05-12-2021, 05:55 PM
सपने में
सपने में जम्प कट तो बहुत कॉमन है , शाम हो गयी थी , गुड्डी बेला के साथ घर वापस
" अरे ज़रा छिनरो क बुरिया अउर गंडिया त देखावा। " और बेला ने स्कर्ट उठा दी ,
आगे पीछे दोनों ओर से सरका टपक रहा था।
खुश होके शीला भाभी ने बेला से इशारे में पूछा कितने ,
बेला ,गुड्डी के पीछे खड़ी थी ,वही से दोनों हाथ की उंगलिया फैला के उसने इशारा किया ,दस।
"दस बार ?" शीला भाभी ने बेला से सवाल दागा।
" नाही भौजी , हमार ननद है ,दस बार में का होता इसका , दस मरद , और सबने अगवाड़े पिछवाड़े दोनों का मजा लिया ,अब देखिये कल ई दर्जन डंकायेगी। आज तो खाली भरौटी , अहिरौटी उहि में , कल ले जाउंगी इस छिनरो को पठान टोला ,आधे दर्जन से ऊपर तो उन्ही ,... "
हँसते हुए बेला बोली।
तबतक आँगन में बंधा शेरू , दुम हिलाते हुए गुड्डी के पैर चाटने लगा।
शेरू ,मम्मी का फेवरिट ग्रेट डेन। मम्मी उसे जर्मनी से ले आयी थीं ,खूब बड़ा , हाइट साढ़े तीन फिट से कुछ ज्यादा ही रही होगी ,वजन भी ६० किलो के आस पासएकदम काला देखने में एकदम खूंख्वार और ताकतवर , लोग देख के डर जाते थे ,पर मम्मी का एकदम चमचा। मेरी बात तो मम्मी से भी ज्यादा मानता था और साथ में शीला भाभी और बेला की जो उसकी देखरेख करती। बेला से तो तो उसकी पक्की दोस्ती थी।
लेकिन शेरू में सबसे ख़ास बात थी वो थी उसका 'वो ' खूब बड़ा ,मोटा ९ इंच का। और सबसे खतनाक थी उसकी गाँठ ,जब वो एक बार चढ़ता था तो बस दस बारह मिनट के अंदर उसकी 'गाँठ' बंध जाती थी और वो भी खूब बड़ी ,क्रिकेट के बाल की साइज की चार इंच ज्यादा घण्टे चालीस मिनट , हाई क्लास ब्रीडिंग के लिए कभीकभी मम्मी उसका इस्तेमाल करती थीं।
लेकिन जिस कुतिया के ऊपर शेरू चढ़ता था ,उस बिचारी की ऐसी की तैसी हो जाती थी , शेरू का वेट , फिर जिस ताकत से वो धक्के मारता था और सबसे बढ़के उसकी गाँठ , इत्ती मोटी कड़ी इतने देर तक रहती थी , और इस बीच वो बिचारी कुतिया को घिर्रा घिर्रा कर ,...
और ये सारा काम कराती थी गुलबिया ,हमारी नाउन की बहू ,और हम सबकी सबसे जबरदंग भौजाई , उमर में मुझसे दो चार साल ही बड़ी होगी। सारी ननदों की ऐसी की तैसी करके रखती थी और वो गुलबिया , गुड्डी को देखते हुए बोली ,
( शेरू ,हमारा ग्रेट डेन ,गुड्डी के पैर चाटता चाटता उसकी रेशमी जाँघों तक पहुँच गया था )
" अरे अबहीं एह घर क एक मरद तो बचल बा न इ शेरुआ। "
और फिर गुलबिया अपनी स्टाइल में चालू हो गयी , गुड्डी से वो तो उसके ननद की ननद थी इसलिए उसकी रगड़ाई करना तो उसका हक बनता था ,और अब वो गुड्डी के पीछे पड़ गयी। गुड्डी से बोली ,
