24-12-2021, 03:15 PM
अब ये कौन सा अलग सुख है, सागर??"
"धीरे से प्यार!!. में तुम्हें धीरे से प्यार करता हूँ, दीदी!"
"अब ये क्या है?. ज़रूर उस किताब में से कुच्छ पढ़ा होगा. है ना सागर?"
"हाँ !. लेकिन पूरी तरह से किताबी बातें नही. उस में कुच्छ मेरी भी कल्पनाएं है."
"चल हट. में नही करूँगी अभी कुच्छ." ऐसा कह'ते संगीता दीदी घूम गई और मेरी तरफ पीठ कर के अप'ने पेट पर लेट गई.
"तुम कुच्छ मत करो, दीदी.. तुम सिर्फ़ पड़ी रहो. जो भी कर'ना है वो में करूँगा." उसकी पीठ मेरी तरफ होने की वजह से मेने उसके भरे हुए चुत्तऱ हिलाते हिलाते उसे कहा. संगीता दीदी कुच्छ ना बोली और वैसे ही पड़ी रही में फिर उसके बाजू में लेट गया और उसके नंगे बदन को यहाँ वहाँ हाथ लगा के उसे कह'ने लगा,
"बोला ना, दीदी. करू ना में तुम्हें धीरे से प्यार?. तुम्हें पसंद आएगा जो में करूँगा. और मुझे यकीन है जीजू ने तुम्हें वैसे कभी किया नही होगा."
"करो बाबा. करो. जो भी कर'ना है कर." आख़िर उस'ने कहा,
"ओह थॅंक यू, दीदी!" मेने झट से उसे कहा. संगीता दीदी पेट के बल सोई थी और उस'का मूँ'ह उसके दाएँ हाथ की तरफ था में उसके बाएँ हाथ की तरफ लेटा हुआ था में उठा और घुट'ने पर बैठ गया फिर मेरा दायां हाथ उसके दाएँ कंधे के नज़दीक और बाया हाथ उसके बाएँ कंधे के नज़दीक रख'कर में उसके उप्पर झुक गया. धीरे से मेरा मूँ'ह में उसके कान के नज़दीक ले गया उसे मेरी साँसों का अह'सास हो गया और उस'ने अप'नी आँखें खोल के मेरी तरफ देखा फिर हंस'ते हंस'ते वापस उस'ने अप'नी आँखें बंद कर ली.
मेने धीरे से मेरे होठ संगीता दीदी के कान के छोर पर रख दिए और उसे होंठो में पकड़ लिया. फिर में जीभ निकाल'कर उसके कान का छोर चाट'ने लगा और उस'से खेल'ने लगा बीच बीच में में उसे दाँतों में पकड़'कर धीरे से काटता था. थोड़ी देर तो संगीता दीदी शांत थी लेकिन धीरे धीरे उस'ने अपना सर हिलाना चालू किया. शायद उसे गुदगूदी हो रही थी या तो वो उत्तेजीत हो रही थी लेकिन उसकी तरफ से मुझे साथ मिला'ने लगी.
"दीदी! तुम बहुत अच्छी हो. में तुम्हें बहुत पसंद करता हू." मेने धीरे से उसके कान'पर जीभ घुमाते हुए कहा
"में भी तुम्हें बहुत पसंद कर'ती हूँ, सागर!" उस'ने बंद आँखों से कहा
"में बहुत लकी हूँ, दीदी. जो मुझे तुम्हारे जैसी बहन मिली है. जो भाई के लिए कुच्छ भी कर'ती है."
"हां. और में भी बड़ी भाग्यशाली हूँ, सागर. जो मुझे तुम्हारे जैसा भाई मिला है. जो मुझे नंगा करता है. मुझे लंड चूस'ने को कहता है. और भी क्या क्या मेरे साथ करता है." उस'ने शरारत से कहा.
"हां. लेकिन तुम्हें भी अच्छा लग'ता है जो में करता हूँ. है ना, दीदी??"
"वो तो है.. इस'लिए में तुम्हें ये सब कुच्छ कर'ने देती हूँ."
"ओह ! दीदी! आई लव यू.. आय लव यू वेरी मच!! " ऐसा कह'कर मेने संगीता दीदी के मुलायम गालोपर अप'ने होठ रख दिए और में उसके गालों को चूम'ने लगा. उस'को चूम'ते चूम'ते में धीरे से नीचे हुआ और उसके बदन पर लेट गया. में उसके बदन पर लेटा ज़रूर था लेकिन अब भी मेरा ज़्यादातर भार मेरे दोनो हाथों पर ही था. उसके गालों को चूम'ते चूम'ते मेने मेरे होंठ और नीचे लिए और उसके होठों को ज़ोर से चूम'ने लगा कभी में उसके होंठ ज़ोर से मेरे होठों में पकड़ता तो कभी में उन्हे हलके से काट'ता तो कभी उस'पर अप'नी जीभ घुमाता था.
