया की मैं भी क्या सोच रहा हूं। मेरे बाहर बैठे रहते जीजाजी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती है। उन दोनों के अंदर रहते तो मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश भी नहीं की थी। हो सकता हैं उस वक़्त दरवाजा अंदर से लॉक्ड था। अब यह सब चीजे पता करने के लिए तो बहुत देर हो चुकी थी। नीरू ने अपना ब्रा निकाल दिया था ताकि दूसरा मैचिंग का ब्रा पहन पाए।
नीरु अब अपने जीजा को लेकर मेरे बैडरूम में चली गयी और दरवाजा बंद हो गया। अन्दर से सिर्फ नीरू के चहकने और खिलखिलाने की आवाज आ रही थी और बीच बीच में जीजा जी के हंसी की। इधर दीदी मेरे साथ बात कर रही थी।
दीदी: "नीरू घर में सबसे छोटी हैं तो सबकी लाड़ली रही है। उसकी बचपने की आदत तुम्हे अजीब तो नहीं लगती न?"
प्रशांत: "बिलकुल नहीं दीदी। घर चहकता हैं तो अच्छा लगता है। जब वो घर पर नहीं होती हैं तो घर सुना और अजीब लगता हैं"
दीदी: "मेरा पीहर हो या मेरा ससुराल, जब तक नीरू रहती हैं तो किसी बच्चे की कमी नहीं खलती। उसके जाते ही सन्नाटा छा जाता हैं और सब उसको मिस करते हैं"
प्रशांत: "अच्छा हैं उसको सब मिस करते है। मेरे जैसे का तो होना न होना सब एक हैं"
दीदी: "नहीं, ऐसी बात नहीं है। मम्मी पापा तुम्हारी बहुत तारीफ़ करते है। नीरज से भी ज्यादा वो तुम्हे पसंद करते हैं"
दीदी से बात करके थोड़ी शान्ति मिल रही थी पर बेडरूम से लगातार आती आवाजो से मैं थोड़ा अनकम्फर्टेबल हो रहा था। मैंने दीदी को भी तैयार होने को बोल दिया। दीदी अब उठ खड़ी हुयी और नीरज को आवाज लगा कर बुलाया ताकि नीरू तैयार हो सके ताकि देर न हो। दीदी अब गेस्ट रूम में चेंज करने गयी।
मै अपने बैडरूम के दरवाजे तक पंहुचा और अंदर से आती जीजा साली की मस्तियो की आवाज में मेरी अंदर जाने की हिम्मत नहीं थी। क्या पता क्या देखने को मिले? मन में कही न कही एक डर घर कर गया था। मैं वही सोफे से लेकर बैडरूम के दरवाजे तक चक्कर लगता रहा। कुछ मिनट्स के बाद ही जीजाजी मेरे बैडरूम से बाहर आए। मै चुपके से जीजाजी को ऊपर से नीचे देखते हुए निरिक्षण करने लगा की वो क्या करके आये होंगे। उनके बाल बिखरे हुए थे और टीशर्ट पर खींचने की वजह से सिलवटे थी। मै अपने बैडरूम की तरफ बढा ताकि अंदर जाकर नीरू की खोज खबर ले सकू। पर जीजाजी ने बीच में ही रोक दिया। जीजाजी ने बोला की लड़कियो को तैयार होने में टाइम लगता है, हम मर्दो को नहीं। हम थोड़ी देर बाद जायेंगे तैयार होंने। उन्होंने मुझे बातों में उलझाये २-३ मिनट रोके रखा। फिर मैंने ही उन्हें कहा की मुझे कपडे थोड़े आयरन भी करने हैं तो मैं अंदर जाता हूं। जीजाजी वहीं सोफे पर बैठ अपना फ़ोन चेक करने लगे और मैं बैडरूम में गया। नीरु अल्मारी के सामने ही खड़ी थी और सिर्फ अपनी ब्रा और पेंटी में थी। मुझे देखते ही उसने दरवाजा बंद करने को कहा। मैंने दरवाजा बंद किया और टाइमिंग गिनने लगा। जीजजी के बैडरूम से जाने के बाद से लेकर अब तक २-३ मिनट्स हुए होंगे। क्या नीरू इतना जल्दी अपने कपडे खोल कर सिर्फ ब्रा और पेंटी में आ सकती हैं की नहीं। उसने साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज जीजाजी के जाने के बाद इतना जल्दी खोल लिए होंगे या जीजाजी के रहते हुए ही उसने कपडे खोल दिए थे? या फिर हो सकता हैं की नीरू के कपडे खुद जीजाजी ने ही खोले होंगे तभी तो अंदर से इतनी मस्ती की अवाजे आ रही थी। मैने अपने आप को डांट दिया की मैं भी क्या सोच रहा हूं। मेरे बाहर बैठे रहते जीजाजी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती है। उन दोनों के अंदर रहते तो मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश भी नहीं की थी। हो सकता हैं उस वक़्त दरवाजा अंदर से लॉक्ड था। अब यह सब चीजे पता करने के लिए तो बहुत देर हो चुकी थी। नीरू ने अपना ब्रा निकाल दिया था ताकि दूसरा मैचिंग का ब्रा पहन पाए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
