24-12-2021, 03:27 PM
फिर में संगीता दीदी की चूत की तरफ आ गया मेने उसके दोनो पाँव उठाए और घुट'ने मेने मोड़ के पिछे की तरफ फैलाए. इस तरह से उसकी चूत मेरे साम'ने खुल गई. फिर में उसकी चूत चाट'ने लगा.
मेरी जीभ से में उसकी चूत के दाने से लेकर उसके गांद के छेद तक लंबे लंबे स्ट्रोक लगाकर मैं उसकी चूत चाट'ने लगा. कभी कभी में उसकी चूत के अंदर अप'नी जीभ डाल'ने की कोशीष करता था तो कभी उस'का चूत'दाना ज़ोर से चूस'ता रहा. उस'से वो पागल हो गई वो मेरा मूँ'ह अप'नी चूत पर दबाने की कोशीष कर'ने लगी लेकिन मेने मेरा सर ज़ोर से उप्पर पकड़ा के रखा था जिस'से वो मुझे ज़्यादा दबा नही सक'ती थी.
मुझे संगीता दीदी को तड़फाना था इस'लिए जैसा मेरा मन चाहता था वैसे ही में उसकी चूत चाट रहा था. में ऐसे कर रहा था जिस'से उसे ज़्यादा सुख ना मिले बल्की वो और तड़फ़'ती रहे. अचानक में उठ गया और संगीता दीदी के बाजू में आकर लेट गया. उस'ने झट से आँखें खोल दी और मेरी तरफ हैरानी से देख'ने लगी. उसकी आँखों में काम वास'ना की आग दिख रही थी. मेरी बहन को सिर्फ़ चाट के और चूस के में काम उत्तेजीत कर सकता हूँ ये जान'कर में खूश हो गया.
"कैसा लगा रहा है, दीदी?" मेने फक्र से उसे पुछा.
"तुम रुक क्यों गये??" उस'ने थोड़ी नाराज़गी से पुछा.
"ऐसेही. तुम्हें कैसा लग रहा है ये पुच्छ'ने के लिए."
"अरे नालायक!. मेरे बदन में आग लगा दी. और बीच में ही पुच्छ रहे हो के कैसा लग रहा है?"
"अरे हां. हां. नाराज़ मत हो, दीदी!. में वापस चालू करता हूँ. सिर्फ़ मुझे इतना बताओ. कभी ऐसी भावना का अनुभव किया था तुम'ने? इतना सेंसेशन. इत'नी उत्तेजना कभी अनुभव की थी तुम'ने?"
"नही रे, सागर. कभी भी नही. जैसा तुम कर रहे हो वैसा तुम्हारे जीजू ने कभी नही किया. मेरी शादी शुदा जिंदगी में क्या कमी है इसका मुझे आह'सास होने लगा है. अब प्लीज़!. ऐसे ही कर'ते रहो. जो तुम कर रहे थे, सागर. मेरे बदन में आग सी लग गई है."
"ओह ! येस. यस. दीदी! लेकिन तुम्हारी तरह मेरे भी बदन में आग लगी है इस'लिए हम दोनो को एक दूसरे की आग बुझानी पड़ेगी." ऐसा कह'कर में उठ गया और संगीता दीदी के बदन पर उलटा होकर झुक गया. उसके सर के दोनो बाजू में अप'ने घुट'ने रख दिए.
"दीदी. मुझे लग'ता है. तुम्हें क्या कर'ना चाहिए ये मुझे तुम्हें बताने की ज़रूरत नही है." ऐसा कह'कर में नीचे झुक गया और में मेरा मूँ'ह संगीता दीदी की चूत पर लाया. उसी सम'य मेरा आध खड़ा लंड संगीता दीदी के मूँ'ह पर हिल'ने लगा. जैसे ही मेने उसकी चूत'पर मूँ'ह रखा वैसे ही उसकी समझ में आया के क्या कर'ना है. उस'ने मेरा लंड हाथ से पकड़ लिया और अप'ने मूँ'ह में भर लिया. इस तरह से हम भाई-बाहें एक दूसरे को चाट'ने लगे. में मेरी बहन की चूत को चाट रहा था और उसी सम'य वो अप'ने भाई का लंड चूस रही थी. धीरे धीरे मेरा लंड और कड़क होने लगा. उसके नाज़ुक और मुलायम मूँ'ह के जादू से मेरा लंड फैलता गया.
मेने संगीता दीदी के चुत्तऱ के नीचे से हाथ आगे ले लिए और मेने उसकी चूत को फैलाया. फिर में उसकी चूत के दोनो पटल अंदर से चाट'ने लगा. वैसे कर'ने के लिए मुझे थोड़ा और आगे झुकना पड़ा जिस'से संगीता दीदी को मेरा लंड अप'ने मूँ'ह से निकालना पड़ा. तो फिर वो मेरा लंड मेरे पेट की तरफ दबाते हुए मेरी गोटीया चाट'ने लगी. में और नीचे हो गया जिस'से उसकी जीभ मेरे गोटीयो के नीचे, मेरी गान्ड के छेद को लग गई.