"धीरे से प्यार!!. में तुम्हें धीरे से प्यार करता हूँ, दीदी!"
"अब ये क्या है?. ज़रूर उस किताब में से कुच्छ पढ़ा होगा. है ना सागर?"
"हाँ !. लेकिन पूरी तरह से किताबी बातें नही. उस में कुच्छ मेरी भी कल्पनाएं है."
"चल हट. में नही करूँगी अभी कुच्छ." ऐसा कह'ते संगीता दीदी घूम गई और मेरी तरफ पीठ कर के अप'ने पेट पर लेट गई.
"तुम कुच्छ मत करो, दीदी.. तुम सिर्फ़ पड़ी रहो. जो भी कर'ना है वो में करूँगा." उसकी पीठ मेरी तरफ होने की वजह से मेने उसके भरे हुए चुत्तऱ हिलाते हिलाते उसे कहा. संगीता दीदी कुच्छ ना बोली और वैसे ही पड़ी रही में फिर उसके बाजू में लेट गया और उसके नंगे बदन को यहाँ वहाँ हाथ लगा के उसे कह'ने लगा,
"बोला ना, दीदी. करू ना में तुम्हें धीरे से प्यार?. तुम्हें पसंद आएगा जो में करूँगा. और मुझे यकीन है जीजू ने तुम्हें वैसे कभी किया नही होगा."
"करो बाबा. करो. जो भी कर'ना है कर." आख़िर उस'ने कहा,
"ओह थॅंक यू, दीदी!" मेने झट से उसे कहा. संगीता दीदी पेट के बल सोई थी और उस'का मूँ'ह उसके दाएँ हाथ की तरफ था में उसके बाएँ हाथ की तरफ लेटा हुआ था में उठा और घुट'ने पर बैठ गया फिर मेरा दायां हाथ उसके दाएँ कंधे के नज़दीक और बाया हाथ उसके बाएँ कंधे के नज़दीक रख'कर में उसके उप्पर झुक गया. धीरे से मेरा मूँ'ह में उसके कान के नज़दीक ले गया उसे मेरी साँसों का अह'सास हो गया और उस'ने अप'नी आँखें खोल के मेरी तरफ देखा फिर हंस'ते हंस'ते वापस उस'ने अप'नी आँखें बंद कर ली.
मेने धीरे से मेरे होठ संगीता दीदी के कान के छोर पर रख दिए और उसे होंठो में पकड़ लिया. फिर में जीभ निकाल'कर उसके कान का छोर चाट'ने लगा और उस'से खेल'ने लगा बीच बीच में में उसे दाँतों में पकड़'कर धीरे से काटता था. थोड़ी देर तो संगीता दीदी शांत थी लेकिन धीरे धीरे उस'ने अपना सर हिलाना चालू किया. शायद उसे गुदगूदी हो रही थी या तो वो उत्तेजीत हो रही थी लेकिन उसकी तरफ से मुझे साथ मिला'ने लगी.
"दीदी! तुम बहुत अच्छी हो. में तुम्हें बहुत पसंद करता हू." मेने धीरे से उसके कान'पर जीभ घुमाते हुए कहा
"में भी तुम्हें बहुत पसंद कर'ती हूँ, सागर!" उस'ने बंद आँखों से कहा
"में बहुत लकी हूँ, दीदी. जो मुझे तुम्हारे जैसी बहन मिली है. जो भाई के लिए कुच्छ भी कर'ती है."
"हां. और में भी बड़ी भाग्यशाली हूँ, सागर. जो मुझे तुम्हारे जैसा भाई मिला है. जो मुझे नंगा करता है. मुझे लंड चूस'ने को कहता है. और भी क्या क्या मेरे साथ करता है." उस'ने शरारत से कहा.
"हां. लेकिन तुम्हें भी अच्छा लग'ता है जो में करता हूँ. है ना, दीदी??"
"वो तो है.. इस'लिए में तुम्हें ये सब कुच्छ कर'ने देती हूँ."
"ओह ! दीदी! आई लव यू.. आय लव यू वेरी मच!! " ऐसा कह'कर मेने संगीता दीदी के मुलायम गालोपर अप'ने होठ रख दिए और में उसके गालों को चूम'ने लगा. उस'को चूम'ते चूम'ते में धीरे से नीचे हुआ और उसके बदन पर लेट गया. में उसके बदन पर लेटा ज़रूर था लेकिन अब भी मेरा ज़्यादातर भार मेरे दोनो हाथों पर ही था. उसके गालों को चूम'ते चूम'ते मेने मेरे होंठ और नीचे लिए और उसके होठों को ज़ोर से चूम'ने लगा कभी में उसके होंठ ज़ोर से मेरे होठों में पकड़ता तो कभी में उन्हे हलके से काट'ता तो कभी उस'पर अप'नी जीभ घुमाता था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.