" अरे ऐसी चुम्मा चाटी ई शेरुआ कर रहा है ,एकबार एकर घोंट के देखो , कुल मरदन का हथियार भुलाय जाओगी। देखा देखा तोहें देख के ओकर ,... "
और सच में शेरू का शिश्न उसकी शीथ से बाहर निकलना शुरू हो गया था और वो उसके सेक्सुअल अराउजल की पहली निशानी थी।
गुलबिया चालु थी गुड्डी से ,
" अरे घबड़ा जिन पहले तो चाट चूट के तोहार बुरिया इतना गरम कर देगा की तू खुदे , ... अब दर्द तो होगा ही लेकिन जब पहली बार फड़वाई होगी ,गांड मरवाई होगी ताबों दरद हुआ होगा बस तानी हिम्मत करा तो एक नया मजा , और ओकरे बाद जउन गाँठ बनी तोहार बुरिया में न तो बस अइसन मजा कबो सोच नहीं सकती। "
और बेला जो मुझसे छोटी थी गुड्डी की हमउम्र , लेकिन गुलबिया की असली ननद ,वो चालू हो गयी ,
" अरे गुलबिया भौजी , इनसे पूछने की का जरूररत ई तो आयी ही चुदवाने हैं , अरे जैसे आप आँगन में लगे चुल्ले में कुतिया को बाँध देती हो बस वैसे निहुरा के इहौ छिनरो को बाँध दा , फिर बाकी काम तो शेरुआ करी। "
शीला भाभी गुलबिया और बेला की बात सुन सुन के मुस्करा के कुछ सोच रही थी ,लगता है उनके मन में कुछ पक रहा था। कभी वो गुड्डी को देखतीं तो कभी शेरू को।
और उन्होंने बेला को कुछ इशारा किया , बेला खुश हो के मुस्कराते घर में गयी और वहां से कुछ लाके शेरू के तसले में ,
खींच कर शेरू का मुंह उसने तसले में कर दिया , और शेरू लपड़ लपड़
तबतक बेला ने एक देसी दारु की बोतल पूरी की पूरी उसके तसले में खाली कर दी , घल घल , घल घल
( ये लत शेरू को मम्मी ने ही लगाई थी , आधी में ही वो एकदम मस्ता जाता था और आज तो बेला ने पूरी की पूरी )
और फिर मेरी सांस ऊपर की ऊपर ,नीचे की नीचे बेला ने एक पुड़िया खोली और शेरू के तसले में डाल दी।
ये तो वो दवा थी जो शेरू को तब दी जाती थी जिस दिन उसे एक ही दिन में ६-७ बिचेज को ब्रीड करना होता था। इसके खाने के बाद तो दिन भर चढ़ा रहता था।
बेला और गुलबिया भौजी ने एक दूसरे को आँखो में देखा, मुस्करायीं और बिजली की तेजी से ,
गुलबिया ने झपट कर कच्चे कीचड़ हो रहे आँगन में गुड्डी को निहुरा दिया। पूरी ताकत से , गुलबिया भौजी की पकड़ से एक से एक खेली खायी ४ -४ बच्चों की माँ ,ननदें नहीं छूट पाती थीं ये तो नयी बछेड़ी थी )
गुड्डी छटपटा रही थी ,,छुड़ाने की भरपूर कोशिश कर रही थी पर गुलबिया भौजी ने एकदम गर्मायी कुतिया की तरह उसे निहुरा रखा था।
साथ साथ बेला ने शेरू के गले में बंधा चोकर और चेन झट से खोल दिया और गुड्डी के गले में , और अब मेरी ननदिया अगर जरा भी छुड़ाने की कोशिश करती तो बस चोकर उसका गला चोक करदेता।
गुलबिया ने वो चेन आँगन के फर्श पर लगे एक चुल्ले में बांध दी , अब गुड्डी लाख कोशिश करे ,...
