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Incest दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा
अचानक मेरे लंड से वीर्य की पिच'कारी छूट गई. उस सम'य मेरा लंड बराबर संगीता दीदी के गले में उतरा हुआ था इस'लिए वो पह'ली पिच'करी सीधा उसके गले में उतर गई होंगी. उस'को 'वो' अनुभाव हुआ इस'लिए वो अपना सर उप्पर कर'ने के लिए छटपटा'ने लगी. लेकिन मेरे अंदर जैसे शैतान जाग उठा था इस'लिए मेने उसे छोड़ा नही. हिच'कीया देते देते मेरा लंड मेरी बहन के मूँ'ह में झाड़'ने लगा. उसे मेरी पकड़ से छुट'कारा नही मिल रहा था इस'लिए मेरा पानी निगल'ने के सिवा उसके पास कोई चारा नही था. धीरे धीरे मेरे झाड़'ने की रफ़्तार कम होती गई. फिर मेने उस'का सर थोड़ा ढीला छोड़ दिया जिस'से वो ठीक तरह से साँस ले सके. लेकिन मेने उसे पूरी तरह से नही छोड़ा था. मेरे लंड से वीर्य की आखरी बूँद निकल'ने तक मेने उस'का सर मेरे लंड पर पकड़ के रखा था. आख़िर मेने उसे छोड़ दिया.

जैसे ही मेने संगीता दीदी को छोड़ा दिया वैसे ही उस'ने अपना सर उप्पर कर के ज़ोर से साँस ली. मूँ'ह पर हाथ रख'कर वो खांस'ने लगी. फिर वो वैसे ही उठ गई और दौड़'कर बाथरूम में गई. बाथरूम में उस'ने वश बेसीन का पानी चालू कर'ने की आवाज़ आई. वो अंदर खांस रही थी, मूँ'ह में पानी भर के उल'टीया कर रही थी. कुच्छ देर बाद वो शांत हो गई और बाद में बाहर आई.

यह मैं. मेरे वीर्य पतन की धुन में था. जब में झाड़ रहा था तब मेने आँखें बंद की थी इस'लिए उस सम'य संगीता दीदी की क्या हालत थी ये मेने देखा नही था. जब वो बाथरूम में खांस'ने लगी तब में होश में आया. में जब झाड़ा रहा था तब मेने ज़बरदस्ती संगीता दीदी का मूँ'ह मेरे लंड पर पकड़'कर जानवरों सी हरकत की थी. और अब मुझे मेरे उस जानवरना हरकत से शरमिंदगी अनुभव होने लगी. मुझे मालूम था अब संगीता दीदी गुस्सा हो जाएगी. उस'का गुस्सा कैसे निकाला जाए इस बारे में मैं सोचने लगा. वो बाथरूम से बाहर आई और बेड'पर मेरे नज़दीक आकर बैठ गई. उसके चह'रे पर कोई भाव नही थे.

"सॉरी दीदी!. मुझे होश ही नही रहा में पह'ली बार ऐसा अनुभव कर रहा था इस'लिए मुझ'से संभाला ना गया" मेने डरते डरते उसे कहा,

"ठीक है सागर. में समझ सक'ती हूँ के ये तुम्हारा पह'ला अनुभव था फिर भी तुम्हें थोड़ा तो मेरा ध्यान कर'ना चाहिए था मेरी तो जान अटक गई थी मेरे गले में." शांत स्वर में ऐसे कह'ते वो बेड'पर मेरे बाजू में लेट गई

"आइ आम एक्स्ट्रीमली सारी, दीदी!!" उस'का बोल'ने का ढंग गुस्सेवाला नही था ये जान'कर मेरी जान में जान आई और मेने आगे कहा,

"तुम बहुत अच्छी हो, दीदी!!. बड़े दिल से तुम'ने मेरी 'इच्छा' पूरी कर दी जो कोई भी बहन पूरी नही कर सक'ती और मेने उस'का ग़लत फ़ायदा उठाया तुम मेरा विरोध कर रही थी फिर भी मेने तुम्हें छोड़ा नही. नही, दीदी!. तुम मुझे सज़ा दो!. मेने ग़लत किया है और उस बात की मुझे सज़ा मिल'नी चाहिए!"

"अरे ठीक है रे, सागर!.. इस तरह शरमिंदा होने की ज़रूरत नही में गुस्सा वग़ैरा नही हूँ सिर्फ़ तुम मेरे मूँ'ह में झाड़ जाओगे इस बात के लिए में तैयार नही थी और इस'लिए में हैरान हो गई अगर तुम'ने मुझे पह'ले बताया होता तो में उस तरह से तैयार रह'ती" संगीता दीदी उलटा मुझे समझा रही थी.

"नही, दीदी!. मेरी वजह से तुम्हें तकलीफ़ हुई और तुम मुझे सज़ा नही दे रही हो तो फिर मुझे ही मेरी गल'ती का प्रायश्चित कर'ना चाहिए. में क्या करू??.. हां !.. में तुम्हें कुच्छ अलग सुख दे के अपना प्रायश्चित कर लेता हूँ."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: दीदी ने पूरी की भाई की इच्छा - by neerathemall - 24-12-2021, 03:13 PM



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