28-11-2021, 06:00 PM
(This post was last modified: 29-11-2021, 03:26 PM by Silverstone93. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
निर्मला चाची के साथ सुनहरे पल
नमस्कार दोस्तों,
मेरा नाम है "राजेश मिश्रा" उर्फ "राजा"। मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव का रहने वाला हु। अब मैं आपके सामने एक कहानी रखने जा रहा हु जो आज से करीब १८ साल पहले घटी थी।
मैं अपने माता पिता के साथ शहर में पढा बढ़ा था, इसलिए मुझे अपने गांव के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था, लेकिन जब भी छुट्टियां मनाने का वक्त आता तो मैं अपने पिताजी के साथ अपने गांव चला जाता। गांव में हमारे घर में मेरे चाचा और चाची दोनो ही रहते थे। चाचा दिन भर खेती करने में लगे रहते थे और चाची घर के कामों में व्यस्त थी। उनकी शादी को अब 20 साल हो चुके थे, लेकिन आज तक उनको संतान का सुख नहीं मिल पाया था। चाचा-चाची ने कई वैद्य, महाराज के टोटके आजमा लिए, पर कोई फायदा नही हुआ, बाद में उन दोनों के रिश्ते में दरार सी बन गई। चाचा बार बार चाची को दोष देते और फिर शराब की नशे में उनसे मारपीट भी किया करते, लेकिन निर्मला चाची ने कभी घर छोड़ कर जाने की नहीं सोची। वो भी खुद को हो दोष देती और अपने काम में लग जाती।
निर्मला चाची की अपनी औलाद न होने से वो मुझ से काफी ज्यादा प्यार करती थी, जब भी मैं गांव जाता था तब वो मुझ से बड़े ही प्यार से बर्ताव करती थी, और इसी वजह से मुझे भी उनके साथ बात करने में काफी खुशी मिलती थी । जब तक मैं बच्चा था, तब तक मुझे निर्मला चाची से मिलने के लिए गांव जाना बहुत ही अच्छा लगता था।
लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया, वैसे ही मेरे मन में निर्मला चाची के लिए अजीब से खयाल आने शुरू हो गए। अब मैं गांव जाता तो उनके भरे जिस्म को देखता। उनके बड़े बड़े स्तनों को मसलने के विचार ही मुझे काफी गर्म करने लगे थे। कॉलेज के दिनों में मेरी नज़रे जवान लड़कियों से ज्यादा शादीशुदा औरतों पर रहती थी, लेकिन उन में से कोई भी निर्मला चाची की जगह नहीं ले पा रही थी। मेरी जवानी अब हर दिन निर्मला चाची के जिस्म और उनके बड़े स्तनों के बारे में सोचकर मुठ मारने में जा रही थी। हर दिन मेरे दिमाग में बस उनका ही खयाल था और वो खयाल मुझे अब सोने भी नही दे रहा था। चाची के पास मोबाइल भी नही था , वरना मैं उनके साथ पूरा दिन बात करता रहता। मेरी बैचैनी की बस एक ही दवाई थी और वो थी "निर्मला चाची"।
सेमेस्टर खत्म होते ही मैंने गांव जाने के लिए अपने कपड़े बैग में डाल दिए और बाइक पर सवार होकर मैं तुरंत अपने गाव की तरफ चल पड़ा। पूरे रास्ते में मैं बस निर्मला चाची के बारे में ही सोच रहा था और मेरा सख्त लन्ड मेरी जीन्स में अकड़ गया था। गांव में घुसते ही मुझे मेरे दोस्तो ने रोका,
"अरे राजा, क्या बात है। नई बाइक ले ली तूने?", उन में से एक ने मेरी बाइक पर से हाथ फेरते हुए कहा।
