01-05-2019, 04:18 PM
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घर पहुंचते ही वो बिचारे मम्मी के बड़े बड़े भारी सूटकेस लाद कर मम्मी के कमरे में ले गए , जिसे उन्होंने बहुत प्यार और मेहनत से तैयार किया था।
और हम दोनों बिस्तर पर धम्म से बिस्तर पर बैठ कर पंचायत करने लगे।
' ये देख , मम्मी बोलीं , उस बेवकूफ वेटर ने चाय गिरा दी। "
एक नन्हा मुन्ना सा चाय का बहुत हल्का सा दाग सफ़ेद शिफॉन की साडी पे दिख रहा था।
और वो सूटकेस पहुंचा के सामने अगले आदेश के इन्तजार में खड़े थे।
" मम्मी दे दीजिये न इन्हे धुल देंगे , जितनी देर होगी दाग और पक्का हो जाएगा। "
मैं बोलीं।
" लेकिन बहुत ध्यान से हैंडवाश करना होगा , बिना मसले रगड़े ,
और सिर्फ उतनी ही जगह पे। "
" कर देंगे मम्मी ये आप बस उतार के इन्हे दे दे दीजिये। "
मैंने फिर कहा और उनसे बोली ,
" सुन रहे हो न , उसके बाद सुखा के , आयरन कर के मॉम के वार्डरोंब में टांग देना। "
' जी ,जी , ... हाँ एकदम। " तुरंत वो बोले।
मम्मी भी , वहीँ वो खड़ी हो गईं और एक चक्कर काट के उन्होंने पहले तो पेटीकोट में घुसी साडी को निकाला , उनकी ओर पिछवाड़ा कर के , उनके बड़े भारी नितम्ब और बीच की दरार का दर्शन कराते , और फिर आगे होके अपने जोबन का दर्शन कराते झुक के ,
साडी वहीँ उतार के उन्हें पकड़ा दी।
अब वो सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में थी।
ब्लाउज भी जहाँ से उनके बड़े बड़े उरोज शुरू होते थे वहीँ से शुरू होता था , सफ़ेद ऑलमोस्ट पारभासी ,और खूब लो कट , स्लीवलेस और साइड से भी खूब गहरा कटा हुआ
, जिससे उनकी गोरी गोरी कांखे भी दिख रही थीं. मांसल पान के पत्ते ऐसा चिकना पेट ,खूब गहरी नाभी , और पेटीकोट का नाड़ा भी उन्होंने एकदम नीचे से बांधा था मुश्किल से कूल्हों के ऊपर , और दीर्घ नितम्बा तो वो थी हीं।
मम्मी के तने तने पहाड़ एकदम ब्लाउज को जैसे फाड़ रहे थे , सारा उभार कटाव और जब झुक के वो साडी देने लगीं उन्हें तो सारी गहराई , सब का दर्शन उन्होंने करा दिया।
बिचारे वो उनकी निगाहैं तो बस उन दोनों गोरी गोरी मांसल पहाड़ियों से चिपक के रह गईं ,
"हे क्या देख रहे हो जाके अपना काम करो ,"
मुश्किल से मैंने मुस्कराहट दबाते हुए उन्हें हड़काया।
लेकिन मम्मी भी न , उन्होंने एक अंगड़ाई ली दोनों हाथ ऊपर उठा के ,
अब उनकी गोरी गोरी कांखे , उसमें काले काले बालों की थोड़ी थोड़ी ग्रोथ ,और स्लीवलेस साइड से भी अंदर तक कटा था तो अच्छा खास जोबन दर्शन हो गया ,
जब वो मुड़े तो बस लुढ़कते बचे। खूंटा उनका तन गया था। जैसे तैसे साड़ी लेकर वो अंदर गए।
मम्मी ने मस्करा के मुझे देखा और बोलीं
" होता है यार होता है , मुझे देख के बड़ों बड़ों के साथ ,...और फिर तुम्हारे इस बालक ने इतना सामान ढोया था न की , ... कुछ टिप तो बनती थी न "
" टिप , ... या टिट दर्शन , मम्मी आप भी न। " खिलखिलाते मैं बोली।
और हम दोनों कॉलेज की सहेलियों की तरह खिलखिलाने लगीं। मेरे और मम्मी के बीच का रिश्ता था भी ऐसा।