संगीता दीदी की समझ में ये भी आया और वो बीना जीझक मेरी गोटीयो से लेकर मेरे गान्ड के छेद तक उप्पर नीचे जीभ घुमाने लगी. जब उसकी जीभ मेरे गान्ड के छेद को छुती थी तब में उत्तेजना से पागल हो जाता था. गोटीया और गान्ड के छेद का ये भाग काफ़ी नाज़ुक और संवेदनशील होता है और इस भाग'पर अगर कोई जीभ फिरा दे तो उत्तेजना से कभी भी आद'मी झाड़ सकता है. में भी उस उत्तेजना का अनुभव कर रहा था और बड़ी मुश्कील से अप'ने आप को झाड़'ने से बचा रहा था.
नीचे में संगीता दीदी की चूत का पूरा ज़ायक़ा ले रहा था. मेने अब मेरी बीचवाली उंगली उसकी चूत में डाली और उसे अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरे उंगली कर'ने से वो और भी बेताब होने लगी. अब वो अप'नी कमर हिला के मेरे उंगली से चुदवा'ने लगी. में उस'का चूत दाना भी चाट रहा था और उसकी चूत में उंगली भी अंदर बाहर कर रहा था. दीदी अब अपना सर इधर उधर कर के छटपटा'ने लगी. बीच बीच में वो मेरा लंड मूँ'ह में भर लेती थी और चूस'ती थी तो कभी वो मेरी गोटीया चाट'ती थी. मेरे दोनो चुत्तऱ उस'ने ज़ोर से पकड़ लिए थे और बीच बीच में वो मेरी जांघों पर हाथ घुमाती थी.
संगीता दीदी की सह'ने की शक्ती ख़त्म हो गई! उसकी सिस'कीया. चींखे. बढ़'ती गई!!
"ओह ! सागर. आहा. उूउउइइ. अहहाहा.. सागर. अब रहा नही जाता रे.. कुच्छ करो ना. 'वहाँ' नीचे आग लगी है रे. प्लीज़. कुच्छ तो करो.. अब सब्र नही होता.. उऊहहा.. अहहा. सागर.." मुझे मालूम था संगीता दीदी को क्या चाहिए. लेकिन मुझे उसके मूँ'ह से सुनना था इस'लिए मेने उसे पुछा,
"दीदी! जो कह'ना है वो साफ साफ कहो. तुम्हें क्या लग'ता है के मुझे क्या कर'ना चाहिए?. बीना जीझक साफ साफ कह दो के में क्या करू??.."
मेरी जीभ से में उसकी चूत के दाने से लेकर उसके गांद के छेद तक लंबे लंबे स्ट्रोक लगाकर मैं उसकी चूत चाट'ने लगा. कभी कभी में उसकी चूत के अंदर अप'नी जीभ डाल'ने की कोशीष करता था तो कभी उस'का चूत'दाना ज़ोर से चूस'ता रहा. उस'से वो पागल हो गई वो मेरा मूँ'ह अप'नी चूत पर दबाने की कोशीष कर'ने लगी लेकिन मेने मेरा सर ज़ोर से उप्पर पकड़ा के रखा था जिस'से वो मुझे ज़्यादा दबा नही सक'ती थी.
मुझे संगीता दीदी को तड़फाना था इस'लिए जैसा मेरा मन चाहता था वैसे ही में उसकी चूत चाट रहा था. में ऐसे कर रहा था जिस'से उसे ज़्यादा सुख ना मिले बल्की वो और तड़फ़'ती रहे. अचानक में उठ गया और संगीता दीदी के बाजू में आकर लेट गया. उस'ने झट से आँखें खोल दी और मेरी तरफ हैरानी से देख'ने लगी. उसकी आँखों में काम वास'ना की आग दिख रही थी. मेरी बहन को सिर्फ़ चाट के और चूस के में काम उत्तेजीत कर सकता हूँ ये जान'कर में खूश हो गया.
"कैसा लगा रहा है, दीदी?" मेने फक्र से उसे पुछा.
"तुम रुक क्यों गये??" उस'ने थोड़ी नाराज़गी से पुछा.
"ऐसेही. तुम्हें कैसा लग रहा है ये पुच्छ'ने के लिए."
"अरे नालायक!. मेरे बदन में आग लगा दी. और बीच में ही पुच्छ रहे हो के कैसा लग रहा है?"
"अरे हां. हां. नाराज़ मत हो, दीदी!. में वापस चालू करता हूँ. सिर्फ़ मुझे इतना बताओ. कभी ऐसी भावना का अनुभव किया था तुम'ने? इतना सेंसेशन. इत'नी उत्तेजना कभी अनुभव की थी तुम'ने?"
