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Adultery मेरी बीवी की होली से बात बढ़ी आगे
#1
NOTE : ये स्टोरी मैंने बहुत साल पहले xossip में पढ़ा था आज इससे रिपोस्ट कर रहा हु सारा क्रेडिट सुथार को जाता है 

मेरी बीवी की होली से बात बढ़ी आगे-1


अब उस रात के बाद, या इस होली के बाद मेरा और सोनिया का सोचने का तरीका बदल जायेगा. सुबह सोनिया का मुड अच्छा दिख रहा था. उसने वाही रात वाली स्किर्ट और टॉप पहनी थी और हलके हलके एक गाना गुन गुना रही थी. मैं सोच रहा था यार काश जो रात को हुआ वो मेरे सामने होता! फिर ये भी सोचा की सामने होता तो मैं क्या करता?
इतने में सोनिया चाय लेकर आ गयी.

‘ आप भी न कल शाम से बेहोश हो तो अब उठे हो. लो चाय पियो.’ वो अपनी चाय भी लेके मेरे ही साथ बेड पर बैठ गयी. उसके टॉप में से मम्मों को आधा हिस्सा दिख रहा था. मम्मों पर हलकी सा गुलाबीपन रात की बात बता रहा था. मैंने कल की होली की बात को फिर ताज़ा करना चाहा.
‘कैसी लगी होली.’ मैंने हलके में पूछा.

‘तुमने तो मुझे फंसा दिया. अरे घर में कोई आये तो पहले से बताना चाहिए न ! अचानक तीन लोग आ गए और तुम भी न जब पी लेते हो तो होश नहीं रहता.’ सोनिया के सादगी भरे जवाब से मैं दंग था. जैसे कुछ हुआ ही नहीं ! मैंने थोड़ा और कुरेदने की सोची.
‘क्यों कुछ खास बात हुई क्या? कुछ परेशान तो नहीं किया उन लोगों ने ?’
सोनिया अभी भी स्वाभाविक ही बनी रही. ‘नहीं पर मेजबानी तो मेरा फ़र्ज़ है न. वैसे तो तीनों में बहुत अपनापन था. लगा जैसे घर के ही लोग हों. कभी कभी आने से अच्छा ही लगता है’

मन तो किया की बोलूं की हाँ अपनापन तो है. अपनापन के बिना क्या कोई ऐसी ठुकाई करवाता है जैसी तुमने करवाई. पर बोल नहीं सकता था. अभी सारे काण्ड से मैं अनजान बना हुआ था. हालाँकि मुझे इस खेल में मज़ा आ रहा था पर ये बात मैं न सोनिया पर न ही उन तीनों पर जाहिर कर सकता था. सोनिया को अगर पता लग जाय की मैं सब जानता हूँ तो शायद बात आगे ही न बढे. और वो तीनों ये जान कर की मैं रजामंद हूँ मेरे घर में ही घुसे रहेंगें. तो स्थिति बहुत नाज़ुक थी और मुझे आगे सूत्रधार बनना था. पर सूत्रधार बनना इतना आसान कहाँ है. माध्यम वर्ग में सेक्स पर बातचीत होती ही नहीं. आग सोनिया को भी लगी है और एतराज़ मुझे भी नहीं है. पर पर्दा दोनों के बीच है. ये पर्दा मुझे बहुत धीरे धीरे उठाना है, ऐसे की सोनिया को जब तक पता चले तब तक वो वापस जाने की स्थिति में न हो. और हाँ मेरी भी इज्जत बनी रहे.

