05-12-2021, 05:49 PM
(This post was last modified: 05-12-2021, 05:50 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
जोरू का गुलाम भाग १०१
बरसन लागी सवन बुँदियाँ
' हे प्रेमिका के पत्र प्रेमी के नाम अगर पढ़ चुके हो तो काम में लग जाओ। खुशी मनाओ की मैंने और मेरी जेठानी ने नाश्ता बना लिया है वरना वो भी तुझे ही , अब झट से चाय बनाओ और ये कबाब और हलवा लेकर टेबल पर और हम दोनों चलते है ,चलिए दी। '
और जेठानी का हाथ पकड़ के मैं बाहर आ गयी।
मौसम एकदम मस्ता रहा था।कहीं से गाने की धुन छन छन कर आ रही थी ,
बरसन लागी सवन बुँदियाँ
और आसमान में एक बार फिर बादल घिर आये थे।
हम लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे ही थे की हलकी हलकी रिमझिम रिमझिम शुरू हो गयी।
ब्रेकफास्ट के बाद दिन का सबसे महत्वपूर्ण फैसला , आज क्या बनेगा ,खाने में ,
और उसका क्रियान्वन मैं अपनी जेठानी और उनके देवर के ऊपर छोड़ कर अपने कमरे में ऊपर चली आयी ,और खिड़कियां खोल के बिस्तर पे लेट गयी , गुड्डी के आने में अभी एक घंटा बाकी था।
मैं अपनी उसी छोटी ननदिया के बारे में सोच रही थी ,अब तो एकदम पक्का हो गया था की वो हम लोगों के साथ चलेगी और कम से कम साल भर तो साथ में रहेगी ही। मैं और मम्मी तो हफ्ते दस दिन के बारे में सोच रहे थे यहाँ तो पूरा ,... और ये मम्मी की बातें तो टालते नहीं ,फिर अगर ये सावन भादों में जैसा मम्मी का प्लान था कुछ दिन के लिए हम लोगों के गाँव चली गयी फिर तो ,...
और वहां मम्मी की भी जरुरत नहीं थी , मेरे इनके ,... इनकी साली सलहजें ,मेरी भौजाइयां ,चाहे ये नखड़ीली सीधे से माने या जोर जबरदस्ती , कोई कसर छोड़ने वाली नहीं है उसके साथ , यही सब सोचते सोचते पता नहीं कब मेरी आँख लग गयी।
बाहर बारिश तेज हो गयी थी ,हलकी हलकी फुहार मेरे ऊपर आ रही थी।
बरसन लागी सवन बुँदियाँ
' हे प्रेमिका के पत्र प्रेमी के नाम अगर पढ़ चुके हो तो काम में लग जाओ। खुशी मनाओ की मैंने और मेरी जेठानी ने नाश्ता बना लिया है वरना वो भी तुझे ही , अब झट से चाय बनाओ और ये कबाब और हलवा लेकर टेबल पर और हम दोनों चलते है ,चलिए दी। '
और जेठानी का हाथ पकड़ के मैं बाहर आ गयी।
मौसम एकदम मस्ता रहा था।कहीं से गाने की धुन छन छन कर आ रही थी ,
बरसन लागी सवन बुँदियाँ
और आसमान में एक बार फिर बादल घिर आये थे।
हम लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे ही थे की हलकी हलकी रिमझिम रिमझिम शुरू हो गयी।
ब्रेकफास्ट के बाद दिन का सबसे महत्वपूर्ण फैसला , आज क्या बनेगा ,खाने में ,
और उसका क्रियान्वन मैं अपनी जेठानी और उनके देवर के ऊपर छोड़ कर अपने कमरे में ऊपर चली आयी ,और खिड़कियां खोल के बिस्तर पे लेट गयी , गुड्डी के आने में अभी एक घंटा बाकी था।
मैं अपनी उसी छोटी ननदिया के बारे में सोच रही थी ,अब तो एकदम पक्का हो गया था की वो हम लोगों के साथ चलेगी और कम से कम साल भर तो साथ में रहेगी ही। मैं और मम्मी तो हफ्ते दस दिन के बारे में सोच रहे थे यहाँ तो पूरा ,... और ये मम्मी की बातें तो टालते नहीं ,फिर अगर ये सावन भादों में जैसा मम्मी का प्लान था कुछ दिन के लिए हम लोगों के गाँव चली गयी फिर तो ,...
और वहां मम्मी की भी जरुरत नहीं थी , मेरे इनके ,... इनकी साली सलहजें ,मेरी भौजाइयां ,चाहे ये नखड़ीली सीधे से माने या जोर जबरदस्ती , कोई कसर छोड़ने वाली नहीं है उसके साथ , यही सब सोचते सोचते पता नहीं कब मेरी आँख लग गयी।
बाहर बारिश तेज हो गयी थी ,हलकी हलकी फुहार मेरे ऊपर आ रही थी।