"हा भाई, इसीलिए आया हु अपने चाचा चाची को बाइक दिखाने," मैंने भी मुस्कुराते हुए बोला।
"तो भाई, पार्टी कब दे रहा है?", सब ने एक साथ कहा।
"आज रात को अपने अड्डे पे, ये ले ₹२००० और शाम को मस्त चिकन की पार्टी करेंगे, हाहाहाहा", मैंने हंसते हुए उनमें से एक के हाथ में ₹२००० का नोट रख दिया और वहां से चल दिया। घर के बाहर बाइक रोकने के बाद मेरी नजर अपने बड़े घर पर पड़ी और मैं मुस्कुराते हुए धीरे से घर के अंदर चला गया। घर में कोई नहीं देख मैं थोड़ा निराश हो गया, लेकिन तभी मुझे घर के पीछे से कुछ आवाज आई। मैं तुरंत पीछे गया तो वहा चाची मेरी तरफ पीठ किए हुए जमीं पर से कुछ उठा रही थी। मेरी नजर अब निर्मला चाची की गोली मोटी गांड़ पर थी। मैंने अपने होंठो पर से जुबान फेरते हुए अपने लन्ड को मसला और बिना देर किए उनके पीछे आ गया और उनकी कमर में हाथ डालकर उनको उठा लिया,
"आह्ह्ह्ह।। कौ.... कौन हैं??? छोड़ो मुझे, आह्ह्ह!!!" , चाची एकदम से चिल्ला उठी, लेकिन मैं इस पल को जीना चाहता था, मेरे दोनो हाथ चाची की मुलायम पेट पर से फेर रहे थे और मेरा लन्ड उनकी बड़ी गांड़ पर दब रहा था, मैंने अपनी पकड़ और थोड़ी तेज कर दी और जोर से हंसने लगा,
"आह्ह्ह्ह्ह, कौन है? छोड़ो मुझे बेशर्म, आह", चाची मेरे हाथो से छूटने की कोशिश कर रही थी, आखिर मैंने उनको अपनी मजबूत पकड़ से छोड़ दिया और उन्हें नीचे उतर दिया , चाची तुरंत पीछे मुड़ी, उनके चेहरे पे गुस्सा था, लेकिन जैसी ही उन्होंने मुझे देखा वो गुस्सा एकदम से खुशी के बदल गया।
" राजा, मेरा बच्चा। तू है? बदमाश हाहा", चाची ने मुझे अपने गले लगा लिया और अब उनके बड़े मम्मे मेरे सीने में दब जाते है, मैंने भी अब अपनें दोनो हाथ चाची के कमर पर रख दिए और उनकी मुलायम से गोरे जिस्म को मेहसूस करने लगा।
"तुम आने वाले हो, ये बता देते तो कुछ अच्छा खाना बना देती मैं तुम्हारे लिए", चाची अब मेरे बालो में से हाथ फेरते हुए बोलती है, "और दीदी (मेरी मां) नही आई?"
"चाची, वो आ जायेंगे बाद में, चलिए मुझे आपको एक चीज दिखानी है", मैं चाची का हाथ पकड़ कर उन्हे अपनी बाइक दिखाने के लिए गेट पर ले आया
बाइक देखते ही चाची के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई, वो बाइक पर से हाथ फेरते हुए उसको निहारने लगी। उनका भी सपना था की वो भी ऐसी बाइक पर सवार होकर शहर घूमने जाए, पर वो सपना कभी पूरा नहीं हो पाया। चाची ने मेरे साथ अपने कई सारे सपने बयान किए थे इसलिए मुझे अच्छे से मालूम था की चाची को बाइक से कितना लगाव है। मैंने अपने पिताजी से बाइक इसी लिए ली थी की मैं चाची के और करीब आ सकू।
"चाची, आप का सपना था ना की आप बाइक पर बैठकर शहर घूमने जाए", मैने चाची के पास जाकर कहा। मेरी बात सुनकर निर्मला चाची ने मुझे देखा और मुस्कुराते हुए वो एक बार फिर से मेरे गले लग गई, मैं उनके बदन की खुशबू सूंघते हुए उनकी पीठ पर से हाथ फेरने लगा।