‘तुम्हीं कहतीं थीं की हमारे यहाँ कोई आता नहीं. चलो होली के बहाने कुछ सम्बन्ध तो बने.’
‘वो तो है. इतने बड़े शहर में कोई तो हो जो साथ खडा हो सके.’
‘खडा हो सके या खड़ा कर के पेल सके.’ मन में मैंने सोचा पर बोला कुछ नहीं.
‘ये सकर्ट तुम पर बहुत जंच रहा है. लगता है अभी कोलेज से निकली हो.’ मैंने छेड़ा.
‘हाँ तुम्हारी ही मेहेरबानी है. दाल न गिराते तो मुझे ये न पहना पड़ता. वो तो अच्छा था की सुबह सड़ी पहन रखी थी.’
‘क्यों सकर्ट में क्या बुराई है?’ मैं अनजान बनकर बोला.
‘हाँ होली और सकर्ट में! कुछ भी बचाना मुश्किल हो जाए.’
क्यों मुझे तो स्किर्ट और साडी में कोई फर्क नहीं दिखता.
‘हाँ कभी औरत की तरह होली को झेलो तो पता चले. होली के दिन सारे मर्द शेर हो जाते हैं.’ सोनिया ने फिर कहा.
‘क्यों कुछ किया क्या इन तीनों ने.’ मैंने कुरेदना जारी रखा.
नहीं यार पर खुद तो बचना पड़ता ही है. स्किर्ट में तो कहीं भी हाथ रोकना मुश्किल है.
पर साडी में भी तो इन्होने खूब रंगा तुम्हें.
खूब कहाँ वो तो घर छोटा था नहीं तो हाथ भी न लगती.

वैसे अच्छा लगता है तुम्हें स्किर्ट में देख कर. मैंने शोर्ट्स में अकड रहे लंड को संभालते हुए कहा.
हाँ वो तो है. अच्छा है गाज़ियाबाद में हैं. वरना तुम्हारी मम्मी तो साडी के सिवा कुछ पहनने नहीं देतीं.
हम जब से गाज़ियाबाद आये हैं तबसे सोनिया ज्यादातर सलवार सूट पहनती है. घर में कोई आने जाने वाला नहीं सो ज्यादातर पतले कुछ पारदर्शी से कपडे होते हैं उसके.
‘मैंने तो कभी तुम्हें मना नहीं किया. जो मन करे पहनो. दरअसल मोडर्न कपडे औरत का कोंफिडेन्स बढ़ाते ही हैं.’ मैं धीरे धीरे सोनिया को लाइन पर ला रहा था.
‘और मोडर्न कपडे आरामदेह भी होते हैं.’ सोनिया ने कुछ सोच कर बोला. ‘पर ऐसे स्किर्ट में तुम्हारे दोस्तोंं के सामने; अच्छा लगेगा?’
‘अरे क्यों नहीं. अब तो गर्मियाँ शुरू हो रहीं हैं. तुम तो शोर्ट्स भी पहन सकती हो. ये बड़ा शहर है यहाँ किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता.’ मैं उठा और अलमारी से अपनी एक टाईट जींस शोर्ट्स निकाल कर सओनिया की तरफ उछल दी. ‘लो आज इसे ट्राई करो.’

