30-11-2021, 03:52 PM
में धन्य हो गया!!. मेरा जीवन जैसे सफल हो गया!! मेरी बहन ने मेरे वीर्य का पानी चाट लिया. और उसे उस'का स्वाद पसंद भी आया!!. इस बात से मुझे यकीन हो गया के अगर में उसके मूँ'ह में झाड़ जाउ तो वो मेरा पूरा वीर्य निगल लेगी. इस ख़याल से में खूस हो गया और उत्साह से उसे आगे क्या कर'ना है ये बताने लगा.
"अब, दीदी. तुम अपना मूँ'ह खोल दो और मेरे लंड का सिर्फ़ सुपाडा अप'ने मूँ'ह में ले लो. हाँ. ऐसेही. ओहा. अब. अप'ने होठों से सुपाडे के बेस को जाकड़ लो. और फिर अप'नी जीभ और मूँ'ह के अंदर का उप्परी भाग. इस'के बीच पकड़ा के सुपाडे को ज़ोर से चूसो. अहहाहा!. ऐसेही. ग्रेट!.. ऐसे ही कर'ते रहो. ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो. धीरे धीरे.. हाँ. इतना ही. बराबर. चूसो. दीदी. चूसो मेरा लंड.." यकायका मेरा लंड चुसते चुसते संगीता दीदी हंस'ने लगी. वो क्यों हंस रही है ये मेरी समझ में नही आया इस'लिए मेने उसे पुछा,
"क्या हुआ, दीदी? तुम हंस क्यों रही हो??"
"कुच्छ नही रे, सागर." संगीता दीदी ने अपना सर उठाते हुए कहा,
"तुम'ने मुझे धीरे से चूस'ने के लिए कहा तो मुझे थोड़ी देर पहेले की बात याद आई. तुम भी मेरी चूत ऐसे ही ज़ोर से चाट रहे थे और मुझे भी पह'ले पह'ले थोड़ी तकलीफ़ हुई. इस'लिए अब उस'का बदला लेने के लिए में तुम्हें ज़ोर से चूसूंगी." ऐसा कह'कर हंस'ते हंस'ते वो वापस मेरा लंड चूस'ने लगी. मेने डराते हुए उसे कहा,
"अरे नही, दीदी. वैसे ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो.. उस से मेरे लंड को तकलीफ़ होगी. बहुत ही नज़ूक होता है लंड.. तुम्हारी चूत जैसा नही होता है."
"नही रे, सागर!. में तो मज़ाक में कह रही हूँ.. में कैसे तुम्हें तकलीफ़ दूँगी? डरो मत..! में धीरे से चूस'ती हूँ तुम्हारा लंड!!."
"ओहा "थॅंक्स, दीदी!.. अहहाहा.. ऐसेही, दीदी.. ऐसेच. क्या बताउ तुम्हें, दीदी.. कित'ना अच्छा लगा रहा है.. अब. तुम मेरा पूरा लंड. अप'ने मूँ'ह में.. लेने की कोशीष करो.. हम. ऐसेही नीचे जाओ. और नीचे. और. अप'नी नाक से साँस लो.. ज़ोर ज़ोर से. जिस'से तुम्हें आना ईज़ी फील नही होगा. जाओ. और नीचे जाओ."
"अब, दीदी. तुम अपना मूँ'ह खोल दो और मेरे लंड का सिर्फ़ सुपाडा अप'ने मूँ'ह में ले लो. हाँ. ऐसेही. ओहा. अब. अप'ने होठों से सुपाडे के बेस को जाकड़ लो. और फिर अप'नी जीभ और मूँ'ह के अंदर का उप्परी भाग. इस'के बीच पकड़ा के सुपाडे को ज़ोर से चूसो. अहहाहा!. ऐसेही. ग्रेट!.. ऐसे ही कर'ते रहो. ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो. धीरे धीरे.. हाँ. इतना ही. बराबर. चूसो. दीदी. चूसो मेरा लंड.." यकायका मेरा लंड चुसते चुसते संगीता दीदी हंस'ने लगी. वो क्यों हंस रही है ये मेरी समझ में नही आया इस'लिए मेने उसे पुछा,
"क्या हुआ, दीदी? तुम हंस क्यों रही हो??"
"कुच्छ नही रे, सागर." संगीता दीदी ने अपना सर उठाते हुए कहा,
"तुम'ने मुझे धीरे से चूस'ने के लिए कहा तो मुझे थोड़ी देर पहेले की बात याद आई. तुम भी मेरी चूत ऐसे ही ज़ोर से चाट रहे थे और मुझे भी पह'ले पह'ले थोड़ी तकलीफ़ हुई. इस'लिए अब उस'का बदला लेने के लिए में तुम्हें ज़ोर से चूसूंगी." ऐसा कह'कर हंस'ते हंस'ते वो वापस मेरा लंड चूस'ने लगी. मेने डराते हुए उसे कहा,
"अरे नही, दीदी. वैसे ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो.. उस से मेरे लंड को तकलीफ़ होगी. बहुत ही नज़ूक होता है लंड.. तुम्हारी चूत जैसा नही होता है."
"नही रे, सागर!. में तो मज़ाक में कह रही हूँ.. में कैसे तुम्हें तकलीफ़ दूँगी? डरो मत..! में धीरे से चूस'ती हूँ तुम्हारा लंड!!."
"ओहा "थॅंक्स, दीदी!.. अहहाहा.. ऐसेही, दीदी.. ऐसेच. क्या बताउ तुम्हें, दीदी.. कित'ना अच्छा लगा रहा है.. अब. तुम मेरा पूरा लंड. अप'ने मूँ'ह में.. लेने की कोशीष करो.. हम. ऐसेही नीचे जाओ. और नीचे. और. अप'नी नाक से साँस लो.. ज़ोर ज़ोर से. जिस'से तुम्हें आना ईज़ी फील नही होगा. जाओ. और नीचे जाओ."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