शाम को चाचा खेत से घर आए, वो हर रोज की तरह आज भी नशे में धुत थे। मैने उनको भी मेरी बाइक दिखाई और वो खुश होते हुए मेरे साथ एक बार पूरे गांव का चक्कर लगा कर आ गए। शाम के खाने के वक्त मैने चाची को कहा की मैं अपने दोस्तो के साथ पार्टी करने के लिए खेत में जा रहा हु। पार्टी मनाने के बाद सब दोस्त खेतो में ही सो गए लेकिन मैं अपनी बाइक लेकर वापिस घर आ गया, अभी रात के १.०० ही बज रहे थे और मैं घर में पिछले दरवाजे से घुस गया। चाचा के खर्राटे मुझे अच्छे से सुनाई दे रहे थे लेकिन तभी मुझे चाची की करहाने की आवाज सुनाई दी और मेरी नज़र अब उनके रुम की तरफ गई । मैंने अब दरवाजे से कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो एक बार फिर से चाची की करहाने की आवाज आई। वो आवाज काफी मादक सुनाई दे रही थी, मैं वही बाहर खड़ा उनकी आवाज सुन रहा था। लेकिन थोड़ी देर बाद वो आवाज बंद हो गई और मैं नाराज़ होकर अपनी रुम में चला गया। मुझे यकीन तो नही था पर उस आवाज से मुझे लग रहा था कि जरूर चाची कुछ कर रही थी।
"जरूर वो अपनी चूत में उंगली डाल कर अपनी गर्मी को शांत कर रही होंगी", मेरे मन में निर्मला चाची की चूत में उंगली डालने वाली तस्वीर सामने आने लगी। एक बार फिर से मेरा लन्ड खड़ा हो गया, मैं अपने कमरे में गया और फिर अपने कपड़े उतार कर चाची के बारे में सोच कर मुठ मारने लग गया। लगभग १० मिनट में ही मेरे लन्ड से वीर्य की तेज़ पिचकारी उड़कर फर्श पर गिर गई और मैं वैसे ही नंगा बेड पर लेट गया। उसके बाद मेरी निंद कब लग गई ये मुझे खुद पता नही चला।
दूसरे दिन मेरी आंख खुली तब दोपहर हो चुकी थी , मैं अपने बिस्तर पर पूरा नंगा लेटा हुआ था और मेरा लन्ड खड़ा हो कर सलामी दे रहा था, मेरे लन्ड से अभी अभी वीर्य की एक ताजा पिचकारी बहकर पूरे बेड पर बिखर चुकी थी। ऐसा पहले भी कई बार हुआ था, लेकिन आज मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था, मैं एकदम से खड़ा हो गया, क्योंकि मुझे लगा की शायद चाची मुझे उठाने आई होंगी और उन्होंने मुझे इस हालत में देखा होगा, मैं जल्दी से कपड़े पहनकर नीचे गया और चाची को ढूंढने लगा। वो किचन मे खाना बनाने में लगी हुई थी।
"अरे राजा, तुम घर कब आए ?", चाची रोटी बनाते हुए पूछने लगी. "जी चाची, वो मैं कल रात को ही आ गया था", मैने नहाने के लिए पानी लेते हुए कहा. "अच्छा? मुझे लगा की तुम अभी तक बाहर ही हो, लेकिन तुम अपने कमरे में ही थे?", चाची खुद से ही हंसते हुए बोली। चाची की बात सुनकर मुझे थोड़ा सुकून और थोड़ी नाराजगी हुई। चाची ने मुझे नंगा नही देखा, ये मेरे लिए अब गम जैसा लगने लगा, काश वो मुझे नंगा देखती तो वो क्या सोचती मेरे बड़े लन्ड को देखकर। इस सवाल से ही मेरा लन्ड एक बार फिर से खड़ा हो गया। मैं अब बाहर आंगन में जाकर नहाने लग गया, लेकिन किचन में निर्मला चाची का दिल जोरो से धड़क रहा था।
