28-11-2021, 06:09 PM
दूसरे दिन मेरी आंख जल्दी खुली पर मैं वैसे ही नंगा बेड पर लेटा रहा। कल का दिन मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था। उस पल को याद करते ही मेरा लन्ड फिर से सख्त हो गया , लेकिन अब मुझे मुठ मारने की जरूरत नहीं थी, मैने घड़ी देखी और वैसे ही नंगा नीच चला गया। चाचा खेत में चले गए थे और चाची किचन में नहाने का पानी गर्म कर रही थी। मैं वैसे ही निर्मला चाची के पिछे गया और मेरा लन्ड चाची की गंद पर रख कर रगड़ने लगा। चाची एकदम से डरकर मुझ से दूर हो गई और मेरी तरफ देखने लगी।
"आह, राजा, ये , ये क्या है? कपड़े कहा है तुम्हारे?", चाची ने मेरे लन्ड को निहारते हुए पूछा। मैने चाकू के कमर में हाथ डालकर उनको अपनी तरफ खींचा, "चाची, कपड़े पहनो, फिर उतारो, फिर आपको चोदो, फिर कपड़े पहनो, कितना टाइम खराब होता है", मैं तो कहता हु आप भी ये साड़ी पहनना हैं कर दो, क्या जरूरत है अब इन सबकी।", मैने चाची की साड़ी का पल्लू हटाते हुए कहा। चाची ने अब अपने हाथ में मेरा लन्ड पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया और मैने उनके चूचे मसलना। अब हम घर में अकेले थे और चाचा अब सीधे रात को घर आने वाले थे। निर्मला चाची भी अब बिंधास होकर मेरा साथ देने लगी।
सबसे पहले हमने बाथरूम में एक साथ चुदाई की और बाद में नहा लिया, उसके बाद मैने चाची को उनके बेडरूम में चोदा और फिर हम दोनो वही सोए। शाम को मैने फिर से चाची को पिछले आंगन में पेड़ के पीछे चोदा, खुले में चोदना चाची के लिए अलग सा एहसास था। अब हम दोनो हर रोज हमारे जिस्म की भूख मिटाने लगे, शाम को चाचा का दारू पीकर आना हमारे लिए सोने पे सुहागा सा था। चाचा के सोने के बाद चाची खुद मेरे रूम में आकर चुदाई करती, जैसे दिन बीतते गए, हम दोनो और ज्यादा बेफिकर बनते गए, मैं चाची को खुले खेतो में चुदनें के लिए ले जाता, वो भी मेरे कहने पे बिना ब्रा के ब्लाउज पहनकर बाहर घूमने आने लगी। चाचा के सोने के बाद मैंने अब चाची को उसी की बेडरूम में चोदना शुरू कर दिया। चाचा शराब में डूबा सोया रहता और मैं उसकी बीवी को जमकर चोदकर उसकी चूत के वीर्य भर देता था। १ माह के छुट्टी में मैंने हर दिन चाची की चूत मे अपनी मलाई डाल दी थी। कॉलेज शुरू होने के बाद मैं हर वीकेंड को गांव जाकर अपनी हवस मिटा लेता था। और आखिर कार ३ महिने बाद गांव से फोन आया की निर्मला चाची पेट से है। फोन पर चाचा को अपनी खुशी व्यक्त करता देख मैं बस मन ही मन हस रहा था। मैं और मेरे माता पिता तुरंत इस खुशी के पल मनाने के लिए गांव चले आए। मेरे आते ही निर्मला चाची ने मुझ से आंख मिला ली और शर्म से वो नीचे देखने लगी। उनका हाथ अपने पेट पर था और वो देख मेरा सीना चौड़ा हो चुका था।
"भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं", मेरी मम्मी ने निर्मला चाची को अपने गले लगाते हुए कहा, "अब देखना सब ठीक हो जायेगा", पिताजी ने चाचा के मुंह में मिठाई भरते हुए कहा। मैं बस वहा खड़ा मुस्कुरा रहा था। "राजा, अरे तेरी चाची मां बनाने वाली है, तू वहा क्यों खड़ा है, इधर आ और चाची को मिठाई खिला", ममी ने मुझे अपने पास बुलाते हुए कहा। मैं अब चाची के पास आया और एक मिठाई चाची के मुंह में डालकर मुस्कुराते हुए बोला, " मुबारक हो चाची, आखिर कर आपका सपना पूरा हो गया", चाची ने भी हल्की मुस्कुराहट के साथ मिठाई खाई और मेरे कान में हलके से बोल पड़ी , "राजा, अभी तो सिर्फ एक सपना पूरा हुआ है, और बहुत सारे सपने बाकी है, जो तुझे पूरे करने है", मैं उसकी बात को अच्छे से समाज चुका था। ये तो बस एक शुरवात थी हमारे एक नए रिश्ते की।