लेकिन गुलबिया ने तबतक एक झटके में अपनी दो ऊँगली एक साथ गुड्डी की बुर में ठेल दी घचाक जड़ तक और थोड़ी देर तक गोल गोल घुमाने के बाद जो निकाला तो सफ़ेद सफ़ेद थक्केदार वीर्य से लथपथ ,
" अरे ससुरी इतना मलाई पहलवे से घोंटी है तो अइसन कीचड़ में लथपथ चूत चोदे में न तो हमरे शेरू क मजा आयी और न एह रंडी छिनार को। सट्ट घोंट लेगी। पहले इसकी बिलिया सूखी करो फिर , ... "
और गुलबिया भौजी ने अपना आँचल ऊँगली में लपेट कर सीधे गुड्डी की बुर में , गोल गोल रगड़ रगड़ कर ,सारी ,मलाई बाहरऔर बेला यही काम गुड्डी की गांड में एक तौलिये से कर रही थी। थोड़ी देर में बुर और गांड एकदम सूखी।
शेरू का तसला आलमोस्ट खाली हो गया था , और वो निहुरी हुयी गुड्डी को निहार रहा था , उसके लिए तो वो गरमाई कुतिया ही थी।
शेरू का शिश्न अब पूरी तरह तन्नाया और लिपस्टिक की तरह बाहर
मतलब अब वो भी गरमा गया था चोदने के लिए एकदम तैयार ,
बेला ने तभी एक मुट्ठी देसी दारु शेरू के तसले से ही निकाल के गुड्डी की सूखी चूत के मुहाने पे लपेट दी और गुलबिया भौजी ने अपनी दो ऊँगली झटाक से एक बार फिर गुड्डी की चूत में और अबकी वो बजाय सूखी करने के मेरी ननद को गीली करने पे जुटी थी।
मेरे सहित गाँव की हर ननद को गुलबिया भौजी की उँगलियों का जादू मालुम था तो बिचारी ये नयी बछेड़ी कैसे बचती ,
हहचक हहचक सटाक सटाक
मिनट भर में ही गुड्डी सिसकने लगी ,बेला ने क्लिट और निपल मसलने का काम सम्हाला आखिर मेरी छोटी बहन थी तो गुड्डी उसकी भी तो ननद हुयी न ,
दुहरे अटैक का असर तुरंत हुआ ,गुड्डी की गुलाबी कसी किशोर चूत एक तार की गाढ़ी चाशनी छोड़ने लगी।
उधर शेरा को भी महक मिल रही थी ,वो बार बार कुतिया की तरह निहुरी गुड्डी को देख रहा था
और गुड्डी भी चोरी चोरी चुपके चुपके उसके बित्ते भर से भी बड़े तन्नाए पगलाए लंड को देखने में मगन ,
लेकिन गुलबिया भौजी से किसी की चोरी छिपती है क्या , खास तौर से छिनार ननदों की.
"अरे बहुत तकम तककौवल होय गइल ,अब चोदम चुदऊवल क बारी हौ." उन्होंने गुड्डी को चिढ़ाया
सपने में जम्प कट तो बहुत कॉमन है , शाम हो गयी थी , गुड्डी बेला के साथ घर वापस
" अरे ज़रा छिनरो क बुरिया अउर गंडिया त देखावा। " और बेला ने स्कर्ट उठा दी ,
आगे पीछे दोनों ओर से सरका टपक रहा था।
खुश होके शीला भाभी ने बेला से इशारे में पूछा कितने ,
बेला ,गुड्डी के पीछे खड़ी थी ,वही से दोनों हाथ की उंगलिया फैला के उसने इशारा किया ,दस।
"दस बार ?" शीला भाभी ने बेला से सवाल दागा।
" नाही भौजी , हमार ननद है ,दस बार में का होता इसका , दस मरद , और सबने अगवाड़े पिछवाड़े दोनों का मजा लिया ,अब देखिये कल ई दर्जन डंकायेगी। आज तो खाली भरौटी , अहिरौटी उहि में , कल ले जाउंगी इस छिनरो को पठान टोला ,आधे दर्जन से ऊपर तो उन्ही ,... "
हँसते हुए बेला बोली।
तबतक आँगन में बंधा शेरू , दुम हिलाते हुए गुड्डी के पैर चाटने लगा।
शेरू ,मम्मी का फेवरिट ग्रेट डेन। मम्मी उसे जर्मनी से ले आयी थीं ,खूब बड़ा , हाइट साढ़े तीन फिट से कुछ ज्यादा ही रही होगी ,वजन भी ६० किलो के आस पासएकदम काला देखने में एकदम खूंख्वार और ताकतवर , लोग देख के डर जाते थे ,पर मम्मी का एकदम चमचा। मेरी बात तो मम्मी से भी ज्यादा मानता था और साथ में शीला भाभी और बेला की जो उसकी देखरेख करती। बेला से तो तो उसकी पक्की दोस्ती थी।
लेकिन शेरू में सबसे ख़ास बात थी वो थी उसका 'वो ' खूब बड़ा ,मोटा ९ इंच का। और सबसे खतनाक थी उसकी गाँठ ,जब वो एक बार चढ़ता था तो बस दस बारह मिनट के अंदर उसकी 'गाँठ' बंध जाती थी और वो भी खूब बड़ी ,क्रिकेट के बाल की साइज की चार इंच ज्यादा घण्टे चालीस मिनट , हाई क्लास ब्रीडिंग के लिए कभीकभी मम्मी उसका इस्तेमाल करती थीं।
लेकिन जिस कुतिया के ऊपर शेरू चढ़ता था ,उस बिचारी की ऐसी की तैसी हो जाती थी , शेरू का वेट , फिर जिस ताकत से वो धक्के मारता था और सबसे बढ़के उसकी गाँठ , इत्ती मोटी कड़ी इतने देर तक रहती थी , और इस बीच वो बिचारी कुतिया को घिर्रा घिर्रा कर ,...