(४ घंटे पहले , सुबह के ८ बजे)
चाचा जी हमेशा की तरह सुबह ही खेती करने के लिए निकल गए थे और निर्मला चाची सामने वाले आंगन को साफ करने के बाद अब पीछे वाले आंगन साफ करने जाती है, तभी उनको दरवाजे के पास राजा के जूते दिखाई देते है।
"अरे, राजा के जूते यहां ? जरूर ये लड़का रात को सोने के लिए वापिस घर आया होगा और मुझे तकलीफ न हो इसलिए पीछे से आया होगा", चाची अपने आप से बात करते हुए उन जूतों को उठाके एक बाजु में रख देती है और अपने काम में लग जाती है। लगभग डेढ़ घंटे में सारा काम खत्म करने के बाद अब निर्मला राजा को उठाने के लिए उसके रूम की तरफ जाती है। वो जैसे ही राजा के रुम का दरवाजा खोलती है, उसके सामने बेड पर उसका इकलौता भतीजा नंगा सोया हुआ था। निर्मला की नजर अब उसके बड़े लन्ड पर जाती है, जो सोया हुआ भी काफी बड़ा दिख रहा था, उसका बड़ा लन्ड देख निर्मला एकदम से अपनी आंखे बंद कर लेती है और उसके रूम से बाहर आती है।
" हे भगवान, ये मैने क्या देख लिया?", निर्मला अब अपने मुंह पर हाथ रख देती है। उसको यकीन नही हो रहा था की उसने अभी अभी अपने बेटे जैसे भतीजे का लन्ड देखा है। वो अपनी धड़कन को काबू करने की नाकाम कोशिश करने लगती है। वो राजा के रुम के बाहर खड़ी थी, लेकिन उसके पांव वहा से हिल नहीं पा रहे थे, वो अपने आंखो के सामने से राजा के लन्ड की तस्वीर हटा नही पा रही थी। वो वहा से जाने की सोचती है, पर वो नीचे जाने के बजाय एक बार फिर से राजा के रुम का दरवाजा खोल देती है। वो एक बार राजा के लन्ड को निहारकर वहा से जाने का सोचती है। उनके मन में आया हुआ ये खयाल ही आगे जाकर उनसे न जाने क्या क्या करवाने वाला था। वो दरवाजा पे खड़ी अब चुपके से राजा के जवान लन्ड को निहारने लगती है। जिस राजा को वो अपने बच्चे जैसा समज रही थी, आज उसी के लन्ड को वो बड़े गौर से देख रही थी। राजा बड़ी आराम से सोया हुआ था और निर्मला को मालूम था की राजा की नींद को तोड़ना मुश्किल है, इसलिए अब निर्मला की हिम्मत और बढ़ जाती है और वो अब दरवाजा खोलकर अंदर आ जाती हैं, तभी उसको अपने पैरों के नीचे कुछ चिपचिप सी चीज़ मेहसूस होती है, वो नीचे देखती है तो वह चीज कोई और नहीं बल्कि राजा का वीर्य था, जी कल रात उसने निर्मला चाची की याद में बहा दिया था। निर्मला को समज आता है की वो क्या है और वो तुरंत वहा से अपना पैर हटा देती है और राजा के बेड के पास आती है। उसका जवान बदन देख निर्मला अब जोर से सांस भरने लगती है। शायद ये उसके १५-२० साल तक भूखे जिस्म का नतीजा था की वो आज अपने भतीजे के बदन को देख गर्म हो गई थी। वो अब धीरे से राजा के दोनो टांगो के बीच बैठ कर उसके लन्ड को देखने लगती है। एक २० साल के लड़के का लन्ड, इतना बड़ा और मोटा कैसे , ये सवाल निर्मला के दिमाग में घूमने लगता है। अब उसकी एक उंगली धीरे से राजा के लन्ड पर से फेरने लगती है और राजा का लन्ड एकदम से सक्त होने लगता है। निर्मला ने कई सालो बाद एक सख्त लन्ड देखा था, उसको अब याद भी नहीं आ रहा था की उन आखिरी बार कब चुदाई की थी।