( समाप्त)
"आह, राजा, ये , ये क्या है? कपड़े कहा है तुम्हारे?", चाची ने मेरे लन्ड को निहारते हुए पूछा। मैने चाकू के कमर में हाथ डालकर उनको अपनी तरफ खींचा, "चाची, कपड़े पहनो, फिर उतारो, फिर आपको चोदो, फिर कपड़े पहनो, कितना टाइम खराब होता है", मैं तो कहता हु आप भी ये साड़ी पहनना हैं कर दो, क्या जरूरत है अब इन सबकी।", मैने चाची की साड़ी का पल्लू हटाते हुए कहा। चाची ने अब अपने हाथ में मेरा लन्ड पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया और मैने उनके चूचे मसलना। अब हम घर में अकेले थे और चाचा अब सीधे रात को घर आने वाले थे। निर्मला चाची भी अब बिंधास होकर मेरा साथ देने लगी।
सबसे पहले हमने बाथरूम में एक साथ चुदाई की और बाद में नहा लिया, उसके बाद मैने चाची को उनके बेडरूम में चोदा और फिर हम दोनो वही सोए। शाम को मैने फिर से चाची को पिछले आंगन में पेड़ के पीछे चोदा, खुले में चोदना चाची के लिए अलग सा एहसास था। अब हम दोनो हर रोज हमारे जिस्म की भूख मिटाने लगे, शाम को चाचा का दारू पीकर आना हमारे लिए सोने पे सुहागा सा था। चाचा के सोने के बाद चाची खुद मेरे रूम में आकर चुदाई करती, जैसे दिन बीतते गए, हम दोनो और ज्यादा बेफिकर बनते गए, मैं चाची को खुले खेतो में चुदनें के लिए ले जाता, वो भी मेरे कहने पे बिना ब्रा के ब्लाउज पहनकर बाहर घूमने आने लगी। चाचा के सोने के बाद मैंने अब चाची को उसी की बेडरूम में चोदना शुरू कर दिया। चाचा शराब में डूबा सोया रहता और मैं उसकी बीवी को जमकर चोदकर उसकी चूत के वीर्य भर देता था। १ माह के छुट्टी में मैंने हर दिन चाची की चूत मे अपनी मलाई डाल दी थी। कॉलेज शुरू होने के बाद मैं हर वीकेंड को गांव जाकर अपनी हवस मिटा लेता था। और आखिर कार ३ महिने बाद गांव से फोन आया की निर्मला चाची पेट से है। फोन पर चाचा को अपनी खुशी व्यक्त करता देख मैं बस मन ही मन हस रहा था। मैं और मेरे माता पिता तुरंत इस खुशी के पल मनाने के लिए गांव चले आए। मेरे आते ही निर्मला चाची ने मुझ से आंख मिला ली और शर्म से वो नीचे देखने लगी। उनका हाथ अपने पेट पर था और वो देख मेरा सीना चौड़ा हो चुका था।
"भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं", मेरी मम्मी ने निर्मला चाची को अपने गले लगाते हुए कहा, "अब देखना सब ठीक हो जायेगा", पिताजी ने चाचा के मुंह में मिठाई भरते हुए कहा। मैं बस वहा खड़ा मुस्कुरा रहा था। "राजा, अरे तेरी चाची मां बनाने वाली है, तू वहा क्यों खड़ा है, इधर आ और चाची को मिठाई खिला", ममी ने मुझे अपने पास बुलाते हुए कहा। मैं अब चाची के पास आया और एक मिठाई चाची के मुंह में डालकर मुस्कुराते हुए बोला, " मुबारक हो चाची, आखिर कर आपका सपना पूरा हो गया", चाची ने भी हल्की मुस्कुराहट के साथ मिठाई खाई और मेरे कान में हलके से बोल पड़ी , "राजा, अभी तो सिर्फ एक सपना पूरा हुआ है, और बहुत सारे सपने बाकी है, जो तुझे पूरे करने है", मैं उसकी बात को अच्छे से समाज चुका था। ये तो बस एक शुरवात थी हमारे एक नए रिश्ते की।
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