और ये सारा काम कराती थी गुलबिया ,हमारी नाउन की बहू ,और हम सबकी सबसे जबरदंग भौजाई , उमर में मुझसे दो चार साल ही बड़ी होगी। सारी ननदों की ऐसी की तैसी करके रखती थी और वो गुलबिया , गुड्डी को देखते हुए बोली ,
( शेरू ,हमारा ग्रेट डेन ,गुड्डी के पैर चाटता चाटता उसकी रेशमी जाँघों तक पहुँच गया था )
" अरे अबहीं एह घर क एक मरद तो बचल बा न इ शेरुआ। "
और फिर गुलबिया अपनी स्टाइल में चालू हो गयी , गुड्डी से वो तो उसके ननद की ननद थी इसलिए उसकी रगड़ाई करना तो उसका हक बनता था ,और अब वो गुड्डी के पीछे पड़ गयी। गुड्डी से बोली ,
" अरे ऐसी चुम्मा चाटी ई शेरुआ कर रहा है ,एकबार एकर घोंट के देखो , कुल मरदन का हथियार भुलाय जाओगी। देखा देखा तोहें देख के ओकर ,... "
और सच में शेरू का शिश्न उसकी शीथ से बाहर निकलना शुरू हो गया था और वो उसके सेक्सुअल अराउजल की पहली निशानी थी।
गुलबिया चालु थी गुड्डी से ,
" अरे घबड़ा जिन पहले तो चाट चूट के तोहार बुरिया इतना गरम कर देगा की तू खुदे , ... अब दर्द तो होगा ही लेकिन जब पहली बार फड़वाई होगी ,गांड मरवाई होगी ताबों दरद हुआ होगा बस तानी हिम्मत करा तो एक नया मजा , और ओकरे बाद जउन गाँठ बनी तोहार बुरिया में न तो बस अइसन मजा कबो सोच नहीं सकती। "
और बेला जो मुझसे छोटी थी गुड्डी की हमउम्र , लेकिन गुलबिया की असली ननद ,वो चालू हो गयी ,
" अरे गुलबिया भौजी , इनसे पूछने की का जरूररत ई तो आयी ही चुदवाने हैं , अरे जैसे आप आँगन में लगे चुल्ले में कुतिया को बाँध देती हो बस वैसे निहुरा के इहौ छिनरो को बाँध दा , फिर बाकी काम तो शेरुआ करी। "
शीला भाभी गुलबिया और बेला की बात सुन सुन के मुस्करा के कुछ सोच रही थी ,लगता है उनके मन में कुछ पक रहा था। कभी वो गुड्डी को देखतीं तो कभी शेरू को।
और उन्होंने बेला को कुछ इशारा किया , बेला खुश हो के मुस्कराते घर में गयी और वहां से कुछ लाके शेरू के तसले में ,
खींच कर शेरू का मुंह उसने तसले में कर दिया , और शेरू लपड़ लपड़
तबतक बेला ने एक देसी दारु की बोतल पूरी की पूरी उसके तसले में खाली कर दी , घल घल , घल घल
( ये लत शेरू को मम्मी ने ही लगाई थी , आधी में ही वो एकदम मस्ता जाता था और आज तो बेला ने पूरी की पूरी )
और फिर मेरी सांस ऊपर की ऊपर ,नीचे की नीचे बेला ने एक पुड़िया खोली और शेरू के तसले में डाल दी।
ये तो वो दवा थी जो शेरू को तब दी जाती थी जिस दिन उसे एक ही दिन में ६-७ बिचेज को ब्रीड करना होता था। इसके खाने के बाद तो दिन भर चढ़ा रहता था।
बेला और गुलबिया भौजी ने एक दूसरे को आँखो में देखा, मुस्करायीं और बिजली की तेजी से ,
गुलबिया ने झपट कर कच्चे कीचड़ हो रहे आँगन में गुड्डी को निहुरा दिया। पूरी ताकत से , गुलबिया भौजी की पकड़ से एक से एक खेली खायी ४ -४ बच्चों की माँ ,ननदें नहीं छूट पाती थीं ये तो नयी बछेड़ी थी )
गुड्डी छटपटा रही थी ,,छुड़ाने की भरपूर कोशिश कर रही थी पर गुलबिया भौजी ने एकदम गर्मायी कुतिया की तरह उसे निहुरा रखा था।
साथ साथ बेला ने शेरू के गले में बंधा चोकर और चेन झट से खोल दिया और गुड्डी के गले में , और अब मेरी ननदिया अगर जरा भी छुड़ाने की कोशिश करती तो बस चोकर उसका गला चोक करदेता।
गुलबिया ने वो चेन आँगन के फर्श पर लगे एक चुल्ले में बांध दी , अब गुड्डी लाख कोशिश करे ,...