मेरा नाम है "राजेश मिश्रा" उर्फ "राजा"। मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव का रहने वाला हु। अब मैं आपके सामने एक कहानी रखने जा रहा हु जो आज से करीब १८ साल पहले घटी थी।
मैं अपने माता पिता के साथ शहर में पढा बढ़ा था, इसलिए मुझे अपने गांव के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था, लेकिन जब भी छुट्टियां मनाने का वक्त आता तो मैं अपने पिताजी के साथ अपने गांव चला जाता। गांव में हमारे घर में मेरे चाचा और चाची दोनो ही रहते थे। चाचा दिन भर खेती करने में लगे रहते थे और चाची घर के कामों में व्यस्त थी। उनकी शादी को अब 20 साल हो चुके थे, लेकिन आज तक उनको संतान का सुख नहीं मिल पाया था। चाचा-चाची ने कई वैद्य, महाराज के टोटके आजमा लिए, पर कोई फायदा नही हुआ, बाद में उन दोनों के रिश्ते में दरार सी बन गई। चाचा बार बार चाची को दोष देते और फिर शराब की नशे में उनसे मारपीट भी किया करते, लेकिन निर्मला चाची ने कभी घर छोड़ कर जाने की नहीं सोची। वो भी खुद को हो दोष देती और अपने काम में लग जाती।
निर्मला चाची की अपनी औलाद न होने से वो मुझ से काफी ज्यादा प्यार करती थी, जब भी मैं गांव जाता था तब वो मुझ से बड़े ही प्यार से बर्ताव करती थी, और इसी वजह से मुझे भी उनके साथ बात करने में काफी खुशी मिलती थी । जब तक मैं बच्चा था, तब तक मुझे निर्मला चाची से मिलने के लिए गांव जाना बहुत ही अच्छा लगता था।
लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया, वैसे ही मेरे मन में निर्मला चाची के लिए अजीब से खयाल आने शुरू हो गए। अब मैं गांव जाता तो उनके भरे जिस्म को देखता। उनके बड़े बड़े स्तनों को मसलने के विचार ही मुझे काफी गर्म करने लगे थे। कॉलेज के दिनों में मेरी नज़रे जवान लड़कियों से ज्यादा शादीशुदा औरतों पर रहती थी, लेकिन उन में से कोई भी निर्मला चाची की जगह नहीं ले पा रही थी। मेरी जवानी अब हर दिन निर्मला चाची के जिस्म और उनके बड़े स्तनों के बारे में सोचकर मुठ मारने में जा रही थी। हर दिन मेरे दिमाग में बस उनका ही खयाल था और वो खयाल मुझे अब सोने भी नही दे रहा था। चाची के पास मोबाइल भी नही था , वरना मैं उनके साथ पूरा दिन बात करता रहता। मेरी बैचैनी की बस एक ही दवाई थी और वो थी "निर्मला चाची"।
सेमेस्टर खत्म होते ही मैंने गांव जाने के लिए अपने कपड़े बैग में डाल दिए और बाइक पर सवार होकर मैं तुरंत अपने गाव की तरफ चल पड़ा। पूरे रास्ते में मैं बस निर्मला चाची के बारे में ही सोच रहा था और मेरा सख्त लन्ड मेरी जीन्स में अकड़ गया था। गांव में घुसते ही मुझे मेरे दोस्तो ने रोका,
"अरे राजा, क्या बात है। नई बाइक ले ली तूने?", उन में से एक ने मेरी बाइक पर से हाथ फेरते हुए कहा।
"हा भाई, इसीलिए आया हु अपने चाचा चाची को बाइक दिखाने," मैंने भी मुस्कुराते हुए बोला।