‘पर तुम्हारे दोस्तों के सामने…’ मैं समझ रहा था ये सोनिया का झिझकने का नाटक था. वो चाह रही थी की सब ऐसे हो जैसे मैंने उसे मजबूर किया.
‘अरे अभी ट्राई करो. अच्छा न लगे तो बदल लेना.’
सोनिया उठने लगी. ‘ठीक है. नहा कर इसे ही पहनती हूँ. देखें.’
इतने में मेरा फोन बज गया. सुबह नौ बज रहे थे. सुन्दर का फोन था.
इतने में मेरा फोन बज गया. सुबह नौ बज रहे थे. सुन्दर का फोन था. मैं समझ गया की अब तक फैसल ने कहानी सूना दी होगी. सुन्दर का फोन बात आगे बढ़ाने के लिए है.
‘हैलो’ मैंने फोन उठया
सुन्दर – और भाई गुड मोर्निंग. उठ गए?
में – हाँ भाई अभी कुछ देर पहले उठा. तुम सुनाओ
सुन्दर – अरे मेरा तो थकान के मारे बुरे हाल हैं. पर मज़ा बहुत आया अबकी होली में. भाभी का स्वाभाव बड़ा मिलनसार है. शुक्रिया कहना भाभी से.
में – अरे तुम खुद ही कह दो.
मैंने जान कर छेड़ने के लिए ये शरारत की. फोन सोनिया को देते समय फोन का वोल्यूम भी बढ़ा दिया. ‘लो सुन्दर कुछ कह रहा है.’
सोनिया सामने बैठी थी. सो उसे मेरे सामने ही बात करनी पडी.
सोनिया – हैलो सुन्दर भाईसाहब कैसे हैं?
सुन्दर – अरे भाभी कल की होली के बाद भी तुम मुझे भाई कह रही हो.
मुझे सुन्दर की बात सुनाइ दे रही थी पर मैंने ज़ाहिर नहीं किया. सोनिया को भी लगा की मैं नहीं सुन पा राहा हूँ
सुन्दर की बात जरी थी – मेरा तो अभी भी खड़ा है. कब मिलेगा आपकी सेवा का मौका
सोनिया – कौनसी सेवा
सुन्दर – रात भर फैसल से चुदी है और मुझ से पूछती है कैसी सेवा
सोनिया की हालत खराब थी. सुन्दर उस से खुल कर बोल रहा था. उसे सुनना ही नहीं गोलमोल जवाब भी देना पड़ रहा था.
सोनिया – अरे नहीं वो कल रात ज्यादा हो गयी थी इन लोगों को
सुन्दर – तुम्हें तो लंड मिला न? फैसल को तो पुरे मजे दे दिए. अब कब आओगी मेरे नीचे. बहुत आराम से चोदुंगा मेरी जान.
सोनिया – वो तो ऐसे ही होली थी न. वैसे शुरुआत तो आपने ही की.
सुन्दर – हाँ शुरुआत तो मैंने की पर तुझे पूरा कहाँ चोद पाया. आज पूरा चोदने देगी?
सोनिया का चेहरा देखने वाला था. अब बोले भी क्या. ‘नहीं नहीं कल तो होली थी. थनकान अभी तक नहीं मिटी है. आज तो आराम करने का मूड है.’
सुन्दर – तो शाम को आ जाता हूँ आराम देने. जान मज़ा आएगा.
सोनिया –वैसे तो आपका ही घर है जब चाहे आइये पर आप तीनों को साथ कहाँ टाइम मिलेगा
सुन्दर – नहीं जान मैं ही आउंगा. साला मेरा हिस्सा कल का बकाया है न.
सोनिया –आइये आज शाम होली मिलने. डिनर हमारे साथ ही कीजियेगा. पर होली को खत्म मानियेगा. कहकर सोनिया थोड़ा मुस्कुराने लगी.
सुन्दर – हाँ जान अब तो बिना होली के ठोकुंगा. जब फैसल ने चोदा तो कैसा लगा?
सोनिया – अरे वो तो बस यूँही. पर अच्छा तो लगा. पर आप लोग ने कोई कसर नहीं छोड़ी होली में.
सुन्दर – अरे भाभी वो तो बाथरूम में ही खेल पूरा हो जाता. वो तुम्हारे मिलने वाले नहीं आते तो.
सोनिया – ऐसा नहीं है. वो तो होली थी और आप लोग इनके दोस्त हैं.
‘दोस्त तो अभी भी हैं. तो आज तो इनाम पक्का?’ सुन्दर ढील छोड़ने वाला नहीं था.
‘आइये देखते हैं.’ सोनिया ने आखिर बात किनारे लगा ही दी. ‘मिलते हैं ७ बजे. बाय’ सोनिया ने बाय कहा और फोन काट दिया.
सोनिया ने मुझे बताया की सुन्दर शाम को आने की कह रहा था सो मैंने बुला लिया.

‘ठीक है’ मैंने खास ध्यान दिए बिना कहा. जैसे मैंने कुछ सूना ही नहीं. पर मन में सोच रहा था की क्या देखते हैं? सोनिया का क्या मतलब था?
यहाँ एक बात बता दूं की मेरा काम फिल्ड सेल्स मैनेजर का है. बस कोई ऑफिस तो है नहीं. अलग अलग दुकानों पर आर्डर लेना और पेमेंट कोल्लेक्ट करना होता है. काम अच्छा चल रहां है सो ज्यादा काम फोन पर हो जाता है. चाहूँ तो घर पर काफी समय दे सकता हूँ. अब मुझे यही करना था. सूत्रधार जो हूँ अपनी बीबी की चुदाई का.
‘तो तुम तैयार होकर बाजार से सामान ले आओ.’ सोनिया सहजता से बोले जा रही थी.
मैं उसकी सहजता देख सोच रहा था की कल रात पहली बार किसी और ने सोनिया को ठोका था या मैं पहले भी चूतिया बन चुका हूँ!
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मेरी बीवी की होली से बात बढ़ी आगे - by ShakenNotStirred - 05-05-2019, 12:06 PM



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