लेकिन गुलबिया ने तबतक एक झटके में अपनी दो ऊँगली एक साथ गुड्डी की बुर में ठेल दी घचाक जड़ तक और थोड़ी देर तक गोल गोल घुमाने के बाद जो निकाला तो सफ़ेद सफ़ेद थक्केदार वीर्य से लथपथ ,
" अरे ससुरी इतना मलाई पहलवे से घोंटी है तो अइसन कीचड़ में लथपथ चूत चोदे में न तो हमरे शेरू क मजा आयी और न एह रंडी छिनार को। सट्ट घोंट लेगी। पहले इसकी बिलिया सूखी करो फिर , ... "
और गुलबिया भौजी ने अपना आँचल ऊँगली में लपेट कर सीधे गुड्डी की बुर में , गोल गोल रगड़ रगड़ कर ,सारी ,मलाई बाहरऔर बेला यही काम गुड्डी की गांड में एक तौलिये से कर रही थी। थोड़ी देर में बुर और गांड एकदम सूखी।
शेरू का तसला आलमोस्ट खाली हो गया था , और वो निहुरी हुयी गुड्डी को निहार रहा था , उसके लिए तो वो गरमाई कुतिया ही थी।
शेरू का शिश्न अब पूरी तरह तन्नाया और लिपस्टिक की तरह बाहर
मतलब अब वो भी गरमा गया था चोदने के लिए एकदम तैयार ,
बेला ने तभी एक मुट्ठी देसी दारु शेरू के तसले से ही निकाल के गुड्डी की सूखी चूत के मुहाने पे लपेट दी और गुलबिया भौजी ने अपनी दो ऊँगली झटाक से एक बार फिर गुड्डी की चूत में और अबकी वो बजाय सूखी करने के मेरी ननद को गीली करने पे जुटी थी।
मेरे सहित गाँव की हर ननद को गुलबिया भौजी की उँगलियों का जादू मालुम था तो बिचारी ये नयी बछेड़ी कैसे बचती ,
हहचक हहचक सटाक सटाक
मिनट भर में ही गुड्डी सिसकने लगी ,बेला ने क्लिट और निपल मसलने का काम सम्हाला आखिर मेरी छोटी बहन थी तो गुड्डी उसकी भी तो ननद हुयी न ,
दुहरे अटैक का असर तुरंत हुआ ,गुड्डी की गुलाबी कसी किशोर चूत एक तार की गाढ़ी चाशनी छोड़ने लगी।
उधर शेरा को भी महक मिल रही थी ,वो बार बार कुतिया की तरह निहुरी गुड्डी को देख रहा था
और गुड्डी भी चोरी चोरी चुपके चुपके उसके बित्ते भर से भी बड़े तन्नाए पगलाए लंड को देखने में मगन ,
लेकिन गुलबिया भौजी से किसी की चोरी छिपती है क्या , खास तौर से छिनार ननदों की.
"अरे बहुत तकम तककौवल होय गइल ,अब चोदम चुदऊवल क बारी हौ." उन्होंने गुड्डी को चिढ़ाया