"तो भाई, पार्टी कब दे रहा है?", सब ने एक साथ कहा।
"आज रात को अपने अड्डे पे, ये ले ₹२००० और शाम को मस्त चिकन की पार्टी करेंगे, हाहाहाहा", मैंने हंसते हुए उनमें से एक के हाथ में ₹२००० का नोट रख दिया और वहां से चल दिया। घर के बाहर बाइक रोकने के बाद मेरी नजर अपने बड़े घर पर पड़ी और मैं मुस्कुराते हुए धीरे से घर के अंदर चला गया। घर में कोई नहीं देख मैं थोड़ा निराश हो गया, लेकिन तभी मुझे घर के पीछे से कुछ आवाज आई। मैं तुरंत पीछे गया तो वहा चाची मेरी तरफ पीठ किए हुए जमीं पर से कुछ उठा रही थी। मेरी नजर अब निर्मला चाची की गोली मोटी गांड़ पर थी। मैंने अपने होंठो पर से जुबान फेरते हुए अपने लन्ड को मसला और बिना देर किए उनके पीछे आ गया और उनकी कमर में हाथ डालकर उनको उठा लिया,
"आह्ह्ह्ह।। कौ.... कौन हैं??? छोड़ो मुझे, आह्ह्ह!!!" , चाची एकदम से चिल्ला उठी, लेकिन मैं इस पल को जीना चाहता था, मेरे दोनो हाथ चाची की मुलायम पेट पर से फेर रहे थे और मेरा लन्ड उनकी बड़ी गांड़ पर दब रहा था, मैंने अपनी पकड़ और थोड़ी तेज कर दी और जोर से हंसने लगा,
"आह्ह्ह्ह्ह, कौन है? छोड़ो मुझे बेशर्म, आह", चाची मेरे हाथो से छूटने की कोशिश कर रही थी, आखिर मैंने उनको अपनी मजबूत पकड़ से छोड़ दिया और उन्हें नीचे उतर दिया , चाची तुरंत पीछे मुड़ी, उनके चेहरे पे गुस्सा था, लेकिन जैसी ही उन्होंने मुझे देखा वो गुस्सा एकदम से खुशी के बदल गया।
" राजा, मेरा बच्चा। तू है? बदमाश हाहा", चाची ने मुझे अपने गले लगा लिया और अब उनके बड़े मम्मे मेरे सीने में दब जाते है, मैंने भी अब अपनें दोनो हाथ चाची के कमर पर रख दिए और उनकी मुलायम से गोरे जिस्म को मेहसूस करने लगा।
"तुम आने वाले हो, ये बता देते तो कुछ अच्छा खाना बना देती मैं तुम्हारे लिए", चाची अब मेरे बालो में से हाथ फेरते हुए बोलती है, "और दीदी (मेरी मां) नही आई?"
"चाची, वो आ जायेंगे बाद में, चलिए मुझे आपको एक चीज दिखानी है", मैं चाची का हाथ पकड़ कर उन्हे अपनी बाइक दिखाने के लिए गेट पर ले आया
बाइक देखते ही चाची के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई, वो बाइक पर से हाथ फेरते हुए उसको निहारने लगी। उनका भी सपना था की वो भी ऐसी बाइक पर सवार होकर शहर घूमने जाए, पर वो सपना कभी पूरा नहीं हो पाया। चाची ने मेरे साथ अपने कई सारे सपने बयान किए थे इसलिए मुझे अच्छे से मालूम था की चाची को बाइक से कितना लगाव है। मैंने अपने पिताजी से बाइक इसी लिए ली थी की मैं चाची के और करीब आ सकू।
"चाची, आप का सपना था ना की आप बाइक पर बैठकर शहर घूमने जाए", मैने चाची के पास जाकर कहा। मेरी बात सुनकर निर्मला चाची ने मुझे देखा और मुस्कुराते हुए वो एक बार फिर से मेरे गले लग गई, मैं उनके बदन की खुशबू सूंघते हुए उनकी पीठ पर से हाथ फेरने लगा।