"नही रे, सागर. कभी भी नही. जैसा तुम कर रहे हो वैसा तुम्हारे जीजू ने कभी नही किया. मेरी शादी शुदा जिंदगी में क्या कमी है इसका मुझे आह'सास होने लगा है. अब प्लीज़!. ऐसे ही कर'ते रहो. जो तुम कर रहे थे, सागर. मेरे बदन में आग सी लग गई है."
"ओह ! येस. यस. दीदी! लेकिन तुम्हारी तरह मेरे भी बदन में आग लगी है इस'लिए हम दोनो को एक दूसरे की आग बुझानी पड़ेगी." ऐसा कह'कर में उठ गया और संगीता दीदी के बदन पर उलटा होकर झुक गया. उसके सर के दोनो बाजू में अप'ने घुट'ने रख दिए.
"दीदी. मुझे लग'ता है. तुम्हें क्या कर'ना चाहिए ये मुझे तुम्हें बताने की ज़रूरत नही है." ऐसा कह'कर में नीचे झुक गया और में मेरा मूँ'ह संगीता दीदी की चूत पर लाया. उसी सम'य मेरा आध खड़ा लंड संगीता दीदी के मूँ'ह पर हिल'ने लगा. जैसे ही मेने उसकी चूत'पर मूँ'ह रखा वैसे ही उसकी समझ में आया के क्या कर'ना है. उस'ने मेरा लंड हाथ से पकड़ लिया और अप'ने मूँ'ह में भर लिया. इस तरह से हम भाई-बाहें एक दूसरे को चाट'ने लगे. में मेरी बहन की चूत को चाट रहा था और उसी सम'य वो अप'ने भाई का लंड चूस रही थी. धीरे धीरे मेरा लंड और कड़क होने लगा. उसके नाज़ुक और मुलायम मूँ'ह के जादू से मेरा लंड फैलता गया.
मेने संगीता दीदी के चुत्तऱ के नीचे से हाथ आगे ले लिए और मेने उसकी चूत को फैलाया. फिर में उसकी चूत के दोनो पटल अंदर से चाट'ने लगा. वैसे कर'ने के लिए मुझे थोड़ा और आगे झुकना पड़ा जिस'से संगीता दीदी को मेरा लंड अप'ने मूँ'ह से निकालना पड़ा. तो फिर वो मेरा लंड मेरे पेट की तरफ दबाते हुए मेरी गोटीया चाट'ने लगी. में और नीचे हो गया जिस'से उसकी जीभ मेरे गोटीयो के नीचे, मेरी गान्ड के छेद को लग गई.
संगीता दीदी की समझ में ये भी आया और वो बीना जीझक मेरी गोटीयो से लेकर मेरे गान्ड के छेद तक उप्पर नीचे जीभ घुमाने लगी. जब उसकी जीभ मेरे गान्ड के छेद को छुती थी तब में उत्तेजना से पागल हो जाता था. गोटीया और गान्ड के छेद का ये भाग काफ़ी नाज़ुक और संवेदनशील होता है और इस भाग'पर अगर कोई जीभ फिरा दे तो उत्तेजना से कभी भी आद'मी झाड़ सकता है. में भी उस उत्तेजना का अनुभव कर रहा था और बड़ी मुश्कील से अप'ने आप को झाड़'ने से बचा रहा था.
नीचे में संगीता दीदी की चूत का पूरा ज़ायक़ा ले रहा था. मेने अब मेरी बीचवाली उंगली उसकी चूत में डाली और उसे अंदर बाहर कर'ने लगा. मेरे उंगली कर'ने से वो और भी बेताब होने लगी. अब वो अप'नी कमर हिला के मेरे उंगली से चुदवा'ने लगी. में उस'का चूत दाना भी चाट रहा था और उसकी चूत में उंगली भी अंदर बाहर कर रहा था. दीदी अब अपना सर इधर उधर कर के छटपटा'ने लगी. बीच बीच में वो मेरा लंड मूँ'ह में भर लेती थी और चूस'ती थी तो कभी वो मेरी गोटीया चाट'ती थी. मेरे दोनो चुत्तऱ उस'ने ज़ोर से पकड़ लिए थे और बीच बीच में वो मेरी जांघों पर हाथ घुमाती थी.
संगीता दीदी की सह'ने की शक्ती ख़त्म हो गई! उसकी सिस'कीया. चींखे. बढ़'ती गई!!
"ओह ! सागर. आहा. उूउउइइ. अहहाहा.. सागर. अब रहा नही जाता रे.. कुच्छ करो ना. 'वहाँ' नीचे आग लगी है रे. प्लीज़. कुच्छ तो करो.. अब सब्र नही होता.. उऊहहा.. अहहा. सागर.." मुझे मालूम था संगीता दीदी को क्या चाहिए. लेकिन मुझे उसके मूँ'ह से सुनना था इस'लिए मेने उसे पुछा,
"दीदी! जो कह'ना है वो साफ साफ कहो. तुम्हें क्या लग'ता है के मुझे क्या कर'ना चाहिए?. बीना जीझक साफ साफ कह दो के में क्या करू??.."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.