शाम को चाचा खेत से घर आए, वो हर रोज की तरह आज भी नशे में धुत थे। मैने उनको भी मेरी बाइक दिखाई और वो खुश होते हुए मेरे साथ एक बार पूरे गांव का चक्कर लगा कर आ गए। शाम के खाने के वक्त मैने चाची को कहा की मैं अपने दोस्तो के साथ पार्टी करने के लिए खेत में जा रहा हु। पार्टी मनाने के बाद सब दोस्त खेतो में ही सो गए लेकिन मैं अपनी बाइक लेकर वापिस घर आ गया, अभी रात के १.०० ही बज रहे थे और मैं घर में पिछले दरवाजे से घुस गया। चाचा के खर्राटे मुझे अच्छे से सुनाई दे रहे थे लेकिन तभी मुझे चाची की करहाने की आवाज सुनाई दी और मेरी नज़र अब उनके रुम की तरफ गई । मैंने अब दरवाजे से कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो एक बार फिर से चाची की करहाने की आवाज आई। वो आवाज काफी मादक सुनाई दे रही थी, मैं वही बाहर खड़ा उनकी आवाज सुन रहा था। लेकिन थोड़ी देर बाद वो आवाज बंद हो गई और मैं नाराज़ होकर अपनी रुम में चला गया। मुझे यकीन तो नही था पर उस आवाज से मुझे लग रहा था कि जरूर चाची कुछ कर रही थी।
"जरूर वो अपनी चूत में उंगली डाल कर अपनी गर्मी को शांत कर रही होंगी", मेरे मन में निर्मला चाची की चूत में उंगली डालने वाली तस्वीर सामने आने लगी। एक बार फिर से मेरा लन्ड खड़ा हो गया, मैं अपने कमरे में गया और फिर अपने कपड़े उतार कर चाची के बारे में सोच कर मुठ मारने लग गया। लगभग १० मिनट में ही मेरे लन्ड से वीर्य की तेज़ पिचकारी उड़कर फर्श पर गिर गई और मैं वैसे ही नंगा बेड पर लेट गया। उसके बाद मेरी निंद कब लग गई ये मुझे खुद पता नही चला।
दूसरे दिन मेरी आंख खुली तब दोपहर हो चुकी थी , मैं अपने बिस्तर पर पूरा नंगा लेटा हुआ था और मेरा लन्ड खड़ा हो कर सलामी दे रहा था, मेरे लन्ड से अभी अभी वीर्य की एक ताजा पिचकारी बहकर पूरे बेड पर बिखर चुकी थी। ऐसा पहले भी कई बार हुआ था, लेकिन आज मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था, मैं एकदम से खड़ा हो गया, क्योंकि मुझे लगा की शायद चाची मुझे उठाने आई होंगी और उन्होंने मुझे इस हालत में देखा होगा, मैं जल्दी से कपड़े पहनकर नीचे गया और चाची को ढूंढने लगा। वो किचन मे खाना बनाने में लगी हुई थी।
"अरे राजा, तुम घर कब आए ?", चाची रोटी बनाते हुए पूछने लगी. "जी चाची, वो मैं कल रात को ही आ गया था", मैने नहाने के लिए पानी लेते हुए कहा. "अच्छा? मुझे लगा की तुम अभी तक बाहर ही हो, लेकिन तुम अपने कमरे में ही थे?", चाची खुद से ही हंसते हुए बोली। चाची की बात सुनकर मुझे थोड़ा सुकून और थोड़ी नाराजगी हुई। चाची ने मुझे नंगा नही देखा, ये मेरे लिए अब गम जैसा लगने लगा, काश वो मुझे नंगा देखती तो वो क्या सोचती मेरे बड़े लन्ड को देखकर। इस सवाल से ही मेरा लन्ड एक बार फिर से खड़ा हो गया। मैं अब बाहर आंगन में जाकर नहाने लग गया, लेकिन किचन में निर्मला चाची का दिल जोरो से धड़क रहा था।
(४ घंटे पहले , सुबह के ८ बजे)
चाचा जी हमेशा की तरह सुबह ही खेती करने के लिए निकल गए थे और निर्मला चाची सामने वाले आंगन को साफ करने के बाद अब पीछे वाले आंगन साफ करने जाती है, तभी उनको दरवाजे के पास राजा के जूते दिखाई देते है।
"अरे, राजा के जूते यहां ? जरूर ये लड़का रात को सोने के लिए वापिस घर आया होगा और मुझे तकलीफ न हो इसलिए पीछे से आया होगा", चाची अपने आप से बात करते हुए उन जूतों को उठाके एक बाजु में रख देती है और अपने काम में लग जाती है। लगभग डेढ़ घंटे में सारा काम खत्म करने के बाद अब निर्मला राजा को उठाने के लिए उसके रूम की तरफ जाती है। वो जैसे ही राजा के रुम का दरवाजा खोलती है, उसके सामने बेड पर उसका इकलौता भतीजा नंगा सोया हुआ था। निर्मला की नजर अब उसके बड़े लन्ड पर जाती है, जो सोया हुआ भी काफी बड़ा दिख रहा था, उसका बड़ा लन्ड देख निर्मला एकदम से अपनी आंखे बंद कर लेती है और उसके रूम से बाहर आती है।
" हे भगवान, ये मैने क्या देख लिया?", निर्मला अब अपने मुंह पर हाथ रख देती है। उसको यकीन नही हो रहा था की उसने अभी अभी अपने बेटे जैसे भतीजे का लन्ड देखा है। वो अपनी धड़कन को काबू करने की नाकाम कोशिश करने लगती है। वो राजा के रुम के बाहर खड़ी थी, लेकिन उसके पांव वहा से हिल नहीं पा रहे थे, वो अपने आंखो के सामने से राजा के लन्ड की तस्वीर हटा नही पा रही थी। वो वहा से जाने की सोचती है, पर वो नीचे जाने के बजाय एक बार फिर से राजा के रुम का दरवाजा खोल देती है। वो एक बार राजा के लन्ड को निहारकर वहा से जाने का सोचती है। उनके मन में आया हुआ ये खयाल ही आगे जाकर उनसे न जाने क्या क्या करवाने वाला था। वो दरवाजा पे खड़ी अब चुपके से राजा के जवान लन्ड को निहारने लगती है। जिस राजा को वो अपने बच्चे जैसा समज रही थी, आज उसी के लन्ड को वो बड़े गौर से देख रही थी। राजा बड़ी आराम से सोया हुआ था और निर्मला को मालूम था की राजा की नींद को तोड़ना मुश्किल है, इसलिए अब निर्मला की हिम्मत और बढ़ जाती है और वो अब दरवाजा खोलकर अंदर आ जाती हैं, तभी उसको अपने पैरों के नीचे कुछ चिपचिप सी चीज़ मेहसूस होती है, वो नीचे देखती है तो वह चीज कोई और नहीं बल्कि राजा का वीर्य था, जी कल रात उसने निर्मला चाची की याद में बहा दिया था। निर्मला को समज आता है की वो क्या है और वो तुरंत वहा से अपना पैर हटा देती है और राजा के बेड के पास आती है। उसका जवान बदन देख निर्मला अब जोर से सांस भरने लगती है। शायद ये उसके १५-२० साल तक भूखे जिस्म का नतीजा था की वो आज अपने भतीजे के बदन को देख गर्म हो गई थी। वो अब धीरे से राजा के दोनो टांगो के बीच बैठ कर उसके लन्ड को देखने लगती है। एक २० साल के लड़के का लन्ड, इतना बड़ा और मोटा कैसे , ये सवाल निर्मला के दिमाग में घूमने लगता है। अब उसकी एक उंगली धीरे से राजा के लन्ड पर से फेरने लगती है और राजा का लन्ड एकदम से सक्त होने लगता है। निर्मला ने कई सालो बाद एक सख्त लन्ड देखा था, उसको अब याद भी नहीं आ रहा था की उन आखिरी बार कब चुदाई की थी।